Advance Nadi Pariksha Course सीखने के इच्छुक लोगों के लिए Ayushyogi लेकर आया है Advance Nadi Pariksha Course . Advance Nadi Pariksha Course मैं आपको Nadi Pariksha के सभी विषयों को सीखने को मिलेगा साथ में Nadi Pariksha Advance Course यदि आप Package के रूप में लेते हैं तो Ayushyogi Nadi Pariksha Advance Course में आपको बेहद सरल भाषा में आयुर्वेदिक चरक संहिता जैसे विषयों को भी पढ़ने को मिलेगा।
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Note-आयुर्वेद विषयक गुरु शिष्य परंपरागत नाड़ी परीक्षण मर्म चिकित्सा तथा मेडिकल एस्ट्रोलॉजी को घर बैठे ऑनलाइन पढ़ने के लिए तुरंत 8699175212 मे संपर्क करें।
आप किसी भी क्षेत्र से जुड़े हुए हो यदि इन विषयों से अपने जीवन को कृतार्थ करना चाहते हैं तो आपको यह व्यवस्था हमारे द्वारा हमेशा उपलब्ध रहेगा।
AyushYogi Nadi Pariksha advance course संपूर्ण कायचिकित्सा के सिद्धांत को सिखाते हुए Nadi Pariksha कैसे किया जाए, नाड़ी परीक्षा करते वक्त किन-किन विषयों पर विशेष ध्यान रखना होता है इसके ऊपर गहराई से पढ़ाया जाता है।
Nadi Pariksha course सीखने के लिए बहुत आसान है। वैद्य द्रोणाचार्य जी बहुत आसान लफ्जों में आयुर्वेदिक ग्रंथों में लिखा हुआ संस्कृत के शब्दों को बेहद सरल भाषा में समझाते हैं।
Nadi Pariksha advance course सीखने के बाद हमें हमारा दैनिक जीवन कैसा होना चाहिए,शरीर में होने वालीं बहुत सारे लक्षणों का क्या प्रयोजन है आदि बहुत सारी बातें समझ में आती है।
वाकई में Nadi Pariksha ज्ञान एक चलता फिरता health diagnosis machine ही है इसको ध्यान पूर्वक सीखने से इंसान समाज में बहुत बड़ा यश को पाता है।
जो भी Nadi Pariksha vidhi सीखना चाहते हैं उनको यह समझना होगा की नाड़ी परीक्षण विधि का आधार क्या है। क्या यह संभव है कि किसी व्यक्ति के कलाई में हाथ रखते ही उसके शरीर और मन के सभी व्याधि को जाना जा सकता है? तो इसके जवाब में ग्रंथ कार क्या बोलते हैं देखिए।
यथा विणागता तन्त्री सर्वान्न् रागान्प्रभाषते।
तथा हस्तगता नाड़ी सर्वान्रोगान् प्रकाशते।।
इस श्लोक का अर्थ-
यथा-जैसे
विणागता - विणा नाम के वाद्य यंत्र में
तन्त्री - जो एक लोहे या तांबे का तार है वह
सर्वान्न्-सभी प्रकार के
रागान् - musically स्वर समूह तथा राग को
प्रभाषते- दिखाता है
तथा-उसी प्रकार से
हस्तगता नाड़ी-रेडियल आर्टीज में जो नाडी़ है वह भी
