Semicarpol या Semecarpus anacardium इस नाम से जाना जाने वाला समस्त अमृत गुणों से लबालब भरा हुआ जड़ी बूटी जीसको हिंदुस्तान में भल्लातक, भिलावा आदि नामों से भी जाना जाता है।
Bhallataka (Semecarpus anacardium) Rasayana is a traditional Ayurvedic formulation that incorporates the therapeutic properties of the Bhallataka plant (Semecarpus anacardium). Bhallataka, also known as Marking Nut or Oriental Cashew, is a medium-sized deciduous tree native to India. Its various parts, including the fruits, seeds, and leaves, possess medicinal value and have been used in Ayurvedic preparations for centuries.
भल्लातको लघुस्तिक्तः कषायो मधुरो हिमः |
ग्राही पाके कटुः पित्तकफास्रघ्नोऽनिलप्रदः ||
तस्यास्थि मधुरं तिक्तं कटुपाकरसं लघु ||
कषायं पाचनं स्निग्धं तीक्ष्णोष्णं छेदि भेदनम् |
( Constipation) विवन्ध युक्त कफ प्रधान व्याधि विशेष तौर पर जव कफज आम द्वारा प्रभावीत वायु सम्पूर्ण शरीर में विचरण करते हुए दोष उत्पन्न कर रहे हो तब उस तरह के रोगी में प्रयोग किया जाने वाला कटु,तिक्त,कषाय रस, उष्ण विर्य,मधुर विपाक प्रधान यह भल्लातक
विष्टम्भि बृंहणं रूक्षं हिमं वातबलासकृत् ||
शुक्रलं दुर्जरं बल्यं रक्तपित्तविनाशनम् |
मेध्यं वह्निकरं हन्ति कफवातव्रणोदरम् ||कुष्ठार्शग्रहणीगुल्मशोफानाहज्वरकृमीन् |
(कैयदेव निघण्टु)
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शुक्रल, उदररोग, कुष्ठ, ग्रहणी, श्वित्र, अग्निमांद्य, कृमि, व्रण, अर्श, वातकफ प्रधान सभी रोग जिसमें विबन्ध प्रधान लक्षण के रूप में दिखाई देता हो में बेहद असरकारक सभी बुजुर्ग और प्रमुख वैद्यों द्वारा सबसे अधिक प्रसंसनीय तथा प्रयोग किया जाने वाला है यह भल्लातक।
आखिर क्यों न हो देखिए मदनादिनिघण्टुकार क्या लिखते हैं।
कफजो न च रोगोस्ति न च विबन्धोस्ति कश्चन ।
ये न भल्लातक हन्याच्छीघ्रमग्निबलप्रदम् || (मदनादिनिघण्टु)
इस प्रकार का जबरदस्त कफवात दोष सामक गुण वाला भल्लातक है मगर सभी अमृत सहजता से कहां प्राप्त हो सकता है? देवताओं को भी तो तव समुंद्र मंथन करना पड़ा था जब उनको अमृत की आवश्यकता थी। इसी प्रकार से यहां भी अमृत स्वरूपा यह भल्लातक में भी देखिए कितना जहर है ।
भल्लातको वीरतरुररुष्कोऽरुष्करो व्रणः |
भौतिको भूतरुड् भूरिस्नेहः शोफकरो धनुः ||
अग्निमुखी बहुपत्रो भल्ली सूर्या ऽग्निसञ्ज्ञकः | ( निघण्टुशेष)
तथैवाग्निमुखी भल्ली वीरवृक्षश्च शोफकृत्
इस सूत्र में निघंटुकार भल्लातक को साक्षात आग इस शब्द से संबोधन कर रहे हैं यानी वह कहते हैं कि भल्लातक कोई सामान्य नहीं है यह साक्षात सूर्य के समान अग्निरुप है।
नवीन और अज्ञानी वैद्य जिसके नाम से ही थरथर कांपने लगते हैं ऐसा है यह भल्लातक।
