Introduction
इंद्र ब्रह्म वटी ; पूर्व आचार्यों ने वायु को जीतने के लिए बहुत सारे आयुर्वेदिक दवाइयों का परिकल्पना किया है। उसमें से एक का नाम है इंद्र ब्रह्म वटी। वायु के शीत और रुक्ष गुणों से प्रभावित हुए हर रोगियों को सुख पहुंचाने के लिए तथा मस्तिष्क और हृदय के बीच में संबंध स्थापित करने और मज्जा धातु तथा अग्नि धरा कला के बीच में संबंध को स्थापित कराने के लिए इंद्र ब्रह्म वटी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस वटी के सेवन से रोगी के शरीर में शक्ति का संचार होगा।यह रक्तगत विकृतियों को नस्ट करता है।ब्रेन में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाला इंद्र ब्रह्म वटी शरीर के रक्त कणों को भी मजबूत करता है।और मस्तिष्क में विद्युत तरंग को मेंटेन करता है।
इंद्र ब्रह्म वटी में सात मुख्य आयुर्वेदिक औषधि डाला जाता है रस सिंदूर, अभ्रक भस्मा,तृक्ष्णलोहभस्म, रौप्यभस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, शुद्ध तेलिया कंद,कमल केसर
इन सभी औषधियों को समान मात्रा में एकत्रित करे।
यह एक गर्म प्रकृति का रसायन है खून के गति को बढ़ाना खून में जो गंदगी है उसको साफ करना और ह्रदय को शक्ति प्रदान करना रस सिंदूर का मुख्य कार्य है। शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक के योग से रस सिंदूर का निर्माण होता है इसीलिए यह उत्तेजक और शरीर के सभी अंगों के क्रियाओं को संपादन करने में सहयोगी के रूप में जाना जाता है ज्यादातर कफ के द्वारा वायु के मार्ग को अवरुद्ध पैदा होने से होने वाली विभिन्न प्रकार के समस्याओं में रस सिंदूर बहुत तीव्र गति से कार्य करता है। रस रक्त आदि धातुओं की क्षय वृद्धि की विषम अवस्था में रस सिंदूर बेहद सुंदर कार्य करता है।
अभ्रक भस्म का गुणधर्म
आयुर्वेदिक में अभ्रक को मधुर कसैला शीतल धातु वर्धक आयु को बढ़ाने वाला तथा त्रिदोषघ्न, उदर रोग, प्लीहा विष विकार और कृमि रोग को नष्ट करने वाला बताया गया है।
अंजन के समान काला आग पर रखने से किसी तरह विकृत ना होने वाला जिसको वज्राभ्रक नाम से जाना जाता है ऐसा अभ्रक ही गुणों में उत्तम होता है। इस प्रकार का अभ्रक रोगों को नष्ट करने शरीर को मजबूत बनाने एवं वीर्य को बढ़ाने में कारगर होता है तरुण अवस्था प्राप्त कराने वाला मानसिक शक्ति को बढ़ाने वाला राज्यक्षमा कफक्षय के कारण होने वाली तमाम समस्या बढ़ी हुई खांसी और उरक्षत दमा धातु क्षय विशेष करके मधुमेह बहुमूत्रता शरीर का दुबलापन प्रसूत रोग अति कमजोरी पांडू रोग शरीर में जलन होना संग्रहणी अरुचि अग्निमांद्य अम्ल पित्त रक्तपित्त बवासीर हृदय रोग मिर्गी पागलपन पथरी आंखों के रोग इन सभी रोगों में अभ्रक भस्म अमृत के समान कार्य करता है।
लोह भस्म पांडू रक्त विकार उन्माद धातुओं की दुर्बलता संग्रहणी मंदाग्नी प्रदर रोग कृमि रोग कुष्ठ रोग पेट के सभी प्रकार के रोग आमविकार हृदय रोग बवासीर रक्तपित्त अम्ल पित्त सूजन आदी अनेक समस्या में अत्यंत गुणकारी है।
स्वर्ण माक्षिक भस्म तिक्त, पौष्टिक, योगवाही, सामक, शक्ति वर्धक, पित्त शामक शीतवीर्य और रक्त प्रसादक यानी खून को पोषण देने वाली माना जाता है। बार बार चक्कर आना मन में कई प्रकार के विचार बार-बार उठना किसी बातों पर निरंतर गुम हो जाना शरीर में जलन होना आंखों में जलन होना शरीर में पित्त की अभिवृद्धि हो रखी हो खून में विकार उत्पन्न हो गया हो इन सभी समस्याओं में स्वर्ण माक्षिक भस्म विशेष कार्य करता है।
