Learn how the Bael (Bilva) fruit is used in Ayurveda for treating diarrhea, indigestion, bloating, PCOD, and inflammation. Understand the classical Sanskrit verses behind its traditional use.
बिल्व (Bael) फल आयुर्वेद में एक बहुपरिचित और प्रभावशाली औषधीय फल है जिसे लक्ष्मीफल, श्रीफल, और महाफल जैसे कई नामों से जाना जाता है। इसके सभी भाग—फल, बीज, पत्ते, तना, फूल, जड़—औषधीय दृष्टि से अत्यंत उपयोगी माने गए हैं।
"श्रीफलस्तुवरस्तिक्तो ग्राही रूक्षोऽग्निपित्तकृत् ।
वातश्लेष्महरस्तस्य पत्रं सङ्ग्राहि वातजित् ॥१९॥"
इस श्लोक के माध्यम से बिल्व फल के गुणों का वर्णन किया गया है।
“ग्राही” का अर्थ है—संग्रह करने वाला, पाचन अग्नि को प्रदीप्त करने वाला, तथा शरीर के मल पदार्थों को रोकने वाला।
विशेष रूप से दस्त, मल प्रवाह अधिक होने पर यह अत्यंत उपयोगी है।
यह उन लोगों के लिए उपयोगी नहीं होता जिनके शरीर में कहीं भी सूजन या इन्फ्लेमेशन हो।
रुक्ष गुण शरीर की आर्द्रता (moisture) को सोखने वाला होता है। यह सुखाने वाला प्रभाव रखता है।
यह अग्नि और पित्त दोनों को बढ़ाता है, जिससे पाचन तंत्र अधिक सक्रिय होता है।
बिल्व वात और कफ दोनों को शांत करता है, विशेषकर कफ के जलमय गुणों को संतुलित करता है।
पत्ते भी संग्राही और वातहर होते हैं। वात संबंधी बीमारियों में पत्तों का रस या काढ़ा उपयोगी माना गया है।
ग्रहणी, अतिसार, अजीर्ण, शूल जैसे रोगों में उपयोगी है।
बार-बार मल त्याग और गैस की समस्या में आराम देता है।
वातजन्य रोगों जैसे स्नायु शिथिलता, PCOD, फाइब्रॉइड, और गर्भाशय रोगों में लाभकारी है।
बीज का तेल पिचु के रूप में या मालिश में उपयोग किया जाता है।
कास (खांसी), हृदय रोग, आमवात में फायदेमंद है।
अतिसार, तृष्णा (प्यास), वमन (उल्टी) जैसी अवस्थाओं में उपयोगी।
तिक्त (कड़वा), कटु (तीखा), कषाय (कसैला), दीपन, पाचक, ग्राही और लघु।
पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है।
वात-कफ को शांत करता है।
भारी, विदाही (जलन पैदा करने वाला), मधुर, और कुछ मामलों में विष्टम्भ (कब्ज कारक)।
पके हुए फल का अधिक सेवन न करें।
लक्ष्मीफलोहृद्यगन्धो गन्धगर्भो महाफलः ।
शब्दार्थ:
लक्ष्मीफलः – लक्ष्मी के समान शुभ, पवित्र फल (बिल्व)
हृद्यगन्धः – हृदय को प्रिय (सुगंधि)
गन्धगर्भः – जिसमें प्राकृतिक सुगंध विद्यमान हो
महाफलः – महान फल, औषधीय दृष्टि से श्रेष्ठ
भावार्थ:
बिल्व फल को "लक्ष्मीफल" कहा गया है क्योंकि यह पवित्र, उपयोगी और कल्याणकारी है। इसकी गंध हृदय को आनंदित करती है, और यह एक महान फल माना गया है।
शैलूषः श्रीगन्धफलो मालूरो गोहरीतकी ।
वातसारो नीलमल्ली सत्यधर्मो धरारुहः ।।
शब्दार्थ:
शैलूष, श्रीगन्धफल, मालूर – बेल के विभिन्न नाम
गोहरीतकी – गाय के लिए उपयोगी हरितकी के समान
वातसारः – वात का शमन करने वाला
नीलमल्ली, सत्यधर्म, धरारुहः – इसके अन्य पर्यायवाची नाम
भावार्थ:
बिल्व के अनेक नाम हैं जो इसके विभिन्न स्थानों, गुणों और उपयोगों के आधार पर हैं। यह विशेष रूप से वात शमन करने वाला है।
महाकपित्थो धविको रुचीकः सर्वरूपवान् ।