ऐसा बेहद गंभीर द्रव्य के ऊपर इस पेज में विस्तृत चर्चा किया जा रहा है यहां हम भल्लातक से संबंधित सभी प्रकार के निर्माण और उपयोग विधि विस्तार से चर्चा करेंगे।
भल्लातक जहरीला है इसीलिए जाहिर सी बात है की इसके जहर को निकालने का यत्न तो जरूर करना चाहिए तो चलिए समझते है भल्लातक शोधन की पूरी कहानी।
भल्लातक को शुद्ध करने के लिए सबसे पहले यह देखिए कि आप इसका प्रयोग किस चीज के लिए करने जा रहे हैं यह भल्लातक सोधन और रसायन दोनों प्रकार के क्रियाओं को करने में समर्थवान है अब आप देखिए आप क्या कुछ कराना चाहते हैं इससे
यदि आप शोधन चिकित्सा के लिए भल्लातक का प्रयोग करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम भल्लातक उसको गोबर निचोड़ कर निकला हुआ रस में 7 दिन तक डुबोकर रखिए ध्यान देना यहां गोबर का रस आपको रोज change करना होगा । 7 दिन के बाद भल्लातक को निकालकर पानी में उवाल्ना है फिर गरमा गरम चाकू या कटर के माध्यम से भीलावे के ऊपर का टोपी को निकाल दीजिए अब इसको दूध में दोला यंत्र द्वारा 5 घंटे तक पकाइए अब जाकर यह आपका भल्लातक सोधन कार्य करने योग्य हो गया है।
कुछ ग्रंथकार दूध में पकाने से पहले ईट के पाउडर में 3 दिन तक रखने के लिए बताया गया है लेकिन भेषज्यरत्नावली में इस क्रिया के लिए मना किया गया है।
उन का कहना है कि यदि आप इट के पाउडर में भल्लातक रख देते हैं तो इसका प्रमुख शक्ति नष्ट और वीर्यहीन हो जाएगा इसीलिए ऐसा ना करने का निर्देश दिया है उनका कहना है जिसको भल्लातक हानि करता है या सूट नहीं करता उसके लिए आप कितना भी कुछ भी करें हानी करेगा ही जिसको हानी नहीं करता उसके लिए सामान्य दूध में दोला यंत्र द्वारा पकाने मात्र से ही भल्लातक शोधन हो जाता है।
दूध में दोला यंत्र से पकाते वक्त ध्यान देना बंद कमरे में इसको पकाओगे तो जहरीला गैस आपके आंखों में जलन सूजन और शरीर में खुजली पैदा कर सकता है इसीलिए खुले आकाश के नीचे सावधानीपूर्वक तैयार करें।
कुछ लोग इस दूध के बारे में कंफ्यूज रहते हैं मेरा मानना है इस दूध का दही और उसके बाद घी तैयार करके रखें यह अनेक समस्याओं में अमृत के समान काम करने वाला साबित होगा।
कुछ लोगों का कहना है रोगी को भल्लातक रसायन सेवन काल में पानी भी पीने के लिए नहीं देना है पानी की जगह में रोगी को शीतल दूध में मिश्री मिलाकर पिलाना है यानी इस समय मिश्री युक्त दूध का अच्छा महत्व है।
रसायन प्रयोग काल में दुग्ध साली चावल घृत का ही प्रयोग करें तो इसका नकारात्मक प्रभाव रोगी में नहीं दिखाई देता
यह प्रयोग पित्त प्रकृति वाले लोग बालक वृद्ध गर्भवती स्त्रियों के लिए उपयोगी नहीं है।
जिन जिन रोगों में रक्तस्राव प्रधान लक्षण है जैसे अर्श,प्रदर, रक्तपित्त etc उनमें भल्लातक का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना है।
भल्लातक (Semecarpus anacardium) का प्रयोग बृक्कशूल में भी नहीं करना है।
