how nature affects herbs: deep relation between nature and medicines | All the substances of nature act according to the rules of the Panchamahabhutas. It is the Panchamahabhuta that determines its qualities, demerits, and tastes in all the plants through Madhuradi 6 Rasas. The determination of rasa virya, vipaka in herbs is decided on the basis of the qualities of hritu and country.
आज तक हम किताबों में यही पढ़ते आ रहे थे कि हिंदुस्तान महान है और इसके पीछे कुछ राजा और महाराजाओं का हिंदुस्तान के प्रति आकर्षित होना, कुछ लोग हिंदुस्तान के महान होने के पीछे यहां मिलने वाली दुर्लभ बेशकीमती खजाना को मानते हैं।
लेकिन हिंदुस्तान के महान होने के पीछे अनंत कारणों में से एक बड़ी कारण यहां उत्पन्न होने वाली खाद्यान्न तथा जड़ी बूटियों के विज्ञान सम्मत quality का होना भी एक है। आज इसी कारणवश पूरे Europe,Africa, आदि देश हिंदुस्तान से आया हुआ खाद्य तथा जड़ी बूटियों के लिए तरसते हैं।
इसके पीछे का कुछ महत्वपूर्ण कारणोंको हम आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक आधार के साथ इस post में चर्चा करेंगे। आज पूरा post पढ़ने के बाद आपको समझ में आएगा कि वाकई में आयुर्वेद इतना महान क्यों है।
एक छोटा सा उदाहरण के जरिए इसको समझने का प्रयास करते हैं।
में एक बार चंदन की लकड़ी खरीदने जब दुकान में गया तो मेरे को पूछा गया कि कहां का चंदन पसंद करेंगे..
मैंने पूछा कहां का चंदन का मतलब क्या हुआ.. चंदन तो चंदन ही है..
वह कहीं का भी हो;
तो उन्होंने कहा- नहीं साहब हिंदुस्तान का जो चंदन है वह सभी दूसरे देशों के चंदन में उत्तम है और इसका रेट भी अधिक है।
तो मुझे बहुत ताज्जुब हुआ कि...
यह भाई साहब ऐसा क्यों बोलते हैं।
फिर मैंने इस विषय में थोड़ा और रिसर्च किया तो फाइनली पता चला कि कुछ खास जड़ी बूटीयां है जो अन्य देशों के अपेक्षा हिंदुस्तान के धरती में उघनें पर विशेष गुणकारी हो जाता है। इसका मुख्य कारण यहां का ऋतु अनुकूल जलवायु हैं।
हर कोई वस्तु जो जिस देश या ऋतु विशेष में पैदा होते है उसमें उस ऋतु के अनुकूल या प्रतिकूल जलवायु का विशेष गुण निहित रहता है।
इस के संदर्भ में आयुर्वेद के जितनी भी महान ग्रंथ है उन सभी में पदार्थों का उत्पन्न होने तथा उसके स्वाद के क्वालिटी को सिर्फ जिस देश में वह द्रव्य पैदा होता है उस देश विशेष का ऋतु सात्म्य असात्म्य के आधार पर ही निर्भर करता है कि वह पदार्थ का स्वाद और उसका गुणधर्म किस quality वाला होगा।
जैसे ऋतु फल आम को ही लीजिए एक ही प्रजाति और नाम वाला आम को आप अलग-अलग स्थान और देश से एकत्रित करके एक जगह रखें और अलग-अलग करके उसको खाइए आप एक ही प्रजाति, नाम और एक ही समय में उत्पन्न होने के बावजूद भी उस एक नाम वाला आम के स्वाद में भिन्नता महसूस करेंगे।