तेलिया कंद एक जहरीला मगर बेहद गुणकारी आयुर्वेदिक औषधि है इन दिनों तेलिया कंद बहुत दुर्लभ हो गया है मगर फिर भी ढूंढने से मिल जाता है तेलिया कंद को बेहद सावधानी पूर्वक ही प्रयोग करना होता है पहले इसकी शुद्धीकरण करनी पड़ती है तो तेलिया कंद ही प्रयोग करने योग्य रहता है इसका प्रयोग चर्म रोग गलगंड गर्भनिरोधक गर्भस्थापक शुक्राणु उत्पादक शुक्र स्तंभक, मिर्गी क्यान्सर, जलोदर खांसी क्रीमी इन सभी रोगों में तेलिया कंद अमृत के समान काम करता है।
कमल केसर अति गुणकारी दवाई है यह लीवर के लिए अति उपयोगी है शरीर को पोषण देने वाला शुक्रको बढ़ाने वाला शीत गुण प्रधान कारणों से बढ़ता हुआ पित्त के प्रभाव को कंट्रोल करने वाला मुख्य द्रव्य के रूप में देखा जाता है।
डिप्रेशन चिंता तनाव को शांत करता है इसमें THC(tetrahydrocannabinol) और CBD(cannabidiol) की मात्रा पर्याप्त मात्रा में है जो मस्तिष्क में चलने वाली न्यूरॉन की कार्यप्रणाली को बढ़ा देता है. यह दो केमिकल सिर्फ भांग में ही होता है और किसी में नहीं
गुरु स्निग्ध तिक्ष्ण सूक्ष्म मधुर रस कटुकषाय,दीपक, विपाक मधुर,उष्ण विर्य, कर्म- कफ वात शामक पित्त शामक सोथहर, क्रीमी निसारक,कफघ्न,
बच=
कटु अग्नि वर्धक वामक, मल मूत्र शोधक ज्वरघ्न,कफ वात सोधक, स्वास काशहर, उष्ण विर्य उष्ण विपाकि,
सेमल का छाल=
मधुर, कषाय,शितल,लघु,स्निग्ध, पिच्छिल,कफ सामक शुक्र वर्धक,वलकारक,रक्तसोधक है।
लघु,रुक्ष,तिक्ष्ण,कटु रस,उष्ण विर्य,कटु विपाकी, यह पाचक संस्थान में पाचक द्रव्यों की वृद्धि का कारक है। अग्नि वर्धक कफ वात शामक
अग्नि वर्धक वात शामक मस्तिष्क को पोषण करने वाला बुद्धि को विकास करने वाला इसके सेवन से RBC लेवल वड्ता है। मस्तिष्क में ऑक्सीजन पहुंचाने का भरपूर कार्य करता है.
उष्ण विर्य,वात कफ नाशक,शोथ हर,विष हर,यकृत उत्तेजक, पाचक द्रव्यों को निस्सरण कर्ने वाला,
इन सभी जड़ी बूटियों के रस से एक-एक दिन खरल करना है।फिर अंतिम दिन खरल किया होगा दवाइ को गोला बनाकर अनार के दाने और गुदा निकाल कर उसके अंदर इस गोला को डालकर अनार के दूसरे कवर से ढक दीजिए। कपड़ मिट्टी कीजिए धूप में सुखाकर आग में जला देना। अच्छी तरह से जल जाने के बाद आग से उसे बाहर निकालिए फिर मिट्टी कपड़ा और अनार के छिलके को रखकर अंदर के साफ पाउडर को खरल में डालकर काफी देर तक घोटाई करिए अब एक लोहे की कढ़ाई में ऊपर के जड़ी बूटियों का एक हिस्सा
शुद्ध गंधक=
रक्तशोधक धातु परिवर्तक सभी प्रकार के प्रमेय 18 प्रकार के कोढ, मंदाग्नी वायु रोग मे चर्मरोग मे बहुत फायदा देता है। गंधक शरीर को नवीन बना देता है। गंधक के बगैर पारद किसी काम का नहीं होता। पारद के विशेष गुणों को गंधक ही बाहर निकालता है। इस हिसाब से गंधक एक अति महत्वपूर्ण दवाई है।आवलासार गंधक ही ज्यादातर प्रयोग में लिया जाता है। गंधक जहरीला पदार्थ है शोधन किए बगैर इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
डालकर कढ़ाई में पकाना शुरू करिए थोड़ी देर में गंधक पिघल जाएगा और गंधक से सुगंध आना शुरू हो जाएगा तब आग से कढ़ाई को बाहर निकालकर दोबारा खरल करिए काली मिर्च के बराबर गोलियां बना कर सुखाकर रखिए यही इंद्र ब्रह्म वटी निर्माण विधि है।
