Swedopag mahakashaya स्वेदोपग महाकषाय kidney dialysis करने वालों के लिए अमृत है | स्वेदोपग महाकषाय स्वेदोपग कर्म करने के लिए है। आप ने यह स्वेदोपग महाकषाय पढ़ने से पहले स्नेहोपग महाकषाय के उपर लिखा गया मेरे पोस्ट को तो जरूर पढ़ा होगा यदि हां तो उस स्नेहोपग महाकषाय को पढ़ते ही आपको इस स्वेदोपग महाकषाय जरूर पढ़ लेना चाहिए। क्योंकि चरक ने इन दोनों को क्रमशः ही रखा है।
आज के समय में अनेक प्रकार के केमिकल युक्त आहार से शरीर में एक ऐसा प्रोटीन का लेयर तैयार होता है जिसके कारण स्रोतोरोध होकर नाना प्रकार के कफ दोष से संबंध रखने वाला या वात वाहिनी नाडियों को अवरोध पैदा करके व्याधि को प्रकट करने वाले बहुत सारे समस्या देखे जाते हैं।
बदलते समय के साथ आजके भाग दौड़ वाली इस जमाने में लोगों के पास इतना समय कहां है कि शरीर शुद्धीकरण के लिए संपूर्ण पंचकर्म विधि का पालन किया जा सके। ऐसे में हमारे पास कुछ ऐसा जुगाड़ जरूर होना चाहिए की चलते फिरते भी शरीर का प्रॉपर डिटॉक्सिफाई होता रहे।
पंचकर्म चिकित्सा में दीपन पाचन कर्म करने के बाद अभ्यांतर और वाह्य स्नेहन और स्वेदन कर्म करने का विधान बताया गया है। लेकिन कुछ तो रोगी के पास पर्याप्त समय भी नहीं है।
या कभी कभी रोगी के शरीर- पंचकर्म विधि से किए जाने वाले स्वेदन और स्नेहन कर्म के योग्य भी नहीं होता।
ऐसे में मृदु आभ्यन्तर स्वेदन कल्पना करके हम स्वेदोपग महाकषाय उस व्यक्ति के शारीरिक स्थिति को देख कर दे सकते हैं । यह औषधि अभ्यंतर स्वेदन कर्म करके पांच भौतिक और धातु गत अवरोध को निकालने में सहयोगी होगा।
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शोभाञ्जनकैरण्डार्कवृश्चीरपुनर्नवायवतिलकुलत्थमाषबदरा णीति दशेमानि स्वेदोपगानि भवन्ति ।।
स्वेदोपग महाकषाय के जड़ी बूटियों में - १. सहिजन २. एरण्ड ३. मदार ४. वृश्चीर ( श्वेतपुनर्नवा चक्र०) ५. पुनर्नवा (रक्त) ६. यव ७. तिल ८. कुलत्थ ९. उड़द १०. बेर इन १० औषधियों को स्वेदोपग महाकषाय में रखा जाता हैं।
इन जड़ी बूटियों में कटु, तिक्त, कषाय रस, उष्ण वीर्य, कटु विपाक, तिक्ष्ण, सर (फैलने की क्षमता वाला) गुण और सूक्ष्म गुण होते हैं। सूक्ष्म गुण के बदौलत इस दवाई का प्रभाव हमारे शरीर के सूक्ष्म स्तसों के अंदर बड़े ही आसानी से पहुंच जाता है और वहां पर द्रव्यत: गुणत: कर्मत: अपने स्वेदोपग क्रिया के बदौलत वहां के अवरोध को खोलने का कार्य करता है।
स्वेदोपग महाकषाय नाम से ही विदित होता है कि यह कहीं ना कहीं पसीना निकालने का कार्य करने वाली आयुर्वेदिक कंपोजिशन है। अब आप खुद विचार करो किन कंडीशन में पसीना निकालने की जरूरत पड़ती है। जैसे यदि कहीं भी स्टीपनेस बढ़ गया हो तो क्या कल्पना कीजिए की उस जगह में मालिश करें,सिकाई करें, मगर खाने वाली दवाई भी यहां दिया जाए तो स्वेदोपग महाकषाय कितना कारगर साबित होगा। अपने से आप कल्पना कीजिए हाइपोथेसिस जैसे परिस्थितियों में स्वेदोपग महाकषाय किस कदर काम कर सकता है।
मधुमेह में क्या स्वेदोपग महाकषाय दे सकते हैं कि नहीं अगर दे सकते हैं तो किस रूप में आप खुद इसके ऊपर सोचिए स्टडी करिए ।
