स्नेहोपग महाकषाय 50 महाकषाय मध्ये सवसे उत्तम महाकषाय है। स्नेहोपग महाकषाय हड्डियों में चिकनाहट पैदा करता है। Snehopag Mahakashay घुटनों में ग्रीस निर्माण करके ज्वाइंट रिप्लेसमेंट से बचाने में सहयोगी होता है। चरक संहिता में वर्णित सभी 50 महाकाशायों का अपना एक विशेष खासियत है। और वह सभी महाकषाय विशेष प्रकार से शरीर में अपने गुणों को द्रव्यत गुणत कर्मत व्यवस्थित करके रसायन कर्म करता है। उन्हीं में से एक है स्नेहोपग महाकषाय जिसके ऊपर अभी हम विस्तृत चर्चा करने जा रहे हैं।
Snehopag Mahakashay के आयुर्वेदिक गुण धर्मों के बारे में चर्चा करने से पहले हमें साधारण वर्गों के मन में स्नेहोपग महाकषाय शब्द का अर्थ न मिलने से असमंजस होने संबंधित बातों ने और सब बताने के लिए प्रेरित किया।
मैं चाहता हूं संस्कृत भाषा में लिखा हुआ आयुर्वेदिक ग्रंथों के प्रत्येक शब्द का वास्तविक शब्दार्थ के ऊपर भी विस्तृत चर्चा होनी चाहिए ताकि हर कोई व्यक्ति आयुर्वेद आसानी से समझ सके।
स्नेह का शाब्दिक अर्थ होता है चिकना पदार्थ कायचिकित्सा में बताया गया है कि स्नेह मज्जा धातु का मल है। शरीर में जब अस्थि को पोषण देने वाले प्रोडक्ट उत्पादन हो रहा होता है या शरीर को बल प्रदान करने वाले धातु का पोषण करने वाले विशेष कर्म हो रहा होता है उस वक्त शरीर में स्नेह उत्पादन होता है। मज्जा धातु जल महाभूत से बना हुआ है। इसको बोन मैरो के नाम से भी जान सकते हैं।
जब स्नेह का उत्पादन मज्जा धातु में कम होने लगता है तो शरीर में शुक्र धातु का अल्प होना, संधियों मे भेदनवत् पीड़ा होना, हड्डियों मे सुन्यता के प्रतीति होना, कट कट करके आवाज आना, हड्डियों के कट कर गिरने जैसा प्रतीत होना, हड्डियों का दुर्बल होना वात व्याधियों का उत्पन्न होना,चक्कर आना, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना आदी समस्या दिखता है। इसीलिए जब हम स्नेहोपग महाकषाय के जड़ी बूटियों को देखते हैं जैसे द्राक्षा, मुलेठी, गिलोय, मेदा,विदारीकंद, काकोली, क्षीर काकोली जीवक, जीवंती,शालपर्णी देखिए इन जड़ी-बूटियों के आयुर्वेदिक गुणधर्म तो आपको समझ में आएगा कि यह सभी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां रसायन पैदा करने वाला मधुर विर्य, मधुर विपाकी जैसे जल महाभूत को बढ़ाने वाला द्रव्य समझ में आता है।
इस पोस्ट में हम द्राक्षा, मुलेठी, गिलोय, मेदा,विदारीकंद, काकोली, क्षीर काकोली जीवक, जीवंती,शालपर्णी द्वारा पोषित Snehopag Mahakashay के विविध आयुर्वेदिक गुण धर्मों के बारे में भी जानकारी लेने वाले हैं। पहले थोड़ा आयुर्वेदिक ज्ञान वर्धन हेतु इन Snehopag Mahakashay के जो घटक द्रव्य है उनके बारे में जानकारी जो आयुर्वेद सम्मत है के ऊपर चर्चा करेंगे।
1.द्राक्षा
द्राक्ष या मुनुक्का प्यास,जलन,बुखार,श्वास,दूषित रक्त,चोंट,वातपित्त,स्वरभेद,खाँसी,क्षय को नष्ट करता हैं । यह शरीर के लिए पुष्टिकारक वीर्य की वृद्धि करने वाला,मधुर, स्निग्ध और शीतल होता हैं।
2.मुलेठी
स्वाद में मीठी मुलेठी कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा के गुणों से भरपूर होती है. इसका इस्तेमाल नेत्र रोग, मुख रोग, कंठ रोग, उदर रोग, सांस विकार, हृदय रोग, घाव के उपचार के लिए सदियों से किया जा रहा है. यह बात, कफ, पित्त तीनों दोषों को शांत करके कई रोगों के उपचार में रामबाण का काम करती है.
