Shukrajanan Mahakasaya शुक्र निर्माण करने वाला तथा शुक्र से संबंधित सभी प्रकार के समस्याओं में दिया जाने वाला बड़ी ही उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है। Shukrajanan Mahakasaya के बारे में संपूर्ण जानकारी के साथ Shukrajanan Mahakasaya के आयुर्वेदिक औषधियों का गुणधर्म तथा Shukrajanan Mahakasaya शुक्र वृद्धि किस तरह से करता है आज हम इसके ऊपर चर्चा करेंगे।
Shukrajanan Mahakasaya
1.जीवक, 2.ऋषभक,3.काकोली,
4.क्षीर काकोली,5.मुदग्पर्णी,6.माषपर्णी,7.मेदा,8.वन्दाक, 9.जटामांसी10.मोथा
यह 10 जड़ी बूटियों को शुक्रजनन महाकषाय Shukrajanan के नाम से जाना जाता है। चरक संहिता के चतुर्थ वर्ग में स्तन्य शोधन महाकषाय,स्तन्य जनन महाकषाय, शुक्र जनन महाकषाय,शुक्रसोधन महाकषाय यह चार महाकषाय के बारे में जिक्र है। यह सभी व्यक्ति के शरीर में रस धातु,शुक्र धातु और ओज को मेंटेन करने के लिए जाना जाता है।
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Shukrajanan Mahakasaya का आयुर्वेदिक गुणधर्म
1.जीवक
भावप्रकाश के अनुसार यह पोधा हिमालय के शिखरों पर होता है । इसका कद लहसुन के कंद के समान और इसकी पत्तियाँ महीन और सारहीन होती है । इसकी टहनियों में बारीक काँटे होते हैं और दूध निकलता है । यह अष्टवर्ग औषध के अंतर्गत है और इसका कंद मधुर, बलकारक और कामोद्दीपक होता है । ऋषभ और जीवक दोनों एक ही जाति के गुल्म हैं, भेद केवल इतना ही है कि ऋषभ की आकृति बैल की सींग की तरह होती है और जीवक की झाडू की सी । पर्याय—कूर्चशीर्ष । मधुरक । श्रृंग । ह्नस्वाँग । जीवन । दीर्घायु प्राणद । भृंगाह्व । चिरजीवी । मंगला । आयुष्मान् । बलद ।
2.ऋषभक
ऋषभ, वृषभ, धीर, विषाणी और द्राक्ष ये नाम ऋषभक के हैं। ये बलकारक, शीतवीर्य, शुक्र तथा कफ वर्धक, मधुर रसयुक्त, पित्त, दाह, रक्तदोष, कृशता, बात तथा क्षयरोग को दूर करने वाले होते हैं ।
3.काकोली
शीतल वीर्य वर्धक मधुर धातु वर्धक कफ कारक भारी तथा पित्त रोग को दूर करने वाला वृश्य है विनाशक बुखार को नष्ट करने वाला गर्मी को नष्ट करने वाला।
4.क्षीर काकोली
शतावरी के जड़ जैसा दिखे,जड़ से सुगंधित दूध निकलता है, शीतल वीर्य वर्धक मधुर धातु वर्धक कफ कारक भारी तथा पित्त रोग को दूर करने वाला वृश्य है। बुखार को नष्ट करने वाला गर्मी को नष्ट करने वाला।इसका थोड़ा सा ही पावडर दूध के साथ लेने से कफ , बलगम खत्म हो जाता है . लीवर ठीक हो जाता है . यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है . यह कमजोर और रोगियों को स्वस्थ करता है . शीतकाल में इसके प्रयोग से ठण्ड कम लगती है . इसको लेने से ताकत आती है . खाना कम भी मिले ; तब भी ताकत बनी रहती है . पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते समय सांस नहीं फूलता. यह बुढ़ापे को रोकने में मदद करती है .
