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Indigestion,अजिर्ण या अपच यह सभी मंदाग्नि के कारण होते है। जाने मंदाग्नि से जुड़े सभी प्रकार के आयुर्वेदिक उपचार।

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Indigestion Causes समय से पहले भोजन करना,भूख लगने पर पानी पीना,प्यास लगने पर भोजन करना,विरुद्ध अन्न आहार का सेवन करना (जैसे दुध और मछली )पहले खाए हुए भोजन बिन पचे दूसरे भोजन खा लेना।

Indigestion नीज व्याधि का मूल अन्न है। जब अग्नि मन्द होता है तो अजीर्ण होता है। रोगा सर्वेपी मन्दाग्नौः इस अजिर्ण का 3 हेतु है।
आमाजिर्ण, विदग्धाजिर्ण,विष्टव्धाजिर्ण । वैसे ग्रंथकार रससेषाजिर्णादी अन्य भी कुछ अजिर्ण के बारे में बताते हैं। मगर प्रधानतः कफ, पित्त और वात के आधार पर होने वाली कफ से आमाजिर्ण,पित्त से  विदग्धाजिर्ण,वात से विष्टव्धाजिर्ण को ही हमें विशेष रूप से अजिर्ण  का कारण और भेद समझना होगा।
जो असंयमी व्यक्ति पशुओं के समान बिना प्रमाण के अधिक खाते हैं वहीं रोग समूह के मूल अजीर्ण (Dyspepsia) को प्राप्त करते हैं।
कफ पित्त तथा वायु की अधिकता या उनकी समता के कारण जठराग्नि क्रमस मंद,तीक्ष्ण,विषम एवं सम भेद से चार प्रकार की होती है। कफ से मन्दाग्नि Dispepsia  ,पित्त से तिक्ष्णाग्नि(विदग्धा जिर्ण) Acid Dispepsia, वात से विष्टव्ध अग्नि Atonic Dispepsia and chronic constipation इनकी साम्यवस्था में सम होती है।
   

How to Read Dyspepsia Medical Report

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  • अजिर्ण का कारण
  • नीचे बताए हुए स्थिति को विसमाशन बोलते हैं।
  • समयसे पहले भोजन करना।
  • भूख लगने पर पानी पीना
  • प्यास लगने पर भोजन करना
  • विरुद्ध अन्न आहार का सेवन करना (जैसे दुध और मछली )
  • पहले खाए हुए भोजन बिन पचे दूसरे भोजन खा लेना।
  • ( भोजन पचने के लिए 6 घंटा और दवाई पचने के लिए 3 घंटे का वक्त शरीर को चाहिए)
  • भूख मिट जाने के बाद भोजन करना
  • जोर से भूख लगने पर चाय पीना
  • रात में नींद ना आना


इन सभी व्यवहारों से शरीर में वायु की वृद्धि होकर अग्नि का नाश हो जाता है। इसी कारण से व्यक्ति को मंदाग्नि होना शुरू हो जाता है।
आमाशयगत वात यदि मंदाग्नि का कारण है तो उसे आमाजिर्ण कहेंगे। पक्वाशयगत वात यदि अजिर्ण का कारण है तो इसे विदग्धाजिर्ण कहेंगे। वस्तिगत वात यदि अजीर्ण का कारण हो तो इसे विष्टव्धाजिर्ण कहेंगे। इसीलिए वस्तुतः आयुर्वेद बताता है कि किसी व्याधि के नाम का यहां कोई महत्व नहीं है महत्व यह है कि कफ पित्त और वायु कहां पर किस तरह बैठा हुआ है और कल्पित दोष कौन है। आमाशय में कफ,पित्ताशय मे पित्त, वस्ति क्षेत्र मे वात कल्पित दोष है। उपचार करते वक्त आमाशयीक लक्षण दिखे तो बमन , पित्ताशय के लक्षण दिखे तो विरेचन , और वस्ती स्थान के लक्षण दिखे तो वस्ति चिकित्सा किए बगैर यह व्याधि कभी ठीक नहीं होगा। लक्षणों के माध्यम से वह जाना जा सकता है।

अद्यशन क्या होता है?