इसके प्रयोग के समय में मूत्र परीक्षण जरूर करें। यदि वृक्क में समस्या होगी तो मूत्राशय में सूजन दिखाई देता है ऐसे समय में इसका प्रयोग नहीं करना है।
भल्लातक सेवन के बाद यदि जलन सूजन खुजली मूत्रकृच्छ (पेशाब बंद हो जाना यह थोड़ा-थोड़ा कष्ट के साथ आना) रक्तवर्णी मूत्र जैसे समस्या दिखाई देने लगे तो भल्लातक वहीं बंद कर दे। भल्लातक के नकारात्मक प्रभाव को ठीक करने के लिए चौलाई के साग का रस पिला दे। क्योंकि चौलाई के साग से तैयार किया हुआ ताजा रस भल्लातक के जहर को काटता है।इसके जहर को उतारने के लिए इमली का पत्ता का रस भी उत्तम है।
भल्लातक तेल से जलन होने पर स्कीन में कालापन दिखाई देता है। यहां पर नारियल तेल, गोपी चंदन तथा कालीमीट्टी का लेप लगाना चाहिए।
चिकित्सकों के लिए दो टूक बातें
यहां चिकित्सकों के लिए ध्यान देने की बात यह है की भल्लातक प्रयोग से क्या कुछ फायदा होगा प्रयोग करने से पहले उससे अधिक इससे होने वाली हानी से कैसे रोगी को बचाया जाए इस विषय में ज्यादा सोचना चाहिए और उसकी तैयारी पहले ही करके रखना चाहिए। भल्लातक बेशक अमृत है मगर जहरीला भी है यह बात आपको हमेशा ख्याल होनी चाहिए।
विरेचन लंघन और वृंहण चिकित्सा करके ही भल्लातक रसायन का प्रयोग करना है
सामान्य रूप से पित्त प्रकृति वाले लोगों को इसका प्रयोग नहीं करना है लेकिन इसके अलावा एक और परीक्षण विधि है जिसे हम आसानी से भल्लातक प्रयोग के योग्य व्यक्ति को ढूंढ सकते हैं
जिसके शरीर में बाल ज्यादा होते हैं उनके लिए भल्लातक ज्यादा हानिकारक नहीं होता ऐसे लोगों का यदि पित्तज व्याधि है तो भी भल्लातक प्रयोग करना चाहिए हालांकि ऐसे पित्तज प्रकृति वाले लोगों पर यदि आप भल्लातक प्रयोग करने जा रहे हैं तो सबसे पहले भल्लातक को दूध में काफी देर तक पकाएं अब उस दूध को थोड़ा सा निकाल कर क्षीरपाक विधि से अन्य दूध डालकर तैयार करें और रोगी को खिलाएं यह उनके लिए हानिकारक नहीं होगा। भल्लातक ज्यादातर जिनके शरीर में बाल बिल्कुल नहीं है उनके लिए कुछ न कुछ हानिकारक होता ही है चाहे वह वात या कफ प्रकृति वाले ही क्यों ना हो।
जिस प्रकार से दारु पीने वाला व्यक्ति के शरीर में किस लेवल में कितने मात्रा में किस तरह उसका नशा चल रहा है जानकार व्यक्ति उस नशेड़ी को देखते ही समझ जाता है इसी तरह यदि आप किसी व्यक्ति में भल्लातक रसायन का प्रयोग करने जा रहे हैं तो आपको यह ख्याल होना चाहिए कि यह द्रव्य शरीर में किस तरह काम करता है कौन-कौन से अच्छे और बुरे लक्षण दिखाता है कौन सा लक्षण दिखने पर सम्यक सिद्धि समझे और कौन सा लक्षण दिखने पर द्रव्य का उपद्रव समझे यह ज्ञान वैद्य को होना चाहिए आइए कुछ इस विषय में चर्चा करते हैं।
१. क्षुधा वृद्धि
भल्लातक प्रयोग के बाद रोगी में यदि भूख लगने लगे तो समझ लो की सकारात्मक सिद्धि मिल रही है।