पहले पढ़िए मधुमेह क्यों बनता है ? तो आपको समझ में आएगा कि यदि हम क्या मधुमेह में उदवर्तन हेतु स्वेदोपग महाकषाय का प्रयोग करते हैं तो कितना चांस है मधुमेह को ठीक होने का ।
इसके ऊपर आप खुद ही स्टडी करिए। आयुर्वेद के ग्रंथों में मधुमेह प्रकरण के ऊपर व्याख्यान करते हुए पूर्व रूप में - अधिक पसीना शरीर से आना बताया गया है इसका मतलब यदि रोगी पतला शरीर वाला है और मधुमेह है तो आप को आभ्यन्तर प्रयोग स्वेदोपग महाकषाय का नहीं करना चाहिए मगर उदवर्तन से यहां अच्छा लाभ मिलता है ।
अव स्वेदोपग महाकषाय का मुख्य समस्या के ऊपर बात करेंगे यह स्वेद यानी पसीना को निकालने वाला दवाई है अब यह देखिए शरीर में किन-किन कंडीशन में पसीना निकलता है और शरीर में कहां-कहां से होकर के यह पसीना शरीर से बाहर निकलता है उन स्रोतसों को यदि हम ध्यान से स्टडी करेंगे तो हमें स्वेदोपग महाकषाय वाकई में कहां सही तरीका से दिया जा सकता है इसके ऊपर यकीनन विश्वास रहेगा।
जो लोग पंचकर्म नहीं कर सकते कृपया वे नीचे दिए हुए कंपोजीशन को कलेक्शन करें और प्रयोग करें।
स्वेदोपग,स्नेहोपग,वमनोपग,विरेचनोपग,आस्थापनोपग,अनुवासनोपग
,शिरोविरेचनोपग, कृपया इन सभी के गुणधर्म को समझ कर यदि रोगी के शारीरिक अवस्था के अनुकूल कंपोजीशन तैयार करें तो निश्चित हानी रहित फायदा ही फायदा होगा।
किडनी डायलिसिस से पहले स्वेदोपग महाकषाय रोगी को देकर जरूर देखना चाहिए। क्योंकि किडनी डायलिसिस का जो प्रक्रिया है वही प्रक्रिया स्वेदोपग महाकषाय ने करना है। जैसे कि हम बताते आ रहे हैं यदि क्रिएटिनिन लेवल कम हो तो किडनी से विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने में शरीर असमर्थ होता है फलस्वरूप किडनी धीरे-धीरे कमजोर होना शुरू हो जाएगा ऐसी कंडीशन में यदि हम स्वेदोपग महाकषाय हर रोज रोगी को देना शुरू करेंगे तो निश्चित सफलता मिलेगी।
क्रिएटिनिन शरीर में जमा होने वाली गंदगी है। इसको यदि स्पष्ट भाषा में समझे तो क्रिएटिनिन एक रासायन है और इसका रासायनिक सूत्र C4H7N3O है, और इसका आणविक वजन 113.12 Daltons है। क्रिएटिनिन सामान्य मांसपेशियों के ऊतकों के टूटने से बनता होता है। एक व्यक्ति के पास जितनी अधिक मांसपेशी होती है, उसका शरीर उतना ही ज्यादा क्रिएटिनिन पैदा करता है। रक्त में क्रिएटिनिन का स्तर एक व्यक्ति की मांसपेशियों की मात्रा और किडनी की कार्यक्षमता दोनों पर ही निर्भर करता है
जब मेटाबोलिज्म प्रक्रिया द्वारा भोजन ऊर्जा में बदलता है तो क्रिएटिनिन का निर्माण होता है। गुर्दे इसे रक्त में छान कर यूरिन के माध्यम से बाहर निकाल देते हैं। आयुर्वेद की भाषा में हम क्रिएटिनिन को एक तरह का पसीना ही समझेंगे जिसे अभी हम स्वेद कहकर संबोधन कर रहे थे। मान लीजिए यदि किसी के शरीर में पानी की कमी होगी या कहे शरीर में प्रोटीन की कमी होगी या यह भी कह सकते हैं कि शरीर में मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया द्वारा भोजन से उत्पन्न होने वाली स्नेहन पदार्थों की कमी से निर्माण होने वाली क्रिएटिन सही मात्रा में नहीं बन पा रहा है ऐसे में कई प्रकार के वृद्धि जन्य संप्राप्ति देखने को मिलता है।
