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sandhaniya-gana | Sandhaniya Mahakashaya |संधानीय महाकषाय कहां क्यों और कैसे दे।

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Sandhaniya Mahakashaya संधानीय महाकषाय,जीवनीय महाकषाय,लेखनीय महाकषाय और भेदनीय महाकषाय के वाद आता है। Sandhaniya Mahakshayaका मुख्य कार्य किसी दो चीजों को आपस में जोड़ना यानी संधान करना होता है। संधानीय महाकषाय आयुर्वेद का सबसे बेहतरीन कंपोजीशन है। यदि अंशांश कल्पना करके देखें तो आपको Sandhaniya Mahakshayaका असली प्रभाव समझ में आएगा।
आज हम Sandhaniya Mahakshaya कहां कहां काम करता है इसका गामीत्व शक्ति क्या है किस तरह के व्याधि में Sandhaniya Mahakshaya दिया जाना चाहिए इसके ऊपर आज हम विस्तृत चर्चा करेंगे।
सबसे पहले Sandhaniya Mahakshaya मैं कौन-कौन सी औषधि डाली जाती है और  संधानीय महाकषाय का आयुर्वेदिक गुणधर्म क्या क्या है और सभी द्रव्यों का मिश्रण Sandhaniya Mahakshaya के रूप में होगा तो किस तरह का गुणधर्म वाला दवाई तैयार होगा आज इसके उपर बात किया जाएगा।

Sandhaniya Mahakshaya online lecture.

Sandhaniya Mahakshaya का मतलब क्या है?

संधानीय का शाब्दिक अर्थ होता है संधान करना संधान का मतलब होता है किसी दो या अधिक चीजों को आपस में ऐसे जोड़ना की यह जुड़ने से तैयार हुआ है ऐसा बिल्कुल ना लगे। यही वास्तव में संधान का अर्थ होता है।
संधान का अर्थ मिलाना या फीट्ना भी होता है। मिलाना यह शब्द तो समझ में आ गया अब फीट्ना क्या चीज है। फीट्ने का मतलब है जैसे पानी और दही को फिट्कर ही घी निकाला जाता है। इसी क्रिया को संधान होना कहा जाता है।


Sandhaniya Mahakshaya की प्रमुख कार्य और विशेषताएं।

 

  • रज और वीर्य में संधान हेतु Sandhaniya Mahakshaya दे सकते हैं।
  • अतिसार में Sandhaniya Mahakshaya दे सकते हैं।
  • Joint replacement की जगह Sandhaniya Mahakshaya दे सकते है।
  • Multiple compression fracture मे भी Sandhaniya Mahakshaya दे सकते हैं।
  • प्राणों का संधान हेतु Sandhaniya Mahakshaya दे सकते हैं।

Sandhaniya Mahakshaya के आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां


मधुयष्टि,गिलोय,पृश्नीपर्णी,पाठा,छुईमुई,मोचरस,धातकी लोध्र,प्रियंगु,कटफल ।
इन् 10 महा औषधियों को संधानीय महाकषाय के नाम से जाना जाता है। आइए अब आयुर्वेदिक सर्वसुलभ औषधियों के बारे में आयुर्वेदिक गुणधर्म से संबंधित जानकारियों के बारे में जिक्र करेंगे।

मधुयष्टि

रस (स्वाद) - मधुर (मीठा)

गुण- गुरु (भारी), स्निग्ध (स्थिर)

विपाक (पाचन के बाद प्रभाव): मधुर (मीठा)

वीर्य (शक्ति) - शीतल (ठंडा)

वात-पित्तहरा (उत्तेजित / रुग्ण का वात और पित्त को शांत करता है)। भारी और अशुद्ध होने के कारण और मीठे स्वाद और पाचन के बाद मधुर प्रभाव रखने वाले, जो वात के विरोधी हैं, यष्टिमधु इसे शांत (नियंत्रित) करते हैं। इसी तरह यष्टिमधु अपने मीठे स्वाद और पाचन के बाद के प्रभाव और अपनी ठंडी शक्ति के कारण बढ़े हुए पित्त को शांत करती है।आमाशय की बढ़ी हुई अम्लता एवं अम्लपित्त जैसी व्याधियों में मुलहठी काफी उपयुक्त सिद्ध होती है.

