घर में ही रहकर संपूर्ण पंचकर्म विधि से virechan treatment -ayurveda detox therapy आसानी से किया जा सकता है वसर्ते इसकी कुछ सामान्य विधि को पहले ध्यान से समझना होगा।
दोस्तों इस blog के माध्यम से हम आपको बेहद सरल तरीका से घर में रहकर पंचकर्म विधि द्वारा विरेचन कर्म virechan karma : Loose motion therapy आसानी से करने का तरीका सिखाने वाले हैं इस लेख को कृपया एक एक करके समझते जाइए।
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यदि आप किसी महंगे आयुर्वेद डॉक्टर के संपर्क में रहे बगैर अपने घर में ही सभी आयुर्वेदिक प्रक्रिया को पूर्ण करते हुए इस पंचकर्म विरेचन detox therapy को करना चाहते हैं तो आपको विरेचन से संबंधित आयुर्वेदिक जानकारी के बारे में पहले जानना होगा।
आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा शरीर की गहराई से सफाई और विष हरण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इनमें से विरेचन कर्म विशेष रूप से पित्त दोष को संतुलित करने और पाचन तंत्र को स्वस्थ करने में सहायक है। इस ब्लॉग में हम विरेचन कर्म की सम्पूर्ण विधि, इसके लाभ, सावधानियाँ, और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों (FAQ) पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
हमारे द्वारा खाए हुए वह तमाम पदार्थ जो शरीर में चिकनाहट और गर्मी बढ़ाने में सहयोगी होता हो जो आहार बिहार liver के अंदर गर्मी को बढ़ाकर शरीर में पित्त दोष से संबंधित विकारों को उत्तेजित कर देता हो ऐसे सभी दोषों को विधि पूर्वक शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को विरेचन कर्म कहते हैं।
विरेचन कर्म आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें गुदामार्ग के माध्यम से शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से पित्त दोष को संतुलित करने और पाचन तंत्र को स्वस्थ करने में सहायक है।
कृपया में आपसे पूर्व सूचित करता हूं कि यदि आप यहां बताएं सभी विधि को एक-एक करके ख्याल नहीं रखेंगे तो विरेचन चिकित्सा से रोगी को हानि होने की संभावना होगी इसीलिए please आप सर्वप्रथम सभी बिंदुओं के ऊपर ध्यान से विचार करें उसके बाद apply करें।विरेचन कर्म की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में सम्पन्न होती है:
व्यक्ति का शरीर और उसका रोग कारक toxin यह दोनों आपस में शत्रु की तरह व्यवहार करते हैं.
जब शरीर बलवान होता है तो toxin कमजोर हो जाता है जब toxin बलवान होता है तो वह शरीर को कमजोर कर देता है।
यदि कमजोर शरीर है और toxin बलवान है तो जाहिर सी बात है उसको ऐसे ही आसानी से शरीर से बाहर नहीं निकाला जा सकता यदि आप वगैर पूर्व तैयारी के उसको निकालने का प्रयास करेंगे तो वह शरीर को नष्ट कर देगा यानी कुछ ना कुछ नुकसान पहुंच जाएगा।
इसी कारण से इस toxin को कमजोर करने और शरीर को बलवान करने की प्रक्रिया को Ayurveda Panchakarma में पूर्वकर्म कहते हैं। एसे समय में उन सभी विधियों का अनुसरण करना होगा जिससे शरीर बलवान हो और toxin कमजोर हो तो वही विधि यहां हम एक-एक करके चर्चा करेंगे।
Vaidya dronacharya ji लंबे समय से beginner को घर बैठे online के माध्यम से आयुर्वेद सीखाते हैं आप भी आयुर्वेद को इसी प्रकार live class के माध्यम से सीख सकते हैं।
