Dashmularishta के अनेक फायदे आपने जरूर पढ़े होंगे लेकिन वास्तव मेंDashmularishta को किस प्रकार रोगी में प्रयोग करना चाहिए।
किन किन रोगों में Dashmularishta को क्यों प्रयोग करना चाहिए। जिन रोगों में Dashmularishta प्रयोग करने के लिए बताया जाता है उन रोगों में दूसरे भी बहुत सारे अरिष्ट का प्रयोग किया जा सकता था मगर Dashmularishta ही क्यों।
इस पोस्ट में Dashmularishta के विषय में कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब सहित Dashmularishta के बारे में विस्तृत जानकारी दिया जा रहा है।
दशमूलारिष्ट शोथ (inflammation) वातिक विकार, ग्रहणी रोग, अग्निमांद्य, अरुचि, उदर रोग, कास, श्वास, दौर्बल्य जैसे व्याधियों में बेहतर काम करता है। इरेगुलर मेंसेज, श्वेत प्रदर जैसे रोगों में भी दशमूलारिष्ट बेहतर काम करता है।
सर्वप्रथम हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि Dashmularishta basically है क्या चीज।
Dashmularishta बहुत सारे जड़ी बूटियों द्वारा विशेष प्रोसेसिंग करके बनाया गया अरीष्ट है ।सभी जड़ी बूटियों के रसों के बारे में अगर बात करें तो कषाय रस प्रधान जड़ी बूटीयों की संख्या ज्यादा है इसलिए Dashmularishta को कषाय रस प्रधान द्रव्य माना जाता है।
इस चार्ट को देखकर आपको समझ में आया होगा कि जो कषाय रस है वह प्रबल पित्त शामक है। हालांकि जब हम रुक्षता की बात करते हैं तो रुक्षता के हिसाब से कषाय रस सभी रसों में प्रधान रस है। जो रुखा द्रव्य होता है वह कफ को बिलिन करने वाला होता है कुल मिलाकर दशमूलारिष्ट मैं स्थित कषाय रस कफपित्त शामक है। मगर दशमूलारिष्ट को मुख्य रूप से वायु को शमन करने के लिए जाना जाता है। ग्रंथ में दशमूलारिष्ट भेषज्यरत्नावली में वाजीकरण अध्याय में आता है इसीलिए Dashmularishta का अधिकरण वाजीकरण है।
यानी कि Dashmularishta का प्रयोग शुक्र और बीजरुपा आर्तव पुष्टि के लिए किया जाएगा। बाकी Dashmularishta के विषय में संपूर्ण जानकारी हम स्टेप बाय स्टेप नीचे रखेंगे।
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Dashmularishta का जो गुणधर्म है या कहे की दशमूलारिष्ट का काम करने का जो तरीका है वह हुबहू महालक्ष्मी विलास रस, चंद्रप्रभा वटी तथा आरोग्यवर्धिनी के साथ मिलता है। इन सभी का जो फलश्रुति है वह लगभग एक समान है। इसीलिए प्रॉपर आयुर्वेदिक पद्धति से रोग परीक्षण हो जाने के बाद इन सभी आयुर्वेदिक औषधियों को एक दूसरे के साथ मिलाकर युक्ति पूर्वक देना चाहिए।
Dashmularishta बनाने के लिए इन जड़ी बूटियों की आवश्यकता होगी।
दशमूल के सभी जड़ी बूटियां मिश्रण 2 kg
चित्रक छाल 1 kg
पुष्कर मूल 1kg
लोध्र और गिलोय 800-800 grm
आंवला 640 grm
, जवासा 480 grm
खैर की छाल या कत्था, विजयसार और गुठलीरहित बड़ी हरड़ - तीनों 320-320 grm
कूठ, मजीठ, देवदारु, वायविडंग, मुलहठी, भारंगी, कबी फल का गूदा, बहेड़ा, पुनर्नवा की जड़, चव्य, जटामासी, फूल प्रियंगु, सारिवा, काला जीरा, निशोथ, रेणुका बीज (सम्भालू बीज ), रास्ना, पिप्पली, सुपारी, कचूर, हल्दी, सोया (सूवा) पद्म काठ, नागकेसर, नागरमोथा, इन्द्र जौ, काकड़ासिंगी, विदारीकंद, शतावरी, असगन्ध और वराहीकन्द, सब 80-80 grm