सर्वान्रोगान्- सभी प्रकार के रोग समूह को
प्रकाशते- दिखाता है।
हमेशा से नाड़ी परीक्षण सिखाने वाले गुरु के लिए तथा सीखने वाले विद्यार्थियों के लिए एक confusion ही रहती है की नाड़ी परीक्षण किस जगह में होनी चाहिए।
तो इसका उत्तर यह श्लोक देता है-
स्त्रीणां भिषगवामहस्ते वामेपादे च यत्न च।
शास्त्रेण सम्प्रदायेन तथा स्वानुभवेन च।।
इस श्लोक के एक-एक शब्दों का विश्लेषण अगर किया जाए तो बहुत आनंद आता है- भिषग यानी वैद्य को चाहिए की वह स्त्रियों के लिए बाएं हाथ और पुरुष के लिए दाएं हाथ में nadi Pariksha कर ले। ग्रंथकार को भी यह बात संशय पूर्ण लगता है इसीलिए उनको भी दूसरे क्रम में
शास्त्रेण सम्प्रदायेन तथा स्वानुभवेन च।।
यह वाक्य लिखना पड़ा- क्योंकि वह खुद भी इस उलझन में शायद पड़े हुए थे या उनके सामने भी लोगों ने खूब तर्क किया होगा की महाराज हृदय से बहने वाली रक्त और रस का प्रवाह यदि सभी शरीर में एक साथ संसार करता होगा तो क्या यह संभव नहीं है कि दोनों हाथ के रेडियल आर्टीज में एक साथ रस और रक्त पहुंचता है जब हमें नाड़ी परीक्षण हृदय के सुख-दुख रूपी भाव को समझने के लिए ही करना है तो दोनों ही हाथ में एक साथ बराबर मात्रा में ह्रदय से ही बह कर रस रक्त आ रहा है फिर यह विभेद क्यों की स्त्रीयों के लिए बाएं हाथ और पुरुष के लिए दाएं हाथ।
इसीलिए उनको कहना पड़ा कि आप अपने संप्रदाय, शास्त्र, तथा अपने स्वयं के अनुभव से जो चीज समझ में आता है युक्ति पूर्वक उसी को कर लेनी चाहिए।
बहुत सारे आयुर्वेदिक ग्रंथों और गुरुजनों के मुखारविंद से सुनने में आया है की Nadi Pariksha vidhi साक्षात भोलेनाथ जी का प्रसाद स्वरूप है शिव जी इस अमृतमय ज्ञान का प्रवर्तक है शिवाजी द्वारा Nadi Pariksha vidhi इस शिक्षा को बहुत लोगों ने प्राप्त किया है लेकिन ग्रंथ में जगह जगह भगवान ब्रह्मा जी तथा लंकाधिपति रावण का नाम सबसे ज्यादा आता है बताया जाता है कि रावण ने भोलेनाथ जी से ही आयुर्वेदिक ज्ञान सहित नाड़ी परीक्षण सिखा था। भोलेनाथ जी से ब्रह्मा जी ने इस ज्ञान को प्राप्त करके इंद्र को सिखाया था एक दिन कणाद ऋषि ने इंद्र से ब्रह्मा जी द्वारा प्रदत्त नाड़ी परीक्षण ज्ञान सीखने के लिए विनती किया तो मोह बस इंद्र ने कणाद को नाड़ी परीक्षण सिखाया था। फिर गुरु शिष्य परंपरागत यह दिव्य विद्या आगे बढ़ता गया।
नाड़ी परीक्षण करने वाले विद्यार्थियों के लिए या वैद्यों के लिए कुछ नियम आयुर्वेदिक ग्रंथ में पढ़ने को मिलता है। जैसे..