आज साइंस इस बात को सत्यापित कर चुका है कि हिंदुस्तान में उगने वाली जो निम का पौधा है उसमें जो गुण है वही गुण अमेरिका में उगने वाली नीम में नहीं है।
इसका मतलब स्पष्ट है यदि आपको किसी ने मधुमेह नष्ट करने के लिए नीम के पत्ते चबाने के लिए बताया है तो वह हिंदुस्तान के नीम के लिए बताया है अमेरिका में उगने वाली नीम के पत्ते में वह quality नहीं है।
तो यह बड़ी कन्फ्यूजन पैदा करने वाली इस तरह के बातों ने आयुर्वेद प्रेमी लोगों के मन में आयुर्वेदिक द्रव्यों के क्वालिटी के प्रति हमेशा से निराशाजनक स्थिति पैदा किया हुआ है।
जैसे कि चावल से बनाया हुआ खीर को खाकर भी अगर कोई आदमी कमजोर होता है तो उसके बाद वह तब तक आयुर्वेद को ही गाली देगा जब तक उसको प्रकृति के इस नियम के बारे में मालूम नहीं पड़ता।
तो आइए इसके विषय में कुछ और विस्तृत चर्चा करते हैं कि आखिर यह सब वनस्पति के अंदर उसके रस वीर्य विपाक में होने वाली परिवर्तन का मुख्य कारण क्या हो सकता है और उसको कैसे आसान भाषा में समझाया जा सकता है।
यह तो आप जानते ही हो कि सभी आयुर्वेदिक ग्रंथ में 6 प्रकार के ऋतु के बारे में बताया गया है। जैसे वसंत ,ग्रीष्म,शरद,वर्षा,शिशिर,हेमंत यह 6 नाम ऋतुओं का है।
शिशिर -16 जनवरी से फरवरी तक।
वसंत- फरवरी से मार्च तक।
ग्रीष्म - अप्रैल से जून तक।
वर्षा -जुलाई से सितंबर तक।
शरद -अक्टूबर से नवंबर तक।
हेमंत -दिसंबर से 15 जनवरी तक।
इस प्रकार से यह लगभग लगभग 6 ऋतुओं का समय होता है। लगभग का अर्थ यहां यह है कि यह date कभी थोड़ा बहुत नीचे ऊपर भी हो सकता है। दोस्तों दुनिया में जो कुछ भी है समय और प्रकृति है। कुछ लोग समय को भगवान और प्रकृति को देवी समझते हैं क्योंकि सारा दुनिया इन दो आधार पर टिकी हुई है ।वनस्पतियों का स्वाद और गुण,दोष भी इस समय और प्रकृति के ऊपर निहित है।
अब जब हम इन ॠतूओं का रस विवेचन पढ़ेंगे तो समय और प्रकृति का थोड़ा और एक नई concept हमें समझ में आएगा।
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वसंत- मधुर रस- जल और पृथ्वी महाभूत
ग्रीष्म- कटु रस - अग्नि और वायु महाभूत
वर्षा- अम्ल रस- अग्नि और पृथ्वी महाभूत
शरद - लवण रस - अग्नि और जल महाभूत
हेमंत- मधुर रस- पृथ्वी और जल महाभूत
अब देखिए-बस यह सूत्र समझ में आ जाए तो समझ लीजिए आपको प्रकृति का गुण दोष युक्त व्यवहार समझ में आएगा।
रसः शेष भूत संसर्गात् विदग्धः षोढा विभज्यते
ते च भूयः परस्पर संसर्गात् त्रिषष्टिधा भिद्यन्ते |
सुश्रुत द्वारा प्रतिपादित इस शब्द को ध्यान से समझ लीजिए।
स्पष्ट बता रहे हैं की रसों में महाभूतों के गुणों का संसर्ग होकर, विदग्ध होकर, परस्पर सामंजस्य होकर, कभी टूट कर बिखर जाना, कभी बिखरे हुए रसों के परमाणु फिर से जुड़ जाना इन प्रक्रिया द्वारा एक से दूसरे रसों का समीकरण तैयार होता है। जिस प्रकार 2 गाढा रंग को अलग-अलग अनुपात में मिक्स किया जाए तो तीसरा अलग ही रंग उत्पन्न होता है उसी प्रकार देश विशेष में प्रकट होने वाला रस प्रधान द्रव्य में उस देश विशेष में ॠतु का जो गुण है उसके साथ तारतम्यता से खास गुण युक्त रस उत्पन्न होगा।
