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मिर्गी को जड़ से खत्म करने का इलाज | वह 10 रोग जिसका लक्षण भी Epilepsy जैसा ही होता है।

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100 Epilepsy patient के ऊपर आयुर्वेदिक पद्धति से परीक्षण किया जाये तो उनमें से महज 10 या 11 लोगों में ही Ayurvedic मापदंडों के आधार पर Epilepsy यानी मिर्गी का लक्षण दिख रहा होता है। वह 10 रोग जिसमें 1 लक्षण मिर्गी यानी Epilepsy जैसा ही दिखता है । यदि आप मिर्गी को जड़ से खत्म करना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको Epilepsy यानी मिर्गी रोग के बारे में स्वयं ही जानकारी लेना होगा क्योंकि इन दिनों हॉस्पिटल में डॉक्टर के पास इतना समय ही नहीं है कि वह आपको epilepsy के बारे में पक्की और सच्ची जानकारी प्रदान कर सके।

इस पोस्ट में हम इन विषयों के ऊपर चर्चा करेंगे।
बहुत सारे रोग का एक लक्षण Epilepsy में दिखाई देने वाला मूर्छा, मुंह से झाग निकलना होता है इसीलिए नीचे दिए गए बिंदुओं को ध्यान से पढ़ें और इस रोग की गहराई को पहचाने।
इस पोस्ट में हम सबसे पहले इन एलोपैथिक रिपोर्ट के आधार पर मिर्गी से संबंधित विचारों को विमर्श करेंगे जैसे..

  1. Cerebrospinal fluid test (CLF) for Epilepsy 
  2. WBC diagnosis से भी हमें निम्न बातें पता चल जाती है।
  3. Lymphocyte वृद्धि से होने वाली मीर्गी रोग।
  4.  इयोसिनोफिल्स की वृद्धि से होने वाली मीर्गी रोग।
  5. न्यूट्रोफिल की वृद्धि से होने वाली मीर्गी रोग।
  6. Widle Test. द्वारा भी मिर्गी का परीक्षण किया जा सकता है।
  7. Blood bilirubin and epilepsy
  8. Hemoglobin Report द्वारा अपस्मार का विचार।

mirgi ko dabai

Epilepsy treatment.


  इस post में हम समझते हैं कि वास्तव में epilepsy यानी आयुर्वेद में जिसको अपस्मार और सामान्य भाषा में मिर्गी रोग के नाम से जाना जाने वाला इस रोग के संदर्भ में विस्तृत चर्चा करेंगे।
Epilepsy जैसा ही लक्षण कौन-कौन से शारीरिक व्याधियों में दिखाई देता है उन व्याधियों का epilepsy के साथ क्या-क्या भिन्नता है इसको भी जानेंगे।

Diagnosis of epilepsy.

जैसे कि आयुर्वेद का मानना है जब तक रोग का सटीक विश्लेषण ना हो, जब तक रोग का कारण और संप्राप्ति(सम्प्राप्ति का अर्थ होता है कि शरीर में किस तरह एपिलेप्सी का निर्माण और विकृति हो रहा है कौन-कौन सा दोष धातु और अर्गन मिलकर इस व्याधि का उत्थान कर रहे हैं इसको जानने का व्यवस्था जिसको आयुर्वेदिक भाषा में संप्राप्ति कहा जाता है)
 जब तक यह ही मालूम ना हो की रोग कौन सा है तब तक चिकित्सा किस चीज का किया जाए इन दिनों ज्यादातर डॉक्टर रोग निदान किए बगैर ही चिकित्सा करने लग जाते हैं इससे बेहतर है रोगी का इस पोस्ट में लिखे अनुसार लक्षणों की पहचान करके या epilepsy allopathic diagnosis हो जाने के बाद परिणाम को देखकर आयुर्वेदिक अवधारणा को प्रमाणित करते हुए चिकित्सा व्यवस्था पत्र निर्माण करनी चाहिए।

नमस्कार दोस्तों आज हम allopathic report द्वारा आयुर्वेदिक पद्धति से परीक्षण किए जाने वाले अपस्मार के साथ कैसे तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं इसके ऊपर चर्चा करेंगे।

Allopathic diagnosis and confusion.


