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Vasa Vanaspati ke Ayurvedic Gun aur Upyog – खांसी, श्वास, TB की Natural आयुर्वेदिक औषधि

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वासा (Vasa), जिसे संस्कृत में वासक, सिंहपर्णी, वाजिदन्तक, तुम्बुरा, और सिंहवल्लिका जैसे कई नामों से जाना जाता है, आयुर्वेद की एक महत्त्वपूर्ण औषधीय वनस्पति है। यह मुख्यतः कफ और पित्त को संतुलित करती है, श्वास रोगों (जैसे दमा और खांसी) में अत्यंत लाभकारी मानी जाती है, और क्षय (टीबी) जैसे रोगों में उपयोगी है।

वासा आयुर्वेद की बहुपयोगी और प्रभावशाली औषधियों में से एक है। यदि किसी व्यक्ति को बार-बार खांसी, दमा, गले की परेशानी, बुखार या टीबी जैसी समस्याएँ हैं, तो वासा का सेवन शास्त्र सम्मत रूप से लाभ पहुंचा सकता है।

विशेष सूचना: किसी भी औषधि का उपयोग आयुर्वेद विशेषज्ञ या वैद्य की सलाह अनुसार ही करें।

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अडुसा / वासा की सामान्य जानकारी:

गुण विवरण
हिंदी नाम अडुसा, बासक, वासा
संस्कृत नाम वासा, वासक, सिंहपर्णी
अंग्रेजी नाम Malabar Nut
वानस्पतिक नाम Justicia adhatoda
कुल (Family) Acanthaceae

वासा के शास्त्रीय नाम (Synonyms of Vasa in Ayurveda)

वासाटरूषः सिंहास्यो भिषङ्माताटरूषकः।
शीतवल्ली सिंहपर्णी मारुका सिंहवल्लिका।।
वृषः सिंही सिंहमुखी वासको वाजिदन्तकः।
सिंहास्या तुम्बुरा तिक्ता हृद्या स्वर्या हिमा लघुः।।

अन्य नाम: वासक, सिंहमुखी, वृषसिंही, वाजिदन्तक, शीतवल्ली, मारुका, तुम्बुरा, सिंहवल्लिका।

वासा का स्वाद, गुण और प्रभाव (Rasa, Guna, Virya, Vipaka)

  • रस (स्वाद): तिक्त (कड़वा)

  • गुण: लघु (हल्की), शीतल (हिम गुण)

  • वीर्य: शीत (ठंडक पहुँचाने वाला)

  • विपाक: कटु (पाचन के बाद तीखा प्रभाव)

वासा के आयुर्वेदिक गुण और लाभ (Medicinal Benefits of Vasa in Ayurveda)

  1. स्वास-कास हर (श्वास और खांसी में लाभकारी):
    वासा विशेष रूप से दमा, कफज खांसी, सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याओं में उपयोगी है।

  2. क्षयरोग में उपयोगी:
    वासा का फूल (पुष्प) क्षय रोग (टीबी), कमजोरी और यौन शक्ति की कमी में लाभकारी है।

  3. हृदय और स्वर (गला) के लिए उत्तम:
    यह औषधि हृदय को बल देती है और गले की खराश, आवाज़ बैठना, बोलने में तकलीफ जैसे लक्षणों में राहत देती है।

  4. शीतल और लघु:
    वासा की प्रकृति शीतल होती है, यह शरीर को ठंडक देती है और हल्की होने के कारण पाचन में आसान होती है।

  5. प्रमेह (डायबिटीज जैसे रोगों), ज्वर, अरुचि, तृष्णा और कुष्ठ में उपयोगी:
    यह मूत्र विकारों, बुखार, भूख न लगना, अत्यधिक प्यास और त्वचा रोगों में लाभकारी है।

  6. • प्राण वायु की कमी से जो लक्षण (ऊर्जाहीनता, उदासी, हृदय की कमजोरी, बोलने में कठिनाई, बार-बार खांसी, सांस अटकना) दिखें — उनमें भी ये ओषधि दी जाती है।

वासा कहाँ पर प्रयोग करें?

वासा का प्रयोग तब करें जब प्राण वायु व उदान वायु से संबंधित कोई समस्या हो—जैसे कफ जमे, पित्त बेकाबू हो, या श्वास संबंधित रोग हों (स्वास, कास/खांसी आदि)। अगर यह समस्या उदावर्त (कब्ज या मल-मूत्र रुकना) के कारण हो, तो वासा नहीं दें, क्योंकि उसका असर तब नहीं होगा।

अडुसा का प्रयोग कैसे करें?

रूप विधि
काढ़ा अडुसा की पत्तियों को उबालकर काढ़ा बनाएं। थोड़ा शहद मिलाकर सेवन करें।
रस (Juice) ताज़ी पत्तियों को पीसकर रस निकालें, 1-2 चम्मच सुबह-शाम
गुलकंद अडुसा के फूलों का गुलकंद बनाकर टीबी और कमजोरी में दें
सुखी पत्तियों का चूर्ण सूखी पत्तियों को पीसकर चूर्ण बनाएं, 1-2 ग्राम दिन में दो बार लें

वासा का उपयोग कब न करें? (When to Avoid Vasa)

  • जब रोग उदावर्त (कब्ज, मल-मूत्र रुकना) के कारण उत्पन्न हुआ हो, तब वासा का प्रभाव कम होता है।

  • वात प्रकृति वाले रोगियों को यह सावधानीपूर्वक देना चाहिए क्योंकि तिक्त रस वायु को बढ़ा सकता है।

वासा फूल का उपयोग (Vasa Flower Benefits)

  • वासा के पुष्प का गुलकंद बनाकर सेवन किया जाए तो यह टीबी, कमजोरी, बार-बार थकावट, और यौन दुर्बलता में प्रभावी होता है।

वासा का शास्त्रीय उपयोग (Classical Ayurvedic Uses)

"वातला कफपितास्रश्वासकासहरा हरेत्।
ज्वरमेहारुचिच्छर्दिकुष्ठतृष्णाक्षतक्षयान्।।"

इसका अर्थ है कि वासा:

  • वात, कफ, पित्त, रक्तविकार को शांत करती है।

  • श्वास, खांसी, बुखार, प्रमेह, अरुचि, वमन, कुष्ठ, तृष्णा, घाव और क्षय जैसे रोगों में अत्यंत लाभदायक है।

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