भूक्ततोपरी भोजनम्।।
भोजन करने के बाद ऊपर से चाय पीना मीठा खाना या कुछ और जो आप खाते हैं वह अध्यशन कहलाता है।
इससे मुझे चार प्रकार के व्याधि होगी।।

1.आमाजिर्ण

2 विदग्धाजिर्ण

3.विष्टव्धा जिर्ण

4 रसशेषाजिर्ण


यही अजिर्ण का प्रकार है। मगर यह सभी लक्षण और व्याधि का नाम दोष उत्पन्न होने के प्रारंभिक अवस्था में ही होता है।
 यानी यह समझ सकते हैं कि यह आमाजिर्ण आदि लक्षण इनिशियल फेस में ही देखने को मिलता है बाद में जब ब्याधि उत्पन्न होना शुरू होता है तो संभावित व्याधि का अलग-अलग लक्षण दिख सकते हैं। तब हमें कुछ चीजों के ऊपर ध्यान देना है जैसे।
यह लक्षण पक्वाशय के वजह से हुवा है या गुदगत वात से हुआ है या पित्तावृत वात से हुवा है या आमाशयगत वखत से हुवा है।
हर आवरण से शरीर में जो लक्षण दिखता है उसके आधार पर हमें चिकित्सा तय करना है।
उदाहरण से समझते है ...
कल मेरे क्लीनिक में एक लेडीस पेशेंट आई थी उसने व्याधि का लक्षण बताते हुए हमें बताया मुझे 2 दिन तक वस्ती क्षेत्र में दर्द के साथ कब्ज होता रहा,उसके साथ जंगा,उरु,जानु स्थान, तथा पिठ के निचले स्थान मे भयानक दर्द होना,गुडगुड् की पेट मे आवाज आना,गैस वनना लक्षण था।
इसका मतलब समझने में देरी नहीं लगा कि यह पूरीशावृत वात है। यहां हम पूरीशवेग का अवरोध होना भी समझ सकते हैं। यहां वस्ति क्षेत्र मे वायु रुका है । किसकी वजह से रुका है वस्ति स्थान मे स्थित पुरीष (मल)के वजह से,
किसके वजह से रुका है
 अब इस व्याधि में इलाज के लिए चरक संहीता का एरण्ड मूलादी निरह वस्ति देना है। 


एरण्ड मूलादी निरुह वस्ति का परिचय ?


मगर रोगी किसी कारण बस बस्ती चिकित्सा नहीं कर पा रहा था तो मेरा इस समस्या के लिए दूसरा पसंदीदा दवाई था एरंड भ्रष्ट हरीतकी या गंधर्व हरीतकी क्योंकि यह सभी उपाय वस्ती स्थान मे स्थित मल( बस्ति क्षेत्र गत कफावृत वायु) के ऊपर अच्छा काम करता है। अष्टांग हृदयम में सभी प्रकार के आवरण में एरंड का तेल विशेष रूप से प्रयोग करने के लिए बताया गया है।
यदि रोगी को दो-तीन दिन से कब्ज,दर्द और गैस का शिकायत है तो यहां मेरा पहला दवाई एरंड तेल होनी चाहिए।
उष्ण और स्निग्ध होने के वजह से एरंड तेल वात का अनुलोमन करता है।
ऊपर बताए हुए प्रारंभिक लक्षण बाद में
यह सभी ऊपर लिखे गए चार प्रकार के लक्षण  मंदाग्नि के कारण उत्पन्न हुआ आम के आवरण से हुआ है। उपचार के स्वरूप में हमें मधुर अम्ल लवण रस को तोड़ने के लिए उसके जस्ट विपरीत क्रमशः कटु,तिक्त, कषाय रस देना है। यानी की मधुर अवस्था पार्

अजीर्ण indigestion का लक्षण ?

मूर्छा प्रह्लाप, वमन, मुंह से पानी निकलना,अंगसाद,भ्रम ।
ग्लानि, भारीपन विष्टम्भ,भ्रम, अधोवायु का न निकलना,अतिसार, यह सभी अजिर्ण के लक्षण है।

आमाजीर्ण का कारण और लक्षण?


आमाजिर्ण मधुर अवस्थापाक की समस्या है। मधुर अवस्थापाक बढ़ने से मेरे शरीर में कफ बढ़ा है। यहां लक्षण स्वरूप
मुख मे मिठास,शरीर में भारीपन, बमन करने की इच्छा, माथे मे और अक्षिकृट मे सूजन ,भोजन के अनुसार अम्लता  रहित डकारे आना। इस तरह के लक्षण दिखाई दे तो इससे आमाजिर्ण समझना चाहिए।
 अजिर्ण का आयुर्वेदीक ट्रीटमेंट।
रोगी को प्रात काल सोंठ और हरण देना चाहिए। 
यहां सोंठ अग्नि दीपन और पाचन का कार्य करेगा और हरण अनुलोमन का कार्य करेगा।
आमाशय गत वात मे षड्धरण चूर्ण देना चाहिए। सुश्रुत संहिता चिकित्सा स्थान में इसके बारे में बताया गया है।
जाने षड्धरण चूर्ण के वारेमे।


आमाजिर्ण,Indigestion का कारण और उपचार?