बदलते समय के साथ विज्ञान कितना तरक्की कर रहा है इसका कोई मापदंड सही-सही तय नहीं हो पा रहा है। एलोपैथिक मेडिकल साइंस को विज्ञान का चमत्कार माना जाता है। समाज में जितना जितना विज्ञान का स्तर उन्नत हो रहा है उतना उतना शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक समस्या भी बढ़ते जा रहा है। हालांकि Medical science allopathic diagnosis के विषय मे मुझे एक चीज बहुत confuse करता है कि एक व्यक्ति का एक ही समय में अलग-अलग device से रक्त परीक्षण किया जाए तो एक समान result क्यों नहीं दिखाता।
कोई भी रोग परीक्षण का उपकरण एक ही व्यक्ति के शरीर में अलग-अलग उपकरणों से परीक्षण किया जाए तो कहीं भी ऐसा हो नहीं रहा है कि वह एक समान रिजल्ट दिखा सके ऐसे में किस device के result को believe किया जाए यह समझ से परे है और लोग इसको किस आधार पर आधुनिक सफल विज्ञान मानते हैं मुझे समझ में नहीं आ रहा है। वैसे आयुर्वेदिक वैद्य के पास रोग परीक्षण का अपना अलग सिद्धांत है जिस पर नाड़ी परीक्षण मूत्र परीक्षण आदि परीक्षण द्वारा रोगों का सटीक पता लगाया जा सकता है लेकिन फिर भी यदि कोई चिकित्सक इन विधि को नहीं जान सकते तो नीचे लिखे हुए तरीका द्वारा एलोपैथिक रिपोर्ट के माध्यम से ही आयुर्वेदिक चिकित्सा विधि तय कर सकते हैं।

मेरे पास बिगत कई वर्षों से epilepsy मिर्गी के रोगी आयुर्वेदिक उपचार हेतु आ चुके हैं अभी तक हजारों रोगियों के ऊपर में काम कर चुका हूं यदि ईमानदारी से बोलूं तो मुझे 100 में से सिर्फ 9-10 लोगों में ही आयुर्वेदिक ग्रंथों में बताया गया सिद्धांत अनुसार मिर्गी का लक्षण दिखता है।

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अब यहां समझना होगा मिर्गी कितने प्रकार के होते है।

यदि हम मोटा मोटी हिसाब लगाएं तो मिर्गी रोग जिसको अपस्मार कहकर जाना जाता है यह 4 प्रकार के कारणों से हो सकता है।
1. शारीरिक विकृतियों के कारण
2. मानसिक विकृतियों के कारण
3. पूर्व जन्म में किए हुए अशुभ कर्म और संस्कार के कारण 
4. इस जन्म में किए हुए पाप कर्मों के कारण।

मुख्यत इनमें से कोई भी एक या अनेक कारण और रोगी का भाग्य दोनों ही खराब हो तो मैं इसे मिर्गी रोग होने का आधार मानुंगा।
यदि मैं कहूं की MRI, और EEG रिपोर्ट में कुछ नहीं दिखता है तो यह शारीरिक व्याधि नहीं है इसके अलावा अब रोगी के पास सीर्फ मानसिक और पूर्वजन्मानुकृत कर्म ही व्याधि का कारण रह सकता है। ऐसी अवस्था में जब तक व्याधि का कारण स्पष्ट ना हो कम से कम रोगी को  शरीर अस्तव्यस्त करने वाला निंद्रा की गोली के हवाले उस रोगी को नहीं छोड़नी चाहिए। सभी पैथिक के चिकित्सकों को निरंतर रोगी के अनेक कारणों को ढूंढने का प्रयत्न करना चाहिए।
 ऐसी स्थिति में रोगी को जबरदस्ती, हट पूर्वक शारीरिक चिकित्सा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