5.मुदग्पर्णी
मुद्गपर्णी क्षत, शोथ, ज्वर, दाह, ग्रहणी, अर्श, अतिसार, वातरक्त, कृमि, कास, क्षय, रक्तदोष तथा तृष्णा में हितकर है। मुद्ग्पर्णी का पञ्चाङ्ग ज्वरनाशक, कीटनाशक, शोथहर, सूक्ष्मजीवरोधी तथा क्षयरोग नाशक होता है। इसके पत्र शामक, शीतल, पित्तरोधी तथा बलकारक होते हैं।
6.माषपर्णी
माषपर्णी हिमा रूक्षा मधुरा कफशुक्रला |
तिक्ता सङ्ग्राहिणी वातपित्तदाहज्वरास्रजित् |
माषपर्णी रसे तिक्ता शीतला रक्तपित्तजित् |
कफपित्तशुक्रकरी हन्ति दाहज्वरानिलान् ||
माषपर्णी हिमा तिक्ता रूक्षा शुक्रबलास्रकृत् ।
मधुरा ग्राहिणी शोथवातपित्तज्वरास्रजित् |
माषपर्णी शुक्रवृद्धिकरी बल्य, शीतल,पुष्टिवर्धन
माषपर्णी तिक्त, मधुर, शीत, रूक्ष, वातपित्तशामक, कफवर्धक, ग्राही, वृष्य, बलकारक, पुष्टिवर्धक, बृंहण, स्तन्यकारक, केशों के लिए हितकर, जीवनीय तथा शुक्रजनन होती है।
यह शोष, ज्वर, रक्तदोष, रक्तपित्त, वातरोग, क्षय, कास तथा दाहनाशक होती है।
इसका फल तिक्त, शीत, स्वादु, वाजीकर, कषाय, ज्वरघ्न तथा स्तन्यवर्धक होता है।
यह शोथ, पित्ताधिक्य, रक्तविकार, वातरक्त, त्रिदोषजज्वर, श्वसनिकाशोथ, तृष्णा, दाह, पक्षाघात, आमवात तथा तंत्रिकातंत्र विकार शामक होता है।
7.मेदा
मेंदा लकड़ी को संस्कृत में मेदा, मदिनी, मदसरा, मनिच्छद्रा, मधुरा, जीवन साध्वी, स्वल्प पर्णी आदि नामों से जाना जाता हैं ...।
मैदालकड़ी के पेड़ छत्तीसगढ़ व पूर्वी मध्यप्रदेश के जंगलों में आसानी से दिखाई पड़ते है ,पर कुछ दशकों से लकड़ी तस्करों ने इस पेड़ को दुर्लभ बना दिया हैं...।
मैदा लकड़ी की छाल ग्राही (भारी) होती है...अतिसार के रोग में इसकी छाल बहुत ही उपयोगी होती है... हड्डी टूटने वाला दर्द, चोट, मोच, जोड़दर्द, सूजन, गठिया, सायटिका और कमरदर्द में इसकी छाल के पाउडर को प्रयोग में लेते हैं...इसके अलावा चोट, मोच या हड्डी के दर्द व सूजन की स्थिति में मैदा लकड़ी व आमा हल्दी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर १-१ चम्मच दूध से १० दिन तक लेना फायदेमंद होता है....। इसी तरह से
वन्दाक,जटामांसी,मोथा भी शुक्रजनन महाकषाय में अपना विशेष आयुर्वेदिक गुणधर्म से शरीर में शुक्र वृद्धि के लिए जाने जाते हैं।
शुक्रजनन महाकषाय Shukrajanan शुक्र वृद्धिकर है।
शुक्रजनन महाकषाय मधुर रसात्मक औषधि होने की वजह से इसे शुक्र वृद्धिकर के रूप में इसे जाना जाता है।
शुक्रजनन महाकषाय स्पर्म की क्वालिटी को मेंटेन करता है।
यदि किसी को संतान उत्पादन में समस्या आ रही है। स्पर्म क्वालिटी चेक करने पर कमजोर दिखाई दे रहा है तो तुरंत शुक्रजनन महाकषाय का नित्य सेवन करना चाहिए। यहां शुक्रजनन महाकषाय सेवन करने की यह विधि है कि आप शुक्रजनन महाकषाय के सभी औषधियों को बरोबर एकत्रित करें और दरदरा कूट कर पाउडर तैयार करें। अब दो चम्मच पाउडर को रात में एक गिलास पानी में डालें दूसरे दिन सुबह चौथा गिलास पानी बचे तब तक उबालना है उसके बाद आप उसको छान ले फिर उतना ही गाय का दूध डालकर थोड़ी देर तक वाले अब उसमें एक चम्मच देसी गाय का घी दो चम्मच शहद मिलाकर रोगी को पिला दे यह योग शुक्र वृद्धिकर है।
