Varnya Mahakashaya वर्ण्य महाकषाय से संबंधित एक गम्भीर अंशांश परिकल्पना - Varnya dravya क्या है और Varnya dravya का आयुर्वेदिक गुणधर्म सहित वर्ण्य महाकषाय का समग्र रूप से यह किस प्रकार शरीर में कार्य रहता है तथा वर्ण्य महाकषाय किन किन परिस्थितियों में प्रयोग किया जा सकता है इन सभी विषयों के ऊपर आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे साथ में वर्ण्य महाकषाय के साथ किन दूसरे महाकषायों का संयोग किया जाए तो किस तरह का योग बनता है । और उससे वनने वाली दवाइयां कौन-कौन सी व्याधियों में प्रयोग किया जा सकता है इसके ऊपर भी चर्चा करेंगे।
वर्ण्य महाकषाय के ऊपर चर्चा करने से पहले हमें यह जानना तो जरूरी है की वर्ण्य शब्द का अर्थ क्या है यानी सरल हिंदी भाषा में वर्ण्यका मतलब क्या हो सकता है।
वर्ण्य का अर्थ क्या है?(Varnya Mahakashaya)
वर्ण्य इस शब्द का अनेकानेक अर्थ है मगर आयुर्वेद की भाषा में वर्ण्य का सीधा सा अर्थ होता है निखार। वर्ण्य का सीधा सा अर्थ निखार इसीलिए है क्योंकि वर्ण्य किसी एक रंग मात्र का नाम नहीं है। सात प्रकार के जो रंग है उन रंग से शरीर के रूप का निर्माण हुआ है यह रंग अलग-अलग परिस्थितियों मे दिखाई देता है जैसे बाल सफेद होना यह बाल का सफेद रंग है। बाल काला होना यह भी वालों का काला रंग है। कभी-कभी बाल पीला भी होता है यह भी बाल का एक रंग है। कहीं नीला कहीं हरा या कुछ और तरीका से शरीर में रंग का समय-समय पर व्याधि विशेष पर रंगों का निर्धारिकरण होता है । लीवर में से निकलने वाली रंजक पित्त ही इन तमाम तरह के रंग और उसके शरीर में कंपोजीशन को तय करने का कार्य करता है।
यानी शरीर का जो ऑटो इम्यून सिस्टम है वह निरंतर वर्ण्य का निर्धारित सफलतापूर्वक करता हैं। धातु पाक और अवस्थापाक के संदर्भ में शरीर हर प्रकार का पाचक द्रव्य लगभग लीवर से ही उत्पादन करता है। अब इससे उधर हम अगर अवस्थापाक की तरफ जाएंगे तो इस वक्त विषयांतर हो जाएगा इसीलिए साधारण भाषा में समझे तो लिवर ही सभी प्रकार के रंग का निर्माण करने में अहम भूमिका अदा करता है। क्योंकि निष्ठापाक या अवस्थापाक के बाद ही शरीर मे रंग का उत्सर्जन होता है।
इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि इस शरीर के लिए चरक ने जो वर्ण्य महाकषाय के बारे में बताया है या उसके गुण धर्म के बारे में बताया है ऑलरेडी शरीर में पहले से ही वह कार्य चल रहा होता है उसी निष्ठा पाक की व्यवस्था में असंतुलन पैदा होने और वर्ण्य कार्य की व्यवस्था में असंतुलन पैदा होने से रूप में भिन्नता आजाती है।
सीधी सी बात है चेहरे का जो प्राकृत् सौंदर्यता है वह कम पड्ना शुरू हो जाएगा। चरक मुनि कहते हैं ऐसी स्थिति में वर्ण्य महाकषाय वर्ण्य के उस बिगड़ते हालात को सुधारने में अहम भूमिका अदा करता है क्योंकि जीस प्राकृत रसायन की कमी से ऐसा कुछ हो रहा था उसकी पूर्ति औषधद्रव्य के रूप में वर्ण्य महाकषाय कर देता है।
Which Ayurvedic medicine is best for glowing skin?
