आयुर्वेद में jatharagni : "जठराग्नि" का महत्व अत्यंत गहरा और व्यापक है। इसे शरीर का मुख्य अग्नि माना जाता है, जो भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करती है। हमारे शरीर की संपूर्ण क्रियाएँ, शक्ति और स्वास्थ्य जठराग्नि पर निर्भर करते हैं। इसे
समझने के लिए हमें इसके मूल तत्व, कार्य, और इसके असंतुलन के कारण होने वाले प्रभावों को गहराई से जानना होगा।
आयुर्वेद में "अग्नि" को जीवन का आधार कहा गया है। जठराग्नि विशेष रूप से पेट में स्थित अग्नि है, जो भोजन को पचाने और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करती है।
चरक संहिता में कहा हुआ इस सूत्र का यदि सही ढंग से समझ सको तो जठराग्नि क्या है और शरीर में कैसे काम करता है इसके बारे में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
आयुर्वणों बलं स्वास्थ्यमुत्साहोपचयी प्रभा।
ओजस्तेजोऽग्नयः प्राणाश्चोक्ता देहाग्निहेतुकाः ।।
शान्तेऽप्नो म्रियते. युक्ते चिरं जीवत्यनामयः ।
रोगी स्याद्विकृते, मूलमग्निस्तस्मान्निरुच्यते ॥ चरक संहिता चिकित्सा स्थान १५/२-३
मनुष्य शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा का संयोग (एवं चेतना का अस्तित्व), गौर-श्याम आदि वर्ण, शक्ति, शरीर का स्वस्थ बना रहना, कठिन कार्यों के करने की प्रवृत्ति का होना, देह की पुष्टि और वृद्धि, कान्ति, सर्वधातुसाररूप ओज, शरीर की ऊष्मा और वीर्य, सात धात्वग्नियाँ एवं पाँच भूताग्नियां और सभी दशप्राणा: (पाँच वायु अथवा अग्नि, सोम, वायु, सत्त्व, रज, तम, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और भूतात्मा), यह सभी देहपोषक जठराग्नि के समुचित क्रियाशीलता पर अवलम्बित है।
जठराग्नि ही इन सभी - ओज, तेज,शरीर की ऊष्मा और वीर्य, सात धात्वग्नियाँ आदि उपर वताये शारिर शक्तियों का पोषण करता है।
जैसे यदि किसी का चेहरे का रंग विगड रहा है या मन में depression ,stress बढ़ रहा है या व्यक्ति का ओज नाश हो रहा हो तो उसके अनेक कारणों में से एक प्रमुख कारण जठराग्नि की विकृति भी हो सकता है।
क्योंकि ऊपर के श्लोक में हमने यह समझ लिया है कि इन सभी चीजों को पोषण करने वाला सिर्फ जठराग्नि ही है।
अब यह सूत्र को तो एकदम याद कर लेना चाहिए क्योंकि nutrition और शरीर में पोषण से संबंधित अनेक प्रकार के सवालों का जवाब आयुर्वेदिक प्राचीन ग्रंथ में इस एक ही सूत्र में समेटा हुआ है।
यदन्नं देहधात्वोजोबलवर्णादिपोषकम् ।
तत्राग्निर्हेतुराहारान्न ह्यपक्वाद् रसादयः चरक /चि. १५/५॥
आहार के रूप में खाया हुआ जो अन्न शरीर की धातुओं एवं ओज, बल तथा वर्ण आदि का पोषण करता है, उस पोषण कार्य के सम्पादन में अग्नि ही प्रधान कारण है; क्योंकि यदि अग्नि आहार का समुचित रूप से पाचन न करे तो अपक्व आहार से रस-रक्त आदि धातुओं का उत्पादन नहीं हो सकता ।।
इस सूत्र का सीधा सा अर्थ यही होता है की हम जो कुछ भी खाते हैं वह खाए हुए पदार्थ हमारे शरीर का पोषण नहीं करता है बल्कि शरीर पोषण के लिए जठराग्नि ही प्रमुख कारण होता है।
फिर दूध दही आदि खाने से शरीर शक्तिशाली होता है ऐसा क्यों कहा जाता है
चरक संहिता चिकित्सा स्थान ग्रहणी दोष चिकित्सा अध्याय में वर्णित यह सूत्र इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का प्रमुख उत्तर देने में अहम भूमिका अदा करेगा बस इसकी शाब्दिक अर्थ को गहराई से समझने की जरूरत है।
