योगेंद्र रस - आयुर्वेद की एक ऐसी रसायन औषधि है जो शरीर, मन और आत्मा तीनों पर गहरा प्रभाव डालती है। यह औषधि मुख्यतः वात-पित्तजन्य रोगों - तंत्रिका विकारों , मूत्र संबंधी रोगों और हृदय रोगों में उपयोग की जाती है।
दक्षिण भारत के हजारों वैद्यों ने योगेंद्र रस पर अपने अनुभव एक online webinar में share किया था उस दिन के बाद से में इस योगेंद्र रस के ऊपर अधिक confident हुआ और इसमें काम करना शुरू किया इन्हीं सभी बातों का निचोड़ हम इस blog के माध्यम से आपके सामने रखने वाले हैं।
जानिए योगेन्द्र रस के फायदे, बनाने की विधि, मात्रा और रोगों में उपयोग। यह एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधि है जो वात-पित्त रोगों, प्रमेह, पक्षाघात, मानसिक रोगों आदि में अत्यंत लाभकारी है।
योगेन्द्र रस आयुर्वेद की एक अत्यंत प्रसिद्ध रसायन औषधि है जिसे “रससिद्ध योग” की श्रेणी में रखा गया है। इस दवाई के बारे में रस तंत्रसार सिद्ध प्रयोग संग्रह में बेहद अच्छी तरह से बताया गया है बाकी और भी बहुत सारे आयुर्वेदिक प्राचीन पुस्तक है जिसमें योगेंद्र रस के बारे में जानकारी दी गई है।
यह औषधि वात एवं पित्त दोषों को दूर कर शरीर, मस्तिष्क एवं इंद्रियों को बलवान बनाती है। विशेषकर पक्षाघात, प्रमेह, अपस्मार, मूत्ररोग, मानसिक विकार आदि में यह अमृत के समान कार्य करती है।
रससिंदूर २ तोले, सुवर्ण भस्म, कान्तलोह भस्म, अभ्रक भस्म, मुक्तापिष्टी और बङ्ग भस्म १-१ तोला लेवें। सबको यथाविधि मिला ३ दिन घीकुंवार के रस में मर्दनकर गोली बनावें। फिर एरण्ड के पत्तों में लपेट कर कच्चे डोरे से बांध धान के बोरी के अंदर तीन दिन तक दबा कर रखें। पश्चात् निकाल खरलकर आधा आधा रत्ती की गोलियाँ बना छाया में सुखा कर सुरक्षित रखें।
यह रसायन अनेक रोगों में बेहद चमत्कृत लाभ दिखलाता है लेकिन नीचे दिए कुछ रोगों में रोगी की अवस्था को देखकर वातपित्तोत्तरावस्था में इस दवाई का प्रयोग आश्चर्य चकित करने वाला सिद्ध हो चुका है।
1. नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है – योगेंद्र रस मस्तिष्क की नसों को बल देता है और पक्षाघात, हिस्टीरिया जैसे रोगों में आश्चर्यजनक लाभ करता है।
2. हृदय को बल देता है – यह औषधि हृदय की संकोचन-प्रसार क्रिया को संतुलित करती है और हृदय को शक्तिशाली बनाती है।
3. रक्तशुद्धि और प्रतिरक्षा वृद्धि – रक्त में विषों का नाश कर नए रक्त का निर्माण करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
4. वीर्य शुद्धि और कामशक्ति वृद्धि – योगेंद्र रस के नियमित सेवन से वीर्य गाढ़ा होता है, शुक्र धातु पुष्ट होती है और यौन शक्ति बढ़ती है।
5. मनोबल और आत्मबल वृद्धि – मानसिक रोगों में विशेष लाभदायक होने के कारण यह आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन को भी बढ़ाता है।
यह औषधि विशेष रूप से हृदय, मस्तिष्क, मन, वातवहन नाड़ियों और रक्त पर प्रभावकारी मानी जाती है। यह पाचन और मूत्र संस्थानों पर भी सकारात्मक असर डालती है। इसके सेवन से वातवह नाड़ियाँ सबल होती हैं, जिससे जीर्ण वातविकार के साथ पित्तप्रकोपजन्य लक्षण जैसे जलन, व्याकुलता, अनिद्रा, मुख में छाले या अपच आदि में विशेष लाभ होता है। अपस्मार, उन्माद और पुराने वात रोगों में भी इसका निःसंकोच प्रयोग किया जाता है।