यदि मिर्गी रोग ही नहीं है तो फिर दवाई क्यों और किस चीज का दे रहे हो।

मैंने अनंतवार ऐसा देखा है की रोगी को किसी भी एंगल में Epilepsy यानी मिर्गी जैसा कोई लक्षण दिख ही नहीं रहा था फिर भी चिकित्सक उन्हें Epilepsy ही मानकर तरह-तरह के एलोपैथिक दवाई दे रहे थे यही कारण था कि वह लोग उन दवाइयों से कभी ठीक हुए ही नहीं।
 मिर्गी जैसा दिखने वाला बेहोशी, वैसा छटपटाहट, अनेक दूसरे रोगों में भी होसकता ता है आयुर्वेद के हिसाब से भ्रम यह एक महज लक्षण है प्रमुख व्याधि नहीं है।
 बेहोशी की हालत में जमीन में गिर जाना शरीर के किसी भी आर्गन में आए हुए खराबी के वजह से होना आम बात है।
 वहुधा हम ऐसा भी देखते हैं कि शरीर में कोई तीव्र प्रतिक्रिया जब भी होता है तो मस्तिष्क उस दर्द से या उस भयानक प्रतिक्रिया से शरीर को राहत देने के लिए मस्तिष्क से शरीर का संबंध को हटा देता है यही वह कारण है जब इंसान को चोट लग जाती है तीव्र वेग से ब्लड निकलते हुए दर्द होने लगे तो इंसान बेहोश हो जाता है मगर यह तो उस शरीर का सामान्य प्रक्रिया मात्र है इसी को व्याधि मानकर उपचार करना तो समझदारी नहीं है।

 

मस्तिष्क में जमा हुआ कैल्शियम को निकाल कर फेंकने वाला पौधा इसकी पहचान करें।

mirgi ka jangali jadibuti

मिर्गी जैसा ही लक्षण वाला दूसरे रोगों का नाम।

मुझे ऐसा लगता है कि आंतरिक रक्तस्राव, पांडु रोग, धातु क्षय, शोथ, राज्यक्ष्मा, उदकक्षय,फक्करोग, के कारण भी मिर्गी जैसा ही लक्षण दिखता है क्योंकि बहुत समय से में मिर्गी के रोगीयों को जब ESR (Erythrocyte sedimentation rate) को चेक करने के लिए बोलता हूं और उस रिपोर्ट को देखता हूं तो इसमें विकृति दिखती है।

ध्यान रहे ESR level प्राकृत से अधिक हो तो ऐसा तभी हो सकता है जब रोगी धातु क्षय,राजयक्ष्मा,मैलिग्नेंन्सी जैसे समस्या से शरीर ग्रसित हो और ESR level अपने प्राकृतिक अवस्था से कम होता हो तो ऐसी condition में हम यह कह सकते हैं कि यह उदकक्षय, हृदयवसाद,फक्करोग मैं से कोई ना कोई व्याधि हो सकता है।

Blood protein के कारण भी मिर्गी रोग होता है।

मैं ज्यादातर मिर्गी कहने वाले रोगियों को ESR के साथ-साथ Blood protein भी चेक करने के लिए सलाह देता हूं क्योंकि
Elbumin और Globulin  इनके इस पर भी प्राकृत अवस्था से घटने या बढ़ने से भी एपिलेप्सी जैसा ही कंडीशन शरीर दिखाना शुरू कर सकता है।
क्योंकि Elbumin Ratio का घटना जलोदर,शोथ,लंबी उपवास,और लिवर फंक्शन की बड़ी प्रॉब्लम को इंगित करता है ऐसे ही carcinoma, sirosis of liver,श्लीपद,कामला,आमवात,संक्रमण में Globulin लेवल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। याद रखें यह सभी आयुर्वेदिक व्याधियों का नाम में 1 लक्षण बेहोश होना भी लिखा हुआ है अब इस वेहोसी को आप मिर्गी कहोगे तो यह आपकी कमजोरी है।

Blood bilirubin and epilepsy|

में आपको एपिलेप्सी परीक्षण के उस श्रृंखला में Blood bilirubin चेक करने के लिए भी सुझाव दूंगा क्योंकि बहुत बार लीवर और गॉलब्लैडर में स्वेलिंग होने पर या कामला जैसे कंडीशन में भी Blood bilirubin बढ़ जाता है। यानी Blood bilirubin के बढ़ने के बाद आपको इस दिशा में अपना सोच केंद्रित करना है कि रोगी को कहीं liver में swelling होने के कारण या gallbladder में swelling होने के कारण तो epilepsy नहीं हो रहा है क्योंकि ध्यान देना ज्यादातर मैंने ऐसे रोगी जिसका mRI. और EEG clear है उनमें liver function में आई हुई विकृति ही ज्यादातर देखता हूं इसीलिए उन सभी examination को कराना है जिसका directly indirectly liver के साथ संबंध होता है। 

