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Ayurvedic Treatment for Mental Illness (Unmad): Causes, Symptoms & Therapy

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आयुर्वेद में Mental Illnessउन्मादशब्द का उपयोग मानसिक विक्षिप्तता (Psychosis) और गंभीर मानसिक रोगों के लिए किया गया है। आयुर्वेद में वर्णित उन्माद (Unmad) का वर्णन आज की भाषा में Psychosis, Schizophrenia, Bipolar Disorder, Severe Anxiety या Depression जैसे मानसिक रोगों से मेल खाता है।

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आधुनिक तुलना (Mental Illness - आयुर्वेदिक मानसिक विकारों की)

चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में रोगों का अत्यंत गहन और गंभीर वर्णन मिलता है। उन्होंने शरीर, मन और आत्मा तीनों के संतुलन को ध्यान में रखते हुए रोगों की व्याख्या की है। हालांकि आज के आधुनिक युग में उन रोगों के नाम, स्वरूप और कारणों को नए वैज्ञानिक शब्दों में समझाया जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम पारंपरिक आयुर्वेदिक दृष्टिकोण के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा पद्धति द्वारा दिए गए नामों और वर्गीकरणों को भी समझें। उदाहरण के लिए, जो रोग पहले 'उन्माद' कहलाता था, वह आज 'मानसिक विकार' या 'साइकोसिस', 'स्किज़ोफ्रेनिया' आदि नामों से जाना जाता है। इसी प्रकार 'शोष' को आज 'टीबी' या 'क्रॉनिक वेस्टिंग डिज़ीज़' के रूप में पहचाना जाता है। इस प्रकार आयुर्वेदिक और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय करके रोग की सम्यक् पहचान और चिकित्सा संभव है। 

जैसे

मन, बुद्धि और स्मृति का भ्रम
आयुर्वेद में यह मानसिक विकृति की अवस्था मानी जाती है, जहाँ व्यक्ति वास्तविकता से संपर्क खो देता है।
 Modern Equivalent: Schizophrenia, Delusional Disorder

अत्यधिक भय, दुख या हर्ष से उत्पन्न मानसिक चोट
यह तीव्र मानसिक आघात के कारण उत्पन्न होने वाली अवस्था है।
Modern Equivalent: Post-Traumatic Stress Disorder (PTSD)

आसुरी प्रवृत्ति, भूत-प्रेत बाधा की स्थिति
आयुर्वेद में इसे बाह्य या अदृश्य शक्तियों की बाधा माना जाता है, जो व्यक्ति के व्यवहार पर प्रभाव डालती हैं।
 Modern Equivalent: Dissociative Disorder, Acute Psychotic Break

सत्त्व, रजस और तमस गुणों का असंतुलन
ये मानसिक दोष हैं जिनका असंतुलन व्यक्ति की सोच और व्यवहार में विकृति लाता है।
Modern Equivalent: Neurochemical Imbalance (e.g., Dopamine, Serotonin Dysregulation)

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नाड़ी, मन और चेतना की गड़बड़ी
यह त्रि-स्तरीय मानसिक और चेतनात्मक असंतुलन होता है, जो शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है।
Modern Equivalent: Neurological Disorders, Mental Illness due to Brain Chemistry Imbalance

चरक संहिता के चिकित्सा स्थान अध्याय 9 में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है, जहाँ उन्माद को ऐसा रोग बताया गया है जिसमें मन (मानस), बुद्धि, स्मृति, संज्ञान (perception) और आचरण में गहरा विकार उत्पन्न हो जाता है।

अगर हम चरक में वर्णित उन्माद को ध्यान से पढ़ें, तो स्पष्ट होता है कि आज के समय में लगभग 95% लोग किसी न किसी रूप में इस मानसिक विकार की चपेट में हैं। यह एक अत्यंत गंभीर विषय है, लेकिन दुर्भाग्यवश इस पर समाज में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता।

इस लेख के माध्यम से हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि वर्तमान समाज में अलग-अलग प्रकार के उन्माद किस रूप में दिखाई देते हैं, और कैसे आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से इसका कारण, लक्षण और उपचार संभव है।

उन्माद के कारण: आयुर्वेद के दृष्टिकोण से | Causes of Mental Illness According to Ayurveda

