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Deha Prakriti pariksha in hindi |अपना देह प्रकृति का निर्णय करें।

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Prakriti pariksha आयुर्वेद का महत्वपूर्ण विषय है। प्रत्येक व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक व्यवहार उसकी वातादि दोषों के आधार पर निर्धारित होता है।
आईये इस post में हम आयुर्वेदिक ग्रन्थों में वर्णित वातादि दोषों से उत्पन्न होने वाली शारीरिक और मानसिक प्रकृति के ऊपर चर्चा करें।

Deha Prakriti क्या है।

Deha Prakriti रज और वीर्य का संयोग जब गर्भ में हुआ तब वहां जिस दोष की उत्कटता अंशत: ज्यादा रहेगा वही जन्म प्रकृति और कफ पित्त और वात-इन ३ दोषों में से जिस दोष से संबंधित आहार-विहार माता ने किया था उससे देह प्रकृति का निर्माण होता है।


शुक्रशोणितसंयोगे यो भवेद्दोष उत्कटः ।
 प्रकृतिर्जायते तेन तस्या मे लक्षणं शृणु' ।। (सु.शा. 4:63)

इस श्लोक का अर्थ गंभीर है इंसान का उत्पत्ति प्राकृत रूप शुक्र/शोणित बीज में दोषों की उत्कटता अंशत: रहने से ही संतान उत्पत्ति होती है ।।
कुल मिलाकर किसी व्यक्ति का स्वभाव उसका गुणधर्म का निर्णय उसके कर्म का अपेक्षा नहीं रखता हालांकि सतत कर्म करने से परिवर्तन किया जा सकता है।
प्रकृतिः नाम जन्म मरणान्तर काल भाविनी, गर्भावक्रांति
 समये स्वकारणोद्रेक जनिता निर्विकारिणी दोष स्थितीः ।

 Deha Prakriti


Prasna pariksha के माध्यम से हम उस व्यक्ति के Deha Prakriti को आसानी से जान सकते हैं।

Deha Prakriti को जानने से क्या होगा।

देह प्रकृति को जानने से यदि आप चिकित्सक हो तो आपको उस व्यक्ति के शरीर में किस प्रकार के चिकित्सा देना चाहिए, उसका अग्नि बल कैसा है सत्व बल कैसा है आदि बहुत सारी बातें समझा जा सकता है आयुर्वेदिक चिकित्सा देह प्रकृति को जाने बगैर संभव ही नहीं है इसीलिए नीचे कफ पित्त और वात से संबंध रखने वाला प्राकृतिक स्वभाव के हेतु कारण आदि सभी बातों का उल्लेख किया गया है कृपया पूरा post को जरुर पढ़े और आप का शरीर किस Deha Prakriti  द्वारा बना है इसका निर्णय करें।

 

वात प्रधान देह प्रकृति पुरुष निर्णय।

अव्यवस्थितमति बलदृष्टिर्मन्दरलगनसञ्चयमित्रः ।
किञ्चिदेव विलपत्यनिबद्धं मारुतप्रकृतिरेष मनुष्यः ॥
वातिका बाजगोमायुशाखूष्ट्रनो तथा ।
 काकखरादीनामनुकैः कीर्त्तिता नराः' ॥ (सु.शा. 4:66,67)

  • अस्थिर मति वाला
  • चञ्चल दृष्टि वाला
  • जिसके पास रत्न, मन एवं मित्र कम होते है
  • तथा असंबद्ध वार्ता करने वाला

वातप्रकृति पुरुष होता है। वातप्रकृति पुरुष बकरी, मृगाल, खरगोश, चूहा, ऊँट, कुत्ता, गृद्ध, कौआ, गदहा के स्वभाव वाला होता है। वातला:प्रायेणाल्पबला चाल्पायुषश्चाल्पापत्या चाल्पसाधनाश्च भवन्ति।  (च.वि. 8:98)