Widle Test. द्वारा भी मिर्गी का परीक्षण किया जा सकता है।

click hare indian ayurveda and epilepsy
आयुर्वेद ग्रंथों के सिद्धांतों और परीक्षण पद्धतियों को यदि हम modern science के साथ combination करते हुई चलना सीखेंगे तो चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी सफलता मिल सकती है।
ध्यान देना सभी चिकित्सा का जनक आयुर्वेद ही है एलोपैथिक भी उसी चिकित्सा पद्धति का नवीनीकरण है हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि आयुर्वेद तरक्की नहीं कर रहा है या अपने विषयों को विस्तार नहीं कर रहा है समय के साथ नहीं चल रहा है ध्यान देना है सभी चिकित्सा पद्धति का जड़ आयुर्वेद है तो जो एलोपैथिक का नवीनीकरण है उसे भी आयुर्वेद का प्रगति ही समझ कर हमें उसके कुछ अच्छे सिद्धांतों को एक्सेप्ट करना चाहिए।
उनमें से एक है एलोपैथिक डायग्नोसिस के रिपोर्ट को आयुर्वेदिक पद्धति के साथ जोड़ते हुए अपना आयुर्वेदिक अवधारणा को पक्का करना और उसी के आधार पर अपने चिकित्सा व्यवस्था को व्यवस्थित करना इसी श्रृंखला में एपिलेप्सी के मरीज में यदि हम Widle Test. रिपोर्ट निकालकर आयुर्वेदिक पद्धति से उस रिपोर्ट को पड़ेंगे तो प्रत्यक्ष होगा कि कहीं इसरो की हो आंत्रिकज्वर (Typhoid) के कारण तो मिर्गी का दौरा नहीं पड़ रहा है क्योंकि ध्यान रहे यह टाइफाइड जब हो जाता है तो जब तक इसका सोधन ना करो यह शरीर से बाहर निकलने वाला नहीं है कभी-कभी बचपन में लम्वे समय तक Typhoid हो करके भी रोगी में एपिलेप्सी का लक्षण अभी दिखा रहा होता है यह बात आपको widal test करने के बाद स्पष्ट पता चल जाएगा।

widal test

Abnormal :-H''agglutination 1:40(Typhoid?)
                                                  1:80 (positively typhoid)

''O'' agglutination 1:60 or higher ----Typhoid
ज्वर का संप्राप्ति मिलने पर हमें RBC WBC रिपोर्ट भी निकालना चाहिए इस के साथ में hemoglobin परीक्षण भी जरूर करना चाहिए।
ध्यान देना आयुर्वेद में वर्णित रंजक पित्त ही एलोपैथिक में हीमोग्लोबिन है। यदि हिमोग्लोबिन लेवल कमजोर हो तो रक्त कण को बल देने वाला रंजक पित्त अपने प्राकृतमान से कम होरहा है।

WBC परीक्षण से भी हमें निम्न बातें पता चल जाती है।

ल्यूकोसाइटोसिस में किसी संक्रमण से रक्त का श्वेत कणोंकी वृद्धि तथा आंत्रिक ज्वर,वातश्लेष्मीक ज्वर,कुष्ठ, कालाजार,तथा मसुरिका में रक्त का सफेद करण की संख्या कम होना (leucopaenia) है।

न्यूट्रोफिल की वृद्धि से होने वाली मीर्गी रोग।

WBC परीक्षण करते वक्त न्यूट्रोफिल का मान भी आता है यदि शरीर में कहीं व्रण है और वह निरंतर बढ़ते जा रहा है, आंत्रपुच्छ शोथ, तथा तीव्र संक्रमण में न्यूट्रॉफिल लेवल बढ़ जाता है। यदि मिर्गी जैसा ही लक्षण दिखे और यहां न्यूट्रॉफिल लेवल बढ़ने का मतलब स्पष्ट है कि रोगी के मस्तिष्क तक पहुंचने वाली संज्ञा वाही, ज्ञान वाही या मनोवह स्रोतसों में कहीं ना कहीं स्वेलिंग है या संक्रमण है जिसके कारण प्रॉपर ऑक्सीजन ब्रेन तक नहीं पहुंच पा रहा है।

इयोसिनोफिल्स की वृद्धि से होने वाली मीर्गी रोग।

यदि मिर्गी रोगियों के डब्ल्यूबीसी परीक्षण में इयोसिनोफिल्स का मान बढ़ता हुवा आपको दिखाई देता है तो आपको ऐसा समझना चाहिए कि रोगी में या तो अस्थमा या शितपित्त, या उदर में क्रीमी इनमें से कोई एक चीज इस व्यक्ति को दुखी कर रहा है ऐसा समझना चाहिए। ज्यादातर यक्ष्मा जैसे कंडीशन में भी इयोसिनोफिल्स का लेवल बढ़ जाता है। ऐसी कंडीशन में व्याधियों का अलग ही परीक्षण करलेना चाहिए ।