बिल्वः शलाटः शाण्डिल्यः कर्करो ग्रन्थिलो मतः ।।
शब्दार्थ:
महाकपित्थ, धविक, रुचिक – इसके अन्य नाम
सर्वरूपवान् – सभी प्रकार के रोगों में उपयोगी
शलाटः, शाण्डिल्यः, कर्करः, ग्रन्थिलः – बेल की प्रकृति को दर्शाने वाले नाम (जैसे कठोर और ग्रंथियुक्त)
भावार्थ:
बिल्व का फल कठोर, रुचिकर (स्वादिष्ट), और कई प्रकार के विकारों में उपयोगी होता है। इसके कई नाम इसकी बनावट और गुणों पर आधारित हैं।
सदाफलः कृष्णमुखः कण्टकी नीलमल्लिका ।
बाले त्वस्य फले बिल्वकर्कटी बिल्वपेशिका ।।
शब्दार्थ:
सदाफलः – सदा फल देने वाला
कृष्णमुखः – गहरे रंग का मुख (फल)
कण्टकी – काँटेदार
बाले फले – कच्चा फल
बिल्वकर्कटी, बिल्वपेशिका – बेल के बीज और गूदा
भावार्थ:
बिल्व वृक्ष काँटेदार होता है और इसके कच्चे फल को बिल्वकर्कटी और बिल्वपेशिका कहा जाता है, जो औषधीय दृष्टि से विशेष उपयोगी है।
श्रीफलस्तुवरस्तिक्तो ग्राही रूक्षोऽग्निपित्तकृत् ।
वातश्लेष्महरस्तस्य पत्रं सङ्ग्राहि वातजित् ।।
शब्दार्थ:
तुवरः तिक्तः – थोड़ा-थोड़ा कसैला और कड़वा
ग्राही – मल को रोकने वाला
रूक्षः – शुष्क
अग्निपित्तकृत् – अग्नि और पित्त को बढ़ाने वाला
वातश्लेष्महरः – वात और कफ को कम करने वाला
सङ्ग्राहि – संग्रह करने वाला (मल रोकने वाला)
भावार्थ:
कच्चा बेल फल कसैला, कड़वा, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला, वात-कफ हर, और मल को रोकने वाला होता है। इसके पत्ते भी संग्राही और वातहर हैं।
जटा दोषवमीकृच्छ्रशूलघ्नी मधुरा लघुः ।
कफवातामशूलघ्नो ग्राहिणी बिल्वपेशिका ।।
शब्दार्थ:
जटा – जड़ें
दोषवमीकृच्छ्रशूलघ्नी – दोषों के कारण उत्पन्न उल्टी, पेशाब की कठिनाई और पेट दर्द को ठीक करने वाली
मधुरा – स्वाद में मीठा
लघु – हल्का
कफवातामशूलघ्न – आम, कफ और वातजन्य शूल को हरने वाला
भावार्थ:
बेल का गूदा (पेशिका) पेट दर्द, उल्टी, पेशाब की समस्या, और आमदोष से उत्पन्न रोगों में उपयोगी है।
पक्वं विदाहि विष्टम्भि मधुरानुरसं गुरु ॥
दोषलं दुर्जरं पूतिवातं ग्राह्यग्निसादनम् ॥
संस्कृत शब्द | अर्थ (हिंदी में) |
---|---|
पक्वं | पका हुआ (बिल्व फल) |
विदाहि | शरीर में जलन उत्पन्न करने वाला |
विष्टम्भि | मल का अवरोध करने वाला (constipation देने वाला) |
मधुरानुरसं | जिसका स्वाद मधुर जैसा प्रतीत होता है |
गुरु | भारी (पचने में कठिन) |
दोषलम् | दोषों को बढ़ाने वाला |
दुर्जरं | पचने में कठिन |
पूतिवातम् | अपानवायु को दूषित करने वाला, दुर्गंधयुक्त वायु बनाना |
ग्रह्य | कुछ हद तक संग्रहण (binding) करने वाला |
अग्निसादनम् | जठराग्नि को मंद करने वाला (digestive fire को कमजोर करने वाला) |
पका हुआ बेल फल स्वाद में थोड़ा मीठा (मधुर), लेकिन:
शरीर में जलन (vidaha) उत्पन्न कर सकता है,
कब्ज़ (विष्टम्भ) कर सकता है,
पचने में भारी (गुरु) होता है,
यह दोषों को बढ़ाता है (विशेषकर वात-पित्त),
पाचन में कठिन (दुर्जर) होता है,
गैस, बदबूदार वायु (पूतिवात) उत्पन्न करता है,
और अग्नि को मंद करता है (अग्निसादन) यानी पाचनशक्ति को कमजोर करता है।
