Sitopaladi वात वाहिनी नाड़ियों पर कफ के द्वारा आवरण होने पर प्रयोग किया जाने वाला प्राचीन आयुर्वेदिक औषधि है। कुछ मामलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से भी Sitopaladi Churna uses and benefits सितोपलादि चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।
सितोपला तुगाक्षीरी पिप्पली वहुलात्वच।
अन्त्यादुर्ध्व द्विगुणीतं लेहयेत् क्षौद्रसर्पिसा।।
चूर्णं वा प्राशयेदेतत्छ्वासकासक्षयापहम्।
सुप्तजिह्वारोचकिनं मन्दाग्निं पार्श्वशुलिनम्।।
हस्तपादांसदाहेषु ज्वरे रक्ते तथोध्वगे।(भै.र. राजयक्ष्मा.)
इन सभी द्रव्यों को पृथक पृथक या एक साथ मिलाकर इमाम दस्ते में कुटकर वस्त्रपुत चूर्ण कर लेनी चाहिए। कुछ ग्रंथ कार ऐसा लिखते हैं कि सबसे पहले दालचीनी को सौ बार खरल कर लो उसके बाद छोटी इलायची को सौ बार खरल कर लो ऐसे ही क्रमश बड़ी पीपली, वंशलोचन और मिश्री के ऊपर सौ सौ बार खरल कर लो ऐसा करने पर दालचीनी के ऊपर 500 बार,छोटी इलायची के ऊपर 400 बार इसी प्रकार अंत में मिश्री के ऊपर 100 बार खरल होगा।बहुत लोगों का मान्यता है कि इस तरह से दवाई तैयार करने पर सितोपलादि चुर्ण अति महत्वपूर्ण प्रभाव कारी दवाई बन जाता है।
सितोपलादि चूर्ण सर्वत्र उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवाई है। शरीर में जब एलर्जी के कारण से कफ का मात्रा बढ़ जाता है तो उस कफ को समन करने के लिए सितोपलादि चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।
इस तरह सितोपलादि का प्रयोग कुल मिलाकर स्वसन संबंधित रोग सर्दी खांसी निमोनिया जैसे रोगों में किया जाता है। क्योंकि यह सभी रोग हमारा रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने के वजह से होता है ।ऐसी परिस्थिति में सितोपलादि चूर्ण का प्रयोग अति उत्तम होता है।
सितोपलादि चूर्ण सभी प्रकार के कास,श्वास, क्षय,राज्यक्षमा जीर्ण ज्वर,अरुचि,पित्त विकार, धातुगत ज्वर, मंदाग्नि, अम्ल पित्त जीभ का स्वाद खत्म हो जाना,इन विकारों म अक्सर दिया जाने वाला आयुर्वेदिक दवाई है।
इसके अलावा हात पैर मे दाह, तृष्णा, भ्रम, इन समस्या में भी सितोपलादि चूर्ण अच्छा फायदा देता है।
सितोपलादि चूर्ण में मिश्री की मात्रा अधिक होने के वजह से मधुमेह संबंधित रोगियों के लिए यह हानी कर सकता है। इस दवा को खाली पेट लेने से गैस्ट्रिक होने का संभावना रहता है।इसीलिए इसे भोजन करने के बाद ही लिया जाना चाहिए। सितोपलादि चूर्ण के अधिक सेवन भी कभी-कभी हानिकारक हो सकता है।
सितोपलादि चूर्ण को यदि खांसी आने पर रोगी को देना है तो इस बात को जरूर ध्यान देना यदि सूखी खांसी है तो सितोपलादि चूर्ण को घी में मिलाकर देनी चाहिए यदि बलगम वाली खांसी है तो शहद में मिलाकर देनी चाहिए रोगी में यदि अच्छा फल है कमजोरी नहीं है चक्कर नहीं आता 2 दिन में चार टाइम सितोपलादि चूर्ण को एक-एक चम्मच देने पर एक ही दिन में रोगी के खांसी को यह ठीक कर सकता है इस के अनुमान के रूप में वासावलेह का प्रयोग कर सकते हैं।
सितोपलादि चूर्ण का प्रयोग यदि आप श्वास रोग में करना चाहते हैं तो एक एरण्ड के पत्ते के ऊपर कथ्था लगाकर उसके ऊपर सितोपलादि चूर्ण को डाल देना और धूप में सुखाकर पत्ता सूख जाने पर उसको जला देना इस राख को शहद में मिलाकर चटाने से स्वास रोग में उत्तम लाभ मिलता है।
यदि आपको हमेशा जुकाम खांसी होता रहता है और उसका कारण एलर्जी है तो आप लक्ष्मी विलास रस के टेबलेट खाकर ऊपर से सितोपलादि चूर्ण मिलाया हुवा शहद को चाटना है।
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