इंद्र ब्रह्म वटी इंसान के शरीर मे रक्त को शुद्ध करके हिमोग्लोबिन लेवल को बढ़ाना डब्ल्यूबीसी आरबीसी लेवल को बढ़ाना या रक्त संबंधित सभी विकारों को नष्ट करना मस्तिष्क के नर्वस सिस्टम में उत्तेजना पैदा करना और खून के बहाव को नियामक करना शरीर में धातुओं को पोषण प्रदान करना, वायु को नियमन करना सप्त धातुओं को बल देना तथा खून की कमी से होने वाली विविध विकारों को ठीक करना स्त्रियों में रजस्वला संबंधित समस्या को सुधारना जैसे तमाम फायदा इंद्र ब्रह्म वटी में दिखता है जिन मिर्गी रोगियों के रिपोर्ट में कुछ भी नजर नहीं आता पर फिर भी मिर्गी का दौरा आता है ऐसे रोगियों के लिए इंद्र ब्रह्म वटी अमृत के समान काम करने वाला आयुर्वेदिक दवाई है।
इंद्र ब्रह्म वटी को ज्यादातर मिर्गी पागलपन डिप्रेशन ओसीडी मानसिक रोग बुद्धि के विकास ना होना मस्तिष्क कमजोर होना यादाश्त की कमजोरी होना कैल्शियम की कमी से हड्डियों में ढीलापन आंखों में रोशनी की कमी ज्वर चर्म विकार आदि विकारों में प्रयोग कर सकते हैं। मैंने इसको ज्यादातर मिर्गी के ही रोगी के ऊपर प्रयोग किया है।
इंद्र ब्रह्म वटी रोगी के शारीरिक स्थिति को देखे बगैर देना हानिकारक हो सकता है।किसी जानकार वैद्य या डॉक्टर के निगरानी में ही इस दवाई का प्रयोग किया जाना चाहिए दवाई निर्माण से लेकर सेवन तक सावधानी अपनाना जरूरी है।
ज्यादातर कमजोर शरीर बुद्धि और मन वाले रोगियों के ऊपर इसका प्रयोग किया जा सकता है। जिनके शरीर में रक्त विकार दिखता है खून की कमी के वजह से या विकार के वजह से रोग होगा हो तो इंद्र ब्रह्म वटी अच्छा काम करेगा।
इंद्र ब्रह्मा भर्ती रोगी के शरीर में सर्वप्रथम धातुओं को मजबूत करेगा धातु आदमियों को सुधरेगा पित्त प्रकोप को शांत करेगा मस्तिष्क मेजो नर्वस सिस्टम है उसको मजबूत करेगा वायु के विकृत अवस्थाओं को मेंटेन करेगा।
यदि आपको एपिलेप्सी यानी मिर्गी हुआ है तो कृपया नजदीक के किसी आयुर्वेदिक वैद्य के पास जाइए और उनको अपना रोग परीक्षण कराइए यदि आप खुद आयुर्वेद जानते हैं तो इंद्र ब्रह्म वटी यदि वात और कफ प्रदान रोगी है तो अदरक में मिलाकर दशमूलारिष्ट के साथ लेने के लिए बताया गया है।पित्त प्रकृति वाला रोगी है तो घी के साथ कफ प्रकृति है तो शहद के साथ या रोगी के शारीरिक लक्षणों के आधार पर विभिन्न अनुपान के साथ इसको दिया जाना चाहिए।
ज्यादातर एंजायटी और डिप्रेशन पित्त प्रकोप के बजे से ही होता है यदि रोगी को डिप्रेशन है और उसको आप इंद्र ब्रह्म वटी देना चाहते हैं तो सर्वप्रथम यह देखिए कि रोगी का जन्म प्रकृति और दोष विकृति क्या है यदि पित्त प्रकृति का रोगी है तो आप इंद्र ब्रह्म वटी देसी गाय के घी या मलाई में मिलाकर चटा सकते हैं।
रोगी के शारीरिक मानसिक परीक्षण करके ही इंद्र ब्रह्म वटी दिया जाना चाहिए यदि ओसीडी का पेशेंट है तो आप इंद्र ब्रह्म वटी सुबह-शाम खाना खाने से पहले देसी गाय के घी में मिलाकर दीजिए और ऊपर से हिमालय फार्मेसी का मेंटट् सिरप दीजिए।
यदि रोगी को बुखार आया है और आप इंद्र ब्रह्म वटी देना चाहते हैं तो सुदर्शन काढ़ा के साथ आप इंद्र ब्रह्म वटी दे सकते हैं।
ज्यादातर कमजोर शरीर बुद्धि और मन वाले रोगियों के ऊपर इसका प्रयोग किया जा सकता है। जिनके शरीर में रक्त विकार दिखता है खून की कमी के वजह से या विकार के वजह से रोग होगा हो तो इंद्र ब्रह्म वटी अच्छा काम करेगा।
वैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में इंद्र ब्रह्म वटी को अदरक के रस में मिलाकर ऊपर से दशमूलारिष्ट और पिपली का पाउडर मिलाकर अनुपान बनाकर लेने के लिए बताया गया है।
मगर आप अपनी बुद्धि ज्ञान और युक्ति के साथ इंद्र ब्रह्म वटी को दूसरे अन्य विकल्पों के साथ अनुपान के साथ भी दे सकते हैं।
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