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प्रकृतिसमसमवेत और विकृतिविषमसमवेत सिद्धान्त – आयुर्वेद के महत्वपूर्ण चिकित्सा सूत्र

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आयुर्वेद में औषधियों और रसों के प्रभाव को समझने के लिए कई सिद्धान्त बताए गए हैं। उनमें से प्रकृतिसमसमवेत और विकृतिविषमसमवेत दो महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं, जो बताते हैं कि जब विभिन्न रस और द्रव्य एक साथ मिलते हैं तो उनके गुण कैसे बदलते हैं या बने रहते हैं। यह ज्ञान वैद्य को सही औषधि संयोजन चुनने में मदद करता है।

परिचय

आयुर्वेद केवल औषधियों के गुणों का संग्रह मात्र नहीं है, बल्कि यह पदार्थ विज्ञान और संयोजन विज्ञान (Combination Science) का भी गहरा अध्ययन करता है।
चरक संहिता, विमान स्थान, रसविमान अध्याय में आचार्य चरक ने बताया है कि हर द्रव्य पांच प्रकार की स्वभावगत शक्तियों से युक्त होता है –

  1. रस (स्वाद)

  2. गुण (गुणात्मक प्रभाव)

  3. वीर्य (ऊर्जा/ताकत – उष्ण या शीत)

  4. विपाक (पाचन के बाद का स्वाद और प्रभाव)

  5. प्रभाव (विशेष क्रिया)

हर प्रकार का आहार और द्रव्य इन्हीं पांच शक्तियों से संपन्न होते हैं और शरीर में कार्य करती है । किसी द्रव्य में इनमें से जो शक्ति सबसे अधिक प्रबल होती है, वह अन्य कमजोर शक्तियों को दबा देती है और अपना प्रभाव दिखाती है।


उदाहरण – नीम का रस

नीम का रस कड़वा (कषाय-कटु) है, और उसका वीर्य शीतल है। लेकिन इसके बावजूद, जब नीम का प्रयोग होता है, तो उसका कड़वा रस अधिक प्रभावशाली होता है और शरीर पर उसके अनुरूप असर डालता है। इसका अर्थ है कि द्रव्य में भी आंतरिक “शक्ति प्रतिस्पर्धा” (Power Dominance) होती है। 


प्रकृतिसमसमवेत सिद्धान्त

परिभाषा

जब अनेक द्रव्य, जिनमें समान रस या गुण हैं, मिलते हैं और अपने स्वाभाविक गुणों को बनाए रखते हैं, तो इसे प्रकृतिसमसमवेत कहते हैं।
चरक व चक्रपाणि के अनुसार, यहाँ किसी का गुण दूसरे को दबाता नहीं है, बल्कि सभी का प्रभाव मिलकर समान दिशा में कार्य करता है।


उदाहरण

  • दूध + जल + चीनी = मधुर रस का संयोजन, जो शरीर में मधुर गुण ही उत्पन्न करता है।

  • बलवर्धक औषधियों का मिश्रण, जो सामूहिक रूप से बल बढ़ाते हैं।


विकृति समवेत – एक अतिरिक्त दृष्टिकोण

परिभाषा
जब दो समान गुण वाले पदार्थ आपस में मिलते हैं, और उनका संयोजन एक तीसरी नई शक्ति या प्रभाव पैदा करता है, जो पहले मौजूद नहीं था, तो यह विकृति समवेत कहलाता है।


आधुनिक दृष्टांत

  • सोडियम + पानी – दोनों अपनी-अपनी अवस्था में सामान्य पदार्थ हैं। लेकिन जब इन्हें मिलाया जाता है, तो विस्फोट (Explosion) होता है। यह तीसरी क्रिया है, जो अलग-अलग रहते समय संभव नहीं थी।

  • यह सिद्धान्त बताता है कि समान गुण होने के बावजूद, संयोजन की प्रक्रिया में एक नया और अप्रत्याशित प्रभाव पैदा हो सकता है।


विकृतिविषमसमवेत सिद्धान्त

परिभाषा

जब विभिन्न द्रव्य आपस में मिलते हैं और उनके गुण या तो नष्ट हो जाते हैं या विकृत होकर हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं, तो इसे विकृतिविषमसमवेत कहते हैं।