आज के समय में लोग सौंदर्य प्रसाधन के लिए बहुत अधिक खर्च कर रहे हैं। विदेशी कंपनियां सौंदर्य प्रसाधक औषधि के रूप में तरह तरह के जहरीले केमिकल के साथ बाजार में उतर कर तहलका मचा रही है। जिस प्रकार कीचड़ के अंदर फंसा हुआ पैर को जितना उठाने का प्रयास करते हैं वह पैर उतना ही अंदर चला जाता है कूछ इसी तरह अपने ठिक ठाक सी चेहरे को चमकाने के चक्कर में लोग अपने चेहरे का और ज्यादा सत्यानाश कर देते हैं।
जो खाए वह पछताए जो न खाए वह भी पछताए वाली बात जिसने लगाया वह हाय तौबा कर रहें है। जिसने नहीं लगाया वह कभी गूगल में कभी फेसबुक में कभी यूट्यूब में इन विदेशी कंपनियों का विज्ञापन पढ़ते रहते हैं।
इसीलिए अब समय आ गया है हिंदुस्तान का धरोहर कहे जाने वाले आयुर्वेदिक विषयों के ऊपर गौर करें। चरक ऋषि के कहे वचनों को हृदयांगम् करके कम से कम एक बार इस चरक महाकषाय मैं वर्णित वर्ण्य महाकषाय के ऊपर विश्वास करके तो देखो। अरे भाई वर्ण्य महाकषाय के उन 10 प्रकार के जड़ी बूटियों को अगर आप खरीदने जाओगे तो लगभग 20 रुपए में 1 महीने की दवाई तैयार हो सकता है ।
सस्ता में महा सस्ता और काम ऐसा कि कोई और कभी कर ही नहीं सकता ऐसे दिव्य रसायन के बारे में विस्तार से जरूर आपको जानकारी प्राप्त करना चाहिए।
वर्ण्य महाकषाय किस तरह से कार्य करता है।(varnya Mahakashaya)
अव आपके मन में भी यही विचार आ रहा होगा की वर्ण्य महाकषाय हे क्या चीज और किस तरह शरीर में काम करता होगा तो आइए जरा इसके ऊपर भी कुछ चर्चा करते हैं।
जैसे की हम ऊपर बताते आचले हैं की शरीर में वर्ण्य का व्यवस्था लीवर करता है जहां से रंजक पित्त ही मल रूप में उत्पन्न होता है और संपूर्ण शरीर में बल, वर्ण्य, और शक्ति का संचार करने में अहम भूमिका अदा करता है। इसका मतलब साफ है की पित्त ही शरीर में वर्ण्य व्यवस्था में अहम भूमिका अदा करता है। जब भी कभी शरीर में पित्त वृद्धि या क्षय होगा तो निश्चित ही वर्ण्य की व्यवस्था में खराबी आएगी क्योंकि पित्त ही वर्ण्य को सुनिश्चित करता है। यही भाव सभी आचार्यों ने भी रखा है इसीलिए सभी वर्ण्य महाकषाय के जड़ी बूटियां पित्त सामक है। तो चलिए देखते हैं वर्ण्य महाकषाय मे कौन-कौन सी जड़ी बूटियां है और उनका द्रव्य गुण विज्ञान के आधार पर किस तरह से ऋषियों ने व्याख्यान किया हुआ है।
How to get with Ayurvedic varnya Mahakashaya ?
चंदन
वर्ण्य महाकषाय में प्रयोग किया जाने वाला प्रथम आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है चंदन। आयुर्वेदिक ग्रंथों में चंदन को लघु, रुक्ष ,कटु, शीत वीर्य,कफ पित्त शामक,ग्राही ,सौमनस्यजनक, मेध्य, मस्तिष्क को बल देने वाला, रक्त सोधक, मूत्र मार्ग के लिए शोथ प्रशमन, मूत्रल, विषघ्न, आमाशय और लीवर के लिए बल प्रदान करने वाला, अंगमर्दप्रसमनोपग आदि गुणों से पोषित है चंदन।
वर्ण्य महाकषाय मी चंदन अपने लघु रूक्ष कटु गुणों से पित्त में स्थित कफ के परमाणुओं को विखंडन करता है चंदन में शीत वीर्य होने से शरीर में शीतलता भी देता है। अपने गुणों से वर्ण्य का प्रसाधन करेगा।
नागकेसर
