Jivniya Mahakashaya जीवनीय महाकाय :- जीवन के लिए हित कारक द्रव्य विशेष को जीवनीय महाकाय (Jivniya Mahakashaya) कहते हैं।जीवनीय महाकाय नाम से ही सर्व विदित है की जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya शरीर मे जीवन कर्म करने के लिए जाना जाता होगा।मगर समझने वाली बात है कि आखिर जीवनीय महाकषाय शरीर के कीन कीन चीजों को जीवन देता होगा। आज हम इन्हीं सभी वातों को समझने का प्रयत्न करेंगे।
Jivniya Mahakashaya मे दशमुल और अष्टवर्ग के जड़ी बूटियां डाला गया है। दशमूल के औषधियां दोषों को अनुलोम कर्म करने और अष्टक वर्ग के औषधियां शरीर में बृम्हण कर्म करने के लिए जाना जाता है।
चरक संहीता मे 50 प्रकार के महाकषाय के बारे में जो वर्णन मिलता है उन सभी में सबसे पहला महाकषाय जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya है।
Jivniya Mahakashaya का मुख्य कर्म।
आधुनिक विज्ञान को जीवनीय महाकाय से उम्मीद इन कारणों से दिखता है।
यह कुछ विशेष शारीरिक क्रियाओं में Jivniya Mahakashaya अमृत के समान कार्य करता है।
शरीर में जब अमृतत्व की कमी रहती है। रक्त में जीवन कर्म की कमी रहती है हमारे शरीर के हर एक कोशिकाओं में नवीन ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता नष्ट हो जाती है।
तो इंसान बीमार ग्रस्त होकर हॉस्पिटलाइजेशन की नौबत आ जाती है।
जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya ऐसे व्यक्ति के शरीर में उसके कमजोर हुआ वह रक्त कोशिकाओं को पुनर्जीवन देने के लिए जीवनीय महाकषाय अमृत के समान कार्य करेगा।
रक्त का जीवन कर्म करने वाला।
शरीर का उत्पादन कर्म तथा सभी प्रकार के इंद्रियों तथा शारीरिक अवयवों का निर्माण शुक्र धातु और रक्त धातु के सम्योग से होता है। शरीर में निरंतर पुनर्जीवन और मृत्यु का चक्र चलता ही रहता है। जब कभी इस चक्र के ऊपर जिक्र करने का अवसर रहेगा तो जरूर जीवन और मृत्यु चक्र जो शरीर में चलता है के ऊपर विस्तार से लिखा जाएगा मगर आज हम शरीर में जीवन कर्म होने की जो प्राकृतिक व्यवस्था है उसको तो जरूर समझने का प्रयास करेंगे।
रक्त के बारे में विशेष जानकारी।
एक स्वस्थ व्यक्ति का रक्त बीरबहूटी के समान लाल वर्ण का द्रव पदार्थ होता है। सामान्यत शरीर में रक्त का प्रमाण 8 अंजलि लगभग (डेढ़ लीटर )है। आधुनिक विज्ञान के मतानुसार शरीर में रक्त लगभग डेढ़ से ढाई लीटर होता है। शरीर में 55% प्लाज्मा तथा 45% भाग सेल्स cells का होता है।
Plasma मैं
इसके अलावा भी रक्त में
प्रोटीन- एल्ब्यूमिन, ग्लोबुलीन ,फाइब्रिनोजेन,प्रोथ्रोम्विन, तथा दूसरी प्रकार के यूरिया यूरिक एसिड क्रिएटिव क्रिएटिनिन आदि भी होता है।
वसा-फास्फोलिपिड, ग्लिसराइड कोलेस्ट्रोल तथा वसाम्ल आदि।
कार्वोज-ग्लूकोज या अन्य रंजक पदार्थ, शारीरिक स्राव आदि।
अकार्बनिक द्रव्य 0.5 से 1%
सोडियम पोटैशियम कैल्शियम मैग्नीशियम आदि.
कोशिकाएं.
न्यूट्रोफिल 60---70%
लिम्फोसाइट 20--30%
मोनोसाइट 1--2%
इसीनोफिल 1--5%
बेसोफिल 0--5%
इसके साथ साथ रक्त में रक्त चक्रिका- डेढ़ लाख से चार लाख,प्र.घ.
