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आयुर्वेद और आवरण | Charak Samhita on the importance of Aavaran in Ayurveda.

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चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेदिक आवरण के प्रकार - चरक संहिता में वर्णित आयुर्वेदिक आवरण के प्रकारों के बारे में जानें।कफावृत प्राणादि दोष, पित्तावृत वात, etc.. अन्योन्यावरण आयुर्वेद के विद्यार्थियों के लिए याद करने योग्य बेहद important topic है।
 इस blog में हिंदी में विस्तार से समझाया गया है कि चरक संहिता के अनुसार कैसे दोषों का आपसी आवरण हमारे शरीर के संतुलन को कैसे बिगाड़ देता हैं।

Aavaran in Ayurveda:- According to the Charaka Samhita chikitsa sthan chapter 28, one of the foundational sutras of Ayurveda, there are various types of Ayurvedic coverings or आवरण "avaranas" that can be used to promote health and well-being

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Ayurvedic principles of Aavaran in Hindi 

यह लेख हिंदी भाषा में आयुर्वेद सीखने वालों के लिए है इसमें हम आयुर्वेद का सबसे दमदार विषय आवरण अन्योन्यावरण के विषय में जानेंगे।
विगत कुछ वर्षों से इधर हिंदुस्तान में आयुर्वेद का प्रचलन अचानक बढ़ने लगा है संभवत corona काल में जब दुनिया एकदम बंद हो गया था उस वक्त ऑनलाइन क्लास का इतना भरमार हुआ जिसमें ज्यादातर लोग आयुर्वेद सीखने के लिए उत्साहित थे। उसी कड़ी में आयुर्वेद के विद्वान लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया फलस्वरूप आयुर्वेद सीखना चाहने वाले सामान्य लोग भी अब आयुर्वेद की गहराई में जाकर बात करते हैं।
आज हम संपूर्ण दोषों का आपसी आवरण स्वरुप संबंध से होने वाली व्याधियों के ऊपर चर्चा करेंगे। जैसे अपान वायु के स्थान में किसी कारणवश विकृति उत्पन्न होकर परिणाम स्वरूप इससे प्राणवह स्रोतस में व्यवधान उत्पन्न हो जाए तो अपान वायु के परमाणु क्षीण होते जाएंगे और प्राण वायु के परमाणु बढ़ते जाएंगे फलस्वरूप इससे जो विकृति शरीर में लक्षण के रूप में दिखाई देगा वह व्याधि को उत्पन्न करने वाला होता है। उदाहरण स्वरूप कुछ लक्षणों को समझते हैं साथ में सीख लेंगे चरक संहीता में इसके विषय में किस प्रकार के चिकित्सा विधि बताया गया है।

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अपानावृत प्राण का सामान्य लक्षण और उपाय

यदि अपान वायु प्राणवायु को ढक देता है तो नीचे दिए गए लक्षणों को शरीर में प्रकट करता है।
शिर में दर्द होती है headache
दमा Asthma का समस्या है
शिर में सूजन (cerebral edema) है
कव्ज (constipation) रहता है  
मल,मूत्र सही तरीका से निकलता नहीं है
मुंह से अधिक मात्रा में थूक या पानी निकलता रहता है
बार बार हिचकी आती रहती है
यह अपानावृत प्राण का लक्षण है। यहां अनुलोमक चिकित्सा करे।

Ayurvedic Aavaran types in Charak Samhita

इसी प्रकार से आवरण के अन्य प्रकार आयुर्वेद में वर्णित है आइए हम एक-एक करके उन सभी बिंदुओं पर चर्चा करें।

अपानावृत उदान का सामान्य लक्षण और उपाय

यदि अपान वायु उदान वायु के स्थान में आकर आवरण पैदा करता है तो नीचे दिए गए कुछ लक्षण शरीर में दिखाई देता है जैसे 
मानसिक रोग है
भूख नहीं लगती (dyspepsia)
दस्त होता है (diarrhoea)
यह अपानावृत उदान का लक्षण है
ऐसी अवस्था में चिकित्सा के लिए वमन, अग्नि दिपन,और  ग्राही अन्नपान देना चाहिये।

अपानावृत व्यान का लक्षण और उपाय

वार वार latrine जाता है। 
अधिक मात्रा में stool निकलता है
वार वार पेशाब (urine) आता रहता है
Nightfall
इस प्रकार के लक्षण दिखे तो समझना चाहिए कि अपान वायु ने व्यान वायु को ढका है यहां अपान वायु के परमाणु क्षीण और व्यान का परमाणु बढ़ेंगे जिसने आवरण किया है चिकित्सा उसके लिए किया जाना चाहिए।