२. पीत वर्णमल प्रवृत्ति
लैट्रिन करते वक्त मल का रंग पीला दिखाई दे तो समझ लो कि सम्यक सिद्धि हो रही है।
३. आमाशय और मलद्वार
भल्लातक का अधिक कार्य आमाशय और मलद्वार के ऊपर रहता है भल्लातक प्रयोग के बाद इनमें ज्यादा प्रभाव दिखाई देगा विशेष करके मलद्वार में स्थित मलों को यह स्थिर रहने नहीं देता यानी बाहर निकालने का प्रयास करता है। शुष्कार्श में इसी कारण वश इसका प्रयोग करना चाहिए ऐसा बताया गया है।
४. श्वित्र ''leucoderma - ''Vitiligo'' में भल्लातक
यदि आप leucoderma चिकित्सा के लिए भल्लातक प्रयोग करने जा रहे हैं तो यह जान लीजिए की भल्लातक का तेल त्वचा के माध्यम से बाहर निकलने का प्रयास करता है फलस्वरूप त्वचा में लालिमा युक्त होना, त्वचा में गर्मी महसूस होना तथा खुजली होना हो सकता है कभी-कभी त्वचा से पसीना अधिक निकलता है कफ वाहूल्य leucoderma हो तो उसके लिए यही लक्षण रोग नाशक होता है। इस रोग मे भल्लातक तेल ज्यादा सफल रहता है।
५.Semecarpus anacardium Effect in Urine
भल्लातक मूत्रसंग्रहणीय महाकषाय में भी आता है । भल्लातक के प्रयोग करने के बाद रोगी को पहले तो उस हिसाब से पेशाब नहीं आता है मगर तीन-चार दिन के बाद अधिक मात्रा में मूत्र प्रवृत्ति हो सकता है भल्लातक के दूषित परिणाम स्वरूप किसी किसी को रक्त युक्त मूत्रप्रवृति देता है।
६. शुक्र धातु पर भल्लातक का प्रभाव
१. यह शुक्र को स्तम्भन करता है जिसके कारण premature ejaculation के कंडीशन में रोगी को आराम दिलाता है।
२. यह शुक्र निर्मिती करता है फलस्वरूप संतान उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है। इसीलिए भल्लातक को बाजीकर रहा है।
घाव को सुखाने के लिए भल्लातक प्रयोग
यदि बहुत पुराना घाव है जो ठीक नहीं हो रहा है सुख नहीं रहा है यानी healing नहीं हो रहा है यहां पर भल्लातक तेल को सूअर के चर्वि के घी में मिलाकर पेस्ट तैयार करें और इसका उपयोग घाव में लगाने के लिए करें।
Lymphadenopathy यह एक प्रकार का lymp गुल्म है। जो त्वचा के बाहर गांठ जैसा शरीर में जगह जगह दिखाई देता है। कैंसर में भी इस प्रकार के गांठे दिखाई दे सकता है।भल्लातक का यह कंबीनेशन इस तरह के समस्या में बेहतर काम करता है। इस प्रकार के समस्या में
शुद्ध भल्लातक 2 भाग
कज्जली 1भाग
अजमोद 2 भाग
इन सभी को शहद में मिलाकर रोगी को 21 दिन तक प्रतिदिन खिलाएं। उसके उधर खिलाने की जरूरत हो तो 10 दिन का गैप रखें प्रयोग से पहले शोधन जरूर करें।
मज्जातन्तू पर उत्तेजित कार्य दिखाई देने के कारण सभी प्रकार के वात रोग विशेष करके neurological disorder, neuritis, paralysis,अर्दित,गृध्रस्री, सभी प्रकार के क्षुद्र रोग, उन्माद ,मानसिक रोग,अपस्मार यह सभी मज्जातन्तु में हुई विकृति के कारण होने वाली रोग है।
इन सभी रोगों में यदि आप भल्लातक का प्रयोग करना चाहते हैं तो भलातक क्षीरपाक या भल्लातक मोदक का प्रयोग करें।
