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Daivavyapashraya Chikitsa for Epilepsy, Schizophrenia, and Autism when MRI/CT Reports are Normal – By Vaidya Dronacharya Ji

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आजकल बहुत से मरीज़ ऐसे मिलते हैं जिन्हें बार-बार Epilepsy (मिर्गी के दौरे), Schizophrenia जैसे भ्रम और विचार विकार, या Autism जैसी सामाजिक व व्यवहारिक चुनौतियाँ दिखाई देती हैं। लेकिन MRI, CT Scan या EEG जैसे आधुनिक परीक्षणों में कोई स्पष्ट रोग-कारण सामने नहीं आता।

ऐसे में अक्सर मरीज़ को केवल निद्राजनक (sedative) या anti-epileptic एलोपैथिक दवाएँ देकर लंबे समय तक चलाया जाता है। लेकिन जीवन की गुणवत्ता गिरने लगती है और रोगी व परिवार दोनों असमंजस में रहते हैं।

जब आधुनिक जाँच रिपोर्ट सामान्य हो, लेकिन लक्षण गंभीर हों, तब केवल दवा बदलते रहने से समाधान नहीं मिलता। आयुर्वेदिक दृष्टि से ऐसे रोगों में दैवव्यपाश्रय चिकित्सा – यानी आध्यात्मिक, मानसिक और आचार-आधारित उपचार – के साथ औषधीय सहयोग सर्वोत्तम परिणाम दे सकता है।

आयुर्वेदिक दृष्टि – चरक संहिता के उन्माद और अपस्मार अध्याय

आयुर्वेद में मस्तिष्क और मन के विकारों का वर्णन चरक संहिता – चिकित्सा स्थान में विस्तार से मिलता है। यहाँ उन्माद (mental derangement) और अपस्मार (epilepsy), दोनों के कारण, लक्षण और चिकित्सा-विधियाँ बताई गई हैं।

चरक के अनुसार जब दोष (वात, पित्त, कफ) के साथ-साथ मानसिक कारण, आघात, या अदृष्ट (अदृश्य / आध्यात्मिक) कारण जुड़े हों, तब रोग केवल शारीरिक नहीं बल्कि दैविक भी हो सकता है।

इस विषय पर आप उन्माद चिकित्सा का यह लेख जरूर पढ़ें।

जब MRI/CT सामान्य हो तब सोचने योग्य बिंदु

  • रोग के लक्षण केवल न्यूरोलॉजिकल न होकर मानसिक व आध्यात्मिक स्तर पर भी हो सकते हैं।

  • बार-बार के दौरे, असामान्य हँसी-रोना, भय, भ्रम, या अचानक चेतना खोना – यह सब कभी-कभी अदृष्ट कारणों से भी जुड़ा होता है।

  • ऐसे रोगों में केवल औषधि नहीं, बल्कि दैनिक जीवन, आचार-व्यवहार और आध्यात्मिक चिकित्सा जरूरी होती है।

दैवव्यपाश्रय चिकित्सा – आयुर्वेदिक आध्यात्मिक उपचार

आयुर्वेद में रोग के तीन प्रमुख उपचार बताए गए हैं:

  1. दैवव्यपाश्रय चिकित्सा – आध्यात्मिक और मानसिक शांति देने वाली विधियाँ।

  2. युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा – औषधि, आहार, और पंचकर्म।

  3. सत्त्वावजय चिकित्सा – मन को नियंत्रित करने की विधियाँ।

यहाँ हम विशेष रूप से दैवव्यपाश्रय पर ध्यान देंगे, क्योंकि MRI/CT में न दिखने वाले, लेकिन गहरे मानसिक-आध्यात्मिक लक्षणों में यह अद्भुत परिणाम देता है।


दैवव्यपाश्रय चिकित्सा के प्रमुख अंग

उपाय विवरण
मंत्र जप रोग विशेष के लिए वैदिक मंत्रों का उच्चारण, जैसे महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र।
हवन-यज्ञ शुद्ध वातावरण और मानसिक शांति के लिए।
तप (ध्यान/उपवास) मानसिक एकाग्रता व दोष शमन हेतु।
मंगलकर्म ग्रहदोष शांति, शुभ कार्य, दान-पुण्य।
रत्न धारण कुंडली व ग्रह स्थिति अनुसार।
देवपूजन व तीर्थस्नान मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि।

अक्सर एलोपैथिक उपचार में रोगी को निद्राजनक दवाएँ या anti-epileptic drugs दी जाती हैं, जिससे केवल लक्षण दबते हैं, लेकिन मूल कारण पर असर नहीं होता। धीरे-धीरे रोगी का आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता कम होने लगती है।

आयुर्वेद में इस प्रकार की स्थिति का गहन वर्णन चरक संहिता –चिकित्सा स्थान में उन्माद और अपस्मार अध्यायों में किया गया है, जहाँ शारीरिक और मानसिक कारणों के साथ-साथ अदृष्ट (दैविक) कारणों को भी मान्यता दी गई है।