Unmad in Ayurveda यानी मानसिक विकार या पागलपन, सिर्फ मन की बीमारी नहीं है, यह एक गहरा मनोदैहिक विकार (psychosomatic disorder) है जो शरीर, मन और आत्मा—तीनों को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार, उन्माद उत्पन्न होने के कई कारण होते हैं, जो सिर्फ मानसिक नहीं बल्कि व्यवहारिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रभाव डालते हैं।

  1. . विरुद्ध आहार (Incompatible Food Combinations): जैसे मछली और दूध का एक साथ सेवन करना, या देश-काल-विरुद्ध भोजन लेना। ऐसे आहार शरीर की धातुओं और मनोबल को बिगाड़ते हैं।
  2. . विषाक्त, बासी या अपवित्र भोजन: सड़ा-गला खाना, दूषित जल या अन्न का सेवन भी मन की स्थिरता को प्रभावित करता है और उन्माद का कारण बन सकता है।
  3. .  आध्यात्मिक अनादर (Spiritual Disrespect): गुरु, ब्राह्मण या देवताओं का अपमान करना, या उनके प्रति गलत भावना रखना मानसिक दोषों को बढ़ाता है और मन में विकृति उत्पन्न करता है।
  4. .  अति भावनात्मक स्थिति (Extreme Emotional Trauma): अत्यधिक हर्ष (over-excitement), भय (intense fear), शोक या क्रोध जैसी तीव्र भावनाएँ भी मानसिक संतुलन को बिगाड़ सकती हैं।
  5. .  अप्राकृतिक शारीरिक क्रियाएं (Improper Physical Postures): जैसे शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा करके सोना, बैठना या अजीब तरह से व्यायाम करना, यह शरीर के नाड़ी-तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं।

इन सभी कारणों से  मन, बुद्धि, स्मृति और चित्त में विकार उत्पन्न होता है, जिसे आयुर्वेद में उन्माद कहा गया है। Charak Samhita में ऐसे लक्षणों और कारणों का गहरा विश्लेषण मिलता है जो आज के समय में भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं।

उन्माद की सम्प्राप्ति ( Unmad Pathogenesis)

जब कोई व्यक्ति मानसिक रूप से दुर्बल (मनोबल में हीन) होता है और वह अनुचित जीवनशैली या मानसिक आघात के कारण वात, पित्त और कफ दोषों के असंतुलन से प्रभावित होता है, तब ये दोष मस्तिष्क में स्थित हृदय (बुद्धि और भावना का केंद्र) को दूषित कर देते हैं।
इन दोषों के कारण मनोवाही स्रोतस विकृत हो जाते हैं और मन की स्वाभाविक गति बाधित हो जाती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ता है और उसमें उन्माद (mental illness) जैसे गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं

वातज उन्माद का कारण और सम्प्राप्ति (Vataj Unmada Causes & Samprapti)

रूखा-सूखा, ठंडा या बहुत कम खाना, ज्यादा विरेचन, उपवास, चिंता और कमजोरी से वायु बढ़ जाती है। यह वायु मन और बुद्धि के स्थान – हृदय को दूषित कर देती है। इससे सोचने, समझने और याद रखने की शक्ति बिगड़ जाती है, और व्यक्ति पागलपन जैसा व्यवहार करने लगता है।

Symptoms of Vataj Unmada (वातज उन्माद के लक्षण)

  1. बिना कारण हँसना, रोना या गाना
  2. बार-बार नाचना, चिल्लाना
  3. अंगों को अजीब तरह से हिलाना
  4. शरीर सूखा, कमजोर और कठोर हो जाना
  5. भूख लगने के बाद लक्षण बढ़ जाना

पित्तज उन्माद – निदान और सम्प्राप्ति (Pittaj Unmada - Causes & Pathogenesis)

अत्यधिक खट्टा, तीखा, जलन करने वाला और बहुत गर्म भोजन करने से शरीर में पित्त बढ़ जाता है। यदि व्यक्ति इन्द्रियों पर संयम नहीं रखता, तो यह तेज पित्त हृदय को दूषित कर देता है। वहाँ से यह बुद्धि और मन को प्रभावित करता है और पित्तज उन्माद उत्पन्न होता है।

 लक्षण (Symptoms):

  1. बिना कारण गुस्सा करना
  2. कपड़े फाड़कर नंगा हो जाना
  3. आंखों में लालिमा और डरावना चेहरा
  4. बार-बार भागना, चीखना
  5. शरीर में गर्मी, पीली आभा
  6. ठंडा खाना, पानी, और छाया की इच्छा