मांस धातु की विकृति के कारण यदि मांससैथील्य यानी शरीर में शिथिलता दिखाई देता है जैसे पैरालाइसिस etc.. तो भल्लातक मोदक का प्रयोग अच्छा रहेगा।
हमारे जो पूर्वज थे वह दिन भर मेहनत करते थे मगर हम लोग कुर्सी में बैठकर बुद्धि का अधिक प्रयोग करते हैं ऐसे में कोई ऐसा द्रव्य जो मज्जागामी हो तो उसको प्रयोग करना चाहिए ।
इस खोज को भल्लातक पूरा करेगा। यहां मखाना के पाउडर के साथ भल्लातक मोदक का अच्छा प्रयोग देखा गया है।
Meningitis में भी भल्लातक तेल या मोदक +इमली के पत्ते+रसोंत+वायविडङ्ग को नारियल के दूध में मिश्री मिलाकर अनुपान के रूप में देने से अच्छा फायदा करता है।
आचार्यों का मानना है कि यदि आमबात 1 साल तक का हो तो यहां पर भल्लातक अच्छा काम करता है मगर जब आमबात जिर्ण हो जाता है तो ज्यादातर वातरक्त कि और शरीर चला जाता है ऐसे कंडीशन में भल्लातक हानी कर सकता है।
चाहे बात करें कोरोनावायरस के कारण होने वाली स्वास रोग की या हो अस्थमा सभी में भल्लातक का अच्छा प्रयोग होता है लेकिन बहुत सारे लोग किस रोग में भल्लातक क्षीर का प्रयोग करते हैं मगर इस रोग में
(Semecarpus anacardium ) भल्लातक फूल और मुलेठी को मिलाकर देने से सबसे अधिक फायदा दिखाई देता है।
एलोपेसिया इस रोग में ज्यादातर करंज का तेल प्रयोग करने के लिए बताया जाता है लेकिन यहां जयपाल तेल या विशेषत भल्लातक तेल का प्रयोग कर सकते है। यदि रोगी का उम्र छोटा है तो भलातक के पत्ते को पीसकर शहद में मिलाकर इस रोग में देना चाहिए यह भी अच्छा फायदा करता है। वैसे भी बुलावा के पत्ते को पीसकर उपनाह स्वेद के रूप में प्रयोग किया जाए तो सभी कफावृत वायु में अच्छा काम करता है।
PCOS जैसे कंडीशन में भल्लातक घृत या आषव अच्छा काम करता है। ऐसा बताया जाता है की भीलावे की लकड़ी का bed बनाकर यदि प्रसूता स्त्री को लेटाया जाए तो बहुत अच्छा होता है। क्योंकि सूतीका अवस्था में तीव्र वातवृद्धि होती है उस को कंट्रोल करने के लिए तिव्र वातसामक भल्लातक लकड़ी जैसे द्रव्य उपयोगी रहेगा।
भल्लातक को फोड़ने के बाद अंदर से निकलने वाला सफेद मज्जा 1 भाग
गुग्गुल 3/4 भाग
कुमारी आधा भाग
कूचला 1/4 भाग
इसको पर्पटी विधि से पर्पटी बनाना है अब देखिए इसका इस्तेमाल स्पेसिफिक कहां-कहां करना चाहिए।
1. संधिशूल जन्य संप्राप्ति में इसका प्रयोग करना है। जैसे osteoarsritis, अस्थिशोष,आघातज अस्थि शूल (जैसे बहुत सालों पहले चोट लगा था परिणाम स्वरूप आज उस स्थान में दर्द हो रहा है ऐसी कंडीशन में भल्लातक पर्पटी बेहतर काम करेगा)
भल्लातक पर्पटी बनाने का दूसरा विधि भी उपलब्ध है जिसमें आपको भल्लातक तेल को कढ़ाई में डालकर गर्म करना है उसके ऊपर थोड़ा-थोड़ा करके राल डालते जाना है जब तेल गाढ़ा होने लगे तो डालना बंद करिए काफी देर तक कर करची से उसको चलाते रहिए बाद में केले के पत्ते के ऊपर रोटी जैसा बेलकर सूखने पर पाउडर तैयार करें।