प्राणावृत उदान का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

सिर में भारीपन (habiness) लगता है 
सर्दी- जुकाम (प्रतिश्याय) sinus 
दमा रोग ( asthma) भी महसूस होती है।
सीढ़ियों में चढ़ने पर सांस फूलता है।
सांस रुकता है (Respiratory disease)
मूख सूख जाता है
हृदय रोग का समस्या है (heart disease)
यह प्राणावृत उदान का लक्षण है।
जत्रूप्रदेश चिकित्सा में बताए हुए सभी विधि को करें। विशेष करके धूमपान तथा नस्य हितकारी है।

प्राणावृत समान का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

शरीर अकड़ जाता है
बोलते वक्त अटकता है या अशुद्ध बोलता है
यह प्राणावृत समान का लक्षण है। इसमें हमें यापन यापन वस्ति,स्नेहयुक्त वमन, विरेचन, निरूह, अनुवासन देने के लिए बताया गया है।

प्राणावृत व्यान का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

शरीर कमजोर हो रहा है (weakness)
याददाश्त कमजोर हो रहा है (memory power)
इंद्रियों में सुन्यता महसूस होती है 
जत्रूप्रदेश की चिकित्सा जैसे धुम्रपान, नस्य करें।

उदानावृत प्राण का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

Depression से परेशान है
शरीर में बेहद थकावट महसूस होती है । Dullness
शरीर और चेहरे (face) का रंग change हो रहा है
Patient Ventilator में admit है।
रोगी Coma में है।
Brain में clothing हो रहा है
यह उदानावृत प्राण का लक्षण है। इसमें शीतल जल से सिंचन करने के लिए बताया गया है उदान वायु को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।

उदानावृत व्यान का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

शरीर जकड़ जाता है (stiffness)(epilepsy, मिर्गी जैसा )
भूख कम लगती है (मंदाग्नि) 
शरीर से पसीना बिल्कुल नहीं आता
आंखें हमेशा बंद रहती है
शरीर सुस्त रहता है (Dullness)

यह उदानावृत व्यान का लक्षण है यहां अल्प मात्रा में लघु भोजन तथा उदान वायु का चिकित्सा अपेक्षित रहेगा। सामान्य आवरण का सूत्र तो यह है

उदानावृत अपान आरक्षण और सामान्य चिकित्सा

बार-बार vomiting (बमन) उल्टी आता है
 काम करने पर सांस (दमा) चढ़ता है asthma
खांसी लगता रहता है (cough,balgum)
यह उदानावृत अपान का लक्षण है ऐसी अवस्था में बस्ति तथा वातानुलोमक चिकित्सा करनी चाहिए।

व्यानावृत प्राण का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

शरीर से पसीना अधिक निकलता है
बार-बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं
त्वचा (skin) में खिंचाव महसूस होती है
शरीर में सुन्यता (senseless) होती है
यह व्यानावृत प्राण का लक्षण है। इसमें स्नेहयुक्त विरेचन देना चाहिए।

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व्यानावृत अपान का लक्षण और सामान्य चिकित्सा

Vomiting उल्टी आता रहता है विशेष गाड़ी में यात्रा करते वक्त
पेट में गुड गुड करके आवाज आता है
नाभि के नीचे पेट फुला हुआ सा महसूस होता है
पेट के निचले हिस्से में दर्द होती
(Stool, urine) मल मूत्र के रुक जाने से पेट में गैस का गोला सा घूमता हुआ महसूस होता है
पेट के अंदर गांठे(tumor) गुल्म बना हुआ है
पेट के निचले हिस्से में कैची के काटने जैसा दर्द pain होता है
शरीर से पसीना आना बंद हो गया है
पेशाब अधिक मात्रा में बार-बार आता है

यह व्यानावृत अपान का लक्षण है आयुर्वेद इसमें स्निग्धपान कराकर अनुलोमन द्रव्य द्वारा विरेचन करानी चाहिए।
यदि शरीर में स्वेद अवरुद्ध हो रखा हो जिसके कारण पेशाब अधिक मात्रा में बार बार आता हो तो यहां स्वेदन करना चाहिए।

समानावृत प्राण का लक्षण और सामान्य उपचार


पेट से संबंधित समस्या है
I.B.S. का समस्या है
ग्रहणी रोग से पीड़ित है
पेट में किडनी (kidney) के आसपास दोनों side के कोहनी में दर्द होती है
Heart से संबंधित समस्या है
(Stomach pain) छाती के आसपास अंदरूनी दर्द होती है
यह समानावृत प्राण का लक्षण है इसमें समान वायु के लिए अग्नि चिकित्सा करनी चाहिए।