मुनक्का 2.50kg
शहद 1.25 kg
गुड़ 20 kg
धाय के फूल 1.25kg
शीतलचीनी, सुगंधबाला या खस, सफेद चंदन, जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपात, पीपल, नागकेसर प्रत्येक 80-80 grm
कस्तूरी 3 grm
ऊपर बताए गए सभी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को एकत्रित करके सभी को अधकुटा करके क्वाथ सहित घड़ा में डालकर अच्छी तरह घड़े के मुंह को बांधकर जमीन के ऊपर रस्सी से लटकाया जाता है यहां इसको 40 दिन के लिए रखने के वाद छानकर जो रस प्राप्त होता है उसे ही Dashmularishta कहा जाता है।
Dashmularishta के सभी जड़ी बूटियां मूलत वात शामक है। और प्रभाव से त्रिदोषघ्न है। Dashmularishta के लंबे समय तक सेवन करने वाले और प्रयोग करने वाले वैद्य का मानना है कि Dashmularishta मुख्य रूप से पक्वाशय, गुदा,कटी,मूत्र,पुरीष,मेढ्र,सक्थी,इन स्थानों पर विशेष रूप से प्रभावी काम करता है। इसके अलावा Dashmularishta सारकीट विभाजन, प्रदर रोग, तथा दोषों का अधोगमन क्रिया में विशेष प्रभावी होता है। अपान क्षेत्र में विशेष रूप से कार्य करने के कारण से Dashmularishta को स्त्रियोंयों के गर्भाषय और मूत्राशय से संबंधित व्याधियों में उपयोगी द्रव्य के रूप में प्रयोग किया जाता है।
पक्वाशय, गुदा,कटी,मूत्र,पुरीष(गुदाद्वार से निकलने वाला मल),मेढ्र(योनि और लिंग का आसपास का क्षेत्र)सक्थी,(घुटनों से ऊपर का हिस्सा) Dashmularishta विशेष करके इन स्थानों पर विशेष रूप से प्रभावी काम करता है। ज्यादातर आयुर्वेदिक वैद्य Dashmularishta को इन स्थानों के रोगों में प्रयोग करते हैं।
आयुर्वेद में सोथ,श्वयथू और सोफ कल्पना के बारे में काफी कुछ बताया हुआ है।
जब संपूर्ण शरीर में इन्फ्लेमेशन हो तो इसे स्वयथू कहते हैं। जब शरीर के किसी एक भाग में इन्फ्लेमेशन हो तो इसे सोथ कहते हैं। जब किसी विकृत दोष द्वारा धातु को विकार ग्रस्त कर देता है उसके बाद शरीर के किसी हिस्से में इन्फ्लेमेशन होता है तो यह सोफ है। Dashmularishta सभी प्रकार के इंफॉर्मेशन में बेहतर कार्य करता है आपको बता दूं कैंसर, थायराइड,iBD,प्रतिश्याय यह सभी इन्फ्लेमेशन है।
पुराने प्रैक्टिशनर वैद्यों का मानना है की जीर्ण अवस्था का संधि वात में विकृत दोष के कारण धातु विकृत अवस्था में रहता है क्योंकि दशमूलारिष्ट शुक्र धातु पोषक है तथा शुक्र के माध्यम से विलोम गति से धातुओं का पोषण कराने वाला वाला द्रव्य है। धातु पोषण करके दशमूलारिष्ट जिर्ण संधिवात में आराम दिलाता है मगर एक्युटकंडीशन में संधिवात मैं कार्य नहीं करता।
प्रेग्नेंसी के समय में यदि स्त्री को बुखार होता है तो इसे सूतिका ज्वर कहते हैं। सुतिका ज्वर ज्यादातर अपान वायु की समस्या के कारण होता है। यदि आपको अपान वायु दुष्टी होने के कारण से यहां बुखार दिखता है तो आप दशमूलारिष्ट दाडीमादी घृत में मिलाकर दे सकते हैं।
जैसे कि हम ऊपर बताते आ चुके हैं की जी आई ट्रैक की सभी समस्या में दशमूलारिष्ट का प्रयोग कर सकते हैं। यदि बंधत्व का कारण रस धातु में अवरोध है तो दशमूलारिष्ट का प्रयोग अर्क लवण के साथ होना चाहिए। और यदि बात वृद्धि के कारण रस धातु क्षय हुआ है तो दशमूलारिष्ट सुकुमार घृत के साथ देना चाहिए।
