what is a weak pulse कमजोर नाड़ी को समझना अब आसान होगा नाड़ी तरंग से कमजोर नाडी़ को पहचानने के लिए किन बातों के ऊपर विशेष ध्यान रखना होगा
आयुर्वेद को सीखना हर किसी के लिए compulsory है। किसी भी तरह का व्याधि शरीर में उत्पन्न होने से चार-पांच महीने पहले ही शरीर मे होने वाली व्याधि के बारे में बताना शुरू करता है । अलग-अलग लक्षणों के माध्यम से।कभी तो एक डेढ़ वर्ष पहले से ही शरीर में कुछ अलग तरह से हरकतें शुरू हो जाती है। जो सामान्य आयुर्वेद को सीख लेता है उन्हें यह शरीर का लक्षण महसूस करते ही सजग होने में अवसर मिल जाता है। अपने शरीर| के इन साइन को समझने तक आयुर्वेद सीखना आप हम सभी के लिए बहुत जरूरी है।
झूठी विकास के दौर में इतना भी अंधे ना हो कि शरीर का सामान्य नियम ही हम भूलने लगे और उन शारीरिक लक्षणों को सिखाने वाला आयुर्वेद को ही सिरे से नकारने लगे।
इसलिए एक आयुर्वेद नाड़ी परीक्षण प्रशिक्षक होने के नाते मेरा यह फर्ज है कि मैं आपको अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर कुछ आयुर्वेदिक सिद्धांतों को आप तक पहुंचा सकूं।
मेरे Nadi Pariksha के विद्यार्थी व्हाट्सएप में बहुत सारे सवाल पूछते हैं सभी को अलग-अलग जवाब नहीं दे सकता कृपया आपके क्वेरी नीचे के सवालों में हैं तो यहीं से जवाब तलाश करें।
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नाड़ी परीक्षण में कमजोर नाड़ी weak pulse की गति का मतलब क्या है।
आपका सवाल है कि weak pulse का मतलब क्या है। तो मैं बता दूं कि हमारे गुरुजी कहा करते थे कि जब किसी व्यक्ति के कलाई में अपना 3 उंगली को रखकर नाड़ी परीक्षण करते हैं तो उस वक्त हमारे तीन उंगली के नीचे जो नाड़ी का स्पाइक weak pulse कमजोर वल , मंद गति और बेहद भारी भारी सा लगता हुआ नाड़ी स्फूरण करता है तो उसे weak pulse बोलेंगे।
बता दें कि जब शरीर में कफ के परमाणु की मात्रा अधिक होती है | जब शरीर में जल और पृथ्वी तत्व की मात्रा अधिक होती है तो वात वाहिनी नाड़ियों पर इसका विशेष नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। कफ के बढ़ जाने से अग्नि बंद हो जाती है मंदाग्नि ही रोगों का जननी है। मंदाग्नि हो जाने के बाद वायु भी विकृत अवस्था में चला जाता है इन्हीं कारणों से शरीर के बैलेंस बिगड़ जाने के कारण होने वाला रोग को जानने के लिए जब हम रेडियल आर्टीज में अपने उंगली को रखते हैं तो वहां पर कमजोर नाड़ी weak pulse दिखती है।
निरंतर नाड़ी परीक्षण करते हुए मैंने अनुभव किया है की अक्सर रोगी के कलाई में हंस जिस प्रकार से पानी में जब आगे बढ़ता है तो पानी के अंदर किसी प्रकार का हलचल नहीं दिखता कुछ ऐसा ही तरंग से रहित मंद तीन अवस्था में रोगी के कलाई में आपको नारी दिखेगा तो इसे कमजोर नाड़ी weak pulse कहकर जानना चाहिए।
यदि आपका सवाल ह्रदय गति मैं होने वाली समस्या को लेकर है तो कृपया ध्यान से इस पोस्ट को पढ़ें।
आयुर्वेदीक नाडी़ परीक्षण के बदौलत हम आसानी से इस हृदय के गति को आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण के माध्यम से Diagnosis कर सकते हैं।
हम किसी भी व्यक्ति के लेफ्ट हैंड में जब अपने तीन उंगली को रखते हैं तो हमें हमारे तर्जनी उंगली को लेकर जन्म प्रकृति तक जाना है वहां दिखने वाली तरंग आपको हृदय में होने वाली व्याधि के बारे में सूचित करता है।
कमजोर या अनुपस्थित नाड़ी के सबसे सामान्य कारण कार्डियक अरेस्ट और शॉक हैं। कार्डिएक अरेस्ट तब होता है जब किसी का दिल धड़कना बंद कर देता है। शॉक तब होता है जब महत्वपूर्ण अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। यह एक कमजोर नाड़ी, तेजी से दिल की धड़कन, उथली श्वास और बेहोशी का कारण बनता है।