चरक संहिता चिकित्सा स्थान अध्याय नंबर 15 सूत्र क्रमांक 3 से लेकर 5 तक के सूत्र हमें इंसान के शरीर का पोषण जठराग्नि के ऊपर निर्भर रहता है आहार तो सिर्फ इंधन मात्र है इस बात को सिद्ध करता हैं।
तो फिर अनेक आचार्य इंसान को दूध घी दही और अच्छी भोजन करने के लिए क्यों बोलते हैं यदि अग्नि ही शरीर पोषण का मूल आधार है तो आहार कि यहां क्या भूमिका है।
जाहीर सी बात है यदि जठराग्नि ही स्वस्थ शरीर का मूल आधार है तो फिर आहार की क्या भूमिका होगी यह सवाल तो बनता ही है। इसीलिए यहां शरीर पोषण में आहार का क्या भूमिका है इसके ऊपर चर्चा करेंगे।
जैसे ही हम भोजन करते हैं विधि पूर्वक किए हुए भोजन निश्चित रूप से जठराग्नि के सामने ईंधन के रूप में पहुंच जाता है।
वह अग्नि उस भोजन से संतुष्ट होकर अग्नि को बलवान बनाता है। मगर आहार में स्थित गंध और रस उस अग्नि को और अग्नि के माध्यम से महाभूत तथा धातु परीपाक की व्यवस्था को प्रभावित करती है जैसे छ प्रकार के रस का अपना-अपना महाभूत से संबंध होता है जैसे:-
कोई आदमी मधुर रस प्रधान भोजन करता है इसका मतलब वह जल और पृथ्वी महाभूत को प्रभावित करने वाली पदार्थ का सेवन कर रहा होता है।
जठराग्नि के सामने जब यह भोजन पहुंचता है तो महाभूतों को संतुष्ट करने का समर्थ रखने वाला जठराग्नि उस आहार में स्थित जल और पृथ्वी महाभूत से प्रभावित होकर शरीर में जितने भी जल और पृथ्वी महाभूत से तैयार अवयव है उन सभी को महाभूतात्मक चैतन्यता से आविर्भूत करता है।
इस भोजन से जठराग्नि के सामने गंध भी जाता है यह गंध भी पृथ्वी तत्व से गहरा संबंध रखता है गंध का संबंध पित्त के साथ भी है वहा विस्र शब्द आया है इसका अर्थ बदबू के रूप में होता है। रक्त में जब पित्त का विस्र गुण आता है तो रक्तपित्त होकर blood pressure के रूप में दिखाई देता है।
तो यह गंध भी जठराग्नि को प्रभावित कर शरीर पोषण से संबंधित विषयों को प्रभावित करती है।
इन बातों को स्पष्ट करता हुआ चरक संहिता का यह सूत्र देखिए।
अन्नमिष्टं ह्युपहितमिष्टैर्गन्धादिभिः पृथक् ।
देहे प्रीणाति गन्धादीन् घ्राणादीनीन्द्रियाणि च।
प्रिय एवं हितकर आहार से इन्द्रियों का पोषण-मनपसन्द और हितकारक गन्ध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श से युक्त आहार का उपयोग शरीर में आश्रित गन्ध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श को पोषण प्रदान करता है और घ्राण-नेत्र-जिह्वा-श्रोत्र और स्पर्शन, इन इन्द्रियों को प्रसन्न, तृप्त और पोषित करता है। (स्मरणीय है कि आयुर्वेद में इन्द्रियों को भौतिक माना गया है। उनके प्रतिक्षण होने वाले क्षय की पूर्ति के लिए उक्त गुण सम्पन्न आहार की महती उपयोगिता है) ।।
तो देखिए जरा भोजन में यह सभी जो गुण है वह उसे अग्नि द्वारा शरीर के योग्य बनाया जाता हैं।
आयुर्वेद के अनुसार जठराग्नि चार प्रकार का होता है:
1. साम्य अग्नि: यह संतुलित अग्नि है, जो शरीर और मन को स्वस्थ रखती है। संतुलित भोजन करने पर व्यक्ति संतुलित रहता है लेकिन जैसे ही वह कुछ असंतुलित भोजन करता है तो शरीर में कुछ गड़बड़ी होने लग जाता है इसे सम अग्नि कह सकते हैं
2. तीक्ष्ण अग्नि: यह अधिक तेज होती है, जिससे पाचन प्रक्रिया तेजी से होती है, लेकिन कभी-कभी जलन या अम्लपित्त की समस्या हो सकती है। हर तरह के भोजन जल्दी पच जाता है जल्दी भूख लग जाता है इसे तिक्ष्ण अग्नि कह सकते हैं। यह पित्त दोष से प्रभावित होता है।
