Vishaghna Mahakashaya:- विषघ्न महाकषाय कैंसर में कीमोथेरेपी के बाद दिया जाने वाला बेहतरीन आयुर्वेदिक दवाई है। विषघ्न महाकषाय आज के समय में आयुर्वेद का सबसे बेहतरीन कंपोजीशन है। आज के समय में हर कोई व्यक्ति अधिक उत्पादन पाने के चक्कर में भयंकर जहरीले वस्तुओं का अधिक सहारा ले रहे हैं
विषघ्न महाकषाय आज के समय में आयुर्वेद का सबसे बेहतरीन कंपोजीशन है। आज के समय में हर कोई व्यक्ति अधिक उत्पादन पाने के चक्कर में भयंकर जहरीले वस्तुओं का अधिक सहारा ले रहे हैं। विषघ्न महाकषाय वह तलवार है जिसके माध्यम से हम शरीर में जमे हुए हर तरह के जहर को शरीर से बाहर निकाल सकते हैं। इतना दिव्य अमृतमय चरकोक्त रसायन विषघ्न महाकषाय के ऊपर संपूर्ण जानकारी रखना आप के लिए बहुत जरूरी है।
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हरिद्रा, मंजिष्ठा, रास्ना, इलायची, निसोथ , चंदन,निर्मली, शिरीष, निर्गुण्डी, लिसोड़ा
हरिद्रा
हरिद्रा रक्त स्तम्भन, मूत्र रोग, गर्भाशय, प्रमेह, त्वचा रोग, और वात-कफ़ से संबंधित रोगों में प्रयोग किया जाता है। यकृत की वृद्धि में इसका लेप किया जाता है। नाड़ी शूल के अतिरिक्त पाचन क्रिया के रोगों अरुचि (भूख न लगना) विबंध, कमला, जलोधर व कृमि में भी हरिद्रा दिया जा सकता है।
मंजिष्ठा
मंजिष्ठा मधुरा तिक्ता कषाया स्वरवर्ण कृत |
गुरु रुक्ष विषश्लेष्मशोथोयोन्यक्षीकर्णरुक |
रक्तातिसारकुष्ठस्त्रवीसर्पवर्णमेहनुत ||
भावप्रकाश निघंटु।
रस – (मधुर, तिक्त, कषाय ), गुण –( गुरु, रुक्ष) विपाक – (कटु ) वीर्य – उष्ण प्रकृति वाला होता है मंजिष्ठा।
मंजिष्ठा रक्तातिसार, शोथ, योनी, अक्षि, कान के विकार, कुष्ठ, विसर्प, व्रण, मेह एवं मूत्रकृच्छ जिनमें मंजिष्ठा बहुत अच्छा काम करता है।
रास्ना
रास्ना नाम के इस औषधि में ढेर सारे आयुर्वेदिक गुण होते हैं। रास्ना औषधि से अर्थराइटिस का दर्द भी दूर होता है और ये कब्ज की समस्या दूर करने में भी फायदेमंद मानी जाती है। रास्ना से योनि में होने वाले दर्द, कमर के दर्द, किडनी की समस्या दूर होती है।
इलायची
दोष - त्रिदोषहर (रस- कटु, मधुर) गुण- लघु'रुक्ष
वीर्य- शीत (विपाक- मधुर)
अन्य- मुखशोधन, दुर्गन्धनाशन, रेचन, दीपन,पाचन, अनुलोमन
इलायची यह मस्तिक्ष को शांत करने में समर्थ हैं। हालांकि इसे त्रि-दोषीय (सभी दोषों के लिए संतुलन) माना जाता है। यह पेट और फेफड़ों में कफ को कम करने में मदद करता है और वात को शांत करता है।
निसोथ
आयुर्वेदिक मत से निसोथ मधुर, रूखी, तीक्ष्ण, वातजनक, कसेली,तिक्त, कटुपाकी,रेचक तथा मलस्तम्भक, संग्रहणी, कफोदर, सुजन, पांडुरोग, कृमि, प्लीहा ज्वर, पित्त, कफ, वातरक्त, उदावंत और ह्रदयरोग को हरने वाली है।
निसोथ मस्तिष्क, आमाशय, यकृत और गर्भाशय में जमे हुए कफ को पतला करके दस्त की राह निकाल देती है। फालिज, लकवा और संधिवात में भी इसको दिया जाए तो अच्छा है।
चंदन
पित्तास्त्रविषतृड्दाहकृमिघ्नं गुरु रूक्षणम्।
सर्वं सतिक्तमधुरं चन्दनं शिशिरं परम् ॥ ® ॥