,गिलोय,
गिलोय में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से यह बुखार, पीलिया, गठिया, डायबिटीज, कब्ज़, एसिडिटी, अपच, मूत्र संबंधी रोगों आदि से आराम दिलाती है।

पृश्नीपर्णी
पृश्निपर्णी उल्टी और बुखार के इलाज में फायदेमंद होती है। यह सांस संबंधी समस्या, रक्तगत वात, रक्तार्श या खूनी बवासीर, हड्डियों के टूटने एवं आँख संबंधी समस्या के इलाज में फायदेमंद होती है। यह न केवल हड्डियां बल्कि शरीर के रक्त वाहिनी, त्वचा और कोशिकाओं के टूट जाने पर उनको संधान का कार्य करता है।

,पाठा
आयुर्वेद में पाठा को त्रिदोषिक कहते हैं जिसका मतलब है कि यह बूटी तीनों दोषों वात, पित्त और कफ को ठीक करती है। इसे पाचक, बुखार-रोधी और घाव को ठीक करने के गुणों से युक्‍त माना जाता है और दस्‍त, मूत्राशय से संबंधित बीमारियों, खांसी, सूजन, मासिक धर्म से जुड़ी समस्‍याओं, बवासीर और त्‍वचा रोगों के इलाज में उपयोगी है।

,छुईमुई
लाजवंती में कई तरह के औषधीय गुण मौजूद होते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं।
एंटी-अस्थमेटिक (अस्थमा से राहत दिलाने वाला)
एनाल्जेसिक (दर्दनिवारक)
एंटीडिप्रेसेंट (अवसाद से राहत दिलाने वाला)
वाउंड हीलिंग- (घाव भरने वाला)
ड्यूरेटिक- (मूत्रवर्धक)
एंटीफर्टिलिटी- (नपुंसकता दूर करने वाला)
एंटीवेनम- (विषैले प्रभाव से बचाव करने वाला)
एंटीमाइक्रोबियल- (सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने वाला)
एंटीफंगल- (फंगस को नष्ट करने वाला)

,मोचरस,
सेमर का निर्यास (मोचरस) कषाय, कफपित्तशामक, ग्राही, शीतल, स्निग्ध, पुष्टिकारक तथा वीर्यवर्धक होता है। यह प्रवाहिका, रक्तातिसार, उरक्षत, रक्तवमन तथा श्वेतप्रदर में लाभप्रद है। सफेद सेमल तिक्त, कटु, उष्ण, कफवातशामक तथा भेदन है।

धातकी
आयुर्वेदिक मतानुसार धाय रस में कटु, कषाय, गुण में लघु, तासीर में शीतल, विलाप मे कटु, कफ – पित्तसामक, उत्तेजक, रक्त स्तंभक, व्रणरोपक, विषहरहोता है । यह प्रवाहिका, अतिसार, ज्वर,रक्तपित्त , रक्त प्रदर, दंतरोग, प्रमेह, गर्भाधारणार्थ उपयोगी  है।
 लोध्र,
लोध्र का उपयोग आमतौर पर पित्त और कफ दोष जैसे मुंहासे, फुंसी, सूजन के असंतुलन के कारण होने वाली स्थितियों के प्रबंधन में किया जाता है। लोध्र अपने पित्त-कफ संतुलन, शीत (ठंडा) और सोथहर (सुजन रोधी) गुणों के कारण इन स्थितियों का प्रबंधन करने में मदद करता है। यह घाव भरने में भी मदद करता है, सहनशक्ति में सुधार करता है और अपने रोपण,ग्राही,लघु और बल्य (शक्ति प्रदाता) गुणों के कारण लोध्र अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखता है।लोध्र का महिला हार्मोन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यह टेस्टोस्टेरोन और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है और एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर को बढ़ाता है।
प्रियंगु,
प्रियंगु प्रकृति से तीखा, कड़वा, मधुर, शीत, लघु, रूखा, वातपित्त से आराम दिलाने वाला, चेहरे की त्वचा की रंगत को निखारने में मददगार , घाव को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।
यह उल्टी, जलन, पित्त के बढ़ने के कारण बुखार, रक्तदोष, रक्तातिसार, शरीर से बदबू आना, खुजली, मुँहासे, कोठ (Throat disorder), रक्तपित्त (Haemoptysis), विष, आभ्यांतर दाह (जलन), तृष्णा या प्यास, तथा गुल्म या ट्यूमर में लाभप्रद होता है।

कटफल
कटफल को कायफल इस नाम से भी जाना जाता है। यह कसैला,कड्वा,चरपरा,वात कफ नाशक,ज्वर, श्वास, प्रमेह, बवासीर, खांसी, अरुचि इन सवको दूर करने वाला है।
तो कुल मिलाकर यह 10 Sandhaniya Mahakshaya के अंतर्गत आने वाले दिव्य महान औषधियां शरीर में विविध प्रकार के अपने औषधीय गुणों के बदौलत संधान कर्म करने के लिए जाना जाता है ।


