Mirgi ka dora:-अपस्मार चिकित्सा विधि • मिर्गी का सफल इलाज संभव है। जालंधर में मिलता है Mirgi ka dora का 100% सफल चिकित्सा हजारों लोग वैद्य जी से मिर्गी का सफल इलाज करा चुके हैं। Mirgi dora का इलाज न मिलने से यदि आप परेशान हो तो एक बार आप अपस्मार मिर्गी नाशक Mirgi dora ka रामबाण आयुर्वेदिक इलाज के लिए वैध जी से संपर्क जरूर करें। Mirgi dora का इलाज करने के लिए वैध जी से कब मिले किस तरह का चिकित्सा होगा कौन सा Mirgi dora का लक्षण वाला मिर्गी का रोगी ठीक होगा, कौन सा Mirgi dora के लक्षण वाला रोगी ठीक नहीं हो सकता, इन सभी विषयों को ध्यान से पढ़ें उसके बाद ही Mirgi dora का चिकित्सा हेतु वैद्य जी से संपर्क करें।
यदि आप एपिलेप्सी Mirgi dora (जिसे मिर्गी के नाम से हिंदुस्तान में जाने जाते हैं) को जड़ से खत्म करना चाहते है…तो हजारों मिर्गी के रोगियों का इलाज करने के बाद जो सत्य तथ्य मिर्गी का इलाज से संबंधित जानकारी वैद्य जी द्वारा बताया गया है उसी को यहां एक-एक करके लिख रहा हूं।
हमने वैद्य जी से कुछ Mirgi ka dora से संबंधित खास सवाल पूछें थे जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है पूरा पोस्ट इसी के संदर्भ में लिखा हुआ है
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ज्यादातर आज के समय में वैध जी से सभी Mirgi dora ke rogi रोगी एक सवाल ज्यादा पूछते हैं और वह यह है की जब MRI और EEG का रिपोर्ट नार्मल है. वहां कुछ दिख ही नहीं रहा है डॉक्टर ने कहा आपको कुछ नहीं हुआ है रिपोर्ट में कुछ नहीं आया है तो यह समझ में नहीं आता की फिर Mirgi ka dora क्यों बार-बार आता रहता है। इसका जवाब आपको इस पोस्ट के पढ़ने से मिलेगा क्योंकि हर व्याधि के इलाज से पहले उस व्याधि होने से संबंधित संपूर्ण जानकारी हर रोगी के पास होनी चाहिए आज के समय में आपके लिए कम से कम यह बहुत जरूरी है।
दोस्तों ऊपर लिखे गए सभी प्रश्न में से कुछ सवाल आपके मन में भी आते होंगे इसीलिए इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े।
इस सवाल का सही जवाब में चरक संहिता के आधार पर देना चाहूंगा। चरक संहिता में बताया गया है कि..
विभ्रान्तबहुदोषाणामहिताशुचिभोजनात् ।
रजस्तमोभ्यां विहते सत्त्वे दोषावृते हृदि॥४॥
चिन्ताकामभयक्रोधशोकोद्वेगादिभिस्तथा ।
मनस्यभिहते नृणामपस्मारः प्रवर्तते ॥५॥
जो व्यक्ति अहितकर और अपवित्र भोजन करते हैं और उनके शरीर में प्रारम्भ से ही दोष उन्मार्गी तथा अधिक मात्रा में उपस्थित रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों के शरीर में जब सत्त्वगुण, रज और तम के बढ़ जाने से अधिक दुर्बल हो जाता है और हृदय वातादि दोष से आवृत्त हो जाता है तथा चिन्ता, काम, भय, क्रोध, शोक और उद्वेग आदि के कारण मन दोषों में विशेष रूप से दूषित हो जाता है तो इन कारणों से हृदय में यानी ह्रदय के धमनीयों में gap उत्पन्न होने तथा वहां खाली जगह मिलने पर वायु के भर जाने तथा विकृत अवस्था में व्यान वायु और प्राण वायु द्वारा उस कुपीत रुक्ष,शित आदि गुणों वाला वायु को मस्तिष्क के center nerve system तक पहुंचाना और मनोवाही ,तथा ज्ञानवाही तंतुओं में क्षोव उत्पन्न करते हुए ज्ञान सुन्य हो जाना यह अपस्मार रोग की उत्पत्ति का प्रमुख कारण है॥