 कफज उन्माद – निदान और सम्प्राप्ति (Kaphaj Unmada - Causes & Pathogenesis)

जो व्यक्ति श्रम नहीं करता और फिर भी भारी, चिकना व अधिक मात्रा में भोजन करता है, उसमें बलवान कफ बढ़ जाता है। यह कफ हृदय को प्रभावित करता है और मन, स्मृति तथा बुद्धि को शिथिल कर देता है। इससे कफज उन्माद होता है, जिसमें व्यक्ति सुस्त और उदासीन दिखाई देता है।

 कफज उन्माद लक्षण (Symptoms):

  1. बहुत कम बोलना और हिलना
  2. अरुचि, आलस्य, गहरी नींद
  3. उल्टी आना, लार टपकना
  4. स्त्रीसंग की इच्छा और एकांतप्रियता
  5. नख, त्वचा और आंखों में सफेदी
  6. खाना पचने के बाद रोग बढ़ता है


 आगन्तुक उन्माद क्या है? (Agantuka Unmada in Ayurveda)

आयुर्वेद में सभी मानसिक रोग केवल वात, पित्त, कफ जैसे शारीरिक दोषों से ही नहीं होते, कुछ मानसिक विकार *बाहरी शक्तियों* के प्रभाव से भी उत्पन्न होते हैं। इन्हें **आगन्तुक उन्माद** कहा जाता है – यानी *बाहरी कारणों* से उत्पन्न पागलपन।

 कौन-कौन सी शक्तियाँ इसके लिए जिम्मेदार होती हैं?

  1. देवता
  2. ऋषि
  3. गंधर्व
  4. यक्ष
  5. राक्षस
  6. पिशाच
  7. पितृ
  8. ब्रह्मराक्षस
  9. मंत्र-तंत्र, श्राप, अपवित्र क्रियाएँ

देवोन्माद (Dewonmad )

  1. व्यक्ति शांत, गंभीर और तेजस्वी दिखता है
  2. क्रोध नहीं करता, नींद और भूख नहीं लगती
  3. शरीर से सुगंध आती है, मल-मूत्र बहुत कम
  4. उसका चेहरा कमल के फूल-सा खिला रहता है

आज के समाज में इन लक्षणों को देखकर कई बार लोग अज्ञानवश इन्हें "भगवान का रूप , "अवतार", या "दिव्य आत्मा" मान लेते हैं। लेकिन - चरक संहिता में स्पष्ट लिखा है कि यह सभी भी उन्माद (Insanity)  के ही रूप हैं – बस उनका कारण दैविक या आगन्तुक है।

राक्षस उन्माद (Rakshasa Unmada)

  1. लाल रंग के वस्त्र या माला पहनना पसंद
  2. मांस खाने की तीव्र इच्छा
  3. बिना भोजन के भी बलशाली दिखना
  4. लोगों को डराना, गुस्सा करना
  5. रात में जागना और खाना-पीना त्याग देना

गंधर्व उन्माद (Gandharva Unmada)

  1. गाना, नाचना, हास्य-विनोद
  2. शास्त्रार्थ और तर्क में रुचि
  3. दिखावटी व्यवहार, अत्यधिक बोलना
  4. अनौपचारिक रूप से दूसरों से अधिक साहसी दिखना

पिशाच उन्माद (Pisacha Unmada)

कूड़े या ऊँचे टीलों पर बैठना
नंगे घूमना, कहीं स्थिर न रहना
फटी आवाज़, वीर्य की कमी
बेचैन रहना, सड़क या गंदे स्थानों पर रहना

यक्ष उन्माद (Yaksha Unmada)

  1. बार-बार पूजा, पाठ, कथा
  2. बार-बार स्नान, माला, धूप करना
  3. गाना-बजाना, रोना-हँसना
  4. ब्राह्मणों, वेदों की निंदा
  5. निजी बातों को सार्वजनिक करना

पितृ दोष उन्माद (Pitru Dosha Unmada)

  1. गुस्से से भरी दृष्टि
  2. अधिक नींद और उदासी
  3. अरुचि, खाया पचा नहीं जाता
  4. बार-बार बोल रुक जाना

ब्रह्मराक्षस उन्माद (Brahmarakshasa Unmada)