लिंफोसाइट्स वृद्धि से होने वाली मीर्गी रोग।
यदि डब्ल्यूबीसी परीक्षण में आपको लिंफोसाइट्स का लेवल बढ़ता हुआ दिख रहा है तो आपको तुरंत श्लैष्मिक ज्वर,आंत्रिक ज्वर,कुक्कुर कास जैसे व्याधि के तरफ अपना सोच रखना चाहिए हो सके तो ऐसे कंडीशन में इन रोगों का भी परीक्षण separately करनी चाहिए ।

Cerebro spinal flute test (CLF) for Epilepsy |
शरीर में कफ की वृद्धि होने यानीकी प्रोटीन की मात्रा अधिक हो और उसके कारण एपिलेप्सी जैसा स्थिति रोगी में दिखे तो CLF test कराने के लिए मैं आपको सलाह दूंगा।
क्योंकि मेनिनजाइटिस नामक रोग जिसको आयुर्वेद में मस्तिष्क आवरण शोथ कहकर जाना जाता है उसका परीक्षण इसी से होता है। साथ में मेनिनजाइटिस और ब्रेन ट्यूमर यहां से पता चलता है सबसे बड़ी बात
(Sugar in CSF) अपने लेवल से ज्यादा हो तो यहां ब्रेन ट्यूमर और intracranial tension जैसे समस्या हो सकता है
intracranial tension का मतलब होता है कि जब रोगी के सिर में चोट लग जाए या किसी कारणवश सूजन हो जिसके कारण सिर में भयानक वेदना होने लगे इतना कि इसके कारण से रीड की हड्डी में भी इसका नेगेटिव इफेक्ट हो सकता हो ऐसे कंडीशन को intracranial tension (ICP) इस नाम से जाना जाता है। इस चीज को हम CLF परीक्षण से पता लगा सकते हैं। वैसे ज्यादातर एपिलेप्सी के मामले में CLF का परीक्षण डॉक्टर कराते हैं।

यदि मिर्गी का रोगी है तो सिर्फ MRI,और EEG,.. के सहारे ही नहीं रहना चाहिए इस व्याधि का उत्पादन अन्य विविध कारणों से हो सकता है इसमें से शारीरिक कारण का परीक्षण जिसे एलोपैथिक मेडिकल साइंस कर सकता है इसके बारे में यहां ऊपर हमने जिक्र किया अब हम बात करेंगे मानसिक विकृतियों से होने वाली मिर्गी रोग क्या है,क्यों होता है सभी आयुर्वेदिक अपस्मार का Ayurvedic clinical differential और उसका परीक्षण कैसे करें।
अव हम आयुर्वेदिक ग्रंथों के आधार पर अपस्मार जैसा ही दिखने वाला विविध व्याधि जिसमें ,,मूर्छा,,यह एक प्रधान लक्षण के रूप में दिखता है उन सभी का सापेक्ष निदान आधुनिक परिप्रेक्ष्य में करेंगे।

वह रोग जिसका प्रधान लक्ष्मण मूर्छा है।

1. Poisoning
2. Heat stroke
3. Head injury
4.Drunkenness
5.Epilepsy
6. Fainting
7.meningitis
8. Diabetic coma
9. Uraemia
10. Brain tumor

सामान्य अवस्था में ऊपर दिए हुए सभी समस्याओं में मूर्छा एक प्रधान लक्षण है। लेकिन इन सभी में लक्ष्मण स्वरूप देखने वाला मूर्छा को अपस्मार कहना थोड़ा जल्दी बाजी होगा।

इसके अलावा भी कुछ व्याधि है जिसमें अपस्मार जैसा ही लक्षण दिखता है मगर इसमें भी शुद्ध मिर्गी (अपस्मार) का उपचार करने से वह ठीक नहीं होता है। आइए उन का नाम लक्षण सहित समझते हैं।

१-अपस्मार (epilepsy)
कारण-चिंता,शोक,काम,क्रोध,भय, द्वेष, शिरो आधार मस्तिष्का ग्रंथि की समस्या।
दौरा आने से पहले का लक्षण-
हृदय में कंपन सुन्यता की प्रतीति होना,स्वेदाधिक्य,चिंता,निन्द्रा नाश
दौरे के समय में-
मुंह से झाग निकलना,
दौरा आने के बाद-
सिर में दर्द , दौर्बल्यता