और सबसे बड़ी बात पसीना ही तो शरीर से मलों को बाहर फेंकने का काम करता है यानी डिटॉक्सिफाई करने का कार्य करता है। और इस महत्वपूर्ण काम को बखूबी निभाता है क्रिएटिनिन क्रिएटिनिन की कमी होने से शरीर से विषाक्त पदार्थ सही तरीका से बाहर नहीं निकल पाएगा जिसके परिणाम स्वरूप शरीर में कैंसर जैसे भयानक व्याधि पनप सकता है। यहां हमें आयुर्वेद के चरक संहिता का सूत्र स्थान में वर्णित स्वेदोपग महाकषाय ही सर्वोत्तम फायदा देने वाला महा औषधि दिखता है।
इस कंडीशन में यदि हम स्वेदोपग महाकषाय देते है तो स्वेदोपग महाकषाय हमारे शरीर के हर मांस पेशियों से पसीना निकालने का कार्य करेगा फलस्वरूप स्वेद की वृद्धि होगी शुद्ध क्रिएटिनिन का निर्माण होना शुरू होगा फलस्वरूप शरीर के समस्त विषाक्त पदार्थ बाहर निकलेंगे।
१. सहिजन
शोभाञ्जनः कटुस्तिक्तः कफविद्रधिगुल्मनुत् ||७६||
(राजवल्लभनिघण्टु)
शोभाञ्जनस्तीक्ष्णकटुः स्वादूष्णः पिच्छिलस्तथा ।
जन्तुवातार्तिशूलघ्नश्चक्षुष्यो रोचनः परः
(राजनिघण्टु)
शिग्रुः कटुः कटुः पाके तीक्ष्णोष्णो मधुरो लघुः |
दीपनो रोचनो रूक्षः क्षारस्तिक्तो विदाहकृत् |
संग्राही शुक्रलो हृद्यः पित्तरक्तप्रकोपणः ||
चक्षुष्यः कफवातघ्नो विद्रधिश्वयथुक्रिमीन् ।
मेदोऽपचीविषप्लीहगुल्मगण्डव्रणान्हरेत् ||
श्वेतः प्रोक्तगुणो ज्ञेयो विशेषाद्दाहकृद्भवेत् ।
प्लीहानं विद्रधिं हन्ति व्रणघ्नः पित्तरक्तहृत् ||
मधुशिग्रुः प्रोक्तगुणो विशेषाद्दीपनः सरः |
शिग्रुवल्कलपत्राणां स्वरसः परमार्तिहृत् ||
चक्षुष्यं शिग्रुजं बीजं तीक्ष्णोष्णं विषनाशनम् |
अवृष्यं कफवातघ्नं तन्नस्येन शिरोऽर्तिनुत् ||
(भावप्रकाशनिघण्टु)
२. एरण्ड
एरण्डस्तु रसे तिक्तः स्वादूष्णोऽनिलनाशनः ।
उदावर्तप्लीहगुल्मबस्तिशूलान्त्रवृद्धिनुत् ||
गुरुर्वातप्रशमनो विकाराशौणिताञ्जयेत् |
फलं स्वादु च सक्षारं लघूष्णं भेदि वातजित् ||
एरण्डयुगलं वृष्यं स्वदु पित्तसमीरजित् |
(धन्वन्तरिनिघण्टु)
३. मदार(अर्क)
यह तिक्ष्ण विरेचन कारक है। इसका गुण लघु,रुक्ष,उष्ण,तिक्ष्ण, कटु, तिक्त रस वाला,उष्ण विर्य,कटु विपाकी है। मदार को संग्राही,गुल्म,सोथ,आमबात,उदर रोग,श्वास,कास,ट्युमर,और लीवर मैं होने वाली व्याधि के ऊपर प्रयोग किया जाता है।
४. वृश्चीर ( श्वेतपुनर्नवा चक्र०)
श्वेत पुनर्नवा-कटु, मधुर, कषाय, तिक्त, उष्ण, रूक्ष, कफवातशामक, रुचिकारक, अग्निदीपन, स्वेदोपग, अनुवासनोपग, कासहर, वयस्थापन, हृद्य, सर तथा क्षारीय होता है।
यह शोथ, अर्श, व्रण, पाण्डु, विष, उदररोग, उरक्षत, कास, शूल, रक्तविकार, नेत्ररोग तथा हृदयरोग-नाशक होता है।
५. पुनर्नवा (रक्त)
रक्त पुनर्नवा तिक्त, कटु, शीत, रूक्ष, लघु, कफपित्तशामक, वातकारक, रुचिकारक, अग्निदीपन, ग्राही, शोथघ्न, रसायन, रक्तस्भंक, व्रणरोपण तथा मलसंग्राही होता है।
यह शोफ, पाण्डु, हृद्रोग, क्षत, शूल, रक्तप्रदर, कास, कण्डू, रक्तपित्त, अतिसार, रक्तविकार तथा उदररोग नाशक होता है।
६. यवागु
लङ्घनं स्वेदनं कालो यवाग्वः तिक्तको रसः।
पाचनानि अविपक्वानां दोषाणां तरुणे ज्वरे॥