कुल रक्त के लाल कण 45--60 लाख प्र.घ. मि.मी.
कुल श्वेत कण 7--10/हजार प्र.घ. मि.मी.
इस प्रकार से बहुत सारे पदार्थों से मिलकर रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है।
रक्त का प्राकृत कर्म।
रक्त क्षय के लक्षण।
ऊपर वर्णित रक्त के विशेष गुणों में जब कमी आती है तो इस प्रकार के लक्षण रोगी में दिख सकता है।
रक्त में जीवन कर्म की कमी होने का मतलब इन सभी रक्त के पदार्थों की कमी होना माना जाता है। ऐसे में रक्त में पुनर्निर्माण करने की शक्ति कम हो जाती है।
चरक संहिताकार बताते हैं कि इन सभी प्रकार के रक्त के गुणों में उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए जीवनीय महाकषाय अमृत के समान काम करता है।
हालांकि अलग-अलग आचार्यों ने चरकोक्त जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya मैं अपने ज्ञान बुद्धि और अनुसंधान के आधार पर कुछ परिवर्तन करने का जरूर प्रयास किया है जो अन्यान्य ग्रंथों में जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya के वर्णन में पढ़ने को मिलता है।
मगर विशेष तौर पर यदि रक्त मैं पुनर्जीवन देने वाली जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashayaके जड़ी बूटियों का कंपोजीशन के गुण धर्मों का अलग अलग और एक साथ इनकी संयोजन से उत्पन्न होने वाली आयुर्वेदिक गुणधर्म का विश्लेषण करते हैं तो यहां चरकोक्त जीवनीय महाकषाय ही रक्त में पुनर्जीवन देने वाला कंपोजीशन के रूप में महत्वपूर्ण है ऐसा समझ में आता है।
Jivniya Mahakashaya बृंहण कर्म करने वाला, कफ और तेज को उत्पन्न करने वाला, रक्त मे स्थित सभी प्रकार के दोषों को नष्ट करने वाला, बल्य,बलकारक,शीत वीर्य,शुक्र तथा कफ वर्धक,मधुर रसयुक्त शरीर को पोषण देने वाला विशिष्ट जड़ी बूटियों का कम्पोजीशन है।
1.जीवक
2.ॠषभक
3.मेधा
4.महामेधा
5.काकोली
6.क्षिरकाकोली
7.मुदग्पर्णी
8.माषपर्णी
9.जिवन्ति
10.मुलेठी
11.ॠद्धी
12.वृद्धि
ऊपर दिया हुआ सभी महा औषधि चरक संहिता के 50 प्रकार के महाकषायों में से एक Jivniya Mahakashaya है।
आज के परिप्रेक्ष्य मे चरकोक्तJivniya Mahakashaya के कुछ औषधि मिलना दुर्लभ हो गया या कहे विलुप्त हो गया या हम यह भी कह सकते हैं इसकी पहचान अब करने वाला कोई है नहीं इसी को ध्यान में रखकर आधुनिक चिकित्सा विभाग ने जीवनीय कर्म करने वाला जिवनीय महाकषाय कहकर कुछ नये कंपोजीशन इस तरह तैयार किया है और पूरा बाजार इसी से भरा हुआ है।
बदलते भौगोलिक परिवर्तन और आयुर्वेद के प्रति अनदेखा का परिणाम स्वरूप आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित बहुत सारे वनस्पति विलुप्त होने की कगार पर है या कुछ विलुप्त हो चुके हैं कुछ ऐसे वनस्पति जिसकी पहचान ही विलुप्त हो गया। प्रसंग बस जीवनीय महाकषाय में डाले जाने वाले कुछ जड़ी बूटियां हम ही उसी विलुप्त होने वाली जड़ी बूटियों की श्रृंखला में है जैसे जीवक ऋषभक काकोली क्षीर काकोली मेदा और महामेधा यह महा औषधि भी आज विलुप्त हो चुका है या कहे कि इसकी पहचान विलुप्त हो चुकी है।मगर अब प्रतिनिधि द्रव्य
के रूप में आयुर्वेदिक वैद्य
जीवक ऋषभक के लिए विदारीकंद
काकोली क्षीर काकोली के लिए अश्वगंधा
मेदा और महामेदा के लिए शतावरी का प्रयोग करते है।