प्राचीन उदाहरण

  • मछली + दूध – त्वचा रोगकारी

  • मधु + घृत (समान मात्रा) – विषाक्त प्रभाव

मछली और दूध के अंदर स्वाभाविक रस गुण वीर्य विपाक स्वतंत्र रूप से जो कर्म करने वाला है वह विरोधी गुण दूध के साथ मिलकर तीसरा कुछ नकारात्मक शक्तियों को तैयार करता है आयुर्वेद इसको विष के श्रेणी पर रखता है। वह शरीर में स्थित होकर रोगों का उत्पादन करता है। चिकित्सकों के लिए अब यहां हेतु निर्धारण करने में दिक्कत होती है क्योंकि यह दूध और मछली के सहयोग से तीसरी विकृति के रूप में जहर उत्पन्न हुआ है आप स्वतंत्र रूप से नहीं दूध नहीं मछली दोनों को इस रोग का हेतु नहीं कह सकते इन दोनों के संयोग से जो नया विष उत्पन्न हुआ वही रोग का कारण बनने वाला है।


आधुनिक चिकित्सा से उदाहरण

वैक्सीन और प्राकृतिक एंटीबॉडी का संभावित द्वंद्व

हमारे शरीर में प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली (Natural Immunity) होती है, जो रोगजनकों के खिलाफ एंटीबॉडी बनाती है।
जब हम वैक्सीन लेते हैं, तो वह भी शरीर में एक कृत्रिम एंटीबॉडी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है।
अब शरीर में दो अलग स्रोत से आई एंटीबॉडी मौजूद हैं –

  • प्राकृतिक एंटीबॉडी

  • वैक्सीन-प्रेरित एंटीबॉडी

इनके बीच किस प्रकार का अंतःक्रिया (Interaction) होगा, यह अभी पूरी तरह शोधित नहीं है। कुछ परिस्थितियों में, यह संयोजन अप्रत्याशित प्रतिक्रियाएं या टॉक्सिन निर्माण भी कर सकता है।

यह उसी प्रकार है जैसे विकृति समवेत या विकृतिविषमसमवेत में संयोजन से एक तीसरी अप्रत्याशित शक्ति का निर्माण होता है, जो कभी लाभकारी तो कभी हानिकारक हो सकती है।


इन सिद्धान्तों से मिलने वाले मुख्य सबक

  1. संयोजन विज्ञान – किसी भी औषधि या आहार का संयोजन सोच-समझकर होना चाहिए।

  2. अप्रत्याशित प्रभाव – समान गुण भी नई और अनजानी शक्ति उत्पन्न कर सकते हैं।

  3. हानिकारक संयोजन से बचाव – आयुर्वेद स्पष्ट चेतावनी देता है कि हर द्रव्य का संयोग लाभकारी नहीं होता।

  4. शरीर की स्वाभाविक शक्तियों का सम्मान – कृत्रिम हस्तक्षेप करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शरीर के प्राकृतिक कार्य में अवरोध न हो।


आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान का संगम

आयुर्वेद के ये सिद्धान्त आज भी फार्माकोलॉजी, न्यूट्रिशन और बायोकैमिस्ट्री में उपयोगी हो सकते हैं।

  • प्रकृतिसमसमवेत – Nutritional synergy

  • विकृति समवेत – Chemical reaction-based effect

  • विकृतिविषमसमवेत – Adverse drug/food interaction


व्यावहारिक चार्ट

सिद्धान्त परिभाषा उदाहरण (आयुर्वेद) उदाहरण (आधुनिक विज्ञान)
प्रकृतिसमसमवेत समान गुण वाला संयोजन, गुण कायम दूध + चीनी विटामिन C + आयरन का संयोजन
विकृति समवेत समान गुण वाला संयोजन, तीसरा प्रभाव सोडियम + पानी का विस्फोट
विकृतिविषमसमवेत गुण विकृत होकर हानिकारक प्रभाव मछली + दूध कुछ दवाओं का हानिकारक इंटरैक्शन

FAQs

1. प्रकृतिसमसमवेत सिद्धान्त क्या है?
जब दो या अधिक द्रव्य, जिनमें समान रस, गुण या प्रकृति होती है, एक साथ मिलते हैं और अपने मूल स्वभाव को बनाए रखते हैं, तो इसे प्रकृतिसमसमवेत कहते हैं। इसमें किसी द्रव्य का प्रभाव दूसरे को दबाता नहीं है, बल्कि सभी का असर एक ही दिशा में होता है।


2. विकृति समवेत का क्या अर्थ है?
जब समान गुण वाले दो पदार्थ मिलकर एक नई और पहले से अनुपस्थित तीसरी शक्ति या प्रभाव पैदा करते हैं, तो इसे विकृति समवेत कहते हैं। यह प्रभाव पहले दोनों में अलग-अलग रहते हुए नहीं दिखता।


3. विकृतिविषमसमवेत का क्या मतलब है?
जब विभिन्न गुणों वाले द्रव्य आपस में मिलकर अपने मूल गुणों को विकृत कर लेते हैं और हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं, तो यह विकृतिविषमसमवेत कहलाता है।