उदाहरण जैसे:-
मान लीजिए जनवरी का महीना चल रहा है इस वक्त हेमंत ऋतु का समय है हेमंत जल और पृथ्वी महाभूत संपन्न ऋतु हैं। रस के आधार पर संपूर्ण हेमंत ऋतु मधुर रस प्रधान गुण वाला समय है यानी इस ऋतु में जो भी भक्ष्य,भोज्य,चुष्य, आदि पदार्थ उत्पन्न होंगे उसमें जल और पृथ्वी महाभूत प्रधान गुण होगा इसका मतलब मधुर रस प्रधान पदार्थ के रूप में उसको जाना जाएगा।
लेकिन उस पदार्थ में जल और पृथ्वी महाभूत तथा मधुर रस प्रधान गुण तभी प्रकट होंगे जब उस देश विशेष में हेमंत ऋतु के अनुसार मौसम भी होगा जैसे हेमंत ऋतु जबरदस्त ठंडी मौसम के रूप में जाना जाता है।
अब आप उन देशों को स्मरण करिए जहां हेमंत ऋतु में भी गर्मी होगा । उष्ण और रुक्ष हवाए वहां के वनस्पतियों को स्पर्श करता होगा। जैसे अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड आदि यह ऐसे देश है जहां पर ॠतु का नाम तो हेमंत है मगर वहां का मौसम ग्रीष्म के जैसा चल रहा है। अब आप खुद विचार करिए हेमंत ऋतु में पैदा होने वाला चावल यदि उसी वक्त अमेरिका में भी पैदा होता है तो क्या उसमें हेमंत ऋतु का जल और पृथ्वी महाभूत इन दोनों के आधार पर मधुर रस वाला गुण निहित होगा।
क्या इस प्रकार से पैदा होने वाला चावल में भी वही गुण होगा जिसके वारे में आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णन किया है। बिल्कुल भी नहीं हो सकता...
क्योंकि पहले ही बताया जा चुका है पदार्थों में रस और गुण का निर्धारण स्वयं वृक्ष नहीं बल्कि समय और प्रकृति करती है।
अब यदि इतना समझ में आ जाए तो आपको आयुर्वेद के पुस्तक में जहां भी द्रव्यों के बारे में कुछ भी लिखा हुआ रहेगा आपको समझ में आएगा अब आपको यह भी समझ में आएगा की एक तरफ से तो ग्रंथकार बताते हैं कि दूध में खट्टी चीजें डालकर नहीं पीनी चाहिए और दूसरी ही पल ग्रंथकार लिखते हैं कि आंवले के रस को दूध में डालकर पीने से शरीर में रसायन कर्म होता है फिर क्या आंवले में जो अम्ल रस है वह यहां हानी नहीं कर सकता ? तो इसके विषय में बताते हैं की रस निर्माण के क्रम में
रसः शेष भूत संसर्गात् विदग्धः षोढा विभज्यते
के आधार पर आंवला निर्माण क्रम में मधुर और अम्ल रस के बीच में जो संसर्ग हुवा है वह विपरीत गुण वाला न होकर विपरीत रस होने के बावजूद भी समान धर्म का हो गया है इसीलिए आमला खट्टा होने के बावजूद भी दूध के साथ ले सकते है यह ऐसा उस देश के प्रकृति का विशेष चमत्कृत गुणों के बदौलत संभव हुआ।
सारांश:-
इन सभी बातों से स्पष्ट हो रहा है की जो देश का जलवायु तथा समय और प्रकृति का गुण उस देश के ऋतु के गुणों के अनुकूल होगा तो उस देश विशेष में पैदा होने वाली सभी द्रव्य आयुर्वेद में बताएं हुए गुणों के आधार पर कर्म करने वाला आयुर्वेदिक दवाई होगा।