इन्हें हम जीवनीय महाकषाय का प्रतिनिधि द्रव्य के रूप में प्रयोग करते हैं और संशोधित जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya तैयार करते हैं।
विदारीकंद, शतावरी, अश्वगंधा, मुद्गगपरणी, माषपरणी, जीवंती और मुलेठी।
ज्यादातर वैद्य आज के परिप्रेक्ष्य में इन्हीं औषधियों को कलेक्शन करके जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya के रूप में प्रयोग करते हैं। मगर क्या इन औषधियों का सेवन करने वाला व्यक्ति को चरक द्वारा प्रतिपादित जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya का लाभ मिलेगा यह तो शोध का विषय है।
Jivniya Mahakashaya संतानोत्पादन कारक भी है।
आप सभी लोग जानते हैं संतान उत्पादन शरीर में शुक्र और रज के मिलन से ही संभव है। शुक्र जल महाभूत के अंश से निर्माण हुआ है। रज अग्नि और तेज द्वारा निर्मित है ऐसा माना जाता है। शुक्रसोणीत संयोग ही जीवन का आधार है।
माता के गर्भ में जहां शुक्र और रज संतान का आकृति निर्माण करने वाला होता है वहीं रक्त उस आकृति को जीवन देने वाला होता है। चुकी रज तो अग्नि और तेजोमय है। रक्त ही पित्त रुप अग्नि का प्रतिनिधित्व करने वाला शक्ति है। इसका मतलब स्त्री के रज मे ही पित्त का प्रतिनिधित्व करने वाला रक्त विद्यमान है। यही रक्त शुक्र द्वारा बनने वाली गर्भस्थ सन्तान के आकृति में जीवन कर्म करने हेतु रज के रूप में वहां विद्यमान है। यानी कि स्त्री का वह रज ही अपने ही पेट में पलने वाला संतान में जीवन कर्म करने वाला है।
यदि शुक्र और रज में आहार और विहार से उत्पन्न दोषों के कारण कोई कमजोरी आ जाती है तो संतान उत्पादन होने में दिक्कत हो जाती है इसे अगर हम संप्राप्ति परीक्षण करें तो निश्चित शुक्र और रज में जीवन कर्म करने की capacity की कमी जरूर दिखाई देगा।
ऐसी अवस्था में दूसरे अपने चिकित्सा विधि को अपनाते हुई है यदि हम दोनों पति पत्नी के ऊपर जीवनीय महाकषाय का प्रयोग करते हैं तो निश्चित संतान उत्पादन होने में सफलता मिल जाती है क्योंकि जीवनीय महाकषाय उस शुक्र और रज में जीवन कर्म करने के लिए शरीर में कार्य करेगा।चरकोक्त जिवनीय महाकषाय को वाकई में रक्त को पुनर्जीवन देने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
यदि अंशांश कल्पना के भेद से शरीर के organ को देखते हैं तो हर जगह शुक्र और रक्त का संयोग दिखता है। सभी प्रकार के शारीरिक अवयवों का निर्माण जिस प्रकार से गर्भ के अंदर शिशु का निर्माण शुक्र और रक्त के सम्योग से हो रहा है उसी प्रकार शरीर के दूसरे organ भी शुक्र और रक्त के मिलन से ही हो रहा है। इसीलिए जब भी शरीर में रक्त क्षय का अवसर आएगा वहां जीवनीय महाकषाय जरूर रोगी को दिया जाना चाहिए।
श्वित्र रोग (Leucoderma) मे लाभ
त्वचा पर सफेद दाग तब होते हैं जब त्वचा का रंग (पिगमेंट) बनाने वाली कोशिकाएं मर जाती हैं या काम करना बंद कर देती हैं।ऑटोइम्यून डिसऑर्डर: यह वह स्थिति है जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती है जिससे शरीर के मूल तंत्र को ही नष्ट कर दिया जाता है। इस स्थिति के प्रभावों में से एक मेलेनोसाइट्स का विनाश होजाता है जो त्वचा पर अपच का कारण बनता है जिससे विटिलिगो Leucoderma होता है।
यहां भी रक्त में जीवन कर्म का अभाव स्पष्ट दिखता है। यदि आप विश्वास पूर्वक चरक को अपने हृदय में स्थान देकर चरकोक्त जीवनीय महाकषाय लंबे समय तक देते हैं तो जरूर Leucoderma शमन हो जाता है।