शुक्रजनन महाकषाय Shukrajanan सीमन एलर्जी मैं अच्छा काम करता है।
शुक्रजनन महाकषाय के ऊपर मैंने बहुत प्रयोग किया हुआ हूं लेकिन मैंने बहुत सारे लोगों से यह भी सुना था की शुक्रजनन महाकषाय सीमन एलर्जी में भी काम करता है। लेकिन मैंने आज तक कभी इसके ऊपर प्रयोग नहीं किया हूं।
एजुस्पर्मिया" (निल शुक्राणु) में अच्छा काम करता है।
अजूस्पर्मिया यानी नील शुक्राणु में शुक्रजनन महाकषाय यकीनन अच्छा काम करता है। यदि भाग्य वश शुक्रजनन महाकषाय सभी औषधि उपलब्ध हो जाए तो निश्चित नील शुक्राणु में विश्वास पूर्वक इसका प्रयोग किया जा सकता है।
शुक्रजनन महाकषाय Shukrajanan ओलिगोस्पर्मिया में अच्छा काम करता है।
ओलिगोस्पर्मिया एक ऐसा व्याधि है जिसके तहत व्यक्ति के शरीर में शुक्राणु की कमी होने लगती है। जो मानसिक रूप से कमजोर है या मानसिक चिंतन ज्यादा करते हैं उनके शरीर में ओलिगोस्पर्मिया जैसे समस्या दिखता है। शुक्रजनन महाकषाय ओलिगोस्पर्मिया मे बहुत ही जबरदस्त फायदा देता है। मैंने एक बार किसी ओलिगोस्पर्मिया से पीड़ित व्यक्ति को शुक्रजनन महाकषाय मैं जीवनीय महाकषाय के दूसरे जड़ी-बूटी भी मिक्स करके दिया था हालांकि शुक्रजनन महाकषाय के अंतर्गत आने वाले ज्यादातर जड़ी बूटियां जीवनीय महाकषाय में भी आता है। इसके साथ साथ मैंने कौंच का बीज, पुत्र जीवक जोकि Y क्रोमोजोम को बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करता है। को भी मिलाकर काढ़ा बनाया था और तिक्त क्षीर वस्ती दिया था। आप भी ओलिगोस्पर्मिया में इसी तरह से प्रयोग कर सकते हैं।
शुक्रजनन महाकषाय Shukrajanan उत्तम संतान पैदा करने वाला दवाई है।
यदि हम आध्यात्मिक इतिहास को पढ़ते हैं तो पहले जमाने में राजे महाराजे और दूसरे धनाढ्य लोग संतान उत्पादन नहीं बल्कि उत्तम संतान उत्पादन के लिए चाह रखते थे।
यह बातें एलोपैथिक चिकित्सा विधि की नजरिया से देखिए तो सिर्फ हंसी उड़ाने वाली हो सकती है लेकिन आयुर्वेद तो जाना ही इसी बात से ज्यादा है की उत्तम दिनचर्या और उत्तम आयुर्वेदिक चिकित्सा के माध्यम से हम व्यक्ति के शरीर और मन को शुद्ध सात्विक या कहे तामासिकता से रहित बनाने के लिए विचार करता है। ऐसे में संतान उत्पादन नहीं जनाब यह कहिए कि मुझे उत्तम संतान उत्पादन करना है। तो फिर इसका जवाब आपको आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलेगा।
नित्य प्रति इष्ट देव की चिंतन करते हुए जीवनीय और शुक्रजनन महाकषाय का सेवन करते हुए। यदि सात्विक भाव शरीर और मन में उदय होने लगे तो उत्तम समय में शारीरिक संबंध करे तो हमें उत्तम संतान मिलने का संभावना अधिक होता है। उत्तम संतान का अर्थ होता है ऐसा संतान जो किसी तरह के रोग से रहित हो जिसका मन और शरीर शक्तिशाली हो जो माता और पिता को भगवान के समान मानते हो और सेवा करने की इच्छा रखते हो जिसकी बुद्धि सात्विक हो उसे आयुर्वेद ने उत्तम संतान माना है।
शुक्र धातु का मुख्य काम संतान उत्पत्ति करना है। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, वीरता, निडरता, संभोग के समय वीर्य का निकलना आदि शुक्र धातु के कारण ही संचालित होती हैं।