वात  प्रकृति मनुष्य अल्प बल, अल्प आयु अल्प सन्तान अल्प साधन-सामग्री वाला एवं दरिद्र होता है। 


'अल्पकेशः कृशो रूक्षो वाचालश्चलमानसः
आकाशचारी स्वप्नेषु वातप्रकृतिको नरः । (शा.पू. 6:20)

वात  प्रकृति पुरुष अल्पकेश युक्त, कृश एवं रूक्ष शरीर वाला, वाचाल एवं चपल होता है। यह स्वप्न में आकाश में विचरण करता है वात  प्रकृति पुरुषों के लक्षणों की निम्न पाँच वर्गों में विभाजित करते हैं |

 

वात प्रधान शरीर रचना सम्बन्धी लक्षण
वात प्रधान पुरुष का शरीर

  • रूक्ष, कृश, मेदरहित, खुदरा एवं लम्बा होता है।

  • वे देखने में सुन्दर नहीं होते

  • उनके अंग-प्रत्यंग एवं पैरों मे विवाई रहती है

  • उनका शरीर भार में हलका, हाथ, पैरों एवं शरीर के अन्य भागों की कण्डरायें स्पष्ट तथा हात एवं पैर पर कण्डराओं का जाल दिखता है

  • उनकी पिंडलियां उभरी हुई लगती हैं

  • केश-दाड़ी-मूछ के बाल, नख, दन्त पैर खुरदरे एवं धूसर खुरदरे अल्प धूसर वर्ण के होते है

  • उनकी आंखें खुरदरे,धूसर वर्ण के,गोल, लालिमा लिये मृत मनुष्य के होते हैं

  • उनकी नेत्रसन्धि, भ्रू, हनु-ओष्ठ-जिह्वा, सिर-स्कन्ध-पाणिपाद अस्थिर एवं गतिशील होते हैं

  • उनके नेत्र सोते समय भी खुले रहते है।


(2) वात प्रधान शरीरक्रिया सम्बन्धी लक्षण

वात प्रधान मनुष्य

  • बहुभाषी,घुमक्कड़,शीघ्र गतिशील एवं असम्बद्ध भाषी होते हैं
  • उनका स्वर रूक्ष, क्षीण, जर्जर, चल, गदगद, मिनमिना अथवा बैठा हुआ-सा होता है।
  • उनकी गति और चेष्टाएँ, • लघु एवं चञ्चल होती हैं
  • और वे कार्य शीघ्र प्रारम्भ करते हैं तथा शीघ्र क्षुभित होते हैं
  • उनकी सन्धियों से चलने में शब्द होता है तथा दृष्टि चञ्चल होती है
  • वे शीतद्वेषी होते है (यानी ठंडा पानी से नहाना पसंद नहीं होता)
  • और उनमें स्तम्भ, कम्प एवं अन्य शीत विकार शीघ्र होते हैं
  • उनका आहार-विहार हलका, चपल तथा अग्नि विषम होती है(अग्नि विषम का मतलब होता है कभी तो खाया होगा सब चीज पचजाता है और कभी थोड़ा सा खाया हुआ भी बिल्कुल नहीं पचता)
  • वे कभी कम और कभी अधिक भोजन करते हैं।
  • इन्हें मधुर, अम्ल, लवण, उष्ण एवं सात्म्य भोजन प्रिय होता है।