3. मंद अग्नि : यह धीमी होती है, जिससे भोजन सही तरीके से नहीं पचता और अपच, आलस्य जैसी समस्याएँ होती हैं। हर तरह के भोजन डाइजेस्ट होता ही नहीं है मूंग की दाल भी कभी-कभी तो पचता नहीं है ऐसी स्थिति को मंद अग्नि कह सकते हैं। यह कफ दोष से प्रभावित होता है।
4. विषम अग्नि: इसमें पाचन प्रक्रिया असामान्य रहती है, जो कभी बहुत तेज और कभी बहुत धीमी हो जाती है। कभी तो हर तरह के खाए हुए गरीष्ठ से गरिष्ठ भोजन को भी अच्छी तरह से पचाता है मगर कभी सामान्य लघु आहार को भी पता नहीं पता ऐसे अग्नि को विषम अग्नि कहते हैं यह वायु दोष से प्रभावित होता है।
जठराग्नि को शरीर का मुख्य इंजन कहा जा सकता है। जब यह ठीक से काम करती है, तो शरीर स्वस्थ, ऊर्जावान और रोगमुक्त रहता है।
- भोजन का सही पाचन और पोषण का अवशोषण।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि।
- ऊर्जा और शारीरिक शक्ति में सुधार।
- मानसिक शांति और संतुलन।
जठराग्नि का असंतुलन और इसके प्रभाव:
अगर जठराग्नि कमजोर हो जाए, तो शरीर में कई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं: वास्तव में ऊपर लिखे हुए सूत्र के आधार पर तो हमें यही समझना चाहिए कि यदि शरीर में अग्नि dis balance हो जाए तब शरीर के सभी क्रियो को वह प्रभावित कर सकती है।
लेकिन मुख्य रूप से
1. अजीर्ण (अपच) : भोजन सही से नहीं पचता।
2. गैस और एसिडिटी : जठराग्नि तीव्र होने पर यह समस्या होती है।
3. मोटापा या दुबलापन : मंद अग्नि से मोटापा और तीक्ष्ण अग्नि से दुबलापन होता है।
4. रोगों का आक्रमण : कमजोर जठराग्नि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है।
वास्तव जठराग्नि को मजबूत करने के उपाय में भोजन क्या करना चाहिए इससे अधिक महत्व इस बात को लेकर रहता है कि भोजन कितना करें और कब करें आयुर्वेद के मुताबिक हमेशा जितना भूख लगा हो उससे कम ही भोजन करना चाहिए जैसे चरक संहिता त्रिकुक्षीय अध्याय में इस विषय में बहुत अच्छा लिखा हुआ है इंसान को हमेशा अपने आमाशय के तीन भाग करके एक भाग में ठोस पदार्थ दुसरे भाग में तरल पदार्थ और तीसरा भाग खाली रखना चाहिए ऐसा बताया गया है यदि आप इस विधि से भोजन का मात्रा निर्धारित करते हैं भूख लगने पर ही भोजन करते हैं भोजन उष्ण और स्निग्ध ही करते हैं तो जठराग्नि हमेशा मजबूत बना रहेगा हालांकि शरीर में रोग होने का अन्य भी बहुत कारण होते है उनमें से अधिक कारण आहार और बिहार ही रहता है तो इसको सुधारने से अग्नि प्रसन्न रहती है
जठराग्नि को संतुलित रखने के लिए आयुर्वेद में कई उपाय बताए गए हैं:
सही आहार और समय पर भोजन करना जठराग्नि को मजबूत करता है।
- सात्विक आहार ही मन को शुद्ध रखना है भोजन हमेशा सात्विक ही करें।
- हमेशा भूख लगने पर ही भोजन करें जितना भूख लगा है उसे थोड़ा कम भोजन करें,भोजन हमेशा गर्,म ताजा और चिकना पदार्थ से युक्त होना चाहिए भोजन के बीच में देसी गाय का घी हमेशा लिया करो।
- भोजन से पहले मधुर रस, बीच में अम्ल और लवण रस तथा भोजन के बाद कटु तिक्त और कषाय रस इस क्रम से लेना चाहिए। हम अक्सर देखते हैं । भोजन से पहले लोग मीठा खाते हैं भोजन के बीच में अचार और भोजन के बाद में पान (कषाय) खाना यह आयुर्वेद सम्मत क्रम है।
- खाना खाने के बाद डेढ़ घंटे तक सोना नहीं चाहिए क्योंकि उस बीच में आहार आमाशय में रहता है और प्रथम अवस्थापाक के तहत मधुर रस का निर्माण कर रहा होता है क्योंकि मधुर रस कफ को बढ़ाने वाला होता है यदि हम सो जाते हैं तो आहार पाचन की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है परिणाम से मधुर रस निर्माण की प्रक्रिया में दिक्कतें आती है।