और जिस देश का जलवायु स्वयं के ऋतु के गुण और स्वभाव के विपरीत होगा वहां पैदा होने वाली खाद्यान्न में वह गुण नहीं रहेगा जिसके बारे में आयुर्वेद में बताया गया है।
लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उन देशों में पैदा होने वाले सभी द्रव्य जहरीला होगा इसमें ऐसा बिल्कुल नहीं सोचना है वह खाद्यान्न जो उस देश विशेष में पैदा हुए हैं जिसका पैदा होने के विषय में प्रकृति ने उस पदार्थ पर ऋतु का ख्याल नहीं रखा मगर फिर भी पैदा हो गया तो ऐसा पदार्थ उस देश के व्यक्तियों के लिए यदि वह सात्म्यकर होगा तो उसके लिए उसी देश में रहकर अगर उसका सेवन करता है तो असात्म्य नहीं होगा।
परंपरागत अन्न दूसरे देशों में जाकर खाने से जहरीला हो सकता है।
जैसे ज्यादातर अमेरिका के ऐसा स्थान जहां का तापमान - 45 तक निचे पहुंच जाता है वहां के लोग मदिरा का सेवन उस कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए करते होंगे लेकिन आदत बस भारत के राजस्थान में आकर वही आदमी यहां बैठ कर उसी मदिरा का सेवन करता है तो उसके लिए यह मदिरा राजस्थान में रहते हुए व्याधि को उत्पन्न करने वाला होगा। स्पष्ट है जो द्रव्य जिस देश विशेष में रहकर खाने योग्य और स्वास्थ्यकर हो सकता है वही द्रव्य विपरीत गुण और ॠतु से युक्त देशों में रहकर खाने योग्य नहीं होता।
ज्यादातर अनजाने ही लोग दूसरे देशों में जाकर परंपरा के नाम पर कुछ ऐसा चीज खा लेते हैं या कुछ ऐसा करते हैं जो असात्म्यकर होने के कारण व्याधि का कारण बन जाता है। जैसे राजस्थान के भीलवाड़ा में रहने वाला आदमी जब देवताओं का पूजन करता है तो वहां पर वस्त्र के नाम पर एक धोती और ऊपर लगाने के लिए पतला सा अंग वस्त्र होता है राजस्थान के जलवायु के हिसाब से वहां के लोगों के लिए परंपरागत ऐसा नियम बन गया मगर यदि आप कश्मीर में जाएंगे तो आप यह नहीं कह सकते कि मेरा तो परंपरागत धोती और पतला सा अंगवस्त्र लगाकर ही देव पूजन सफल होगा। यह भी देखिए कि यहां का जलवायु इसकी अनुमति देगा की नहीं ।
शायद यही कारण होगा हमारे जितनी भी देवी देवता थे वह सभी भारत में ही रहना पसंद करते थे सभी का जन्म और अवतार भी इसी देश में माना जाता है क्योंकि वह सभी अंतर्यामी और ज्ञानी थे।
भारत का जलवायु ऋतु के अनुसार ही निहित है। यहां हेमंत ऋतु में कड़ाके की सर्दी होती है ग्रीष्म में गर्मी तथा वर्षा में बारिश होती है। यहां शरद ऋतु में वनस्पतियों के पत्ते गिर जाते हैं जिन्हें पतझड़ का मौसम कहते हैं और वसंत ऋतु में उसी पेड़ में नवीन कोमल पत्ते आते हैं प्रकृति का आदान और विसर्जन काल का जो व्यवस्था है वह भारत भूमि में उत्पन्न होने वाले हर जड़ चेतन स्थावर और जंगम विशेष में दिखता है।
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