(3) वात प्रधान मानसिक लक्षण–

  • वात प्रधान पुरुष वाचाल, असम्बद्ध भाषी(अर्थविहीन बात करना)
  • दृढ़ता की कमी वाले,(यानी जिसके ऊपर आंख बंद करके भरोसा नहीं किया जा सकता) अजितेन्द्रिय,
  • अनार्य, नास्तिक, चोर, क्रोधी, कृतघ्न, हिंसक एवं अस्थिर बुद्धि के होते हैं
  • इनमें भय, प्रीति, विरक्ति, क्रोध, क्षोभ तथा कामादिक मानसिक विकार शीघ्र होते हैं
  • यह कार्य में जल्दबाज, अल्प निद्रावाले एवं गीत, नृत्य, वाद्य, हास, विलास, मृगया के शौकीन तथा कलहप्रिय होते हैं
  • दूसरे की सुनी बात शीघ्र समझ जाते हैं परन्तु अल्प स्मृति से भूल भी जाते हैं
  • इनमें धैर्य कम होता है, अस्थिर चित्त, अस्थिर बुद्धि एवं (अस्थाई मैत्री जान जल्दी मित्रता को तोड़ देने वाले) वाले होते हैं।

(4) वात प्रधान का सामाजिक लक्षण - 

  • वात प्रधान  पुरुष चोर, उचक्का, अनार्य, नख को दन्त से काटने वाला,
  • स्त्रियों से अल्प प्रीति,
  • अल्प सन्तान
  • अल्प साधन, अल्प धन, अल्प मित्र
  • अल्प वीर्य, अल्प बल एवं अल्पायु होते हैं।

 वात प्रधान का  स्वप्न विचार 

  • वात प्रधान पुरुष स्वप्न में आकाश में विचरता है
  • पर्वतों पर विचरण करता है एवं वृक्षों पर चढ़ता-उतरता है

स्वप्न में इनके कार्य एवं व्यवहार

  • बकरी, गीदड़, खरगोश, चूहा, ऊँट, कुत्ता, गीध, कौआ एव गधे के समान होते हैं।

पित्त प्रधान पुरुष निर्णय

'न भयात् प्रणमेदनतेष्वमृदुः प्रणतेष्वपि सान्त्वनदानरुचि ।

भवतीह सदा व्यथितास्यगतिः स भवेदिह पित्तकृतप्रकृतिः ॥

भुजङ्गोलूकगन्धर्वयक्षमार्जारवानरैः । 
व्याघ्रनकुलानूकैः पैत्तिकास्तु नराः स्मृताः ' ॥ (सु.शा. 4:70-71)

  • पित्त प्रकृति पुरुष डर से नम्र नहीं होता,(यानी इनको डराने वाली बातें या व्यवहार करना उचित नहीं है इससे वे लोग डरते नहीं हैं)
  • उद्धत लोगों को कठिन, नम्र लोगों को शान्त करने में दक्ष
  • बोलने में कष्ट महसूस करने वाले तथा मुखपाक वाले होते हैं
  • इन मनुष्यों का स्वभाव सर्प, उल्लू, गन्धर्व, यक्ष, मार्जार, व्याघ्र, रीछ एवं नकुल(नेवला) के समान होता है।

'पित्तला मध्यबला मध्यायुषो मध्यज्ञानविज्ञानवित्तोपकरणवन्तश्च भवन्ति' । (च.वि. 8:97

पित्त प्रकृति के मनुष्य मध्य बल, मध्य आयु, मध्य ज्ञान-विज्ञान, मध्य उपकरण वाले होते हैं।

अकालपतितैर्व्याप्तो धीमान् स्वेदी च रोषणः । 
स्वप्नेषु ज्योतिषां द्रष्टा पित्तप्रकृतिको नरः' ।। (शाम पू. 6:21)

पित्त प्रकृति पुरुष के केश असमय में ही श्वेत हो जाते हैं। वह बुद्धिमान, एवं क्रोध की अधिकता वाले और स्वप्न में अग्नियाँ एवं ज्योतिलौक की वस्तुएँ देखते है।
पित्तप्रकृति पुरुषों के लक्षणों को पाँच वर्गों में विभाजित करते हैं।