इस स्थिति को हम नाडी़ के बदौलत जान सकते हैं। कमजोर नारी की अवस्था में वैद्य के उंगली में मंद गति से नाडी़ महसूस होगी।
नाड़ी परीक्षण करते वक्त रोगी की कलाई में सावधानी पूर्वक अपने तीन उंगली को रखना होता है। जहां तर्जनी उंगली से वायु मध्यमा उंगली से पित्त अनामिका उंगली से कफ को जाना जाता है। उंगली दबाते वक्त सावधानीपूर्वक उंगलियों को बरोबर रेडियल आर्टरी में रखना है।
धीरे धीरे कलाई में स्पाइक को महसूस करते हुए अपने 3 अंगुलियों को बरोबर नीचे की ओर दवाना है।
हमारा प्रकृति पाञ्चभौतिक पदार्थों से बना हुआ है पृथ्वी जल तेज वायु आकाश यही है पाञ्चभौतिक पदार्थ।
इन्हीं पांच भौतिक पदार्थों से हमारा शरीर का निर्माण हुआ है।
आकाश और वायु तत्व मिलकर शरीर में वात दोष को निर्माण करते हैं।अग्नि और जल महाभूत के संयोग से शरीर में पित्त दोष का निर्माण हुआ है। जल और पृथ्वी महाभूत के संयोग से शरीर में कफ दोष का निर्माण हुआ है। शरीर का हर एक अग्रिम पॉइंट को शरीर सेंसर के रूप में प्रयोग करता है ।
जैसे पैर के अंगुली के सबसे अगले शिरा, जैसे जिह्वा के अग्रिम भाग, इत्यादि इसी तरह तर्जनी उंगली के अग्र भाग भी किसी सेंसर की तरह ही कार्य करती है।
जब हम कलाई में अपने उंगली के वही सेंसर वाली भाग रखते हैं तो जीवसाक्षीणी कहीं जाने वाली हृदय से निकलने वाली रक्त प्रवाह में संपूर्ण शरीर के सुख-दुख रूपी भाव को हम महसूस कर सकते हैं।
पल्स डायग्नोसिस हंड्रेड परसेंट एक्यूरेसी के साथ रोग निदान करता है।पल्स डायग्नोस्टिक समझने के लिए नाडी़ के ज्ञान जानना मात्र ही पर्याप्त नहीं होता। नाड़ी परीक्षण को समझने के लिए आत्म साधना की भी पर्याप्त जरूरत रहती है। जो हर रोज साधना करते हैं अपने मन के चंचल वेग को कंट्रोल करना जिसने सीख लिया। जिसकी वुद्धि में चंचलता नहीं है ऐसे व्यक्ति द्वारा नाड़ी परीक्षण किया जाने पर हंड्रेड परसेंट एक्यूरेसी के साथ रोग निदान संभव होता है।
नाड़ी बल के आधार पर स्पाइक को गिनती करने पर अगर देखें तो 50 से 60 संख्या में पल्सेशन लगता है तो इसे कफ वाला नाडी़ कहेंगे। 65 से 80 के बीचो बीच आपके उंगली में नाडी़ लगती है तो यह पित्त वाला नाडी़ है ऐसा समझना चाहिए। 80 से 90 के बीचो बीच आपके उंगली में नाडी़ लगती है तो यह वात दोष वाला नाडी़ है ऐसा समझना चाहिए। बालक अवस्था में शरीर कफ दोष से प्रभावित होता है। युवावस्था का शरीर पित्त दोष से प्रभावित होता है। वृद्धावस्था का शरीर वात दोष से प्रभावित होता है।
चिंता यानी anxiety.यह मन के विकार ग्रस्त होने की वजह से होने वाली व्याधि है मन में पूर्ण रूप से वायु का आधिपत्य है हालांकि कफ और पित्त भी मन को दूषित करने में सहयोगी होते हैं।
मज्जा धातु मन को पोषण करने वाला होता है। सभी प्रकार के स्वस्थ वर्धक कफ कारक पदार्थ मन को पोषण करते हैं।
इसीलिए निश्चित है कि जब कभी वायु शरीर में बढ़ता है तो कफ क्षीण होने लगता है। जब कफ क्षीण होता है तो मन भी दूषित होने लगता है। नाड़ी परीक्षण के बदौलत हम बात वृद्धि और कफ क्षय इस अवस्था को एंजायटी चिंता घबराहट के रूप में महसूस कर सकते हैं।
जब हम जन्म प्रकृति दोष विकृति देखने के लिए नाडी़ में सजग होते हैं। उस वक्त हमें मन की इस गति को आसानी से समझ में आती है।
जन्म प्रकृति जानने का तरीका इस वीडियो में बताया गया है।
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