3.गिलोय
गिलोय में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से यह बुखार, पीलिया, गठिया, डायबिटीज, कब्ज़, एसिडिटी, अपच, मूत्र संबंधी रोगों आदि से आराम दिलाती है
4.मेदा
इसकी छाल व गोंद काम में लिए जाते हैं। हड्डी टूटने वाला दर्द, चोट, मोच, जोड़दर्द, सूजन, गठिया, सायटिका और कमरदर्द में इसकी छाल के पाउडर को प्रयोग में लेते हैं। इसके अलावा चोट, मोच या हड्डी के दर्द व सूजन की स्थिति में मैदा लकड़ी व आमा हल्दी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें।
5.विदारीकंद
विदारीकंद मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रवर्धक, स्तन्यवर्धक, वृंहण, मूत्रल, बलकारक, वर्ण्य, वाजीकर, दाह प्रशमन एवं रसायन है। यह मृदु स्नेहक, रेचक, वामक, हृद्य, परिवर्तक, निसारक एवं ज्वरघ्न है। इसके कंद तथा पुष्प में वाजीकारक गुण देखा गया है
6.काकोली
काकोलीयुगलं शीतं शुक्रलं मधुरं गुरु |जयेत्समीरदाहास्रपित्तशोषतृषाज्वरान् |
मदनपालनिघण्टु - अभयादिवर्ग
काकोली मधुरा शुक्ला क्षीरा ध्वाङ्क्षोलिका स्मृता ।
वयस्था स्वादुमांसी च वायसोली च कर्णिका ||
काकोली स्वादुशीता च वातपित्तज्वरापहा ।
दाहघ्नी क्षयहन्त्री च श्लेष्मशुक्रविवर्धिनी ||
क्षीरा च ध्वाक्षिका वीरा शुक्ला धीरा च मेदुरा |
ध्वाङ्क्षोली स्वादुमांसी च वयस्था चैव जीविनी |
इत्येषा खलु काकोली ज्ञेया पञ्चदशाह्वया ||
रक्तदाहज्वरघ्नी च कफशुक्रविवर्धनी |
इस प्रकार से काकोली नामक वनस्पति में मधुर वात पित्त शामक जलन को नष्ट करने वाला श्लेष्मा और शुक्र को बढ़ाने वाला गुण होता है।
7.क्षीर काकोली
शतावरी के जड़ जैसा दिखे,जड़ से सुगंधित दूध निकलता है, शीतल वीर्य वर्धक मधुर धातु वर्धक कफ कारक भारी तथा पित्त रोग को दूर करने वाला वृश्य है। बुखार को नष्ट करने वाला गर्मी को नष्ट करने वाला।इसका थोड़ा सा ही पावडर दूध के साथ लेने से कफ , बलगम खत्म हो जाता है . लीवर ठीक हो जाता है . यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है . यह कमजोर और रोगियों को स्वस्थ करता है . शीतकाल में इसके प्रयोग से ठण्ड कम लगती है . इसको लेने से ताकत आती है . खाना कम भी मिले ; तब भी ताकत बनी रहती है . पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते समय सांस नहीं फूलता. यह बुढ़ापे को रोकने में मदद करती है .