मस्तिष्कार्वुद(cerebral tumor)
कारण-मस्तिष्क में ट्यूमर का होना, मांस धातु की विकृति,
दौरा आने से पहले-
सिर में दर्द होता है और चक्कर आता है।
दौरे के समय में-
शरीर अकड़ जाता है और स्मृति नष्ट हो जाती है।
सोल्डर में स्टीफनेस होती है, विभ्रम, ज्ञानेंद्रियों की क्रिया हानी, कान का बजना,


जलशीर्ष (Hydroencephalus)
ब्रेन में द्रव (csf) के जम जाने से, हवा में स्थित जीवाणुओं का उपसर्ग,
इसमें सहसा बेग का प्रवृत्ति रहता है,
दौरा आने से पहले
भ्रम, चेतना हिन होकर गिर जाना,
दौरे के टाइम पर
सिर में दर्द, हृल्लास, आंखों से दो-दो दिखना या अंधापन, mood disturbance, इसमें भी शोल्डर में स्टीफनेस होती है।


मस्तिष्कावरण शोथ (Meningitis)
कारण-
सूक्ष्म जीवाणु या अन्य कारण से मस्तिष्क आवरण में शोथ हो जाती है, वायवीय,यक्ष्मा, मलेरिया, जीवाणु उपसर्ग।
दौरा आने से पहले का लक्षण
हल्का बुखार आता है, सिर में दर्द, कंपन, कंधे में जकडाहट,
मुख्य लक्षण
जी मिचलाना , उल्टी आने जैसी स्थिति पैदा होना, सिर में दर्द, optic nerves atrophy, मानसिक विकृति, mental disturbance, कभी-कभी पक्षाघात भी हो सकता है।

अपतानक (tetanus)
कारण-सुक्ष्म वायुमण्डलस्थ जीवाणु का उपसर्ग
दौरा आने से पहले का लक्षण-
हाथ और पैर टेढ़ा हो जाता है।

दौरा आते वक्त का लक्षण
सिर में दर्द, बुखार, शरीर में कंपन ,पीठ में दर्द,हाथ और पैरों में दर्द,photophobiya, चिड़चिड़ापन, वोमाइटिंग टेंडेंसी, बुखार, इसमें दौरे का बेग तीव्र गति से बढ़ता है, रोगी पानी तथा रोशनी से डरता है,c s f एग्जामिनेशन से इस रोग का पता चलता है।

मस्तिष्कावरण शोथ (Meningitis)
कारण-
सूक्ष्म जीवाणु या अन्य कारणो से मस्तिष्क आवरण में शोथ हो जाती है, वायवीय संक्रमण के कारण से,यक्ष्मा, मलेरिया, जीवाणु उपसर्ग यह सभी Meningitis का कारण हो सकते है।
दौरा आने से पहले का लक्षण
हल्का बुखार आता है, सिर में दर्द, कंपन, कंधे में जकडाहट,
मुख्य लक्षण
जी मिचलाना , उल्टी आने जैसी स्थिति पैदा होना, सिर में दर्द, optic nerves atrophy, मानसिक विकृति, mental disturbance, कभी-कभी पक्षाघात भी हो सकता है।

अपतानक (tetanus)
कारण-सुक्ष्म वायुमण्डलस्थ जीवाणु का उपसर्ग
दौरा आने से पहले का लक्षण-
हाथ और पैर टेढ़ा हो जाता है।

दौरा आते वक्त का लक्षण
सिर में दर्द, बुखार, शरीर में कंपन ,पीठ में दर्द,हाथ और पैरों में दर्द,photophobiya (तेज या कम रोशनी तकलीफ करती है) चिड़चिड़ापन, वोमाइटिंग टेंडेंसी, बुखार, इसमें दौरे का बेग तीव्र गति से बढ़ता है, रोगी पानी तथा रोशनी से डरता है,c s f एग्जामिनेशन से इस रोग का पता चलता है।

Hypoglycemia
कारण- 
इसमें रक्तकी शर्करा अत्यधिक मात्रा में कम होता है। इसमें अचानक मिर्गी का दौरा पड़ता है,।