अब इन्हीं बातों को बेहद सरल भाषा में समझाने का प्रयास करूंगा मिर्गी होने का मुख्य कारण के रूप में हमेशा रोगी का शरीर, बुद्धि और मन - दूषित वातावरण, बासी तथा अपवित्र भोजन का सेवन विसम तरीका से होता है तथा अन्य नकारात्मक कारणों से कमजोर हो जाता है मुख्य रूप से शरीर मन और बुद्धि का यह कमजोरी ही मिर्गी रोग होने का मूख्य कारण है। हृदय को आत्मा का श्रेष्ठ निवास स्थान माना गया है वहां इस प्रकार के दूषित आहार-विहार से प्रकुपीत दोष ह्रदय में पहुंचकर ह्रदय से होने वाली काम क्रोध लोभ मोह हर्ष भय शोक चिंता तथा उद्वेग आदि से प्रेरित होकर हदय और इंद्रियों के आयतन को सहसा दोषों से पूर्ण कर देते हैं।
शरीर मन और बुद्धि का दूषित होने के लिए और भी कारण हो सकते हैं जिन्हें आयुर्वेद में आगंतुज व्याधि के नाम से जाना जाता है। मगर वह सभी भी धीरे धीरे शरीर मन और बुद्धि को ही संक्रमित करने लगते हैं।
mirgi ka dora प्रारंभ सबसे पहले कब हुआ और किन परिस्थितियों में हुआ इसको चरक संहिता में बहुत रोचक तरीका से बताया गया है।
दक्षप्रजापति यज्ञ विध्वंस रोगोत्पादन का मूख्य कारण।
बताया जाता है कि जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विनाश भोलेनाथ द्वारा हुआ तो उस वक्त यज्ञ में उपस्थित जितनी भी ऋषि संत और देवगण थे वे सभी डर के मारे अनेक दिशाओं में भागने लगे भगते क्रम में चोट लगने के कारण, पानी में तैरने के कारण,दौड़ने, डूबने तथा बहुत अधिक भूखा रहने से शरीर को क्षोभ उत्पन्न करने वाले कारणों के द्वारा गुल्म की उत्पत्ति हुई tumor,PCOD,Endometriosis आदि भी गुल्म का ही एक रूप है। बिचारे सभी देवता आनन-फानन में हवन कुंड में आहुति देते हुए बचा हुवा घी और हवन सामग्री,तिल,गुड्,दुध,माखन,जो भी हाथ लगा उसको उठाकर दौड़ने लगगए थे क्योंकि क्या पता शिव जी जो नाराज हुये हैं जानें कब जान छूटेगी ।
लंबे समय के बाद भूख के मारे इसी हवन करने से बचे हुए अवशिष्ट हवन सामग्रीयों को ही खाने लगे ।
चूंकि तीव्र भूख लगने पर गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए था, घी युक्त इस हविष्य का सेवन करने से उन देवताओं को प्रमेह यानी डायबिटीज और कुष्ठ यानी चर्म रोग होना शुरू हुआ।
बिचारे उन में से कुछ देवता तो ऐसे भी थे जो भोलेनाथ जी के क्रोध से बहुत ज्यादा भयभीत थे तो भय त्रास और शोक से उनके शरीर में उन्माद नाम का रोग उत्पन्न हुआ।
कुछ देवता लज्जा, भय, क्रोध, त्रास और शोक से व्यथित हृदय से पीड़ित, चिंता मग्न होकर भूख के मारे जो भी मिला ऐसे अपवित्र भोजन का सेवन करने से हृदय कमजोर हुवा तरह-तरह के अपवित्र भूत-प्रेत आदियों का दर्शन और स्पर्श हुआ इन कारणों ने उनके शरीर से अपस्मार (मिर्गी) नाम का नवीन रोग उत्पन्न हुआ। शिव के मस्तिष्क से उत्पन्न ज्वर के संताप से रक्तपित्त नाम का रोग उत्पन्न हुआ। इन सभी कारणों से शरीर का क्षय यानी नाश होने लगा तो राज्यक्षमा की उत्पत्ति हुई। यह एक रूपक है इन व्याधियों के हेतु, लक्षण और कारणों को बताना इस कहानी का मकसद था।