आस्यासुखं स्वप्नसुखं दधिनि... आराम परस्त, बहुत अधिक स्वादिष्ट चीज खाने के शौकीन एक जगह बैठे रहना दिन भर सोते रहना व्यायाम ना करना दूध से बने हुए पदार्थों का ज्यादा सेवन करना,। इसमें दवाई के लिए हमें उष्ण वीर्य वाला ग्राही द्रव्य शोंठ देना है।


आमाजिर्ण मे वमन विधि

मदन फल पिपली 12 ग्राम
बच 6 ग्राम
सेंधा नमक 3 ग्राम शहद 20 ग्राम
इनको मिलाकर पेस्ट बनाएं और पिला दे।

 अधिक जाने- संपूर्ण आयुर्वेदिक पंचकर्म बमन विधि

आमपचन के लिए रोगी को रुक्ष आहार देना चाहिए जैसे सत्तू,जौ का आटा रोस्टेड फूड देना है क्योंकि यह सभी रुक्ष प्रकृति के अन्नआहार है। रुक्ष द्रव्य कफ के चिकनाहट को सुखाने का और तोड़ने का कार्य करता है etc..

आमाशय में स्थित आम को पचाने के लिए क्षार द्रव्य भी उपयोगी रहता है।यवक्षार, हिंग,त्रिकूटा से निर्मित हिंग्वाष्टक चूर्ण आमाशय स्थित कच्चा आम को पिघलाने और अग्नि को प्रदीप्त करने में अच्छा काम करता है। 
जाने हिंग्वाष्टक चूर्ण के गुणधर्म निर्माण और प्रयोग विधि विधि
हिंग्वाष्टक चूर्ण दीपन पाचन और क्षरण कर्म करने वाला क्षारद्रव्य प्रधान दवाई है।हिंग को बात अनुलोमन करने के लिए प्रख्यात आयुर्वेदिक दवाई माना जाता है। लेकिन पक्वाषय वायु कफ से अवरुद्ध है और  यदि मधुर अवस्थापाक की स्थिति शरीर में ज्यादा है यहां पर क्षरण कार्य करना ज्यादा जरूरी है तब हमें यहां पर लवण भास्कर देना जरूरी है। 

 

साम वायु में किस तरह से दवाई ले।

  •  
  • भेसज्य रत्नावली नामक  ग्रंथ के आधार पर साम वायु के 3 कल्प है।
  • भूतिक षठ्यादी षठी चूर्ण सामवायू के लिए प्रयोग करें।
  • प्रथम कल्प आमाशयगत वात हेतु - 
  • भूतिक, हरीतकी, कचूर,पूष्करमूल
  • द्वितीय कल्प ग्रहणीगत् वात हेतू-
  • विल्व,गुडुची, दारुहरिद्रा, सोंठ
  • तृतीय कल्प पक्वाशयगत वात हेतू
  • वचा,पिपली, विड्लवण

 

दोष पाचनादी गण के वारे मे जानकारी

इसे हरिद्रा बचादिगण के नाम से भी जाना जाता है। हरिद्रा बचादी गण ही एक ऐसा गण है जो दोष पाचन के लिए वनाया गया है। और चरक ने एक ही जगह में इस दोष पाचन गण के बारे में वर्णन किया हुआ है। 


विदग्धता जीर्ण Acid Dispepsia,Indigestion का कारण और लक्षण.