- भोजन करने के बाद थोड़ी देर तक कम से कम 100 कम तक चलना चाहिए।
कुछ आयुर्वेदिक उपाय जठराग्नि को बेहतर बनाते हैं:
- त्रिफला: पाचन में सुधार के लिए अत्यंत उपयोगी।
- अदरक: खाने से पहले अदरक और नमक लेना फायदेमंद होता है।
- अजवाइन और सौंफ: अपच और गैस की समस्या से बचाव।
- समय पर सोने और जागने की आदत डालें।
- नियमित रूप से योग और प्राणायाम करें।
- तनाव और चिंता से बचें।
कुछ विशेष योगासन और प्राणायाम जठराग्नि को तेज करने में सहायक होते हैं:
- पवनमुक्तासन: पाचन तंत्र को सक्रिय करता है।
- भुजंगासन : पेट की अग्नि को संतुलित करता है।
- कपालभाति प्राणायाम: पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
जठराग्नि हमारे शरीर का मूल आधार है। यह न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन के लिए भी आवश्यक है। आयुर्वेद के अनुसार, जब जठराग्नि संतुलित रहती है, तो जीवन ऊर्जावान और सुखमय होता है।
इसलिए, संतुलित आहार, सही दिनचर्या और आयुर्वेदिक उपायों को अपनाकर हम जठराग्नि को मजबूत बना सकते हैं। याद रखें, जठराग्नि ही ऊर्जा और स्वास्थ्य का असली स्रोत है। इसे स्वस्थ रखना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
जठराग्नि पर FAQ (Frequently Asked Questions)
जठराग्नि आयुर्वेद के अनुसार पाचन शक्ति है, जो हमारे भोजन को पचाने, पोषण तत्वों को अवशोषित करने, और शरीर में ऊर्जा उत्पन्न करने का कार्य करती है।
असंतुलित आहार, अनियमित दिनचर्या, तनाव,और ऋतु परीचर्या का अभाव ही जठराग्नि असंतुलन के मुख्य कारण हैं।
- पेट में भारीपन
- अपच और गैस
- भूख में कमी या अत्यधिक भूख
- कमजोरी और थकान
- कब्ज या दस्त
- हल्का और सुपाच्य भोजन करें
- खाने में अदरक, अजवायन, और काली मिर्च का उपयोग करें
- नियमित योग और प्राणायाम करें
- दिन में दो समय या आयुर्वेदिक चिकित्सक के अनुसार अपने भोजन की व्यवस्था को सुधारे
हां, त्रिफला, हिंग्वाष्टक चूर्ण, और अदरक जैसी आयुर्वेदिक औषधियां जठराग्नि को सुधारने में मदद करती हैं।
भोजन के तुरंत बाद अधिक पानी पीने से जठराग्नि कमजोर हो सकती है। खाना खाने के एक घंटे बाद पानी पीना लाभदायक है। मगर यदि रोगी को मंदाग्नी है भूख नहीं लगती प्यास नहीं लगती तो पानी नहीं पीना चाहिए पानी पीने का सामान्य नियम यही है कि जब प्यास लगे तो आवश्यकता अनुसार पानी पीना चाहिए।
नहीं, जठराग्नि केवल पाचन ही नहीं, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता, मानसिक संतुलन, और ऊर्जा स्तर को भी प्रभावित करती है।
यदि आपको भूख कम लगती है, पेट में भारीपन रहता है, और ऊर्जा की कमी महसूस होती है, तो यह जठराग्नि कमजोर होने का संकेत है।
हल्दी, जीरा, सौंफ, और ताजा सब्जियां खाएं। अधिक तला-भुना और मसालेदार भोजन से बचें। आपके जठराग्नि बिगड़ने का मूल कारण क्या है यह बात आयुर्वेद डॉक्टर को बताइए और वह आपको उचित परामर्श देंगे
हां, लंबे समय तक जठराग्नि असंतुलन रहने से मोटापा, मधुमेह, एसिडिटी, और पाचन तंत्र से जुड़े अन्य गंभीर रोग हो सकते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक लगभग सभी प्रकार के रोग अग्नि के ही मंद पड़ जाने से हो सकता है |
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