  1. वेद-शास्त्रों की बातें अचानक करना
  2. खुद को मारना, नाचना, हँसना
  3. अपमान करना – गुरु, देवता, भाई आदि का
  4. लाठी-डंडे से खुद को चोट पहुँचाना

इस प्रकार कमजोर मन और बुद्धि वाले व्यक्ति पर अदृश्य शक्तियाँ प्रभाव डालती हैं, जिससे उसमें जो मानसिक और शारीरिक परिवर्तन आते हैं, उन्हें भी उन्माद माना जाता है। इनके मानव शरीर में प्रवेश करने का समय |

देवता या राक्षस जैसे अदृश्य शक्तियों का शरीर में प्रवेश एक विशेष समय पर होता है। यह समय तिथि, वार, नक्षत्र, ऋतु, व्यक्ति की शुद्धता या अशुद्धता, स्वभाव और आचरण पर निर्भर करता है। जैसे—शुक्ल पक्ष की पंचमी या पूर्णिमा को ब्रह्मराक्षस प्रवेश करते हैं, जबकि राक्षस और पिशाच द्वितीया, तृतीया या अष्टमी को अवसर पाकर शरीर में प्रवेश करते हैं। चरक संहिता में ऐसे कई विवरण मिलते हैं।

आयुर्वेद में उन्माद की चिकित्सा - Ayurvedic Line of Treatment for Mental Illness

चरक संहिता (Charaka Samhita) के अनुसार उन्माद (psychosis) का इलाज केवल औषधि तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह एक बहु-आयामी चिकित्सा (multi-modal therapy) पर आधारित होता है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा तीनों का संतुलन ज़रूरी होता है। इस इलाज के चार मुख्य अंग माने गए हैं:|
युक्ति-व्यपाश्रय चिकित्सा,सत्त्वावजय चिकित्सा,दैव-व्यपाश्रय चिकित्सा,सांत्वना चिकित्सा
 Yukti‑Vyapashraya Chikitsa (युक्ति-व्यपाश्रय चिकित्सा)

यह चिकित्सा तर्क और अनुभव पर आधारित होती है जिसमें मुख्य रूप से आयुर्वेदिक औषधियाँ (herbal medicines), विशेष आहार (therapeutic diet), और पंचकर्म (Panchakarma therapy) शामिल हैं।


औषधि चिकित्सा (Medico-Herbal Therapy)
मानसिक विकारों में उपयोगी आयुर्वेदिक औषधियां जैसे ब्राह्मी, शंखपुष्पी, वचा, जटामांसी, अश्वगंधा आदि बुद्धि, स्मृति और मन को स्थिर करती हैं।
ये औषधियां मस्तिष्क में न्यूरोकेमिकल संतुलन को बहाल करती हैं।


युक्ति व्यपाश्रय चिकित्सा (Logical / Diet-Lifestyle Based Therapy)
इसमें आहार-विहार, दिनचर्या, रात्रिचर्या, योगाभ्यास, प्राणायाम आदि के माध्यम से मन-शरीर को संतुलित किया जाता है।
 यह Lifestyle Modification Therapy का समकक्ष है।

 Satvavajaya Chikitsa (सत्त्वावजय चिकित्सा) psychotherapy & counseling

इसका अर्थ होता है “मन पर विजय”। इसमें रोगी की मानसिक स्थिति को सुधारने के लिए काउंसलिंग, ध्यान (meditation), योग, और सकारात्मक सोच के माध्यम से मन को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
सत्त्वावजय चिकित्सा (Psychotherapy / Mind Control Therapy)
यह आयुर्वेद की विशेष पद्धति है जिसमें मन को अनुशासित करने के लिए शिक्षण, उपदेश, प्रेरणा, ध्यान (Meditation) और आत्म-बोध (Self-inquiry) कराया जाता है।
यह आधुनिक Cognitive Behavioral Therapy (CBT) के समान है।
यह आज के शब्दों में आयुर्वेदिक साइकोथेरेपी (Ayurvedic Psychotherapy) कहलाती है।