पित्त प्रधान- शरीर रचना सम्बन्धी लक्षण-

  • पित्त प्रकृति पुरुष का शरीर गौरवर्ण, उष्ण, शुष्क एवं सुकुमार होता है
  • उनके नख, नेत्र, तालु, जिह्वा, ओष्ट, पाणिपाद तल ताम्र वर्ण के उनके अंग-प्रत्यंग, सन्धि एवं मांस मृदु, पीत एवं शिथिल होते हैं।
  • वे देखने में सुन्दर नहीं होते 
  • उनके केश, श्मश्रु, लोम तथा नख मृदु, कपिश एवं पिंग वर्ण के होते हैं
  • उन्के रोम अल्प होते हैं
  • नेत्र चल एवं पिंगल वर्ण तथा पक्षम अल्प एवं तनु होते हैं
  • उनके शरीर एवं चेहरे पर मुहाँसे, पिंपल, व्यंग, तिल, पिडक, रंग,एवं नीलिका अधिक होती है
  • चेहरे पर शीघ्र झुर्रियाँ पड़ जाती है
  • सिर के बाल असमय में पक जाते हैं अथवा असमय में गिरकर सिर गंजा हो जाता है।

(2)पित्त प्रधान शरीरक्रिया सम्बन्धी लक्षण-

  • पित्तप्रकृति पुरुष उष्णता सहन नहीं कर पाते
  • ये उष्ण मुख, तीक्ष्णाग्नि एवं क्षुत्पिपासा अधिक लगने से बार-बार जल पीने वाले तथा अधिक खान-पान करने वाले होते हैं
  • वे धूप कार्य नहीं कर पाते
  • क्लेश सहन करने में अक्षम होते हैं
  • उनमें प्रायः मुखपाक की बाधा रहती है
  • उन्हें स्वेद अधिक आता है
  • उनके मूत्र-पुरीष आदि में मल का आधिक्य रहता है
  • स्वेद एवं शरीरस्थ अन्य स्राव दुर्गन्ध युक्त एवं कक्षा, मुख, सिर, मल-मूत्र एवं सम्पूर्ण शरीर से आम (कच्ची संडांद की) गन्ध आती है
  • शुक्र का निर्माण अल्प होता है
  • ये अल्पश्रम, अल्प मैथुन प्रवृत्ति एवं अल्प सन्तान तथा अल्प प्रीति वाले होते हैं
  • इन को मधुर-कषाय-तिक्त एवं शीत आहार-विहार प्रिय होता है
  • शीतल स्थान एवं शीतल पेय अधिक प्रिय हैं
  • क्रोधावस्था में, सूर्य के अत्यधिक प्रकाश एवं धूप में तथा मद्य सेवन से इनके नेत्र शीघ्र लाल हो जाते हैं।

पित्त प्रधान मानसिक लक्षण– 

  • पित्तप्रकृति पुरुष तीक्ष्ण, पराक्रमी
  • सभा एवं वादन विवाद में अपनी प्रतिभा से विरोधी को परास्त करने वाले
  • युद्ध में निर्भय एवं शत्रुजयी होते हैं
  •  कुशाग्र बुद्धि, ऐश्वर्य, साहस एवं बुद्धिबल से युक्त तथा तेजस्वी होते हैं
  • ये भय से नहीं घबड़ाते तथा भय से झुकते भी नहीं
  • जो व्यक्ति इनसे दुष्टता करते हैं उनके साथ ढीट एवं दुष्ट व्यवहार करने वाले होते है
  • और नम्र व्यक्तियों के प्रति उत्तम एवं नम्र व्यवहार एवं सान्त्वना देने वाले और उनके कार्यों में सहायक होते हैं
  • इन व्यक्तियों को शीतल उबटन लगाने, चन्दन आदि का लेप करने, विभिन्न इत्र एवं खुशबू का प्रयोग करने, फूल के हार, वस्त्र एवं आभूषणों आदि का शौक होता है
  • ये क्रोध से शीघ्र क्षुभित होने वाले एवं शीघ्र क्रोध शान्त कर प्रसन्न होने वाले होते हैं। यानी किसी बात को लेकर जल्दी क्रोधित तो हो जाता है मगर कफ प्रकृति वालों की तरह लंबे समय तक उसी बात से दिमाग खराब भी नहीं करते रहते हैं।