दौरा आने से पहले का अवस्था।
हल्का चक्कर, ह्रदय में सुन्न्यतायुक्त असहज महसूस होना, शरीर से पसीना का निकलना,
हरिदेव जोशी और शंख प्रदेश में पीड़ा होना, सांस लेने और छोड़ने में कठिनाई होना, मुंह से अधिक मात्रा में लार निकलना, स्किन और जिह्वा सुखजाता है।
दौरा आते वक्त का लक्षण।
अचेत होना, स्किन और मुख का सुख जाना, flushing of face'कलाई में नाड़ी भरी हुई दिखाई देता है।

धनुष्तम्भ (Tetani)
कारण - रक्त धातु से संबंधित समस्या है। रक्त में सेल की कमी से यह रोग होता है। इसमें भी सहसा मिर्गी जैसा ही दौरा आता है।

दौरा आने से कुछ देर पहले का लक्षण-
हाथ और पैर वक्र और शिथिल हो जाते हैं।
क्लम(थकावट) हृद्द्रव ( हृदय का धड़कन तेज होना) दुर्बल लिया चिड़चिड़ापन बहुत जल्दी ब्रेन में किसी भी बातों का असर हो जाना, चक्कर आना, ऐसा लगना जैसे मैं किसी अंधेरे की और जा रहा हूं।
शारीरिक लक्षण-
जल्दी सिर के बाल सफेद हो जाना, सिर के बाल उतर जाना, नाखून का टूट जाना,
रोग परीक्षण सूत्र-
मुख के आसपास शिथिलता दिखता है, हाथ और पैर की उंगलियां टेढ़ी हो जाते हैं, शरीर में खिंचाव होता है,Trousseau's sign
रोग परीक्षण हेतु-
Sr.cal,sr.phosaphate test इसके परीक्षण करने से यह रोग का पता चल जाता है।

 

योषापस्मार (Hysteria)
कारण-मन के इच्छाओं को ना चाहते हुए भी दबाए रखना यह एक मानसिक व्याधि है।
इसमें भी मूर्छा अचानक आता है।

दौरा आने से कुछ देर पहले-
दृष्टि विभ्रम, डर जैसा लगने लगता है।
जब दौरा आता है उस समय हाथ और पैर में ऐठन होता है, शरीर में चिमचिमायन, किसी किसी को हाथ और पैरों में दर्द और nervousness भी होता है।
दौरा वेग का स्वरूप-
जहां ज्यादा भीड़ भडाका होता है ऐसे जगह में ज्यादातर दौरा आता है, दौरे के वक्त ज्यादातर चोट नहीं लगता,
यदि तेज Stimuli देने से रोगी response करता है यानी होश में आता है।
रोग परीक्षण करते वक्त ऐसे में मानसिक स्थितियों का परीक्षण किया जाना चाहिए।

मूत्रविषमयता ( Uremia)
कारण-मूत्रावसाद,Renal insufficiency। जब व्यक्ति क्रोनिक किडनी रोग के अंतिम चरण में होता है तो Uremia होने का सम्भावना रहती है।
पूर्व रूप -
मूत्र की मात्रा का कम होना,कटि शूल,
लक्षण-
मानसिक विभ्रम, आक्षेप, various Sensory Disturbance,सर्वांग शोफ, इसमें मिर्गी का दौरा कभी तेजी से तो कभी मंद गति से आता है, स्किन और जिह्वा सूख जाते हैं,

Toxic condition
इसके अलावा कभी-कभी व्यक्ति स्वयं या किसी और द्वारा विभिन्न प्रकार के जहरीला पदार्थ का सेवन करने या कराए जाने से भी मिर्गी जैसा ही मूर्छा का लक्षण दिखता है।
आयुर्वेद में कुचला का सेवन करने वालों को मिर्गी जैसा दौरा पड़ने की बातें स्वीकारा है।
लक्षण-लक्ष्मण स्वरूप शरीर से पसीना आना,घबराहट होना, चक्कर आना, प्यास लगना, बेहोश होना, दमे जैसा कंडीशन होना, उल्टी आने जैसी स्थिति होना,सिर में दर्द होना,आंखों के सामने धुंधलापन महसूस होना,मुख से मूत्र की दुर्गंध आना, स्किन ड्राई हो जाना, नाड़ी तीव्र वेग से चलना, ब्लड प्रेशर तीव्र गति से पढ़ना।
रोग परीक्षण के संदर्भ में ऐसे रोगी का stomach wash examination होनी चाहिए।

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