सभी शारीरिक और मानसिक क्रियाएं आगंतुज हो या निज कारण से कफ, पित्त वात दोषों का क्षय यानी नष्ट होना शुरू हो जाता है ह्रदय की मांस पेशी मैं तामस भाव उत्पन्न होता है इसी बात को हम किस तरह से भी समझ सकते हैं कि जब धमनी और सिराओं द्वारा दोष हृदय में आ जाते हैं और धीरे धीरे वहां इकट्ठा होना शुरू हो जाता है तो फरीदा व्याकुल हो जाता है धीरे धीरे उसका प्रभाव चेतन और अचेतन शरीर मन बुद्धि के ऊपर पड्ना शुरू होता है यह एक तरह का धातु क्षय की ही स्थिति रहेगी इसी के कारण हृदय और मस्तिष्क के कुछ नाडीयां या तो बंद हो जाएंगे या सुख जाएगा वह नाड़ी ज्ञान वाही, संज्ञा वाही, बुद्धि या इंद्रियों के विषयों को मस्तिष्क तक पहुंचाने वाली नाडी़ भी हो सकती हैं इनके सूख जाने या कमजोर हो जाने से उसके अभाव में शरीर संज्ञाहीन होकर अचेतन अवस्था में गिर जाता है इसे ही हम मिर्गी कहेंगे।
अब मिर्गी के रोगी यदि वैद्य जी के पास नहीं पहुंच पाता तो नीचे लिखा हुवा लक्षणों को ध्यान से पढ़ें और उनमें से जो लक्षण दिखेगा उसे नोट करके आप वैद्य जी को व्हाट्सएप के माध्यम से भेज दीजिए।
1. रोगी को दौरा आने के बाद तुरंत चेतना आ जाता है और फिर तुरंत दौरा पड़ने लगता है. ध्यान देना यदि दौरा काफी देर तक रहता है एक बार होने के बाद दोबारा काफी देर के बाद ही दौरा आता है तो यह कफ वाला मिर्गी है । बहुत जल्द चेतना आकर जल्दी ही बेहोश हो जाना वायु वाला है वायु पित्त से शीघ्रकारी होता है इसीलिए पित्त वालों से जल्दी वायु वालों का चेतना आता है।
2. वायु वाले लक्षण में आंखें बाहर की ओर निकली हुई, जोर-जोर से चिल्लाता हुआ,मुख से झाग निकल जाता है, गला अधिक फूल जाता है, दौरे के टाइम में उंगलियों में ज्यादा वक्रता दिखता है, सिर में दर्द ज्यादा होता है, हाथ और पैरों का स्थिर ना होना, दांतो को कट कटाता हुवा,मुख,नाखून और स्कीन का वर्ण हल्का सा काला और कठोर हो जाना, दौरे के वक्त आंखों के सामने चपलता रूप दर्शन होना, रात में जगने से, चिकन अंडा खाने से, टेंशन लेने से, बासी भोजन करने से,
1. बार-बार मिर्गी का बेग का आना तथा जल्दी ही चेतना प्राप्त होना
2. मुंह से ऐसे आवाज निकालना जैसे कबूतर गुंजन कर रहा हो.
3. जमीन पर हाथ और पैरों को ज्यादा पटकाना ललाट से पसीना आना
4. ध्यान से देखें तो नाखून आंख मुंह और त्वचा में पीला या कुछ लाल वर्ण का दिखाई देना
5. शीतल चीजों की चाह रखना गर्म चीजें खाते ही समस्या होना तेल में तलाव हुआ चीजें खाने के बाद पेट खराब हो जाना.
1. लंबे समय के बाद दौरा आना लेकिन जब दौरा आता है तो लंबे समय तक बेहोशी रहती है वायु और पित्त की तरह जल्दी चेतना नहीं आता इसमें.
इस के संदर्भ में और भी बहुत सारे सवाल मिर्गी रोगियों के रोगों का कारण जानने के लिए पूछा जाना जरूरी है नीचे एक लिंक दिया जा रहा है कृपया इसमें क्लिक करें और उसे भी पढ़ लीजिए उनमें से जो लक्षण दिखे उसे एक कॉपी में नोट करें।
मिर्गी रोगियों द्वारा पूछे जाने वाले ज्यादातर सवालों का जवाब।
हिंदुस्तान और दूसरे देशों में भी मेरे बहुत सारे मिर्गी रोगियों के लिए दवाइयां जाता है या कहें में उनके शारीरिक कंडीशन के ऊपर निगरानी रखता हूं।
अभी तक लाखों मिर्गी के रोगियों से पाला पड़ चुका है मेरा। चाहे रोगी का संख्या कुछ भी हो लेकिन उन सभी का कुछ गिने-चुने ही सवाल होते हैं क्योंकि यह वह सवाल है जिसका जवाब तलाशते तो यह बहुत है मगर उसका जवाब संतोष जनक कहीं मिल नहीं रहा है उनमें से यह लीजिए पहला सवाल।
Q.1-अंग्रेजी दवाई खाने से आखिर मिर्गी श रोग जड़ से ठीक क्यों नहीं होता ?