समानावृत अपान का लक्षण और सामान्य उपचार

पेट से संबंधित समस्या है
I.B.S. कव्ज constipation का समस्या है
ग्रहणी रोग से पीड़ित है
पेट में किडनी (kidney) के आसपास दोनों side के कोहनी में दर्द होती है
Heart से संबंधित समस्या है
(Stomach pain) छाती के आसपास अंदरूनी दर्द होती है
Diabetes प्रमेह, मधुमेह, (शुगर रोग) भी है 
यह समानावृत अपान का लक्षण है। अग्नि दीपक घृत का प्रयोग करें। यहां दूध के साथ पिपली रसायन भी अच्छा काम करता है।
यदि मधुमेह है तो मधुमेह का चिकित्सा करें।


समानावृत व्यान का लक्षण और सामान्य उपाय

Epilepsy (मिर्गी का दौरा) जैसा ही लक्षण दिखता है
उबासी हमेशा आती रहती है
रोगी बेहोश होने के बाद अनाप-शनाप बोलता है
शरीर में कमजोरी,शिथिलता महसूस होता है
नसों में (weakness) कमजोरी लगता है
खाया हुआ पचता नहीं है (मंदाग्नि) dyspepsia
गठिया, आम बात है ( rheumatoid arthritis)
यह समानावृत व्यान का लक्षण है। चिकित्सा व्यायाम लघुभोजन है। समान वायु के लिए शमन चिकित्सा बताया गया है इसमें शोधन नहीं किया जाता। भोजन के बीच में नारदीय लक्ष्मी विलास रस भी समान वायु को मजबूत करता है।

आयुर्वेद और आवरण/ Aavaran in Ayurveda

समझने वाली बातें

आयुर्वेद में अमूर्त आवरण का बहुत बड़ा और प्रामाणिक concept है। अन्योन्यावरण के कारण शरीर में व्याधि उत्पन्न होते हैं।
इस अन्योन्यावरण सूत्र को समझने का आसान तरीका
मान लीजिए अपान वायु दुष्ट है यानी अपान वायु अपने गुण कर्म और संख्या से वितरित है और इसके परिणाम स्वरूप सिर में दर्द हो रहा है तो इसको हम अपानावृत प्राण मानते हैं चिकित्सा स्वरूप यहां सिर दर्द के लक्षण दिखने पर अपान वायु के लिए अनुलोमन चिकित्सा अनिवार्य है।
यदि श्वेदावरोध के परिणाम स्वरूप बहु मूत्रता रोग हो रहा है तो इसको व्यानावृत अपान समझ कर मूत्र रोकने वाली नहीं बल्कि स्वेदन उत्पन्न करने वाली( steam) स्वेदोपग चिकित्सा देनी चाहिए।

आवरण और उसकी चिकित्सा की समझ
बहुत सारे विद्वान आयुर्वेदिक चिकित्सक इसी आवरण चित्र के आधार पर अपना चिकित्सा व्यवस्था बेहद आसान तरीका से अपनाते हैं उम्मीद है आप भी इसको ध्यान से समझकर लाभ उठाएंगे।
आवरण का परिभाषा बेहद सरल है जिसने आवरण किया है उसका द्रव्य गुण कर्म की हानि होगी जिस को रोका गया है उसकी वृद्धि होगी। जिस ने रोका है उसके लिए चिकित्सा करना है जैसे व्यान वायु ने जब अपान को रोका तो यहां मूत्रवृद्धि अपान क्षेत्र में हो रही है लेकिन बयान क्षेत्र में कर्म की हानि भी हो रही है तो जहां हानि हो रही है उसने जहां वृद्धि हो रही है उसको रोका है।

कभी-कभी आवरण के संदर्भ में मामला उल्टा भी हो सकता है जैसे अगर उदानवायु अपान वायु को आवरण करता है तो यहां वायु के कर्म की वृद्धि होगी फलस्वरूप अति मल प्रवृत्ति होना चाहिए था लेकिन ऐसा ना हो कर अपान वायु ऊपर उदान की ओर आकर बदबूदार बमन और स्वास्कास दे रहा है तो यह भी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विचार करना चाहिए।
चिकित्सा का सामान्य सूत्र
रोकने वाला जो दोष है उसकी सबसे पहले चिकित्सा करनी चाहिए फिर दूसरे नंबर में जो रुका है उसकी चिकित्सा करनी चाहिए।

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