व्याख्या :-
इस श्लोक में कहा गया है कि चन्दन रक्त प्रवाह
को संतुलित रखने वाला, विष का असर खत्म करने वाला,
सूजन को कम करने वाला, जले को ठीक करने वाला,
संक्रमण को दूर करने वाला, भारी और रुखा होता है । चन्दन कड़वे, मीठे और बहुत ठंडा होते है।
निर्मली
निर्मली का इस्तेमाल पीलिया, सिर से जुड़ी बीमारियां, एनीमिया, रक्तस्राव और जहर उतारने के लिए भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं निर्मली उल्टी, डायबिटीज, वात दोष, सूजन, घाव या कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार निर्मली में एंटी -डायबिटिक गुण पाया जाता है जो की मधुमेह (डायबिटीज) के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। इसके लिए 1-5 ग्राम निर्मली बीज को छाछ के साथ पीसकर, शहद मिला लें। इसका सेवन करने से सभी प्रकार के डायबिटीज में फायदा मिलता है। सभी प्रकार के जहर को नष्ट करने का गुण निर्मली में रहता है।
शिरीष,
शिरीष का छाल, फूल, पत्ते, जड़, तेल, बीज व फलियाँ अत्यंत कड़ुवे होते हैं। तथा खुजली, कुष्ठरोग, त्वचा दोष, दमा, नेत्र विकार, रुधिर विकार, खाँसी, कीट-दंश, सूजन, दन्त-विकार, कब्ज, सिरदर्द, काम-रोग आदि अनेकानेक बीमारियों का अचूक उपचार हैं।
शिरीष शरीर मे कहीं भी गांठ हो, उसको गला देता है। शरीर के नसों में जमा हुआ खून पतला कर देता है। चर्म रोग ठीक करता है। उच्च रक्तचाप या हाई-बीपी को ठीक करता है। इससे कैंसर की गांठ भी ठीक हो जाती है।
निर्गुण्डी
आयुर्वेदक मतानुसार निर्गुण्डी रस मे कटु, तिक्त, गुण में लघु, रुक्ष तासीर आ में गर्म, विपाक में कटु, वात, कफ शामक होती है। यह ज्वर, कृमि, शोथ, वेदना, आमवात, कुष्ठ, सिर दर्द, साइटिका, मूत्राघात, खुजली, बलवृद्धि हेतु, नेत्र रोग, स्त्री दुग्ध वृद्धि हेतु, खांसी, अजीर्ण, मस्तिष्क की दुर्बलता, शिश्न दौर्बल्यता एवं सौंदर्यवर्द्धन हेतु गुणकारी है।
निर्गुन्डी वात, कफ नाशक होती है और सूजन को कम करती है। यह पाचन वर्धक, यकृतउत्तेजक और कृमि नाशक होती है। इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए महिलाओं के मासिक धर्म में उपयोग की जाती है। साइटिका, मूत्राघात में इसका उपयोग किया जाता है।
लिसोड़ा
लिसोड़ा पेट और सीने को नर्म करता है और गले की खरखराहट व सूजन में लाभदायक है। यह पित्त के दोषों को दस्तों के रास्ते बाहर निकाल देता है और बलगम व खून के दोषों को भी दूर करता है। यह पित्त और खून की तेजी को मिटाता है और प्यास को रोकता है। लसोहड़ा पेशाब की जलन, बुखार, दमा और सूखी खांसी तथा छाती के दर्द को दूर करता है। इसकी कोपलों को खाने से पेशाब की जलन और सूजाक रोग मिट जाता है। यह कडुवा, शीतल, कषैला, पाचक और मधुर होता है। इसके उपयोग से पेट के कीड़े, दर्द, कफ, चेचक, फोड़ा, विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) और सभी प्रकार के विष नष्ट हो जाते हैं। इसके फल शीतल, मधुर, कड़वे और हल्के होते हैं। इसके पके फल मधुर, शीतल और पुष्टिकारक हैं, यह रूखे, भारी और वात को खत्म करने वाले होते हैं।