इसमें हृदयवर्धक गुण होने के कारण यह हृदय को सशक्त बनाती है और हृदय गति की संकोचन-विकसन प्रक्रिया को संतुलित करती है, जिससे स्पंदन संख्या में भी स्थिरता आती है। यह रक्त में विद्यमान विषैले तत्वों और रोगजनक कीटाणुओं का नाश करके रक्तकणों की वृद्धि में सहायक होती है। परिणामस्वरूप, यह औषधि रोगों के शमन के साथ-साथ शारीरिक बल में भी वृद्धि करती है।
इसका नियमित सेवन पाचनेंद्रियों को सबल बनाता है, जिससे मूत्रसंस्थान से जुड़े प्रमेह जैसे रोगों में राहत मिलती है। यह औषधि शुक्र धातु को शुद्ध और गाढ़ा बनाती है, जिससे शरीर में कामशक्ति की वृद्धि होती है और व्यक्ति का शरीर तेजस्वी तथा आकर्षक दिखाई देता है। मूत्र विकारों की स्थिति में इसे शिलाजीत के साथ प्रयोग करना विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है।
अत्यधिक शारीरिक संबंध से उत्पन्न क्षय रोग की प्रारंभिक अवस्थाओं में यह लाभकारी है। वीर्य पतलापन, स्वप्नदोष, दाह, शिथिलता और व्याकुलता में इसका सेवन आराम देता है और रोगाणुओं का नाश कर शरीर को बल देता है।
पक्षाघात प्रायः रक्तवाहिनी और वातवाहिनी की विकृति से होता है, जैसे मस्तिष्क में रक्तस्राव या वातनाड़ियों में अर्बुद। तीव्रावस्था में औषधि नहीं दी जाती, पर शमन के बाद पुनः दौरा रोकने हेतु वातशामक, बृंहण, जीवन व रसायन गुणयुक्त औषधियाँ उपयोगी होती हैं। तीव्र प्रकृति वालों को एंकागवीर और वात-पित्त प्रकृति वालों को योगेन्द्र रस लाभकारी है। अर्धांगवात में भी यह उपयोगी है। साथ में नारायण तैल की हल्की मालिश करें। अपस्मार व उन्माद में योगेन्द्र रस स्मृतिसागर आदि की तुलना में अधिक हितकारी है, विशेषकर नाजुक स्वभाव वालों के लिए।
अपस्मार और उन्माद जैसे रोग रक्त में विषवृद्धि और मस्तिष्क विकृति से उत्पन्न होते हैं। इन पर योगेन्द्र रस अत्यंत लाभकारी है, विशेषतः पित्तप्रधान पुरुष, गर्भवती, प्रसूता और नाजुक स्त्रियों के लिए, जिन्हें उग्र औषधियाँ सहन नहीं होतीं। योगेन्द्र रस में रक्तप्रसादक, बृंहणीय व जीवनीय गुण होते हैं। यह रस कई असाध्य रोगों में भी उपयोगी सिद्ध हुआ है, जहाँ अन्य औषधियाँ विफल रहीं। विशेष रूप से बालपक्षाघात (Polio) में यह सर्वोत्तम औषधि मानी गई है। कई जीर्ण रोगों में भी इसके प्रभाव से रोगियों को शीघ्र लाभ प्राप्त हुआ है।
इस आयोजन में एक बुजुर्ग वैद्य भी आए हुए थे उन्होंने योगेंद्र रस के बारे में बहुत सारे महत्वपूर्ण बातों का जानकारी साझा किया। उन्होंने कहा योगेंद्र रस वात और पित्त से प्रभावित रोगियों में नस नाड़ियों की कमजोरी से होने वाले किसी प्रकार की समस्या में इसको बेहद अच्छा बताया। जैसे पैरालिसिस और मिर्गी रोग । इन दोनों रोगों में उनका अधिक फोकस दिख रहा था। मगर कह भी रहे थे कि सामान्य आदमी जिसको आयुर्वेद का ज्ञान नहीं वह इस दवाई को भूलकर भी अपनी मर्जी से सेवन न करें किसी वैद्य के रेख देख मे इसको उपयोग में ले।
वात-पित्त शमन: वात और पित्त दोषों के संतुलन में यह श्रेष्ठ औषध है।
पोलियो व पक्षाघात: स्नायुबल प्रदान कर पक्षाघात एवं बालपक्षाघात में चमत्कारी लाभ।