4. सोडियम और पानी का संयोजन किस सिद्धान्त में आएगा?
सोडियम और पानी का संयोजन विकृति समवेत का उदाहरण है, क्योंकि दोनों अलग-अलग स्थिर हैं, लेकिन मिलते ही विस्फोटक तीसरी क्रिया करते हैं।


5. मछली और दूध साथ लेने से क्या हानि होती है?
मछली और दूध का संयोजन त्वचा रोग (Skin Disorders) का कारण बन सकता है। यह विकृतिविषमसमवेत का उदाहरण है।


6. समान मात्रा में मधु और घृत क्यों हानिकारक है?
आयुर्वेद में समान मात्रा में शहद और घी का सेवन विषाक्त माना गया है, क्योंकि यह संयोजन शरीर में टॉक्सिन उत्पन्न कर सकता है।


7. रस, गुण, वीर्य, विपाक, प्रभाव – ये क्या हैं?

  • रस – स्वाद (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय)

  • गुण – भौतिक/स्वाभाविक गुण (गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष आदि)

  • वीर्य – सक्रिय ऊर्जा (उष्ण या शीत)

  • विपाक – पाचन के बाद का असर (मधुर, अम्ल, कटु)

  • प्रभाव – विशेष और अप्रत्याशित प्रभाव, जो रस-गुण-वीर्य-विपाक से अलग हो सकता है।


8. किसी द्रव्य में सबसे प्रभावी शक्ति कैसे पहचाने?
द्रव्य का सेवन करने के बाद उसके शरीर पर दिखने वाले मुख्य असर का अध्ययन कर, यह पता चलता है कि उसमें कौन-सी शक्ति (रस, गुण, वीर्य, विपाक, प्रभाव) सबसे प्रबल है।


9. नीम का रस कड़वा होते हुए भी शीत वीर्य क्यों प्रभावहीन लगता है?
क्योंकि नीम में कटु रस की शक्ति वीर्य से अधिक प्रबल है, इसलिए शीत वीर्य का असर दब जाता है और कड़वे रस का असर प्रमुखता से दिखाई देता है।


10. वैक्सीन और प्राकृतिक एंटीबॉडी में टकराव संभव है?
सैद्धांतिक रूप से, हाँ। प्राकृतिक एंटीबॉडी और वैक्सीन-प्रेरित एंटीबॉडी शरीर में एक साथ मौजूद होने पर अप्रत्याशित अंतःक्रियाएं कर सकते हैं, जो लाभकारी भी हो सकती हैं और कभी-कभी हानिकारक भी। इस पर अभी सीमित शोध है।


11. क्या ये सिद्धान्त भोजन संयोजन पर भी लागू हैं?
हाँ, आयुर्वेद में भोजन संयोजन (Food Combination) इन्हीं सिद्धान्तों पर आधारित है। गलत संयोजन से विकृति या रोग हो सकते हैं।


12. क्या आधुनिक विज्ञान इन सिद्धान्तों को मान्यता देता है?
प्रत्यक्ष रूप से इन नामों से नहीं, लेकिन आधुनिक विज्ञान में Drug Interaction, Nutrient Synergy और Adverse Food Interaction जैसे सिद्धान्त इनके समानांतर माने जा सकते हैं।


13. विकृति समवेत और विकृतिविषमसमवेत में अंतर क्या है?

  • विकृति समवेत – समान गुण का मेल, लेकिन अप्रत्याशित नई शक्ति उत्पन्न होना।

  • विकृतिविषमसमवेत – विभिन्न गुणों का मेल, जिससे गुण विकृत होकर हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं।


14. इन सिद्धान्तों का अध्ययन किस ग्रंथ में है?
ये सिद्धान्त मुख्यतः चरक संहिता, विमान स्थान, रसविमान अध्याय में वर्णित हैं।


15. आहार और औषधि के संयोजन में सबसे बड़ा खतरा क्या है?
सबसे बड़ा खतरा यह है कि गलत संयोजन से अप्रत्याशित या विषाक्त प्रभाव पैदा हो सकते हैं, जो रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकते हैं।


निष्कर्ष

चरक संहिता में वर्णित ये सिद्धान्त केवल प्राचीन समय के लिए नहीं, बल्कि आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। चाहे बात हो नीम के कड़वे रस की, सोडियम–पानी के विस्फोट की, या वैक्सीन–एंटीबॉडी के संभावित द्वंद्व की — सब यह दर्शाते हैं कि संयोजन हमेशा एक नए परिणाम को जन्म दे सकता है, और यह परिणाम लाभकारी भी हो सकता है तथा हानिकारक भी।

इसीलिए आयुर्वेद सिखाता है — “संयम और ज्ञान ही औषधि का सही प्रयोग है।”

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