विषघ्न महाकषाय के जड़ी बूटियों के ऊपर जो हमने विश्लेषण किया मुख्य रूप से उन सभी का आयुर्वेदिक गुणधर्म देखने पर ऐसा लगता है कि यह सब जड़ी बूटियां शरीर में सुजन नाशक, तिक्त रस होने से अग्नि वर्धक कफ नाशक, कुछ मंजिष्ठा और चंदन जैसे औषधि भी है जो कि रक्त को शुद्ध भी करता है। यह सभी मिलकर शरीर के सभी कोशिकाओं में स्थित जहर को नष्ट करने के लिए कार्य करेंगे।
विषघ्न महाकषाय के अंदर विद्यमान जो जड़ी बूटियां है वह विष नाशक है यह तो बात हो चुकी है अब हम यह समझने का प्रयास करेंगे की विषघ्न महाकषाय क्या किसी जहरीले रेडिएशन को भी नष्ट कर सकता है क्योंकि अगर ऐसा हो तो प्रकृति में पनपने वाली सभी प्रकार के जहरीले रेडिएशन से हम बच सकते हैं।शिरीष का वृक्ष यह हमारे इस दुनिया का सबसे बड़ा आयुर्वेदिक धरोहर है। क्योंकि यह वातावरण में स्थित रेडिएशन को नष्ट करने में प्रभावकारी असर देता है। वैसे आयुर्वेद कीक् अनदेखी के कारण अभी तक शिरीष के वृक्ष किस हद तक रेडिएशन को नष्ट कर सकता है इसके ऊपर पर्याप्त रिसर्च नहीं हो पाया है। आप्त बचन ही इस बात का पर्याप्त सबूत है की शिरीष का वृक्ष रेडिएसन को नष्ट करता है। इसी कारण से विषघ्न महाकषाय में शिरीष का वृक्ष भी एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी के रूप में विद्यमान है।
आज के समय में मधुमेह यानी डायबिटीज भी बहुत बड़ा समस्या है। मधुमेह के कारण हजारों लोग हर रोज अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। मधुमेह होने के बाद मधुमेह के बढ़ते प्रभाव से शरीर में एक प्रकार का जहर उत्पन्न होता है और जो कि अपान क्षेत्र में ही अपान वायु उस जहर को खींचकर कलेक्शन करता रहता है। (इसीलिए बहुधा पैरों में बड़े-बड़े घाव फोड़े फुंसी) जो उसी विषाक्त पदार्थों का परिणाम स्वरुप होता है। यही फोड़ा बाद में नासूर का रूप ले लेता है और इंसान को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है। एसे सिचुएशन में विषघ्न महाकषाय बहुत उत्तम काम करता है।
विषघ्न महाकषाय उस घाव में स्थित संपूर्ण जहर को अवशोषण करके नस्ट करता है।
कैंसर रोगियों के लिए जब रेडिएशन दिया जाता है यानी कीमोथेरेपी किया जाता है। तो अक्सर कीमोथेरेपी रेडिएशन के कारण कैंसर के रोगी शारीरिक रूप से टूट चुके हुए रहते हैं। उनके शरीर में डब्ल्यूबीसी आरबीसी दोनों ही एक बार नष्ट हो चुके हुए रहते हैं। एक रिपोर्ट के आधार पर मैंने यह भी पढ़ा था की कीमोथेरेपी करने के बाद व्यक्ति के शरीर में जिन्न से आया हुवा पारिवारिक डीएनए तक भी नष्ट हो जाता है। इतना जहरीला होता है कीमोथेरेपी।
कीमोथेरेपी करने के बाद यदी विषघ्न महाकषाय दिया जाए तो निश्चित है कीमोथेरेपी के कारण आए हुए शारीरिक कमजोरी तथा उस रेडिएशन के जहर को विषघ्न महाकषाय कुछ ही समय के बाद तुरंत नष्ट अवश्य कर देगा।
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