यहां वायविडङ्ग के कपड़छन पाउडर में भल्लातक का दो बूंद तेल डालकर कैप्सूल में भरे और रोगी को खाने को दे उसके दो-तीन घंटे के बाद कोई भी तिक्ष्ण रेचक द्रव्य देने से सारे कीड़े बाहर आ जाते हैं। यह प्रोसेस 6/7 दिन तक कंटिन्यू करनी चाहिए। उसके बाद विडंगारिष्ट कुछ दिन तक चलाते रहें ताकि शरीर में दोबारा क्रीमी उत्पन्न ना हो।
भल्लातक मूत्रसंग्रहणीय कषाय रस,उष्ण विर्य,तिक्ष्ण गुणों के कारण भल्लातक डायबिटीज के प्रारंभिक अवस्था में जो अति मात्रा में मूत्र प्रवृति, क्लेद तथा आम संचित आदि कंडीशन को समाप्त करता है।
भल्लातक क्षीरपाक में विल्वका प्रक्षेप कर रोगी को देना चाहिए। ऐसा देखा गया है सिर्फ भल्लातक क्षीरपाक को आविलमूत्र control करने में 9, 10 दिन लगता है मगर इसी में विल्व चूर्ण का प्रक्षेप करें तो यह 3 दिन तक में रिजल्ट दिखाता है।
श्लीपद को philariasis इस नाम से भी जाना जाता है। यह कफ प्रधान व्याधि है। philariasis चिकित्सा के लिए यहां भी भल्लातक का नया प्रयोग बताया जा रहा है।
१. भल्लातक आषव सुबह-शाम पीने को देना चाहिए
२. नित्यानंदम रस में भल्लातक तेल मिलाकर कैप्सूल में भरे और रोगी को खाने को दे
यदि इससे रिजल्ट ना दिखाई दे तो इसका प्रयोग करें
३. संक्रमित एरिया में भल्लातक को शोधन करके 2 इंची के हिसाब से लगाकर ऊपर से पट्टी बांध देना है यानी कि घुटने के नीचे एक लाइन में पहले भल्ला तक चिपकाकर पट्टी बांधनी है उसके २ इंच नीचे फिर भल्लातक लाइन से लगाकर पट्टी बांधें क्रमशः इस तरह से करते हुए नीचे तक जाए
इसको करने से पहले 2 दिन तक उस जगह में खूब स्वेलिंग दिखती है स्वेलिंग आने के बाद उस जगह में घांव होकर फिर से डिस्चार्ज होता है। यहां रोगी को और चिकित्सक को घबराने की जरूरत नहीं है यह घाव 6/7 दिन तक पकता है उसके बाद ठीक हो जाता है।
यदि घाव बना हुआ है तो 7 दिन के बाद इस योग को देना है
लघु मंजिष्ठादि काढ़ा दे और यदि अमृता गुगुल, त्रिफला गुग्गुल, कैसोर गुग्गुल का प्रयोग करेंगे तो दो-तीन दिन में ही डिस्चार्ज कम होने लगता है और जो स्वेलिंग है वह भी पूरी तरह से नॉर्मल हो जाएगा। कुछ लोग यहां भल्लातक के जगह हरिद्रा भी लगाते हैं।
शोधित भल्लातक 1 भाग
काजू ६ भाग
शहद या गुण 10 भाग
सभी को मिलाकर खूब खरल करे तो यह चटनी जैसा तैयार हो जाएगा। 3 ग्राम तक दिनमें तीन time भल्लातक अवलेह लेना है। - tds दे।
उदर जन्य संप्राप्ति में या धातु क्षयात्मक राजयक्ष्मा या किसी अन्य कारणों से weight loss हो रहा है.मंदाग्नि धातु और जठर दोनों में हो रहा है तो आप रोगी में अग्नि और शारीरिक बल दोनों को बढ़ाने वाली कुछ औषधि ढूंढ रहे हैं तो ऊपर का यह योग अच्छा रहेगा।
भल्लातक तेल 1 भाग
गो घृत 2 भाग
शहद 8भाग