. Daiva‑Vyapashraya Chikitsa (दैव-व्यपाश्रय चिकित्सा) spiritual rituals & mantra

इसमें आध्यात्मिक उपाय जैसे मंत्र जाप, होम-यज्ञ, देव पूजा, व्रत और तीरथ यात्रा शामिल हैं, जो मानसिक शांति और आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।
यह व्यक्ति के अंदर के "spiritual disconnect" को दूर करने में मदद करता है।
दैवव्यपाश्रय चिकित्सा (Spiritual / Faith-Based Therapy)
इसमें मंत्र-जप, यज्ञ, पूजा, संस्कार, ग्रह शांति आदि कर्मों द्वारा मानसिक संतुलन को पुनः स्थापित किया जाता है।
यह आधुनिक मनोविज्ञान में Spiritual Counseling या Faith Healing से मिलता-जुलता है।

 Upayabhipluta – Consolation Therapy (सांत्वना चिकित्सा) (Consolation Therapy)

रोगी को भावनात्मक सहारा देना, उसके मनोबल को बढ़ाना और मानसिक समर्थन प्रदान करना भी आयुर्वेद में उन्माद के इलाज का अहम हिस्सा माना गया है। यह परिवार और चिकित्सक दोनों की जिम्मेदारी है कि वे रोगी के साथ सहानुभूति और विश्वास के साथ व्यवहार करें।

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मानसिक रोग (Unmad Rog) से जुड़े 15 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

  1. मानसिक रोग क्या होता है?
    मानसिक रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की सोच, भावना और व्यवहार में असामान्यता आ जाती है।

  2. उन्माद रोग किसे कहते हैं?
    जब व्यक्ति की बुद्धि, स्मृति और मन का संतुलन बिगड़ जाए और वह असामान्य व्यवहार करने लगे, तो उसे उन्माद रोग कहा जाता है।

  3. मानसिक रोग के मुख्य लक्षण क्या होते हैं?
    अत्यधिक हँसना, रोना, डरना, बात-बात पर गुस्सा आना, अवसाद में रहना आदि इसके सामान्य लक्षण हैं।

  4. आयुर्वेद में उन्माद रोग के कारण क्या बताए गए हैं?
    आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त, कफ, भूतetc..बाधा, और मानसिक आघात इसके मुख्य कारण हैं।

  5. क्या मानसिक रोग वंशानुगत होता है?
    हाँ, कई बार मानसिक रोग परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकता है।

  6. क्या उन्माद रोग का इलाज आयुर्वेद से संभव है?
    जी हाँ, आयुर्वेद में उन्माद के लिए विशेष औषधि, शोधन चिकित्सा और मानसिक शांति प्रदान करने वाले उपाय उपलब्ध हैं।

  7. क्या उन्माद रोग और पागलपन एक ही है?
    नहीं, पागलपन एक आम बोलचाल की भाषा है, जबकि उन्माद आयुर्वेद में एक विशिष्ट मानसिक रोग है।

  8. उन्माद रोग कितने प्रकार का होता है?
    आयुर्वेद में इसे वातज, पित्तज, कफज, सामन्य, आगन्तुज (भूतबाधा जन्य) आदि प्रकारों में विभाजित किया गया है।

  9. क्या तनाव से उन्माद हो सकता है?
    जी हाँ, दीर्घकालीन मानसिक तनाव भी उन्माद रोग का एक कारण बन सकता है।

  10. क्या मानसिक रोग में ध्यान और योग मदद करते हैं?
    हाँ, नियमित ध्यान, योग और प्राणायाम मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।

  11. उन्माद रोग का आयुर्वेद में निदान कैसे किया जाता है?
    नाड़ी परीक्षा, मनोविकार के लक्षणों का अवलोकन और त्रिदोषों की स्थिति देखकर निदान किया जाता है।

  12. क्या उन्माद रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है?
    यदि सही समय पर चिकित्सा और जीवनशैली सुधार की जाए, तो इसे नियंत्रित और ठीक किया जा सकता है।

  13. क्या उन्माद रोग में रोगी को अलग रखना चाहिए?
    गंभीर अवस्था में रोगी की सुरक्षा हेतु अलग देखरेख ज़रूरी हो सकती है।

  14. उन्माद रोग में कौन-सी आयुर्वेदिक औषधियाँ दी जाती हैं?
    ब्राह्मी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा, ज्योतिष्मती तेल आदि उपयोगी माने जाते हैं (वैद्य की सलाह लें)।

  15. मानसिक रोगों से बचाव कैसे करें?
    नियमित दिनचर्या, सात्विक भोजन, सकारात्मक सोच और योग से मानसिक रोगों से बचा जा सकता है।

 

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