Post hospitalization मैं लाभ।
पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन का मतलब यह होता है कि रुग्ण जब किसी व्याधि से ग्रसित होकर हॉस्पिटल में एडमिट होता है इस स्थिति को प्री हॉस्पिटलाइजेशन कहते हैं। हॉस्पिटल से चिकित्सा समाप्त हो जाने के बाद हॉस्पिटल से बाहर निकलने और घर में रहकर सामान्य खुद के ऊपर देखभाल करने तथा अपने स्वस्थ बीमा से संबंधित व्यवस्थाओं को संपादन करने जैसी स्थिति को पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन कहते हैं।
जिस प्रकार से जीवन बीमा करने के बाद हॉस्पिटलाइजेशन मैं होने वाली खर्चा से संबंधित टेंशन से आदमी मुक्त होता है उसी प्रकार चरकोक्त जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya सेवन करने वाला इंसान भी सभी प्रकार के व्याधि से संबंधित टेंशन से मुक्त हो जाता है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) में लाभकारी।
अवैस्कुलर नेकोरोरिस (AVN) जिसे ऑस्टियोनेक्रोसीस, एसेप्टिक नेक्रोसिस या इस्केमिक बोन नेकोर्सिस कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें हड्डी के लिए खून का नुकसान होता है। हड्डी एक जीवित ऊतक है, इसलिए उसे खून की आवश्यकता होती है और खून की आपूर्ति के लिए रुकावट होना हड्डी के मरने का कारण बनता है। अगर इसका इलाज ना किया जाए, तो यह स्थिति हड्डियों के पतन का कारण बन सकती है। यहां पर भी यदि हम निरंतर रोगी को उसके शारीरिक गुण दोषों के आधार पर जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya का संयोजन करके निरंतर सेवन कराया जाए तो अवस्कुलर नैक्रोसिस में भी उत्तम लाभ मिलता है।
COVID और Jivniya Mahakashaya।
आधुनिक मेडिकल साइंस के लिए कोरोनावायरस एक अत्यंत त्रासदी का विषय था। अभी तक खास विश्वसनीय मेडिसिन इसके लिए नहीं खोजा गया है। वैश्विक स्तर पर जितने लोगों को वैक्सीनेशन हुई है वे लोग भी कोरोनावायरस की चपेट में आए हुए हैं यानी वैक्सीन लगाने के बावजूद भी वह वैक्सीन कोरोना को नहीं रोक पा रहा है । कोरोनावायरस के कारण पूरी दुनिया में लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
आयुर्वेदिक मेडिकल साइंस भी निरंतर आयुर्वेदिक कंपोजिशन के ऊपर काम करता रहता है। वैज्ञानिकों को इस जीवनीय महाकषाय के ऊपर बहुत भरोसा है। क्योंकि रिसर्च में कुछ आश्चर्यजनक बातें सामने आई है।
जब जीवनीय महाकषाय Jivniya Mahakashaya के ऊपर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में परीक्षण किया गया तो
के कंपोजीशन में एंटीवायरल, जीवाणु रोधी, उबासी आने की स्थिति को रोकने वाला ,इम्यूनोमोड्यूलेटर, एंटीऑक्सीडेंट,न्यूरोप्रोटेक्टिव,कार्डियोप्रोटेक्टिव, हैपेटॉप्रोटेक्टिव,नेफ्रों प्रोटेक्टिव जैसे बहुत सारी चीजें जीवनीय महाकषाय में दिखाई दिया।
इसी आधार पर सभी आयुर्वेदिक वैद्य जगत प्रफुल्लित है कि अकेला जीवनिय महाकषाय रक्त को पुनर्जीवन देने के लिए तैयार है आवश्यकता है इतने सारे सद्गुणों से भरा हुआ हमारे आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का पहचान करें इसकी संरक्षण संवर्धन और व्याधि से ग्रसित व्यक्तियों की इन अमृतमय दवाइयों से सिंचन करें।
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