Ans-अब यह सवाल आपकी भी मन में जरूर होगा तो इसका सही जवाब यह है की allopathic medical science किसी भी रोग के लिए simtematic treatment के लिए ही जाना जाता है। मिर्गी रोग होने का कारण के विषय में ऊपर हम चर्चा कर चुके हैं।
मिर्गी रोग होने के लिए विविध कारणों से सबसे पहले ह्रदय कमजोर होता है उसके बाद मन और बुद्धि शरीर में जिस रास्ते से चलते हैं वहां कमजोरी आ जाती है ऐसी कंडीशन में चिकित्सा ऐसा होना चाहिए जो कि इस कमजोरी को धीरे-धीरे रिपेयर कर सके लेकिन एलोपैथिक दवाई खाने के बाद धीरे धीरे रोगी का शरीर क्षीण होते हुए जाता है। कुल मिलाकर मेडिकल साइंस रोगी में जड़ के ऊपर काम नहीं करता रोगी में जो अनेक प्रकार के वेदना आदि लक्षण देखे जाते हैं यह दवाई उसी को दबाने के लिए ही कार्य करतें है।
Q.2..क्या मिर्गी रोग को जड़ से मिटाया जा सकता है?
Ans. इस प्रश्न के जवाब में मैंने ऊपर बहुत सारे संदर्भ इन बातों को लिख दिया है उसको और एक बार रिपीट करिए और यकीनन मिर्गी का रोग आप ही के अपवित्र आहार-विहार से आपका ह्रदय कमजोर हुआ है जिन कारणों ने ह्रदय को कमजोर किया है यदि आप दोबारा उन्हीं कारणों का अभ्यास करते हैं तो ऐसे में किसी भी प्रकार का आयुर्वेदिक चिकित्सा इस समस्या का संपूर्ण इलाज नहीं दे सकता।
आपको इस रोग के उपचार करते हुए उन कारणों को भी ढूंढना होगा जो आपके इस मिर्गी रोग होने में कारण स्वरूप है।
जैसे यदि आपका शारीरिक देह प्रकृति वायु द्वारा नियंत्रित होता है या वात प्रकृति वाला आपका शरीर है और मिर्गी रोग का लक्षण भी वात प्रकृति वाला ही दिखता है तो यकीन मानिए आपको जीवन में कभी भी ऐसे आहार-विहार भूलकर भी नहीं करना है जो वायु को बढ़ाने वाला होता है जैसे रात में जागना, चिंता मग्न रहना, भूखा रहना, अधिक शारीरिक संबंध बनाना, बहुत अधिक व्यायाम करना, रुखा भोजन करना, चिकन अंडा का सेवन करना ,बासी भोजन खाना, ऐसे बहुत सारे चीजें हैं जिसका संपूर्णतया त्याग करना होगा।
इसी प्रकार आप को कफ और पित्त से संबंध रखने वाले जन्म प्रकृति वाला शरीर है और आपका मिर्गी रोग का लक्षण भी अपने जन्म प्रकृति वाले दोष के ही दिखता है तो विशेष उस दोष को बढ़ाने वाली आहार विहार से दूर रहना होगा।
अपने जन्म प्रकृति और दोष विकृति जानने के लिए यहां क्लिक करें।
ऊपर दिए गए कफ पित्त वात में से कौन सा दोष वाला आपका मिर्गी है यानी आपके रोगी को जब मिर्गी का दौरा आता है तो कफ,पित्त वात में से किसका लक्षण ज्यादा दिखता है उसको निश्चित करें साथ में उसका जन्म प्रकृति भी निश्चित करें कौन सा दोष वाला जन्म प्रकृति है उसके बाद नीचे दिए गए चिकित्सा विधि को अपनाएं। यह ध्यान रखें यदि वात जन्म प्रकृति है और मिर्गी का लक्षण भी वायु के लक्षणों के साथ मिलता है तो यह असाध्य कैटेगरी का मिर्गी रोग है इसके चिकित्सा सावधानीपूर्वक करना चाहिए इसी प्रकार कफ और पित्त को भी समझ लीजिए।
यदि वायु है तो तिक्ष्ण वस्ती प्रधान चिकित्सा करें।
यदि पित्त है तो तिक्ष्ण विरेचन प्रधान चिकित्सा करें।
यदि कफ है तो तिक्ष्ण वमन प्रधान चिकित्सा करें।
इस प्रकार से वस्ती विरेचन और वमन के माध्यम से हृदय का शोधन हो जाने के बाद संसमन चिकित्सा देना चाहिए।
पंचगव्य घृत
महा पंचगव्य घृत