8.जीवक
भावप्रकाश के अनुसार यह पोधा हिमालय के शिखरों पर होता है । इसका कद लहसुन के कंद के समान और इसकी पत्तियाँ महीन और सारहीन होती है । इसकी टहनियों में बारीक काँटे होते हैं और दूध निकलता है । यह अष्टवर्ग औषध के अंतर्गत है और इसका कंद मधुर, बलकारक और कामोद्दीपक होता है । ऋषभ और जीवक दोनों एक ही जाति के गुल्म हैं, भेद केवल इतना ही है कि ऋषभ की आकृति बैल की सींग की तरह होती है और जीवक की झाडू की सी । पर्याय—कूर्चशीर्ष । मधुरक । श्रृंग । ह्नस्वाँग । जीवन । दीर्घायु प्राणद । भृंगाह्व । चिरजीवी । मंगला । आयुष्मान् । बलद ।
9.जीवंती
जीवन्ती प्रकृति से मधुर, शीतल, लघु, स्निग्ध, वात, पित्त और कफ को हरने वाली, रसायन, शक्ति बढ़ाने में मददगार, चक्षुष्य, ग्राही (absorbing), आयुष्यकर, बृंहण कारक,स्पर्म को बढ़ाने वाला, गले के लिए अच्छा, स्वर् को सुधारने वाला, जीवनीय, सूतबंधनीय (पारद को बांधने वाली), वृष्य (libido), श्वासहर, स्नेहोपग (स्नेहन में सहायक),तथा स्तन्यकारक होती है।
यह रक्तपित्त(कान और नाक से खून बहने की बीमारी), क्षय,दाह या जलन, ज्वर या बुखार, खांसी से राहत दिलाने में मददगार होती है।
इसके फल मधुर, गुरु, बृंहण तथा धातुवर्धक होते हैं। इसका तेल बाल, कफवर्धक, गुरु, वातपित्त से आराम दिलाने वाली, शीत, मधुर तथा अभिष्यंदी होता है।
जीवन्ती का शाक, समस्त सागों में श्रेष्ठ होता है। यह अग्निरोपक, पाचक, बलकारक, वर्ण्य,बृंहण, मधुर तथा पित्तशामक होता है।जीवन्ती के पत्ते और जड़ प्रशीतक, चक्षुष्य, मृदुकारी, बलकारक, परिवर्तक, उत्तेजक, वाजीकर तथा स्तन्यवर्धक होते हैं।
10.शालपर्णी
शालपर्णी तिक्त, मधुर, उष्ण, गुरु, त्रिदोषशामक, रसायन, वृष्य, बृंहण, विषघ्न, धातुवर्धक, स्नेहोपग तथा शोथहर होती है।
यह छर्दि, ज्वर, श्वास, अतिसार, शोष, अंगमर्द, गुल्म, क्षत, कास, कृमि, विषमज्वर, प्रमेह, अर्श, शोफ तथा संताप-नाशक होती है।
इसका पञ्चाङ्ग ज्वरघ्न, पाचक, तिक्त तथा बलकारक होता है।इसकी मूल ज्वरघ्न, प्रतिश्यायहर, वाजीकर, कृमिघ्न, स्तम्भक, मूत्रल तथा कफनिसारक होती है।
Snehopag Mahakashay अनेक समस्याओं में कैसे प्रयोग करें।
स्नेहोपग महाकषाय 10 दिव्य जड़ी बूटियों के योगों से तैयार होता है। ऐसी क्या खासियत है स्नेहोपग महाकषाय मे कुछ विषयों के ऊपर चर्चा करते हुए।
Snehopag Mahakashay ज्वाइंट रिप्लेसमेंट में प्रयोग करें।
आयुर्वेदिक जानकारी के अनुसार जब शरीर में अस्थि और मज्जा इन दोनों धातुओं में वायु का प्रभाव अधिक होता है तो शरीर में स्नेह द्रव्य खत्म होने लगता है। इसी स्नेह द्रव्य को गृस भी कहते हैं। यदि यह अपान क्षेत्र में होगा तो इसके फलस्वरूप घुटनों में तरल पदार्थ की कमी होना स्पष्ट समझ सकते हैं। या कहें स्नेह द्रव्यों का कमी होना समझ सकते हैं। यह इतना भयानक हो सकता है कि इसके कारण से व्यक्ति को ज्वाइंट रिप्लेसमेंट तक कराने की नौबत आ सकती है।
एसे सिचुएशन में भी यदि हम स्नेहोपग महाकषाय का प्रयोग निरंतर करते रहे तो निश्चित यह इस समस्या का हमेशा के लिए निवारण करने वाला रसायन बनेगा। ज्वाइंट रिप्लेसमेंट में सन्धानीय महाकषाय और स्नेहोपग महाकषाय इन दोनों का योग बना कर यदि हम रोगी को देते हैं तो निश्चित ही यह जॉइंट रिप्लेसमेंट में अच्छा काम करेगा।
Snehopag Mahakashay यह शरीर में सोथ को नष्ट करता है।
स्नेहोपग महाकषाय प्रत्यक्ष रूप से सोथ यानी सूजन में तो शायद काम नहीं कर सकता लेकिन स्नेहोपग महाकषाय में कुछ जड़ी बूटियां दशमूल का भी है आप जानते हैं दशमूल सोथहर के रुप में भी कार्य करता है। स्पष्ट है यदि हम सोथघ्न महाकषाय के साथ स्नेहोपग महाकषाय देते हैं तो घुटनों में या कहीं भी संधियों में होने वाली सूजन को नष्ट करने में सहयोगी होगा।
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