 

पित्त प्रधान प्रकृति का - सामाजिक लक्षण 

  • पित्तप्रकृति पुरुष शूर-वीर, अभिमानी, चरित्रवान्, पण्डित, साफसुथरा रहने वाले
  • आश्रितों एवं पड़ोसियों के प्रति प्रेम करने वाले,
  • मध्यम बल, मध्यम आयु, मध्यम ज्ञान-विज्ञान, मध्यम उपकरण, मध्यम धन एवं मध्यम सन्तान वाले होते हैं।

पित्त प्रधान प्रकृति स्वप्न - 

  • पित्तप्रकृति पुरुष स्वप्न में स्वर्ण, पलाश, कर्णिकार, अग्नि, बिजली

  • उल्का, सूर्य, वायु, पुष्पित अमलतास, दिशाओं में लगी आग

  • पीत, उष्ण एवं दाहक वस्तुओं को देखता है

  • इनका स्वभाव सर्प, उलूक, गन्धर्व, यक्ष, विडाल, व्याघ्र, वानर, रीछ एवं नेवले के समान

  • और ये नाच-गाना-वादित्र आदि के शौकीन होते हैं।

 

श्लेष्म (कफ) प्रधान प्रकृति पुरुष निर्णय।


रक्तान्तनेत्रः सुविभक्तगात्रः स्निग्धच्छविः सत्त्वगुणोपपन्नः ।

क्लेशक्षमो मानयिता गुरूणां ज्ञेयो बलासप्रकृतिर्मनुष्यः ॥

ब्रह्मरुद्रेन्द्रवरुणैः सिंहाश्वगजगोवृषैः । 
तार्क्ष्यहंससमानूकाः श्लेष्मप्रकृतयो नराः ॥ (सु.शा. 4:74,76)

  • श्लेष्म प्रकृति पुरुष के नेत्रों के प्रान्त लाल एवं सम्पूर्ण नेत्र श्वेत होते हैं
  • शरीर गठीला तथा कान्ति स्निग्ध होती है
  • मन सत्त्व गुण से युक्त रहता है
  • ये कष्ट को सहन करने वाले
  • गुरुओं की भक्ति करके प्रसन्न करने वाले होते हैं
  • कफ प्रकृति व्यक्ति ब्रह्मा, इन्द्र, वरुण, रुद्र, सिंह, अश्व, गज, गाय, बैल आदि जानवरों के और गरुड़, राजहंस आदि पक्षी के समान स्वभाव (यह सभी गंभीर स्वभाव और शक्ति वाले होते हैं)
  • कफ प्रकृति पुरुष बलवान्, धनवान्, विद्यावान्, शान्त, ओजस्वी एवं दीर्घायु होते हैं।
  •  

'गम्भीरबुद्धिः स्थूलाङ्गः स्निग्धकेशो महाबलः । 
स्वप्ने जलाशयालोकी श्लेष्मप्रकृतिको नरः' । (शा.पू. 7:22)

  • कफ प्रकृति पुरुष गम्भीर बुद्धि, स्थूल एवं गठित शरीर वाला(यानी जिस का कद छोटा है)
  • सिल्की केश, अति बलवान् तथा स्वप्न में जलाशयों को देखने वाला होता है।