सीखने के वाद विद्यार्थियों का feedback कुछ इस तरह से मीलता है।
ध्यान देना बगैर बमन किये यदि आप विरेचन करते हो तो यह बाद में रोगी को कष्ट दे सकता है क्योंकि ऐसे में आमाशय में स्थित कफ दोष नीचे की ओर खिसक जाता है और वह अग्निमान्द्य आदि समस्याएं देता है।
वमन के वाद स्नेहपान ( घी, तेल) पिलाना हो तो वमन चिकित्सा के उधर 7 दिन तक संसर्जन करना होगा । आठवें दिन सामान्य भोजन देकर नौवे दिन से 11वें दिन तक स्नेहपान कराना चाहिए यहां नौवे दिन 100 ml, दसवें दिन 150ml और 11 वें दिन 200 ml स्नेहपान देना चाहिए।
रात में खाया हुआ भोजन सुबह digest हुआ हो पेट साफ हुआ हो मगर अभी भूख ना लगा हो बस यही वह समय है जहां आपने यह (शोधन स्नेह) पिलाना है स्नेह (घी या तेल) को गर्म पानी में मिलाकर देना चाहिए।
विरेचन चिकित्सा के लिए यदि आप स्नेहपान दे रहे हैं तो 3 दिन तक आपको इन नियमों का पालन करना होगा।
भाप चिकित्सा के माध्यम से शरीर को गर्म किया जाता है, जिससे विषाक्त पदार्थ बाहर निकलने के लिए तैयार होते हैं।
Birechan karma के लिए स्नेहन के बाद 3 दिन तक स्वेदन देने की परंपरा है।
जैसे यदि आपने वमन के बाद क्रमशः
9 10 और 11 वें दिन स्नेहपान कराया अब 12 13 और 14 वें दिन सुबह शाम खाली पेट पहले शरीर में तेल लगाकर 45 मिनट तक मसाज करें फिर steam therapy स्वेदन चिकित्सा करें।
स्वेदन करते वक्त दिनचर्या
स्वेदन चिकित्सा करते वक्त रोगी को लघु आहार देना चाहिए और पूर्ण rest (शारीरिक औरमानसिक) देना चाहिए इन दोनों कोई भी बात और पित्त वर्धन आहार बिहार बिल्कुल नहीं देना चाहिए।
अब यहां यह हमारा प्रधान चिकित्सा है विरेचन खाली पेट दिया जाता है|मगर रात में खाया हुआ लघु आहार अच्छी तरह से पच गया हो सुबह उठने के बाद पेट साफ हुआ हो यह condition of detoxification का ख्याल रखना होगा। उसके बाद रोगी को विरेचन कल्प देना चाहिए।
शरीर के अतिस्निग्ध अवस्था में रूक्ष विरेचन तथा अतिरूक्ष में स्निग्ध विरेचन करना चाहिए।
हरण अमलतास निशोथ कुटकी यह सभी 20-20 ग्राम 300 ml पानी में डालकर उबालना है जब 100 ml पानी बचेगा तो उसको छानना है।
अब यदि रोगी मंद या मध्यम कोष्ठी हो तो
इस काढ़ा में 30 से लेकर 40 ml तक एरंड तेल मिलाकर पिला दे।
यदि क्रूर कोष्टी हो तो यहां दो टैबलेट इच्छा भेदी रस भी मिला दे।
विरेचन हमेशा सुबह 7:00 से लेकर 8:00 बजे के बीच में प्रारंभकर दे। जितना लेट करोगे उतना दिक्कत बढ़ेगी।
रोगी जब बाथरूम में जाकर लैट्रिन के लिए बैठता है और जब मलद्वार से मल निकलना शुरू होता है तो एक बार में कितने बेग आए उसको काउंट करना है ऐसे 30 बेग आना आयुर्वेद के दृष्टि से उत्तम सुद्धि मानी जाएगी।
20 बेग तक ही मल निकलता है तो इसे मध्यम शुद्धि और सिर्फ 10 बेग को हिन शुद्धि कहेंगे।
ध्यान देना प्रथम 10 बार तक निकलने वाली बेग में सिर्फ मल ही निकलेगा फिर क्रमशः पित्त, कफ और अंत में वायु निकलता है ऐसी स्थिति को ही सम्यक विरेचन कहेंगे।
सम्यक विरेचन होने में आप समझ कर चलो की सुबह 8:00 बजे से विरेचन प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो शाम के 6:00 वजे तक लगातार चलता रहेगा तब जाकर हम कहेंगे कि यह सम्यक विरेचन हो गया।