Sandhaniya Mahakshaya की प्रमुख विशेषताएं।

रज और वीर्य में संधान हेतु संधानीय महाकषाय(Sandhaniya Mahakshaya) दे।
Sandhaniya Mahakshayaका जबरदस्त असर हम इस बात से लगा सकते हैं कि संधानीय महाकषाय यदि ऐसे स्त्री और पुरुष को दिया जाए जिनके संतान नहीं हो रहे हैं।Sandhaniya Mahakshaya यदि ऐसे व्यक्ति को दिया जाए तो पुरुष के वीर्य में रज के साथ जुड़ने की ताकत रहेगी और स्त्री के रज में भी पुरुष के वीर्य के साथ तादात्म्य होने वाली शक्ति की वृद्धि होगी। रज वीर्य के संधान से ही उत्तम संतान होना संभव होता है। 

उत्तम मित्रता को बनाए रखने वाला संधानीय महाकषाय।

जैसे कि Sandhaniya Mahakshayaशरीर में चीजों का संधान करता है हमने यह पड़ा। लेकिन यदि संधान का मतलब जोड़ना है तो Sandhaniya Mahakshaya के सेवन से यह गुण मन में भी आनी चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति से मित्रता करना हो तो भी Sandhaniya Mahakshaya अपना वही रिजल्ट दिखाएगा जो शरीर के रक्त कोशिकाएं, नर्वस सिस्टम और अन्य विंदुओं को आपस में जोड़ने के लिए दिखाता है।
Sandhaniya Mahakshaya मन में engagement के प्रभाव को बढ़ाता है। कोई प्रेमी या प्रेमिका के बीच में संबंध और विश्वास को लेकर संघर्ष चल रहा हो तो चरक मुनि के बताए विधि से Sandhaniya Mahakshaya का सेवन जरूर किया जाना चाहिए। यह उन दो प्रेमिका के मन में संधान की प्रक्रिया को बढ़ाने का कार्य करेगा यानी attachment and engagement power को बढ़ाने का कार्य करेगा।
Sandhaniya Mahakshayaके गुणों कि यदि चर्चा करे तो हमें हर परिस्थितियों में इस महाकषाय की आवश्यकता जान पड़ती है ।जैसे एक व्यापारी के लिए कस्टमर के मन में संधान की प्रक्रिया अपने प्रति सकारात्मक हो।
जैसे शिक्षक के प्रति विद्यार्थियों का विश्वास प्रेम और अटैचमेंट प्रगाढ़ हो, आदि बहुत सारे ऐसे जगह है जहां हम Sandhaniya Mahakshaya के कार्य  क्षेत्र की विस्तृत परी कल्पना कर सकते हैं।

Joint replacement की जगह (Sandhaniya Mahakshaya)संधानीय महाकषाय दे।

आज के समय में ज्यादातर महिलाएं घुटनों में होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं से त्रस्त है। घुटनों में होने वाली gap या वहां के असहनीय दर्द किसी भी कारण से हो सकता है मगर joint replacement कराने से पहले संधानीय महाकषाय का प्रयोग जरूर करके देखें। जैसे कि हम पहले ही बता चुके हैं जहां कोई भी वस्तु आपस में जुड़ने की प्रक्रिया से दूर हो चुके हैं वहां संधानीय महाकषाय दिया जाना चाहिए यह संधानीय महाकषाय ऐसे जगहों में अपने विशिष्ट संधान कर्म के बदौलत उन बिखरे हुए  या टूटे हुए वस्तुओं को आपस में जोड़ने के लिए जाना जाता है।
Multiple compression fracture जैसे भयानक परिस्थितियों मे भी संधानीय महाकषाय देने के पीछे का कारण भी यही है । 

प्राणों का संधान हेतु Sandhaniya Mahakshaya दे सकते हैं।

आप जानते हैं pathology condition के अलावा सभी प्रकार के chronic condition में प्राणवायु बार-बार शरीर से अलग होने का प्रयत्न करता है।
वैसे रोचक कथा करने वाले आयुर्वेदिक कथावाचक तो यहां तक बताते हैं कि ह्रदय से निकलने वाला प्राणवायु नाक और मुंह के माध्यम से निरंतर शरीर से कवि ना लौटने का कसम खाकर शरीर से बाहर भागना चाहता है मगर शरीर के अंदर विद्यमान आत्मा के पूर्व संस्कार के बंधन से आवद्ध प्राणवायु उस पुर्व जन्म के संस्कार से मिलने वाले सुख-दुख रूपी कर्म फल जब तक समाप्त नहीं होता प्राणवायु उस आत्मा को छोड़ चाह कर भी वाहर हमेशा  के लिए  नहीं जा सकता  बताया जाता है यही पूर्वजन्म के कर्म फल का भोग है।
मगर जीर्ण अवस्था का शरीर है chronic condition है तो यहां प्राणवायु का संबंध शरीर के साथ बनाए रखने के लिए चिकित्सक निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। यहां पर भी हम Sandhaniya Mahakshaya दे सकते हैं यहां Sandhaniya Mahakshaya शरीर और प्राण का संधान करता रहेगा यानी आपस में जोड़ने का प्रयत्न करता रहेगा।

 

 

 

 

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