.प्रात:कृतसमाचार:कृताचार:परिग्रहम्|
सुखासीन:सुखासीनं परिक्षार्थानुपाचरेत्।।
नाड़ी परीक्षण का यह एक बेहद कड़वा सच है की नाड़ी परीक्षण हमेशा प्रातः ही करना चाहिए, वह भी सभी प्रकार के आचार और दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर ही कर लेनी चाहिए,
जैसे सुबह उठने के बाद सबसे पहले स्नान फिर देव दर्शन भगवान का पूजन मंत्र का उच्चारण शंख घंटी का निनाद को सुनना धूपबत्ती का मनमोहक खुशबू यह सभी मन को हीलिंग करने वाला बताया गया है।
फिर मेडिटेशन करने के बाद स्वस्थ होकर चिकित्सकों को रोगी के नाड़ी परीक्षण करना चाहिए ऊपर बताए गए दिनचर्या रोगी के लिए भी होना चाहिए यह सभी आयुर्वेदिक चिकित्सकों के लिए अनिवार्य बताया गया है यह नित्य नैमित्तिक क्रिया संपन्न होने के बाद प्रसन्न मुद्रा में जमीन में सुखासन में बैठें और रोगी का नाड़ी परीक्षण करें यही नाड़ी परीक्षण का उत्तम विधि है इस विधि से नाड़ी परीक्षण करने पर चिकित्सक रोगी के शारीरिक और मानसिक व्याधि को पकड़ने में सामर्थ रखते हैं।
ग्रंथकार ज्योतिष को देववाणी तथा नाड़ी परीक्षण को आत्मज्ञान कह कर संबोधन करते हैं। शरीरावयव का शुभ अशुभ विचार हृदय के माध्यम से बहने वाली रस,रक्त और इनमें स्थित ह्रदय के सुख दुख रुपी भाव हमें रेडियल आर्टीज में उंगली रखकर समझ में आता है।
इसीलिए इसको जिवसाक्षीणी कहकर संबोधन किया गया है। वाकई में नाड़ी परीक्षण विधि बहुत बड़ा विज्ञान संबंधित बातें हैं। मगर इसको जानने के लिए मन और बुद्धि का नियंत्रित होना बेहद जरूरी है। नियंत्रित मन बुद्धि चित्त अहंकार द्वारा ओतप्रोत हुवा वैद्य का शरीर जब किसी के रोग परीक्षण हेतु अपने साधना के बल पर सतत अभ्यास से मिला हुआ नाड़ी परीक्षा ज्ञान के माध्यम से जब रोग परीक्षण करने के लिए रेडियल आर्टीज में ध्यान लगाता है तो निश्चित उसे वह बात समझ में आती है जिसको किसी एलोपैथिक मशीन ने कभी नहीं बताया। नाड़ी परीक्षण के माध्यम से हम न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक व्याधि भी वखुभी जान सकते हैं।
नाड़ी परीक्षण करने के लिए सर्वप्रथम नाड़ी परीक्षा को सिखाने वाला गुरु से विधि पूर्वक ज्ञान प्राप्त करना पड़ता है।
जब तक श्रद्धा पूर्वक गुरु मुख से ज्ञान नहीं मिलता है तब तक वह अधूरा ज्ञान रोगी और वैद्य दोनों को कष्ट देता है। नाड़ी परीक्षा का संपूर्ण विधि को सीखने के बाद वैद्य सबसे पहले चरक को अपने ह्रदय में आवाहन करता है उसके बाद गुरु का चिंतन करके मेडिटेशन भाव में आकर रोगी के कलाई में उंगली रखना होता है।
हृदय से बहने वाली उर्जा रूपी रक्त की गति तथा उसके भार आदि क्वालिटी को उंगली के माध्यम से स्पर्श करके वैद्य संबंधित रोग का विनिश्चय करता है।
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Ayushyogi द्वारा संचालित advance nadi parikshan course में admission पाने के लिए आपको इसी website में स्थित online class वाले option में जाकर enroll करना होगा वहां Dronacharya Shastri के profile में जाकर नीचे जो enroll now का option है उसमें click करके अपना नाम mobile number अपना address यह सभी लिखकर submit करना है इस तरह से आपका admission हो जाता है।