स्वास जन्य संप्राप्ति में यदि कोई अन्य योग काम नहीं कर रहा हो तो इसका योग बालक से बुजुर्ग तक किसी में भी आप कर सकते है इसका परिणाम एकदम जबरदस्त है।
इसका मात्रा 1 से 2 ग्राम ही है यदि बच्चे हैं तो मात्रा बहुत कम होनी चाहिए।
इसका प्रयोग दिन में दो बार सुबह और रात को किया जा सकता है।
भल्लातक को 21 दिन तक गाय के गोबर के रस में डुबोकर रखना है ध्यान देना गोबर का रस रोज परिवर्तन करना होगा। 21 दिन के बाद गोबर से भल्लातक को निकालकर पानी से अच्छी तरह से धो लें
उसके बाद 1 दिन तक खट्टातक्र में इस भल्लातक को डुवोकर ढक कर रखें। एक-दो दिन के बाद यहां से निकालकर पानी से धो छांव में सुखा दे। उसके बाद इस भल्लातक से पॉपकॉर्न जैसा फुलिया तैयार करना है।
इसका प्रयोग प्रतिदिन 1/4 या एक भल्लातक पॉपकॉर्न शुद्ध देसी गाय के दूध के साथ ले सकते हैं। लेनाहै - B.D.
साइकोलॉजिकल स्ट्रेस, स्मृति नास को ठीक करने के लिए यह सर्वोत्तम औषधि है। उन्माद, अपस्मार अतत्वाभिनिवेश आधी कंडीशन में इसका उत्तम प्रयोग रहता है । इस प्रयोग में वाजीकर जैसा कोई चीज नहीं दिखाई देता जैसे कि दूसरे भल्लातक प्रयोग में दिखता है। मगर मस्तिष्क से संबंधित इस प्रकार के समस्या में यह उन दूसरे सभी में उत्तम है।
गुण,चने, नारियल,घृत, भल्लातक popcorn सभी को सम प्रमाण में लेना है सभी को जबरदस्त कुटकुट करके लड्डू तैयार करना है लड्डू का प्रमाण 50 ग्राम है।
हर रोज एक लड्डू खाना है - O.D.|
इसका मुख्य रूप से प्रयोग बलवर्धक, strength वर्धक, वाजीकर, मिर्गी रोग में बुद्धि वर्धक, कोई भी वात व्याधि चिकित्सा के वाद अपूनर्भव चिकित्सा हेतु रसायन चिकित्सा करते हैं तो विशेष करके गृध्रस्री,लक्वा जैसे कंडीशन में इसका प्रयोग करें।
जो लोग office में रहकर दिमागी काम ज्यादा करते हैं उनके मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए यह प्रयोग उत्तम रहेगा इसमें भल्लातक को फोड़ने के बाद अंदर से जो सफेद मज्जा निकलता है उसका शोधन पूर्वक विषम संख्या में घी और शहद मिलाकर खिलाया जाता है।
ग्रंथोंक्त विधि से भल्लातक वर्धमान कर पाना आज के समय में बेहद कठिन है यह जानलेवा साबित हो सकता है इसीलिए आज के समय में संशोधित भल्लातक क्षीरपाक का ही अनुसरण करना होगा।
संशोधित भल्लातकक्षीर पाक 2 तरह से तैयार किया जा सकता है एक तो यदि आप नित्य प्रयोग के लिए भल्लातकक्षीर पाक रोगी को देते हैं तो यहां आप सबसे पहले भल्लातक का शोधन करे रोगी का शरीर शोधन के पश्चात हर रोज आधा या एक शुद्ध भल्लातक को कढ़ाई में डालें वहां एक गिलास दूध एक गिलास पानी डालें और उवाले उबलते हुए अकेला दूध बचेगा इस दूध को रोगी को पिलाना है।
यह दूध पिलाने की विधि यह है कि रोगी के मुंह के अंदर घी लगाना चाहिए उसके बाद इस दूध को पिलाना चाहिए नहीं तो भल्लातक के कारण मुंह में छाले पड़ सकते हैं।