वर्ण्य महाकषाय का दूसरा औषधि है नागकेसर नागकेशर कसैला, पचने पर कटु, तीखा, गर्म, लघु, रूक्ष, कफ-पित्तशामक, वीर्य -उष्ण, आमपाचक, व्रणरोपक तथा सन्धानकारक होता है। नाग केशर कडवी, कसैली, आम पाचक, किंचित गरम, रुखी, हल्की तथा पित, वात, कफ,रुधिर विकार, कंडू (खुजली), हृदय के विकार, पसीना, दुर्गन्ध, विष, तृषा, कोढ़, विसर्प, बस्ती पीड़ा एवं मस्तकशूल को समाप्त करने वाली होती है। यह गर्मी का विरेचन करता है, तृषा, स्वेद (पसीना), वमन (उल्टी), बदबू, कुष्ठ, बुखार, खुजली, कफ, पित्त और विष को दूर करता है। नागकेसर के इन्हीं गुणों के वजह से वर्ण्य महाकषाय मैं इसको स्थान मिला है। नागकेसर वर्ण्य महाकषाय के दूसरे औषधियों के साथ मिलकर व्यक्ति के
अवभासिनी, लोहित, श्वेता, ताम्र, वेदिनी, रोहिणी, माम्सधरा। ये त्वचा के सात परत है इसकी सफाई करता है।
पद्मक
पद्मक भी वर्ण्य महाकषाय का अति महत्वपूर्ण इनग्रेडिएंट्स है इसका रस-कसाय,तिक्त। विपाक- कटु वीर्य- शीतल गुण-लघु, स्निग्ध विशिष्ट भाग: छाल,विज,गुदा। दोषघ्नता : कफ-पित्तघ्न
श्लोक:
पद्मकं शिशिरं स्निधिं कषायं रापित्त नुट
भ्रूणस्थैर्यकरं प्रोक्तं जवरच्छ्रुडीविषापहम
मोहदाहज्वरभ्रांति कुष्ठविस्फोटशान्तिकृत
उशीर
शरीर और दिमाग पर इसके शीत प्रभाव के कारण यह भारत में "कूलिंग हर्ब" के रूप में प्रसिद्ध है। पित्त शामक होने से और तीव्र गर्मी से राहत के लिए, गर्मी के मौसम में, शर्बत और अन्य पेय के रूप में इसका उपयोग होता है। यह एक उपयुक्त रक्त शोधक भी है जो विषाक्त पदार्थों को हटाता है, अतिरिक्त पानी को नियंत्रित करता है।
उशीर, एसिड उत्पादन और गैस्ट्रिक स्राव को नियंत्रित करके पाचन में सुधार करता है, बुखार को कम कर, उचित शरीर तापमान बनाए रखने में मदत करता है। त्वचा के लिए भी यह फायदेमंद है और इसे एक प्राकृतिक चमक देता है।
यह उपयुक्त औषधी, सांस की बीमारियों, मांसपेशियों और जोड़ों में सूजन जैसी विभिन्न पुरानी बीमारियों के इलाज में भी सहायक है।
जड़ का पेस्ट या वाइटिव आयल का बाहरी रूप से जलन, घाव को ठीक करने और त्वचा के रोगों में उपयोग किया जाता है।
मधुयष्टि
यष्टि हिमा गुरु: स्वाद्वी चक्षुष्या बलवर्णकृत |
सुस्निग्धा शुक्रला केश्या स्वर्या पित्तानिलास्त्रजित ||
व्रणशोथ विषच्छर्दीतृष्णाग्लानीक्षयापहा ||
भा.नि. हरित्क्यादी वर्ग
रस – मधुर गुण – गुरु, स्निग्ध वीर्य – शीत विपाक – मधुर
यह रसायन एवं वृष्य देने वाली जड़ी – बूटी है | शीत वीर्य और मधुर रस होने के कारण पित्त एवं दाह का शमन करती है | रसधातु का वर्द्धन, रक्त का प्रसादन, रक्तगत पित्त का शमन करके रक्त धातु की वृद्दि करती है | अपने इन्ही गुणों के कारण वृष्य माना जाती है |
इसके चूर्ण को घी या शहद के साथ चाटने से पुरुषों में शुक्र की वृद्धि होती है |
मंजिष्ठा
मंजिष्ठा मधुरा तिक्ता कषाया स्वरवर्ण कृत |
गुरुरुक्षना विषश्लेष्मशोथोयोन्यक्षीकर्णरुक |
रक्तातिसारकुष्ठस्त्रवीसर्पवर्णमेहनुत ||
भावप्रकाश निघंटु (हरितक्यादी वर्ग)
इसके रस में मधुर, तिक्त, कषाय, गुण में भारी, तासीर में गर्म, विपाक में कटु, विष, कफ और शोथनाशक होती है। यह प्रमेह, रक्तविकार, आंख और कान के रोग, कुष्ठ, रक्तातिसार, पेशाब की रुकावट, वात रोग, सफ़ेद दाग, मासिक धर्म के दोष, चेहरे की झाई, चर्म रोग, पथरी, आग से जलने में गुणकारी है।
यह बूटी रक्तप्रसादन का कार्य करती है | यह अपने तिक्त, कषाय एवं मधुर रस के कारण खून की खराबी को ठीक करने का कार्य करती है | यह रक्त में उपस्थित सभी तीनो दोषों का हरण करती है | साथ ही रक्तगत विष का शोधन भी करती है | रक्तगत विष से अभिप्राय खून में उपस्थित गंदगियाँ |
सारिवा