प्रमेह व मूत्र रोग: मूत्राघात, बहुमूत्र, प्रमेह आदि में शिलाजीत के साथ अत्यंत लाभकारी।
मानसिक विकार: अपस्मार, उन्माद, हिस्टीरिया, मूर्च्छा आदि में सारस्वतारिष्ट के साथ।
हृदय को बल: हृदयगुण युक्त होने से हृदय को बल व नियमितता प्रदान करता है।
तेजस्विता व शक्ति: च्यवनप्राश या दूध के साथ सेवन करने से बल, वीर्य और तेज में वृद्धि।
धातु क्षय व स्वप्नदोष: वीर्य को गाढ़ा एवं शुद्ध कर क्षय, स्वप्नदोष जैसी समस्याओं में विशेष लाभ।
मात्रा: 125 mg से 250 mg तक , या वैद्य की सलाह अनुसार
अनुपान: गोदुग्ध च्यवनप्राश ब्राह्मी क्वाथ या त्रिफला स्वरस
रोगों में विशेष उपयोग:
रोग का नाम अनुपान
प्रमेह, मूत्ररोग शिलाजीत के साथ
उन्माद, हिस्टीरिया ब्राह्मी व जटामांसी के क्वाथ के साथ
पक्षाघात, अपस्मार त्रिफला स्वरस या च्यवनप्राश के साथ
धातु क्षय व स्वप्नदोष गोदुग्ध या च्यवनप्राश के साथ
यदि योगेंद्र रस का सेवन बिना विशेषज्ञ की सलाह के किया जाए तो कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं:
यह एक धातु मिश्रित औषधि है जिसमें पारद आदि का प्रयोग होता है, अतः इसे केवल वैद्यकीय पर्यवेक्षण में ही लेना चाहिए।
एक बात यहां जरूर बताना चाहिए कि इन दोनों बहुत सारे फार्मेसी बगैर शास्त्रीय विधि का अनुसरण किया ही दवाई बनाकर बाजार में उतर रहे हैं।
कृपया योगेंद्र रस का असली प्रभाव देखने के लिए या तो विधिपूर्वक खुद दवाई तैयार करें या किसी भरोसेमंद फार्मेसी से दवाई प्राप्त करें।
यह बात में confidently इसीलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद प्रारंभ में दवाइयां बाजार से मांगकर रोगी को देता था जो प्रभावहीन था लेकिन बाद में जब खुद दवाई तैयार करना शुरू किया तब मुझे योगेंद्र रस का असली शक्ति समझ में आया।
निष्कर्ष (Conclusion)
योगेंद्र रस एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावकारी आयुर्वेदिक औषधि है जो शरीर के गहन विकारों को जड़ से मिटाने में सक्षम है। दक्षिण भारत के वैद्यों का मानना है कि यदि इसे सही मात्रा और सही अनुपान के साथ दिया जाए, तो यह आधुनिक चिकित्सा पद्धति को भी चुनौती देने में सक्षम है।
आपको यह जानकारी उपयोगी लगी? तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ ज़रूर साझा करें। अगर आप योगेंद्र रस को अपने लिए उपयुक्त मानते हैं, तो पहले किसी प्रमाणित आयुर्वेदाचार्य से परामर्श लें।
Q1: योगेन्द्र रस का सेवन कब करें?
उत्तर: सुबह खाली पेट या भोजन के बाद, रोग अनुसार चिकित्सक की सलाह पर।
Q2: क्या इसे बच्चों को दे सकते हैं?
उत्तर: हाँ, लेकिन केवल योग्य वैद्य की देखरेख में।
Q3: इसके कोई दुष्प्रभाव हैं क्या?
उत्तर: योग्य मात्रा और अनुपान में देने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं है। लेकिन अति सेवन से पाचन या वात विकार हो सकते हैं।
Q4: योगेन्द्र रस किनके लिए नहीं है?
उत्तर: गर्भवती महिलाओं और बिना चिकित्सकीय परामर्श के सेवन नहीं करना चाहिए।
लेखक: वैद्य द्रोणाचार्य जी
स्रोत: Ayushyogi– भारत का अग्रणी ऑनलाइन आयुर्वेदिक शिक्षण मंच
वेबसाइट: www.ayushyogi.com
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