2) शरीरक्रिया सम्बन्धी लक्षण -

  • श्लेष्म प्रकृति पुरुषों की वाणी एवं स्वर स्निग्ध, प्रसन्न और मेघ, समुद्र, मृदङ्ग अथवा सिंह के स्वर के समान गम्भीर होते हैं
  • बोलने में शब्दों का क्रम निश्चित और अर्थपूर्ण होता है
  • मुख से निष्ठुर वाक्य नहीं निकलते। वे परिमित और निश्चित बोलते हैं
  • इनकी गति मदयुक्त गजराज के समान और पाद-निक्षेप सन्तुलित, अस्खलित, निश्चित एवं अचल होता है
  • इन्हें क्षुधा पिपासा कम होती है तथा धूप-ताप एवं स्वेद से कम पीड़ित रहते हैं
  • इनकी शारीरिक एवं मानसिक चेष्टाएँ तथा आहार-विहार मन्द होता है
  • इस प्रकृति वाला पुरुष सहसा क्रोध, शोक, मान, मद आदि मानसिक विकारों से आक्रान्त नहीं होता
  • किसी कार्य को शीघ्र प्रारम्भ नहीं करता अपितु सोच-विचार कर करता है
  • वह धैर्यशाली, सहनशील, क्षमावान्, परिश्रमी और धर्मात्मा होता है
  • बाल्यावस्था में भी अधिक नहीं रोता और न ही अधिक चपल होता है
  • उन्हें मधुर आहार प्रिय होता है और वे तिक्त-कषाय-कटु उष्ण-रूक्ष आहार एवं अल्प भोजन करते हैं तथापि बलवान होते हैं
  • ये व्यक्ति स्त्रियों को प्रसन्न रखते हैं तथा ओज, शुक्र, मैथुन, सन्तानसम्पन्न एवं भृत्य प्रभृत होते हैं।

(3) मानसिक लक्षण -

  • श्लेष्म प्रकृति पुरुष शान्त, धीर, सहनशील, लालच से रहित, सत्त्व गुण युक्त एवं बलवान् होते हैं
  • यह क्लेश सहन करने में समर्थ, गुरुओं एवं बड़ों का आदर करने वाले, बुद्धिमान्, सत्यवादी
  • स्मृतिवान्, विनीत, क्षमाशील, लज्जायुक्त, विद्वान्, सीधे-सादे, दीर्घसूत्री और निद्रालु होते हैं।
  •  

(4) सामाजिक लक्षण

श्लेष्म प्रकृति पुरुष धर्मात्मा, दूरदर्शी, बड़ों के प्रति शृद्धालु, गुरुभक्त, स्थिर मित्रता वाले, पहले से लक्ष्य को निर्धारित कर कार्य करने वाले, गम्भीर, ईर्ष्या रहित, बलवान्, ओजस्वी एवं शान्त होते हैं। वह विचार कर ही दान देता है ।

वात प्रकृति वालों की तरह आवेश में आकर दान पुण्य का कार्य नहीं करता।और जब दान करता है तो उदारतापूर्वक करता है। वह किसी से बैर नहीं करता परन्तु बैर होने पर वह चिरस्थाई, दृढ़ एवं गुप्त रहता है। शास्त्र में उसकी बुद्धि एवं विश्वास दृढ़ होता है। वह बात को देर से समझता है परन्तु एक बार समझी गई बात उसकी स्मृति के बाहर नहीं जाती। उसके मित्र एवं धन स्थिर रहते हैं। ऐसे व्यक्ति धर्मात्मा, बलवान्, धनवान्, बुद्धिमान्, ओजस्वी, शान्त और दीर्घायु होते हैं।

(5) स्वप्न

श्लेष्म प्रकृति पुरुष स्वप्न में कमल, हंस, चक्रवाक से शोमिता जलाशय, पक्षियों की कतार एवं मेघों को देखता है।

उनके स्वभाव की तुलना ब्रह्म, इन्द्र रुद्र, वरुण, हंस, गज, सिंह, अश्व, गाय, वृष आदि के स्वभाव के समान होती हैं।

इस प्रकार हमें रोगियों का देह प्रकृति के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहिए। यदि दो दोषों का प्रकृति दिखे तो इससे द्वन्दज प्रकृति कहेंगे।

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