ब्राह्मी घृत
बचादी घृत
आमलकादी घृत
कटभ्यादि तैल
पलङ्कषादी घृत
इस तरह का कुछ घृत कल्प मिर्गी नाशक के रूप में चरक संहीता में लिखा हुआ है। इनका प्रयोग शमन चिकित्सा हेतु यदि मिर्गी के रोगी में वायु का रुक्ष आदि गुणों के बढ़ जाने से शरीर कृश हो गया है तो अवस्था देखकर इन चरकोक्त घृत का प्रयोग किया जा सकता है।
यदि मैं ग्रंथों की बात ना करूं और सिर्फ अपनी बात करूं कि मैं किस तरह से मिर्गी रोग का चिकित्सा करता हूं यानी यदि कोई रोगी पूर्ण रूप से मेरे कहे हुए विचारों से सहमत होता है तो फिर मैं किस तरह से अपना चिकित्सा विधि को व्यवस्थित करता हूं यहां उसके बारे में मैं चर्चा करूंगा।
मेरा मिर्गी रोग को लेकर के स्वयं का मानना यह है की एलोपैथिक चिकित्सा विधि से त्रस्त होकर ही लोग हमारे पास आते हैं यानी मेरे पास मिर्गी के ऐसे रोगी ही आएंगे जिसको कहीं दूसरी ओर राह नहीं दिखता ऐसे में मुझे यह समझने में बिल्कुल देरी नहीं होता कि जो आया है वह असाध्य के श्रेणी में है असाध्य का मतलब होता है जिसको ठीक नहीं किया जा सकता ।
मैं संभवत: प्रयास करता हूं मिर्गी के रोगी को इस बात को समझाने का कि आपमें जो यह मिर्गी का दौरा हो रहा है यह सिर्फ दवाई खाने मात्र से अब ठीक नहीं हो सकता क्योंकि यदि होता तो एलोपैथिक दवाई से ही हो जाना था उससे नहीं हो रहा है इसका मतलब आपको आयुर्वेदिक ग्रंथों में बताए गए चिकित्सा विधि को step by step विधि पूर्वक करने की जरूरत है।
जैसे--
नस्य क्रिया-ब्रेन में यदि कीड़ा है या कोई ब्लॉकेज है तो उसको निकालने के लिए नाक से दवाई डाली जाती है उसे नस्य कहा जाता है नस्य लेने से ब्रेन को बल भी मिलता है और सफाई भी होती है।
धुपन-इसके तहत जड़ी बूटियों के पाउडर को जलाकर उसके धूवा रोगी को सुंघाया जाता है। यह क्रिया व्रेन के नसों को खोलने में अहम भूमिका अदा करता है। इससे मन भी एकाग्र होता है।
त्रासन- इसका अर्थ है रोगी को अचानक डर दिखाना हालांकि यह क्रिया उन्माद रोग में ज्यादा किया जाता है लेकिन कुछ मिर्गी के लक्षण दिखने पर त्रासन भी किया जाता है। यह भी मनों वाही नाड़ियों को खोलने का एक प्रयत्न है।
देव पुजन-इसके तहत मन को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है देव पूजन से ग्रह भी शांत होते हैं यदि भूत प्रेत मिर्गी का कारक है तो यहां देव पूजन जरूरी होता है।
रत्न धारण-ग्रहों के नकारात्मक ऊर्जा भी मिर्गी रोग का जनक हो सकता है ग्रहों का कमजोर होने से यह नकारात्मक ऊर्जा शरीर में निर्माण होता है इससे बचने के लिए कमजोर ग्रह को पहचान कर उसकी वृद्धि हेतु रत्न धारण बताया गया है।
ध्यान/धारणा-जैसे की हम ऊपर बता चुके हैं मिर्गी तब होता है जब उसका ह्रदय विकृत दोषों के कारण संकुचित हो जाता है ऐसे में मेडिटेशन उन नसों को खोलने में सहयोगी हो सकता है।
दिपन/पाचन-यह पंचकर्म चिकित्सा का पूर्व कर्म है यदि दोष अपक्व और संचारी अवस्था में होगा तो उसके दिपन/पाचन हेतु दीपन पाचक दवाई दिया जाता है।
स्नेहन-इसके तहत दोषों को बाहर निकालने के लिए तेल या घी रोगी को पीने के लिए दिया जाता है।
स्वेदन-घी या तेल द्वारा मूर्छित हुआ वह दोष स्वेदन कर्म करते ही कोष्ठ (जहां से यह अपक्व या अधि पक्व अवस्था का दोष संचारी अवस्था में दूसरे और चला गया था) में आकर्षित होना शुरू हो जाता है।