शुक्र धातु ही शरीर में बल तेज शक्ति तथा इंसान के चेहरे में चमक देने वाला होता है। आयुर्वेदिक ग्रंथ कारों ने शुक्र धातु को ही जीवन देनेवाला कहा है।
पूर्व समय में व्रह्मचारी आश्रम के नाम से जो विद्यार्थियों को एक कड़ी नियम में रहने की शिक्षा दी जाती थी और विद्यार्थी उसी ब्रह्मचारी का नियम आचरण का पालन करते हुए अपने जीवन के 25 वर्ष तक का समय व्यतीत करते थे उसका मुख्य उद्देश्य भी यही शुक्र वृद्धिकर तथा शुक्र धातु और ओज निर्माण का एक विशेष प्रक्रिया था।
यदि आपके वीर्य में 1.5 करोड़ प्रति मिलीलीटर से कम शुक्राणु हों तो आपका स्पर्म काउंट सामान्य से कम माना जाता है।शुक्राणुओं में कमी होने को मेडिकल भाषा में ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है। वीर्य में शुक्राणुओं का पूरी तरह से खत्म होना "एजुस्पर्मिया" (निल शुक्राणु) कहलाता है। इन दोनों ही अवस्था में रोगी को शुक्रजनन महाकषाय देकर रोगी को शुक्र संबंधित इन् दो व्याधियों में आराम दिला सकते हैं।
सीमन एलर्जी (Semen allergy) या ह्यूमन सेमिनल प्लाज़्मा हाइपरसेंसटिविटी एक ऐसी कंडीशन हैं जिसमें पुरुषों को सीमन से एलर्जिक रिएक्शन होते हैं. ऐसे पुरुषों से संबंध बनाने वाली महिलाओं को भी यह एलर्जी हो सकती है. यह बहुत ही रेयर कंडीशन है जिसका शिकार बहुत ही कम लोग होते हैं। सीमन एलर्जी एक बहुत ही रेयर कंडीशन है, जो स्पर्म नहीं उसमें मौजूद एलर्जिक प्रोटीन्स की वजह से होती है. पुरुष और महिला दोनों ही इस एलर्जी का शिकार हो सकते हैं. खासकर, पुरुषों में इस एलर्जी की वजह से पोस्ट-ऑर्गैज़म इलनेस सिंड्रोम की शिकायत होती है.Shukrajanan शुक्रजनन महाकषाय ऐसी कंडीशन में भी रोगी को सुख देता है। मगर यहां अकेला Shukrajanan शुक्रजनन महाकषाय तो पूर्णरूपेण कार्य नहीं कर पाएगा इसके लिए आपको एलर्जी नाशक विषघ्न महाकषाय नाम का आयुर्वेदिक दवाइ भी देना जरूरी है।
क्या आप भी आयुर्वेद सीखना चाहते हैं यदि हां तो देर किस बात की।
आयुर्वेद रसायन है यह शरीर के ही लिए नहीं बल्कि इसका अध्ययन किया जाए तो यह मन को भी रसायन पैदा करता है कम से कम इतना की व्यक्ति रोग ग्रस्त होने से बचे शरीर क्या है मन क्या है आत्मा क्या है रोगी होने का मतलब क्या है आरोग्यता का मतलब क्या है यह सभी हमें आयुर्वेदिक ग्रंथ पढ़ने से समझ में आता है यदि आप भी आयुर्वेद पढ़ना चाहते हैं तो आयुष योगी निरंतर ट्रेडिशनल कोर्स ऑनलाइन के माध्यम से कराता है उसके अंतर्गत आप आयुर्वेदिक क्रिया शरीर जिसको हम काया चिकित्सा के नाम से जानते हैं को निरंतर पढ़ाया जाता है उसके साथ दूसरी भी आयुर्वेदिक चिकित्सा विधि को ऑनलाइन क्लास के माध्यम से पढ़ने और पढ़ाने का अवश्य मिलता है यहां हिंदुस्तान के बड़े-बड़े चिकित्सक समय-समय पर आयुष योगी के विद्यार्थियों को आयुर्वेद के विशेष महत्व को समझाने के लिए गुरुजनों का भी आगमन होता है आप कभी भी इस क्लास में एंट्री पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। धन्यवाद।
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