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द्वितीय अवस्थापाक मे समस्या होने से विदग्धाजिर्ण होता है। यहां पित्त के जलाने वाली गुण ज्यादा बढ़ा हुआ रहता है।यहां उर्ध्व अम्लपित्त के वोमाइटिंग टेंडेंसी, छाती में, ह्रदय वेदना+जलन कभी-कभी कंठ मे हाथ और पैरों में जलन, खट्टी  डकार,हेडेक,चक्कर आना, प्यास लगना,मूर्छा,जलन के साथ मुंह से धुआं जैसा निकलना शरीर से पसीना आना, होता है ।
 अधोग अम्लपित्त मे कफ के साथ पित्त बढ़ता है। विदग्धाजिर्ण के बगैर अधोग अम्लपित्त कभी नहीं हो सकता। अधोग अम्लपित्त मैं कफ के साथ पित्त है।उर्ध्वग अम्लपित्त मे वायुके साथ पित्त है। ध्यान देना उर्ध्वग अम्लपित्त मैं वायु के तेज प्रवाह के कारण विदग्ध अवस्था का पित्त कफ के स्थान में आया हुआ है। इसीलिए उपचार करते वक्त सबसे पहले वायु का किया जाना चाहिए कुछ लोग यहां कफ का उपचार करने के लिए बमन क्रिया बताते हैं लेकिन मुझे लगता है उर्ध्वग अम्लपित्त मैं वायु ही पित्त को लेकर कफ के स्थान में जा रहा है। तो सर्वप्रथम उर्धगामी वायु को अधोगामी किया जाए उसके बाद अम्लपित्त ही अकेला रह जाता है। तब अम्लपित्त के लिए विरेचन दिया जाए। उर्ध्वग अम्लपित्त मे निसोथ अच्छा दवाई है।
विदग्धाजिर्ण की अवस्था में बमन द्वारा दोष शुद्धि कराना चाहिए। यहां रोगी को उपवास भी कराना चाहिए बार-बार शीतल पानी पिलाते रहना चाहिए ताकि जो विदग्ध  अन्न है वह अच्छी तरह पक जाए।
महाशंखवटी भोजन के बाद देना अच्छा होता है यहां यवानी साडब चूर्ण भी दे सकते हैं।
नींबू के रस तथा चीनी के शरबत में मिलाकर फेन सहित उस पानी को पिलाना चाहिए।

अविपत्तिकर चूर्ण 6 ग्राम सतपत्र्यादी चूर्ण 3 ग्राम कामदुधा रस 250mg मिलाकर दिन में तीन बार देना चाहिए।
यष्ट्यादि चूर्ण 4 ग्राम गर्म पानी के साथ रात मे
विदग्धाजिर्ण अवस्थापक में हमें प्रवाल पंचामृत,पर्पटी कल्पना, घृत कल्पना प्रयोग करना है।

 

बिस्टव्धाजिर्ण (Atonic Dispepsia and chronic constipation) का कारण और लक्षण ?


यहां वायु विस्टव्ध हुवा है यह पुरीष का क्षेत्र है तो वायु को रोक्ने वाला भी पुरीष ही है। यानी यहां सबसे पहले पुरीष के ऊपर काम करनी चाहिए।यहां आध्मान (गैस) आटोप (पेटमें आवाज आना) वस्ती क्षेत्र में मल द्वारा वायु के मार्ग को रोका जाने से अवरुद्ध वायु कभी ऊपर कभी नीचे घूमना शुरू करता है इस वक्त पेट में गुड गुड करके शब्द निकलता है।
 गुब्बारे जैसा पेट का फूल जाना, वायु के कारण होरहा है।आनाह (वस्ति क्षेत्र में मल द्वारा वायु का रुक जाना)
पेट दर्द ,पेट मे भारीपन,अधोवायु की अप्रवृत्ति,जकडन, मूर्छा, अंगों में पीड़ा यह सभी लक्षण यहां दिखेंगे।
विष्टव्धा जिर्ण का इलाज।
विष्टव्धाजिर्ण मे सोंठ(ग्राही,कटुरसात्मक,मधुर अवस्थापाक) और हरण(अनुलोमक) के रुप मे काम करेगा यहां सोंठ अग्नि दिपन करेगा साथ मे हरण मल का छेदन करेगा।
गंधर्व हरीतकी भी यहां कार्य करता है|

जाने--गंधर्व हरीतकी चूर्ण के बारे

              
  रस शेषाजिर्ण का लक्षण ?

ह्रदय में भारीपन भोजन में अरुच विसूचिका का लक्षणबमन और लूज मोशन दोनों एक साथ होने पर विशुचिका समझना है।नींद ना आना, किसी भी स्थिति में आराम ना मिलना, कंपन, मुत्राघात,बेहोशी यह लक्षण विसूचिका का है। अतिसार (डायरिया) के ही तरह पहले मल रहता है किंतु बाद में मल नहीं सिर्फ चावल के धोवन के समान पानी ही मलद्वार से निकलता है.

प्रकूपित वायु अंगों में सुई जैसी चुभन उत्पन्न करता हुवा स्थिर होता है। यह अधिक असंयम पूर्वक भोजन करने का नतीजा है।

 

उदावर्त का कारण लक्षण?