Advance Nadi Pariksha class को सीखने के लिए आप में इतनी योग्यता होनी चाहिए जितनी से आप कुछ संस्कृत के शब्दों को समझ में आ सके हमारे लिए आपके अंदर आयुर्वेद सीखने के लिए अत्यधिक उत्साह ही बहुत बड़ा योग्यता है उत्साहहीन व्यक्ति के हाथ में कितना ही बड़ा डिग्री हो उसका कोई मायने नहीं रहता।
कणाद ऋषि द्वारा प्रतिपादित कूर्म चक्र सिद्धांत के बारे में जो रोचक सिद्धांत है वही वास्तव में नाड़ी परीक्षा का आधार है। सभी स्तनपाई जीव के नाभि में स्नायु जाल ऐसे बिछा हुआ रहता है जैसे कि एक कछुआ दिखता है। कछुए के आकृति वाला नाड़ी जाल को अनुभव करके ऋषि कणाद ने उसे कूर्म चक्र इस नाम से संबोधन किया है।
कूर्म चक्र पुरुष के शरीर में दक्षिण की ओर नीचे की ओर मुंह किया हुआ रहता है और स्त्री के शरीर में उत्तर दिशा की ओर उर्ध्व मुखी होकर रहता है।
यह कछुए की आकृति वाला नाडी़ जाल का एक क्षोर हृदय और मस्तिष्क तक पहुंचता है तो दूसरा क्षोर हाथ में पहुंचता है।
इसीलिए हृदय में और मस्तिष्क में होने वाली क्रियाएं हाथ के रेडियल आर्टीज में उंगली रखकर समझ में आती है।
नाड़ी परीक्षण रोगी के शरीर और मन में होने वाली हर एक प्रकार के सुख-दुख को समझने वाला सिद्धांत है।
यदि आप वाकई में विधि पूर्वक नाड़ी परीक्षण के सभी प्रकार के विचारों को सीखना चाहते हैं विधिपूर्वक गुरु के मुखारविंद से आयुर्वेद सिद्धांत के साथ नाड़ी परीक्षण की बातें समझना चाहते हैं तो देर मत करिए समय रहते ही द्रोणाचार्य जी द्वारा Google meet के जरिए online training प्राप्त करें।
द्रोणाचार्य जी ने जब सबसे पहले online Nadi parikshan course सिखाया तो महज 10 दिन तक में बातें खत्म हो गई थी लेकिन क्योंकि नाडी़ परीक्षण एक very interesting topic है और आयुर्वेद का सार है शरीर भाव को जानने का एक उत्तम जरिया है .
इसको देखते हुए अब इन दिनों नाड़ी परीक्षण के साथ-साथ चरक संहिता और काय चिकित्सा से संबंधित जो मुख्य मुख्य महत्वपूर्ण वातें हैं उसको भी पढ़ाया जाता है।
वैद्य द्रोणाचार्य जी का मानना है की हमारे पास नाड़ी परीक्षण सीखने के लिए अधिकतर ऐसे लोग आते हैं जिनको आयुर्वेद के बारे में knowledge नहीं होता ऐसे लोग जो online Nadi Pariksha course सीखना चाहते हैं उन्हें आयुर्वेद के कुछ मुख्य बातें भी समझ में आनी चाहिए क्योंकि online Ayurvedic nadi Pariksha course पूर्ण रूप से आयुर्वेदिक ग्रंथ से संबंध रखने वाला सिद्धांत है।
Nadi parikshan course सीखने वाले विद्यार्थियों को जिस तरह से AayushYogi online Nadi Pariksha course में Nadi parikshan vidhi सिखाई जाती है हालांकि इस तरह के प्रशिक्षण देने वाले दूसरे लोग 40,000 से अधिक पैसे लेकर विद्यार्थियों को नाड़ी परीक्षण विधि सिखाते हैं लेकिन AayushYogi Nadi parikshan Sansthan आपको सिर्फ 2100/-रुपया लेकर संपूर्ण Ayurvedic Nadi parikshan vidhi सिखाता है साथ में आयुर्वेद के सिद्धांत को सिखाते हैं। क्लास पूर्ण होने के बाद certificate दिया जाता है साथ में हर रोज क्लास के recorded videos और note pdf भी दिया जाता है.