वैसे तो दशमूलारिष्ट का पथरी से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि दशमूलारिष्ट में लेखन द्रव्य का कार्य नहीं है। पथरी को तोड़ने के लिए लेखन द्रव्य की जरूरत होती है। क्योंकि दशमूलारिष्ट तो वाजीकरण मैं आया हुआ है तो निश्चित यह बृंहणकारक ही रहेगा। मगर यह भी सच है कि यह अग्नि धराकला और शुक्रधरा कला में प्रभावी ढंग से काम करता है।
इसी प्रकार से जिन कारणों से शरीर में पथरी का निर्माण हो रहा है दशमूलारिष्ट के माध्यम से समूचे कारण को जड़ से मिटाने हेतु प्रयोग कर सकते हैं। यहां यदि हम दशमूलारिष्ट में गोमूत्र हरितकी या शिवाक्षर पाचन चूर्ण मिला कर देना चाहिए।
जैसे कि हम पहले ही बताते आ चुके हैं कि अपान क्षेत्र के सभी अवयवों में दशमूलारिष्ट प्रभावी ढंग से कार्य करेगा। ऐसे में उसी स्थान से संबंध रखने वाला कब्ज (constipation) जैसे महत्वपूर्ण समस्या के ऊपर बात ना हो यह तो हो नहीं सकता।
कॉन्स्टिपेशन होने में अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन दशमूलारिष्ट है उन सभी कारणों में बखूबी कार्य कर सकता है वसर्ते आवश्यकता वस इतनी ही है की कब्ज का कारण क्या है इसको जाना जाए और उसके आधार पर दशमूलारिष्ट का प्रयोग किया जाए। लंबे समय से कब्ज नाशक तिक्ष्ण दवाइयों के सेवन से लार्ज इंटेस्टाइन अति कमजोर हुआ रहता है ऐसे में भी दशमूलारिष्ट युक्ति पूर्वक प्रयोग करने से उत्तम लाभ दिखाता है।
यदि आप दशमूलारिष्ट अधिक मात्रा में (जैसे कि दशमूलारिष्ट यहां 60ml तक भी रोगी की अवस्था को देखकर देने में हर्ज नहीं है रोगी यदि कमजोर सत्व वाला है तो इतना अधिक मात्रा नहीं देना चाहिए यदि प्रबल सत्व है तो अवस्था और ऋतु को ध्यान में रखकर रोगी को 80 ml तक एक समय में दे सकते हैं. यदि इतना देने में आपको डर लगता है तो लंबे समय से कॉन्स्टिपेशन के रोगियों में सत्व बल को ध्यान में रखकर अधिक मात्रा में दशमूलारिष्ट में सुकुमार घृत मिला कर देना चाहिए।
मेरे हिसाब से पहले 7 दिन सुकुमार घृत मिलाकर देना है। फिर दूसरी हफ्ता उसी दशमूलारिष्ट में कायम चूर्ण मिलाकर देना है। फिर तीसरा हफ्ता उसी दशमूलारिष्ट में हिंग्वाष्टक चूर्ण मिलाकर देना है इस प्रकार युक्ति पूर्वक प्रक्षेप द्रव्य को बदल बदल कर देने से यह समस्या कुछ ही दिनों के बाद बिल्कुल ठीक हो सकता है।
यदि छोटे बच्चों को दशमूलारिष्ट देना हो तो अति कम मात्रा में देना चाहिए। दक्ष वैद्य दशमूलारिष्ट और अरविंदासव दोनों मिलाकर बच्चों को देते हैं।
दशमूलारिष्ट का प्रयोग हर किसी के लिए उत्तम होता है।
दशमूलारिष्ट ज्यादातर जिर्ण रोगों में अच्छा काम करता है । दशमूलारिष्ट को रक्तपित्त, अम्लपित्त जैसे कंडीशन में ज्यादातर नुकसान प्रदायक देखा गया है। हालांकि कषाय रस प्रधान गुण से युक्त दशमूलारिष्ट पित्त शामक तो है मगर रुक्ष गुण प्रधान द्रव्य होने के कारण वायु के रूक्ष गुण के साथ पित्त का उष्ण गुण बढ़ा हुआ है तो ऐसी कंडीशन में इसका प्रयोग ना करें।
यदि आप पूछेंगे कि दशमूलारिष्ट सबसे अधिक किस समस्या में बेहतर साबित हो सकता है तो मैं कहूंगा वातवृद्धि के कारण शरीर में धातु क्षय की अवस्था में अपान क्षेत्र से संबंध रखने वाले व्याधियों में यह बेहतर कार्य करता है।