वाग्भट ने अर्श के बाद उदावत व्याधि के बारे में बताया है इस क्रम को भी समझना जरूरी है कि आखिर वाग्भट ने इस तरह से इस क्रम को और रखा क्यों है। दरअसल बवासीर अपान क्षेत्र में अत्यधिक मल का इकट्ठा होने और शरीर से बाहर ना निकलने के परिणाम स्वरूप होने वाली व्याधि है ऐसी स्थिति में अपान वायु पूरी तरह से बंद हो जाता है।
अपान वायु के बंद होने से वही वायु उर्ध्वगामी होना शुरू हो जाता है। उसके बाद इसी कारण बस उदावर्त नाम का व्याधि दूसरे नंबर में शुरू होता है। दूसरे नंबर मतलब सबसे पहले तो अपान क्षेत्र में मलका संचय होगा। उसके बाद दूसरे नंबर में गुदा मार्ग के बंद होने के फलस्वरूप वही अपान स्थान में स्थित वायु ऊपर की ओर जाना शुरू हो जाता है यही दूसरे स्थिति को हम उदावर्त बोलेंगे। इसका मतलब उदावर्त होने के लिए मल का संचयन वस्ती स्थान में होना जरूरी है उसके बाद अपान वायु के संचिती होना, अपान क्षेत्र में मल द्वारा आवरण होना,और यह वायु उपर की और भागना यही क्रम बद्ध तरीका से उदावर्त में दिखेगा।
चरक संहिता  त्रिमर्मीय अध्याय में भी उदावर्त के बारे में बताया गया है । शिर, ह्रदय और वस्ती इनको त्रिमर्मीय स्थान बोलते हैं।इसका मतलब यह समझ सकते हैं की बिना उदावर्त के त्रिमर्मीय स्थान के व्याधि हो ही नहीं सकता।


इनकी आयुर्वेदीक उपचार ?

मंदाग्नि से होने वाली सभी प्रकार के व्याधि में खुद से आयुर्वेदिक दवाइयों का निर्माण करने की एक विधि है मैं आपको यहां उसे विधि के ऊपर बात करूंगा ताकि आप खुद से हर तरह के लक्षण वाले रोगी को देख कर के स्वयं ही दवाई तैयार कर सके।

अलसक का लक्षण ?


चरक संहिता के विमानस्थान के द्वितीय अध्याय त्रिविधकुक्षीयविमान में अलसक एवं उसकी चिकित्सा का उल्लेख मिलता है। जो आलसी व्यक्ति के समान हो गया है ।अर्थात एक ही स्थान पर स्थित रहने की प्रवृत्ति ही अल्सर रोग का कारक है।
जिस रोग में पेट बहुत फूल जाता है ,रोगी मूर्छित होता है, रुका हुआ वायु पेट के ऊपरी भाग हृदय, और कंठ आदि में घूमता रहता है,अधोवायु और मलका पूर्णतया अवरुद्ध हो जाता है तथा जिस रोग में प्यास और डकारे बहुत आती है उसे अलसक कहते हैं।

कारण- इस रोग में वात की प्रधानता रहती है स्थान प्रभाव से कफ का अनुबंध रहता है।

विलम्बिका का लक्षण?

जिस रोग में कफ और वायु से दुष्ट अन्न ऊपर या नीचे के किसी भी मार्ग से नहीं निकलता उसे बिलंबिका कहा जाता है।यह अती कष्ट साध्य या असाध्य व्याधि होता है।
 ⨼विलम्विका रोग΂अलसक रोग΂΁अजिर्ण΂अजिर्ण΂΁.कफ एवं वायु का संसर्ग΃.मल एवं अधोवायु का पूर्ण .΃.अवरोध΃.शूल अनुपस्थिती΃.विलम्ब से उत्पन्न΃.असाध्य΃΂कफ एवं वायु का संसर्ग΃मल एवं अधोवायु΃उदरशूल एवं आर्तनाद΃सद्य कालिक΃प्रारम्भ में साध्य दण्डालसक में असाध्य΃΂΁⨽ 
 ⨼विदग्धाजिर्ण΂अम्लपित्त΂΁शुद्ध पित्तज विकार΃खट्टी डकार मुंह से धुआं निकलना΃चक्कर आना प्यास लगना मूर्छा होना΂पित प्रधान वात पित्त अनुगामी΃कड़वा रस युक्त खट्टी डकार।΃ह्रदय और गले में जलन΃उत्क्लेश΃अधोग प्रवृत्ति΃अरुचि, शरीर में भारीपन΃΂΁΂΂΁⨽

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