भल्लातक खाने के बाद रोगी को जब भूख लगती है तब साली धान के चावल को पका कर दूध के साथ खिलाना है।
यहां पर वर्धमान क्रम द्वारा रोगी को भल्लातक का प्रयोग करने के बारे में बताया जा रहा है। ग्रंथोंक्त वर्धमान भल्लातकक्षीर पाक आज के समय में असंभव है मेरे हिसाब से एक रोगी को पहले शोधन करके फिर पहले दिन आधा भल्लातक दूसरे दिन एक भल्लातक ऐसे क्रमशः पांच भल्लातक पहुंच कर फिर क्रमशः नीचे आना चाहिए। या रोगी के शारीरिक बल मनोबल देशवल ऋतुवल सभी को विचार करके उसी हिसाब से भल्लातक वर्धमान का decide करें।
भल्लातक रसायन सेवन जिस रोगी के ऊपर किया जा रहा है रसायन सेवन काल से कम से कम 1 महीने पहले से ही रसायन कल्प की तैयारी करनी चाहिए।
1 महीने पहले से ही रोगी को योगासन ध्यान स्वस्थवृत आहार विहार नमक तेल मिर्च मसालेदार चीजों का सेवन सर्वदा त्यागना चाहिए तथा क्रोध आतपसेवन इन सभी चीजों का बहिष्कार करना चाहिए।
उसके बाद क्रमशः शोधन क्रिया के अंतर्गत वमन से लेकर वस्ती चिकित्सा तक कराते हुए जब हेमंत ऋतु प्रारंभ हो जाए तो रोगी को भल्लातकक्षीर पाक रसायन चिकित्सा प्रारंभ कर लेनी चाहिए।
रोगी कृपया आयुर्वेद के बारे में अनजान है तो इस रसायन कल्प का सेवन ना करें आप किसी अच्छे जानकार आयुर्वेदिक चिकित्सक के रेखदेख में यह प्रयोग करें।
विशेष वातें
भल्लातक के ऊपर विदेशों में भी बहुत कुछ रिसर्च किया जा रहा है समय-समय पर प्राप्त जानकारी के अनुसार के माध्यम से आयुर्वेदिक जानकारी दिया जाता है । भल्लातक का प्रयोग ट्यूमर और कैंसर के ऊपर भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के एलर्जी को नष्ट करने मानस तनाव और समस्या को ठीक करने जैसे दुर्जेय अवस्था में भी सफलतम प्रयोग किया जा रहा है आने वाले समय में इसके विषय में और भी बहुत सारे रिसर्च होंगे आयुर्वेद का इसी प्रकार से प्रचार बना रहे यह हमारा आशय है इस पोस्ट में यदि शब्द के माध्यम से कोई त्रुटि हुई है तो उसको सूचित करें आप भी आयुर्वेद के इस रिसर्च व्यवस्था में जुड़ जाइए । धन्यवाद
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जब हम किसी सद्गुरु के चरणों में सरणापन…
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mirgi ke rogi: मिर्गी के रोगियों क…
अगस्ति या अगस्त्य (वैज्ञानिक नाम: Sesba…
भोजन के चरण बद्ध पाचन के लिए जो क्रम आय…
malkangani क्या है:- what is jyot…
अपने हेतुओं से उत्पन्न दोष या व्याधि को…
चरक संहिता को महर्षि चरक ने संस्कृत भा…
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Mirgi की आयुर्वेदिक दवा के रूप में प्…
आरोग्यवर्धिनी वटी: मांसवह स्रोतस और मेद…
Sitopaladi वात वाहिनी नाड़ियों पर…
अगर हम आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से दे…
Introduction
यदि चिकित्सक के पास…