प्रत्येक बार जब रोगी लैट्रिन से बाहर आता है तो 5 मिनट के बाद एक घूंट पानी पीने के लिए देना है गिलास भर के यहां पीना नहीं है यदि dehydration जैसी अवस्था हो तो उसकी उचित व्यवस्था पहले से ही होनी चाहिए।
रोगी को विरेचन प्रक्रिया के दौरान उल्टी आने का संभावना अधिक होता है तो यहां आपको पहले से ही नींबू पानी, इलायची, लौंग,सौंफ खाने के लिए रखना चाहिए एक Ayurvedic medicine
जिसका नाम है कुटज घनवटी यह भी वमन होने नहीं देता है।
यदि आप विधिपूर्वक विरेचन करते हो तो यह सभी शुभ लक्षण रोगी में दिखना शुरू होता है।
यदि आप ऊपर बताएं विधि का अनुसरण नहीं करते हैं और मनमर्जी तरीका से दवाइयां खाकर लूज मोशन करने की सोचते हैं तो रोगी को इस तरह के दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
कफ प्रकोप,तन्द्रा,पित्त प्रकोप,दाह,वात प्रकोप,अरुचि,अग्नि मांद्य,हृदय तथा कोष्ठ की शुद्धि,गौरव,प्रतिश्याय,पिड़िका,बात प्रतिलोमता ,अतियोग (अतिविरिक्त) के लक्षण
यदि विरेचन आवश्यकता से ज्यादा हो गई हो तो कुछ ऐसी समस्याएं आरोग्य में दिख सकता है।
यदि अतियोग के लक्षण उत्पन्न हो गए हों तो विरेचन को रोकने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए
इनमें से कुछ योग चुनकर देने चाहिए । शीतल जल, शर्करा, मधु, दाडिम तथा आमलकी का सेवन करना चाहिए ।
आचार्य काश्यप के शब्द में विरेचन के फायदे के बारे में इस सूत्र को देखिए।
विरेचनेन शुद्ध्यन्ति प्रसीदन्तीन्द्रियाणि च ।
धातवश्च विशुद्ध्यन्ति वीजं भवति कार्मुकम् ।। काश्यप ।।
यह कुछ ऐसे रोग जिसमें विरेचन से सीधा फायदा मिलता है इन रोगों में आपको जरूर virechan treatment के लिए सोचना चाहिए।
ज्वर,कुष्ठ,अलसक(छाती में भारी लगना),मूत्राघात,प्रमेह,कृमिकोष्ठ,ऊर्ध्वग रक्तपित्त,विसर्प,भगन्दर,पाण्डु,अर्श,शिरःशूल,ब्रध्न (हर्निया),पार्श्वशूल,प्लीहदोष,उदावर्त,गुल्म,नेत्रदाह,अर्बुद,आस्यदाह(गली और मुख में जलन),गलगण्ड,व्यंग,ग्रंथि,नासास्त्राव,गर (toxin),हलीमक,विसूचिका,हृद्रोग
वह रोग जिसमें virechan therapy नहीं करना चाहिए उसके विषय में भी जानकारी दिया जा रहा है इसे अपने दिमाग में जरूर रखें
इन रोगों में विरेचन नहीं देना चाहिए अगर जरूरत पड़ी तो सावधानी पूर्वक देना है ।
सुकुमार,कामादिव्यग्र, गभिणी,क्षतगुद (फीसर),मुक्तनाल (tonsil) नाभि के ऊपर होने वाली गांठ,
अजीर्ण,नव प्रसूता,नवज्वर,राजयक्ष्मा,लंधित,मदात्यय,हृद्रोगी,
अधोग रक्तपित्त,आध्मान,भयग्रस्त,दुर्वलेन्द्रिय,शल्यार्दित,क्षतक्षीण,अल्पाग्नि,
निरूढ़:-मल मूत्र पसिना रुकजाना,अतिस्थूल,बाल तथा वृद्ध,अतिकृश,अतिरुक्ष, अत्तिस्निग्ध
विरेचन के बाद शरीर को पुनः संतुलित करने के लिए विशेष आहार और जीवनशैली की सलाह दी जाती है, जिससे पाचन तंत्र मजबूत होता है और शरीर पुनः स्वस्थ होता है।
virechan karma की समाप्ति के पश्चात् रोगी को उसके सामान्य आहार तक लाने की अवधि में जो कर्म किये जाते है वो सभी पश्चात् कर्म के अन्तर्गत आते है।
बमन विरेचन etc (सोधन ) के वाद अग्नि कमजोर हो जाती है। ऐसे कमजोर अग्नि को बलवान बनाने के लिए जो तरीका अपनाया जाता है उसे संसर्जन क्रम कहते हैं।
संसर्जन क्रम शोधन के प्रकार के ऊपर निश्चित रहता है की कितने दिन तक यह व्यवस्था रोगी को देनी चाहिए एक तालिका यहां दिया जा रहा है यहां से आप संसर्जन क्रम को प्राप्त करें।