जब MRI/CT सामान्य हो तब आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद के अनुसार कुछ रोग केवल मस्तिष्क या तंत्रिका तंत्र तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे मन, आत्मा और अदृश्य शक्तियों से भी जुड़े हो सकते हैं।
ऐसे रोगों में लक्षण निम्न प्रकार हो सकते हैं –

  • बार-बार अकारण बेहोशी या झटके आना

  • अचानक हँसी या रोना शुरू हो जाना

  • भय, भ्रम, असत्य धारणाएँ

  • नींद का अत्यधिक आना या बिल्कुल न आना

  • सामाजिक दूरी बनाना और चिड़चिड़ापन

यदि आधुनिक रिपोर्ट सामान्य है, लेकिन लक्षण लगातार बने हुए हैं, तो आयुर्वेद में इसे दैविक कारण से उत्पन्न रोग मानकर दैवव्यपाश्रय चिकित्सा का सुझाव दिया जाता है।

दैवव्यपाश्रय चिकित्सा – vaidya dronacharya ji की परंपरागत विधि

गुरु-परंपरा से प्राप्त इस दुर्लभ चिकित्सा विधि में आयुर्वेद और वैदिक अनुष्ठान का अद्भुत संगम है।
इसमें रोगी के लिए विशेष देव-मंडल स्थापना की जाती है:

  • मध्यभाग – भगवान धन्वंतरि की स्थापना

  • चारों कोने – शक्ति, शिव-पार्वती, भगवान विष्णु, और अश्विनी कुमारों की प्रतिष्ठा

इसके बाद पाँच ब्राह्मण मिलकर निम्न वैदिक पाठ करते हैं:

  • श्रीमद्भागवत मूलपाठ

  • दुर्गा सप्तशती

  • रुद्री पाठ

  • शनि महामृत्युंजय मंत्र

साथ ही, रोगी की जन्म पत्री देखकर विंशोत्तरी दशा में जो ग्रह वर्तमान में चल रहा हो, उसकी विशेष वैदिक पूजा भी की जाती है।


विशेष कलश और औषधि-जल

पूजन में तीन प्रमुख कलश स्थापित होते हैं:

  1. रुद्र कलश

  2. वरुण कलश

  3. अमृत कलश

इनमें अनेक दुर्लभ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ और विभिन्न तीर्थों का पवित्र जल डाला जाता है।
इन कलशों के सामने सात दिन तक विधिपूर्वक पूजा की जाती है।


अनुष्ठान से पहले और बीच की विशेष विधियाँ

  • पहले दिन – रोगी का अवभृत स्नान कराया जाता है।

  • आवश्यकता अनुसार रोगी का आयुर्वेदिक पंचकर्म द्वारा शोधन भी किया जाता है, ताकि शरीर दोषमुक्त होकर अनुष्ठान का लाभ अधिकतम ले सके।

  • अनुष्ठान के दौरान ही रोगी को एक वर्ष तक प्रदोष व्रत का संकल्प कराया जाता है।

  • एक वर्ष तक समन चिकित्सा के अंतर्गत विशिष्ट रसायन और औषधियाँ दी जाती हैं।


परिणाम और अनुभव

vd, Dronacharya ji {About vd, dronacharya ji } ने इस विधि से अब तक अनेक अत्यंत जटिल और असंभव माने जाने वाले रोगियों को स्वास्थ्य लाभ दिलाया है — विशेषकर वे मरीज, जिनके रोग का कारण आधुनिक विज्ञान नहीं समझ पाया।
यह चिकित्सा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मन, आत्मा और अदृश्य कारणों को संतुलित कर रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य की ओर ले जाती है।


आज क्यों लुप्त है यह विधि?

कारण स्पष्ट है —

  • जो आयुर्वेद जानते हैं, वे देव-पूजन की इस विधि से अनजान हैं।

  • और जो देव-पूजन की गहन विधि जानते हैं, वे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से दूर हैं।

यही कारण है कि यह अमूल्य चिकित्सा पद्धति समाज से लगभग विलुप्त हो चुकी है।
लेकिन गुरुजी के आशीर्वाद से, विद्या द्रोणाचार्य जी इस परंपरा को जीवित रखकर रोगियों की सेवा कर रहे हैं।


यदि आपकी रिपोर्ट सामान्य है, लेकिन लक्षण गंभीर हैं…

तो यह लेख आपके लिए है।
यदि आप या आपका कोई प्रियजन ऐसे रोग से जूझ रहा है, जिसमें MRI/CT में कुछ नहीं दिखता, लेकिन लक्षण लगातार हैं, तो आयुर्वेद और दैवव्यपाश्रय चिकित्सा के इस दुर्लभ संगम से समाधान संभव है।

 

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