आयुर्वेदिक मत से अनन्तमूल शीतल, मधुर, शुक्र जनक, भारी, स्निग्ध, कड़वी, सुगंधित तथा कोढ, कंडू, ज्वर, देह की दुर्गंध मन्दाग्नि, श्वास, खांसी, अरुचि, त्रिदोष, विष, रुधिर विकार, प्रदर रोग, कफ, अतिसार, तृषा, दाह, रक्तपित्त और वात को हरने वाली होती है।
अनन्तमूल मूत्र विरेचक, पसीना लाने वाली, क्षुदावर्धक, धातु परिवर्तक, बलकारक, रक्तशोधक और चरम रोग नाशक होती है। इसका मूत्र विरेचक धर्म बहुत स्पष्ट और उत्कृष्ट होता है। इसकी फांट बनाकर देने से पेशाब की मात्रा दोगुनी-चौगुनी हो जाती है और उस से मूत्र पिंड को कुछ भी वेदना नहीं होती। इसका पसीना लाने वाला धर्म साधारण होने पर भी उपयोगी होता है। इसका जीवन विनियम क्रिया को उत्तेजना देने का धर्म बहुत मूल्यवान होता है और इसका क्षुदावर्धक धर्म मध्यम दर्ज का होता है। गिलोय के साथ इस को मिलाकर देने से इसके गुण बढ़ जाते हैं।
क्षुधानाश और अपचन रोग में अनन्तमूल को देने से आमाशय की शक्ति बढ़ती है रोगी को भूख लगती है और अन्न भली प्रकार पचता है।
बालकों के लिए यह वनस्पति अमृत के समान है इसको बायबिडंग के साथ देने से मरणोन्मुख बच्चे भी नवजीवन पा जाते हैं।
विदारीकंद
विदारीकंद मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रवर्धक, स्तन्यवर्धक, वृंहण, मूत्रल, बलकारक, वर्ण्य, वाजीकर, दाह प्रशमन एवं रसायन है। यह मृदु स्नेहक, रेचक, वामक, हृद्य, परिवर्तक, निसारक एवं ज्वरघ्न है। इसके कंद तथा पुष्प में वाजीकारक गुण देखा गया है।
सफेद दूव
सफेद दूर्वा-कड़वी, मधुर, तीखी, शीतल गुण वाली तथा कफपित्त दूर करने वाली होती है। यह व्रण या घाव के लिए हितकर जीवनीशक्ति बढ़ाने वाली, खाने में रुची बढ़ाने वाली; आमातिसार या दस्त, खाँसी, जलन, प्यास, उल्टी, रक्तपित्त तथा विसर्प या हर्पिज़ में फायदेमंद होती है।
काला दूव
यह दाह शामक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदन, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोग, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है। कृष्ण दूर्वा कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक उदय रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है।
कुल मिलाकर वर्ण्य महाकषाय में डाले जाने वाले संपूर्ण 10 जड़ी बूटियों का आयुर्वेदिक गुणधर्म देखने से पता चलता है कि यह पित्त शामक के रूप में कार्य करेगा या पित्त मैं होने वाली कफ के आवरण को नष्ट करेगा तथा त्वचागत सभी विकारों को समन करेगा वर्ण्य महाकषाय रंजक पित्त निर्माण में अहम भूमिका निभाते हुए भ्राजक पित्त को बल देने का कार्य करता है।
वर्ण्य महाकषाय के सभी जड़ी बूटियों को देखने पर ऐसा लगता है कि यह भ्राजक पित्त को कंट्रोल करने के लिए चरक मुनि ने निर्माण किया है।
विसर्प रोग के लिए कंपोजिशन
वर्ण्य महाकषाय और दाहप्रशमन महाकषाय इन दोनों को मिलाकर विसर्प रोग में देना चाहिए।
त्वचा विकार के लिए कंपोजिशन
कण्डुघ्न + कुष्ठघ्न के साथ वर्ण्य महाकषाय को मिलाकर देने से त्वचा विकार मे आराम मिलता है।
रक्तपित्त के लिए कंपोजिशन
रक्तपित्त मे दाहप्रशमन और वर्ण्य महाकषाय मिला कर देना चाहिए।
कुष्ठ रोग के लिए कंपोजिशन।
कुष्ठघ्न कण्डुघ्न और वर्ण्य महाकषाय इन तीनों को मिलाकर देने से कुष्ठ रोग समूल नष्ट हो जाता है।
अर्श के लिए कंपोजिशन
अर्शोघ्न दाहप्रशमन वर्ण्य महाकषाय इन तीनों को मिलाकर बवासीर रोगी को देना चाहिए।
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