अभ्यंग-यह भी शाखागत दोषों को अपने उद्गम स्थान तक लेकर आने का एक व्यवस्था है जैसे यदि मिर्गी का रोग का टॉक्सिन हृदय से उठकर आगे बढ़ता है तो अभ्यंग यानी मसाज द्वारा यह हृदय में ही लौटकर आता है।
वमन-इसके तहत यह सभी क्रियाएं हो जाने के बाद लौटकर जो ह्रदय में आया उसे आमाशय और आमाशय से मुंह के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।
विरेचन-इस के तहत जो दोष हृदय से उपर नहीं जा सकता उसे मलद्वार से बाहर निकालने के लिए प्रयास किया जाता है।
वस्ति-जब वायु प्रधान शरीर हो और मिर्गी का दौरा भी वात प्रकृति वाला ही हो ऐसे में रोगी को ठीक करना बहुत मुश्किल होजाता है यहां बस्ती चिकित्सा के माध्यम से रोगी के शाखागत दोषों को हृदय में और हृदय से वस्ति क्षेत्र में और यहां से मलद्वार के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।
ज्यादातर ऐसे रोगी कमजोर शरीर वाले होते हैं इनके नसों में कमजोरी होती है वस्ती के माध्यम से इस कमजोरी को ठीक करना भी जरूरी होता है यहां तिक्त क्षीर वस्ति, योग वस्ति, चन्दनवलादी तेल,क्षीरवलादी तेल etc.. से मात्रा बस्ती भी दिया जाता है।
शिरोधारा - शिरोधारा का महत्व मिर्गी के दौरे पड़ने वाले लोगों के लिए बहुत अधिक है। ज्यादातर में ऐसे लोगों को शिरोधारा करने के लिए बताता हूं जिनका शरीर पित्त प्रकृति वाला है जिनका सिर हमेशा गर्म रहता है और भय, क्रोध जैसे मानसिक विकार भी दिखता है। हालांकि सभी दोषों में शिरोधारा का अपना-अपना महत्व है।
कल्प प्रयोग-रोगी के आर्थिक स्थिति तथा शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखकर जड़ी बूटी द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक औषधि दिया जाता है जिन्हें हम कल्प प्रयोग कह सकते हैं।
स्वर्ण प्राशन - जी ने लोगों को बचपन से ही मिर्गी का दौरा आता है उनके शरीर में प्राकृतिक रूप से शरीर कमजोर अवस्था में रहता है सभी धातु शिथिल हो जाते हैं ऐसे मे स्वर्ण प्राशन किसी भी उम्र के रोगी को दिया जा सकता है मिर्गी के दौरा यदि लंबे समय से आ रहा हो तो विशुद्ध स्वर्ण भस्म यूक्त स्वर्ण प्राशन शरीर को नवीन बना देता है।
रसायन कर्म-सभी प्रकार के पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन हो जाने के बाद स्वर्ण भस्म या रजत भस्म से युक्त स्वर्ण बसंत मालती रस, स्वर्ण युक्त वृहत् वात चिंतामणि रस, स्वर्ण युक्त वृहद मकरध्वज वटी जैसे आयुर्वेदिक दवाइयों का विधि पूर्वक सेवन मिर्गी के रोगी को कराया जा सकता है।
विद्ध/अग्नि कर्म-अष्टांग हृदय में विद्ध कर्म और अग्नि कर्म के बारे में बृहद जानकारी प्रदान किया हुआ है । मिर्गी के दौरे आने के पीछे मस्तिष्क में दुसीत खून का भर जाना या ठहरजाना है तो इसलिए रक्त मोक्षण अंतिम उपाय हो सकता है। इसके तहत एक पूर्व निर्धारित स्थान मेसे खुन को निकालना होता है।
यदि मस्तिष्क में तिर्यक्गामी वायु है तो विद्ध कर्म किया जाता है।
कुल मिलाकर मिर्गी का दौरा आने के लिए कारण हो सकते हैं सबसे पहले उन कारणों को जानना है फिर दुष्ट दोष का विपरीत चिकित्सा करनी चाहिए।
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