आयुर्वेद में पका हुआ बेल फल सामान्यतः उतना हितकारी नहीं माना गया है, विशेषतः यदि व्यक्ति को पहले से कब्ज़, मंदाग्नि, या वात विकार हो।
यह विशेषतः उन लोगों के लिए हानिकारक है जिनकी पाचनशक्ति कमजोर है या जिन्हें वात-पित्त से जुड़ी समस्याएँ हैं।
स्निग्धं तीक्ष्णं लघु ग्राहि हृद्यं वातकफापहम् ।
पक्वं विदाहि विष्टम्भि मधुरानुरसं गुरु ।।
शब्दार्थ:
स्निग्धं – चिकनापन
तीक्ष्णं – तीव्र गुण वाला
लघु – हल्का
गुरु – भारी
विष्टम्भि – मल रोकने वाला
विदाहि – जलन पैदा करने वाला
मधुरानुरसं – बाद में मीठा स्वाद छोड़ने वाला
भावार्थ:
कच्चा बेल हल्का, तीक्ष्ण, अग्निवर्धक और वातकफ नाशक है। लेकिन पका हुआ बेल भारी, जलनकारी और कब्ज करने वाला होता है।
दोषलं दुर्जरं पूतिवातं ग्राह्यग्निसादनम् ।
निहन्याद् बिल्वजं पुष्पमतीसारं तृषां वमिम् ।।
शब्दार्थ:
दोषलं, दुर्जरं – पचे नहीं ऐसा भोजन और दोषों को ठीक करता है
पूतिवात – बदबूदार वायु विकार
मतीसार – अत्यधिक दस्त
तृषा, वमि – प्यास और उल्टी
भावार्थ:
बिल्व के फूल अजीर्ण, अतिसार, तृषा और वमन जैसी स्थितियों में उपयोगी हैं। यह वातदोष से उत्पन्न रोगों में राहत देता है।
बिल्वमज्जभवं तैलमुष्णं वातहरं परम् ।
काञ्जिके संस्थितं बिल्वमग्निसन्दीपनं परम् ।।
शब्दार्थ:
बिल्वमज्जभवं तैलं – बेल के बीज या गूदे से निकला तेल
उष्णं – गर्म प्रकृति का
वातहरं – वात को दूर करने वाला
काञ्जिके संस्थितं – काञ्जिक (खट्टे पानी) में रखा हुआ
अग्निसंदीपनं – अग्नि को प्रज्वलित करने वाला
भावार्थ:
बिल्व बीज से बना तेल वातनाशक होता है। बेल को काञ्जिक में रखने से उसकी अग्निवर्धक शक्ति और बढ़ जाती है।
हृद्यं रुचिकरं प्रोक्तमामवातविनाशनम् ।
शब्दार्थ:
हृद्यं – हृदय के लिए हितकारी
रुचिकरं – भूख बढ़ाने वाला
आमवातविनाशनम् – आम और वात दोष को नष्ट करने वाला
भावार्थ:
बेल हृदय को पोषण देता है, पाचन शक्ति बढ़ाता है और आमवात जैसी बीमारियों में उपयोगी है।
बेल के फल में टैनिन्स, एंटीऑक्सीडेंट्स, फाइबर, और एल्कालॉयड्स जैसे यौगिक पाए जाते हैं जो इसे एक उत्तम डाइजेस्टिव और इम्यूनिटी बूस्टर बनाते हैं।
बिल्व फल और इसके सभी भाग आयुर्वेद में पंचदोष शमन, पाचन सुधार, महिलाओं की बीमारियों, वमन, अतिसार, और शूल में अत्यंत लाभकारी माने गए हैं। इसका प्रयोग उचित मात्रा में और ऋतु विशेष अनुसार करना चाहिए।
Q1: बिल्व फल कब खाना चाहिए?
A: सुबह खाली पेट या भोजन के बाद कच्चे बेल का शर्बत लिया जा सकता है। यह पाचन को सुधारता है।
Q2: क्या बिल्व फल PCOD में लाभकारी है?
A: हां, बिल्व बीज का तेल स्त्रियों में PCOD और यूटेरस की समस्याओं में उपयोगी माना गया है।
Q3: बिल्व पत्ते का रस किसमें उपयोगी होता है?
A: यह वात रोग, अपच, कब्ज और मधुमेह में लाभ देता है।
Q4: पके बेल के नुकसान क्या हैं?
A: पका हुआ बेल भारी, विदाही, और कुछ लोगों में कब्ज कारक हो सकता है। इसलिए मात्रा नियंत्रित रखें।
Q5: क्या बिल्व फल बच्चों को दिया जा सकता है?
A: हां, लेकिन डॉक्टर की सलाह से ही उचित मात्रा में दें, खासकर जब दस्त या अपच हो।
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