सामान्यतः चिकित्सक व्यवहार में ४-५ दिन का संसर्जन क्रम व्यवहार में लेते हैं।
आज लोगों के पास समय का अभाव है, ऐसी परिस्थिति में चिकित्सक युक्ति पूर्वक उपरोक्त संसर्जन क्रम को अपना सकता है। रोगी को कुछ दिनों तक लघु एवं सुपाच्य आहार पर रखें तो अच्छा होगा। संशोधन कर्म का संशय से मुक्त लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्ण संसर्जन क्रम का पालन करना चाहिये।
विरेचन कर्म के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
- योग्य चिकित्सक का चयन: हमेशा प्रमाणित और अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से ही विरेचन करवाएँ।
- स्वास्थ्य की जांच: विरेचन से पहले अपनी शारीरिक स्थिति की पूरी जांच करवाएँ।
- आहार में सावधानी: विरेचन के दौरान और बाद में विशेष आहार का पालन करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
विरेचन कर्म उन व्यक्तियों के लिए उपयुक्त है जो पाचन समस्याओं, त्वचा रोगों, मोटापे,ज्वर,कुष्ठ,अलसक(छाती में भारी लगना),मूत्राघात,प्रमेह,कृमिकोष्ठ,ऊर्ध्वग रक्तपित्त,विसर्प,भगन्दर,पाण्डु,अर्श,शिरःशूल,ब्रध्न (हर्निया),पार्श्वशूल,प्लीहदोष,उदावर्त,गुल्म,नेत्रदाह,अर्बुद,आस्यदाह(गली और मुख में जलन),गलगण्ड,व्यंग,ग्रंथि,नासास्त्राव,गर (toxin),हलीमक,विसूचिका,और हृद्रोग जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं।
विरेचन के बाद हल्का आहार लें, भारी शारीरिक श्रम से बचें, और चिकित्सक की सलाह के अनुसार संसर्जन क्रम जीवनशैली अपनाएँ।
विरेचन कर्म की अवधि व्यक्ति की शारीरिक स्थिति और चिकित्सक की सलाह पर निर्भर करती है, लेकिन सामान्यतः यह 7-10 दिनों की प्रक्रिया होती है।
सुकुमार,कामादिव्यग्र, गभिणी,क्षतगुद (फीसर),मुक्तनाल (tonsil) नाभि के ऊपर होने वाली गांठ,अजीर्ण,नव प्रसूता,नवज्वर,राजयक्ष्मा,लंधित,मदात्यय,हृद्रोगी,अधोग रक्तपित्त,आध्मान,
भयग्रस्त,दुर्वलेन्द्रिय,शल्यार्दित,क्षतक्षीण,अल्पाग्नि,निरूढ़:-मल मूत्र पसिना रुकजाना,अतिस्थूल,बाल तथा वृद्ध,अतिकृश,अतिरुक्ष, अत्तिस्निग्ध,
गर्भवती महिलाएँ, वृद्ध व्यक्ति, और कुछ विशेष स्वास्थ्य स्थितियों वाले व्यक्तियों के लिए विरेचन कर्म उपयुक्त नहीं हो सकता। इसलिए, चिकित्सक की सलाह आवश्यक है।
हल्का, सुपाच्य, और ताजे खाद्य पदार्थों का सेवन करें। तले-भुने, मसालेदार, और भारी भोजन से बचें।
यदि आप विरेचन प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझते हो तो आप निश्चित अपने घर में रहकर खुद ही विरेचन चिकित्सा को कर सकते है लेकिन अगर इसमें आप में कंफ्यूजन होने की संभावना होगी तो आप हमसे भी संपर्क कर सकते हैं हम आपको ऑनलाइन के माध्यम से यह विरेचन कर्म करा देंगे।
निष्कर्ष
विरेचन कर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करके स्वास्थ्य को पुनः स्थापित करता है। यह प्रक्रिया पाचन तंत्र, त्वचा, और समग्र स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यदि आप विरेचन कर्म करवाने का विचार कर रहे हैं, तो हमेशा प्रमाणित और अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें।
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