साथ में यह भरोसा भी दिया जाता है कि यदि आपको कभी भी Nadi parikshan vidhi या दूसरे चिकित्सा विधि से संबंधित किसी प्रकार के confusion होने पर फोन से absolutely free of cost consultation का भरोसा दिया जाता है।
समय के साथ साथ आयुर्वेद ने कई रूपों का दर्शन किया है। हालांकि चरक संहिता ही सभी आयुर्वेदिक सिद्धांत का मूल है। बाकी के सभी ग्रंथ इसी मूल से निकले हुए ग्रंथ है।
मध्यकालीन समय के बाद जब विदेशी आक्रांताओने हिंदुस्तान में अतिक्रमण और लूटमार किया तो सबसे अधिक व्यथित होने वाला कोई चीज है तो वह हिंदू संस्कृति ही है।
विदेशी आक्रांताओं ने देखा हिंदू धर्म शास्त्र और कुछ ग्रंथ ही हिंदुत्व का ऑक्सीजन है जब तक इस को बर्बाद नहीं करेंगे तब तक हम हिंदुस्तान में राज नहीं कर सकते ऐसे दूसीत विचारों से ओतप्रोत उन आक्रांताओं ने सभी धर्म ग्रंथों को बर्बाद करना शुरू किया ।
उसी के चपेटे में आयुर्वेद भी आ गया लंबे समय तक आयुर्वेद विलुप्त हो चुका था लेकिन केरल में कुछ वैद्य इतना कुछ होने के बावजूद भी येन केन प्रकारेण आयुर्वेद के कुछ सिद्धांतों को बचाने में सक्षम हुए जीने हम पंचकर्म बोलते हैं ।नाड़ी परीक्षण विधि उसी पंचकर्म चिकित्सा विधि के अंतर्गत आता है।
रोग चिकित्सा के लिए diagnosis भी एक बहुत बड़ा पार्ट है। तो यह श्रेय केरल के उन महान वैद्यों के ऊपर ही जाता है जिन्होंने आयुर्वेद के कुछ खंडों को सुरक्षित रखा।
जिन्होंने ऐसे विषम परिस्थिति में भी आयुर्वेदिक अमृत को बचाए रखा हालांकि कुछ सिद्धांत को समेटे हुए ग्रंथ हिंदुस्तान और विदेशों के कुछ कोनों में जरूर उपलब्ध हुआ उन सभी को collection करके आज बड़ी मुश्किल से आयुर्वेद उभर रहा है।
नाड़ी परीक्षा और आयुर्वेदिक प्रशिक्षण के लिए बेंगलुरु भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। बेंगलुरु में स्थापित बहुत सारे आयुर्वेदिक फार्मेसी आज सफलतापूर्वक आयुर्वेदिक क्लासिकल मेडिसिन बनाने में सक्षम है। वहां केवल परंपरागत चिकित्सा के ऊपर अधिक विश्वास करते हैं। मैंने सोशल साइट में बहुत सारे वहां के आयुर्वेदिक गुरुओं से ऑनलाइन आयुर्वेदा का कोर्स भी किया हुआ हूं। वे लोग वही के पूर्व आयुर्वेद आचार्यों द्वारा प्रतिपादित आयुर्वेदिक चिकित्सा विधि और नाड़ी परीक्षा विधि के ऊपर अधिक यकीन करते हैं ।
हालांकि उन सभी पूर्व आचार्य द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत पूर्ण रूप से प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ के ऊपर मेल खाता है इन्हीं ग्रंथों के आधार पर वहां के वैद्यों ने देश काल परिस्थिति के आधार पर जड़ी बूटियों की गुणवत्ता को जान करके अपना सिद्धांत प्रतिपादित किया है।
Ayushyogi का संस्थापक वैद्य द्रोणाचार्य जी का संकल्प है की अति दुर्लभ कहे जाने वाले आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण सभी लोगों के लिए सुलभ होनी चाहिए एलोपैथिक चिकित्सा विधि में बहुत सारे कंफ्यूजन है मगर हमारे पूर्वजों द्वारा प्रदत्त घरेलू आयुर्वेदिक चिकित्सा विधि बहुत ही समय सापेक्ष रोग निर्मूलन हेतु हमेशा से तत्पर रहा है आयुष योगी के सफल प्रयास से आज लगभग हर शहर में नाड़ी परीक्षण करने वाले आयुर्वेदिक डॉक्टर विद्यार्थी और दूसरे लोग तैयार हो रहे हैं बहुत जल्द इस वेबसाइट में उन लोगों का डिटेल भी आपको दिखाई देगा।
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