बमितं लघितं काले यवागूभिः उपाचरेत् ॥
यथा स्व औषध सिद्धाभिः मण्ड पूर्वाभिरादितः।
यावत् ज्वर मृदूभावात् षडहं वा विचक्षणः।।
तस्य अग्निः दीप्यते ताभिः समिद्भिरिव पावकः ।
ताश्च भेषजसंयोगात् लघुत्वात् च अग्निदीपनाः
वातमूत्रपुरीषाणां दोषाणां चानुलोमनाः ।
स्वेदनाय द्रव उष्णत्वाद् द्रवत्वात् तृट् शान्तये॥
आहारभावात् प्राणाय सरत्वात् लाघवाय च।
ज्वरघ्नो ज्वरसात्म्यत्वात् तस्मात् पेयाभिरादितः॥
ज्वरान् उपाचतेद् धीमान् ऋते मध्य समुत्थितात्।
मदात्यये मद्यनित्ये ग्रीष्मे पित्तकफाधिके|
ऊर्ध्वगे रक्तपित्ते च यवागूर्न हिता ज्वरे||
७. तिल
तिल के गुण
स्निग्धोष्णो मधुरस्तिक्तः कषायः कटुकस्तिलः |
त्वच्यः केश्यश्च बल्यश्च वातघ्नः कफपित्तकृत्||
तिल स्निग्ध, उष्ण, मधुर, तिक्त, कषाय, कटु रस युक्त होता हैं। त्वचा व बालों के हितकारी व बल्य वातनाशक, कफ व पित्त की बढ़ाने वाला होते हैं।
८. कुलत्थ
कुलथी प्रकृति से तिक्त, मधुर, तिक्ष्ण, कफवात को दूर करने वाली, पित्तकारक,, रक्तपित्तकारक, पित्त को बढ़ाने वाली, खून बढ़ाने वाले तथा अम्लपित्तकारक होती है।
इसका प्रयोग सांस संबंधी समस्या, खांसी, हिक्का,मूत्राघात, अश्मरी, अर्श, गुल्म, विषप्रभाव, विबन्ध या कब्ज, उदररोग या पेट संबंधी समस्या, अरुचि तथा प्रतिश्याय की चिकित्सा में किया जाता है।
कुलथी का जूस वातानुलोमक होता है। वात संबंधी रोग में कुलथी का प्रयोग फायदेमंद होता है। कुलथी मूत्रल, सूजन को कम करने वाली, बलकारक होती है।
९. उड़द
उड़द प्रकृति से मधुर, गर्म तासीर की होती है। उड़द की दाल वात कम करने वाली, शक्तिवर्द्धक, खाने में रुची बढ़ाने वाली, कफपित्तवर्धक, शुक्राणु बढ़ाने वाली, वजन बढ़ाने वाली,रक्तपित्त के प्रकोप को कम करने वाली, मूत्र संबंधी समस्या में फायदेमंद, तथा परिश्रम करने वालों के लिए उपयुक्त आहार होता है। इसका प्रयोग पाइल्स, सांस की परेशानी में लाभप्रद होता है। इसके अलावा उड़द की जड़ अनिद्रा की बीमारी में बहुत फायदेमंद होती है क्योंकि इसके सेवन से नींद आती है।
१०. बेर
बदरं मधुरं स्निग्धं भेदनं वातपित्तजित् |
तच्छुष्कं कफवातघ्नं पित्ते न च विरुध्यते ||
ताजा बैर-- मधुर रस, स्निग्ध तथा मल का भेदन करता हैं, वात व पित्त को जितने वाला होता हैं। सूखा हुआ बैर कफ व वात को जितने वाला होता हैं तथा पित्त के विरुद्ध नहीं होता हैं |
इस तरह हमने अनेक कारणों से शरीर में पानी की कमी से या कहे पसीना निकलने के स्थितियों में समस्या होने से उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार के समस्या को देखा और किस तरह स्वेदोपग महाकषाय ऐसी कंडीशन में रोगी को बचाता है इसके ऊपर विस्तृत चर्चा किया। यदि कोई सामान्य परिवार से है या संभ्रांत परिवार से है हर किसी के लिए किडनी डायलिसिस करने का अनुभव और वह समय अच्छा नहीं होता शरीर में अल्प मूत्रता के शिकायत होते ही तुरंत किसी आयुर्वेदिक वैद्य के परामर्श को प्राप्त करके हम रोगी के कंडीशन को देख कर स्वेदोपग महाकषाय का प्रयोग कर सकते हैं।
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