यदि आप अपने ही घर पर आसव अरिष्ट का निर्माण कर सको तो इससे बेहतर और कुछ नहीं है। यदि आप खुद से तैयार नहीं कर सकते तो ज्यादातर लोग डावर, कोटकल और सांडू फार्मेसी द्वारा निर्मित आसव अरिष्ट को अच्छा मानते हैं।
दशमूलारिष्ट की सभी औषधियां ज्यादातर उष्ण तासीर वाला है। दशमूलारिष्ट उष्ण प्रकृति होने के साथ-साथ बलवर्धक गुणों से भरा हुआ है।
दशमूलारिष्ट का अनुपान बताते वक्त रोगी किस कंडीशन में आया है और कौन सा रोग से वह पीड़ित है इन बातों को विशेष ध्यान रखा जाता है।
दशमूलारिष्ट को सामान काल में यानी भोजन के बीच में यदि देते हैं तो यह Dashmularishta हृदयगत व्याधि में अच्छा काम करता है ।विशेष करके रस और रक्त धातु जो ह्रदय से उत्पन्न होते हैं वहीं पर निर्माण होते है और यह ह्रदय से ही शरीर के दूसरे अंग में जाते हैं ऐसे में यदि समान वायु को ध्यान में रखकर भोजन के बीच में Dashmularishta दिया जाए तो निश्चित यह शरीर के सभी समस्या में बेहतर काम करता है।
अब सवाल उठता है कि Dashmularishta को भोजन के बीच में किस तरह से दे किस अनुपान के साथ दें तो इसके लिए तुरंत रोगी में समान वायु के जो प्रमुख तीन कार्य बताए गए हैं उनमें से कौन सा कार्य में समस्या उत्पन्न ना हो रहा है उसको बल देने वाला द्रव्य को अनुपान के रूप में दिया जाता है जैसे।
समान वायु का कार्य तीन प्रकार का विशेष तौर पर होता है
अब यदि अन्न को ग्रहण करने की समस्या हो तो इससे ग्रहणी रोग होता है यदि ऐसा समस्या है तो Dashmularishta को अन्य कषाय रस प्रधान द्रव्य में मिला कर देना चाहिए क्योंकि कषाय रस में ग्रहण शक्ति अधिक होता है। वैसे भी Dashmularishta का मूल रस कषाय ही है।
यदि अन्य को पकाने के कार्य समान भाइयों नहीं कर रहा है तो इससे अग्निमांद्य या अजीर्ण होता है यदि इस प्रकार का समस्या है तो यहां Dashmularishta को भोजन के बीच में कटु रस अनुपान के साथ देना चाहिए।
यदि सार्किट विभाजन वाले भाग में समान वायु के कार्य विकृत हुआ है तो ऐसे कंडीशन में Dashmularishta को तिक्त रस द्रव्यों के साथ मिला कर देना चाहिए तिक्त रस आकाश और वायु महाभूत से बना हुआ है आकाश महाभूत में विखंडन का गुण होता है।
यदि धातु क्षय के कारण व्याधि हुआ है और Dashmularishta देने जा रहे हैं तो यहां मधुर रस प्रधान सिद्ध घृत मैं मिलाकर Dashmularishta देना चाहिए। यदि छाती से ऊपर किसी समस्या में Dashmularishta देना है तो भोजन के बीच में प्रत्येक ग्रास मैं Dashmularishta मिला कर देना चाहिए आयुर्वेद के अनुसार भोजन के प्रत्येक ग्रास में मिलाकर यदि दवाई देते हैं तो वह प्राणवायु में काम करता है।
यदि अपान क्षेत्र में समस्या है तो भोजन करने से पहले दशमूलारिष्ट देना है लेकिन भोजन से पहले कोई भी दवाई देने से पूर्व रोगी के शारीरिक बल को जरूर ध्यान रखना होगा यदि बलवान रोगी है तो ही भोजन से पूर्व दवाई दिया जाता है।
यदि अति कमजोर रोगी है तो दिन में प्रत्येक घंटे के बाद थोड़ा-थोड़ा Dashmularishta देना चाहिए।
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