Blood pressure जड् से खत्म होगा यदि आप आयुर्वेद के इस सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो। Blood pressure क्या है और Blood pressure कैसे कंट्रोल करें तथा Blood pressure में कौन सा आयुर्वेदिक दवाई देना चाहिए यदि आप इस प्रकार से विचार करते हैं तो आपको इस रोग से जुड़े हुए सभी तथ्यों को आयुर्वेदिक तरीका से सोचना होगा।
Blood pressure medicine यह नाम एलोपैथ का देन है। आयुर्वेद का नहीं। तो जब किसी समस्या का सीधा संबंध आयुर्वेद के साथ है नहीं तो निश्चित है इसकी चिकित्सा संपूर्ण आयुर्वेदिक विचार किए बगैर नहीं किया जा सकता ।
तो चलिए आयुर्वेद के उस सफर में आगे बढ़ते हैं जहां से यह तय होगा कि blood pressure शरीर का सामान्य व्यवस्था है विकृति नहीं।
नमस्कार दोस्तों:-
मेरा शरीर मुझे पूछे बगैर मेरे शरीर के अंदर जो कुछ भी कर रहा है वह मेरे लिए हानिकारक कभी नहीं हो सकता - क्या यह बात आप भी मानते हो ? । आयुर्वेद के मुताबिक शरीर, मन,आत्मा और इंद्रिय यह चारों की आपसी रजामंदी से शरीर का व्यवहार चलता है।
शरीर में कुछ भी हो रहा हो उसे होने में इन चारों अवयवों का आपसी तालमेल होना compulsory है ।
इसका मतलब यह हुआ कि यदि हम रक्तचाप बढ़ने या घटने से संबंधित विचार को लेकर विमर्श करेंगे तो इस सिद्धांत और सूत्र के आगे allopathic treatment और उसकी सोच में कुछ गड़बड़ी दिखाई देती है। चलिए इन बातों के ऊपर आयुर्वेदिक विचारों के साथ विमर्श करेंगे।
blood pressure का एक normal स्थिति तक रहना यह शरीर के लिए जरूरत है। मेरे शरीर में blood pressure का normal range कितना होना चाहिए यह मेरा शरीर decide करेगा ना की कोई दूसरा यंत्र।
मेरा शरीर जानता है कि अभी मेरे लिए कितना blood pressure level रहना जरूरी है। जब भी कभी में किसी डॉक्टर के पास जाता हूं और वहां से जब blood pressure चेक किया जाता है तो उनकी अनुमानित लेवल से अगर ज्यादा हो तो यह मान लिया जाता है कि आपके शरीर में blood pressure level high है इसको low रखना होगा - मगर में जानता हूं कि मेरा शरीर मन आत्मा और इंद्रियों का इस वक्त यही रजामंदी है कि blood pressure level इतनी होनी जरूरी है।
अब इतना तो आपको मानना ही पड़ेगा कि मेरे शरीर के लिए क्या हितकर है और क्या अहितकर है। यह मेरे शरीर से ज्यादा कोई और कैसे जान सकता है ।
इन चारों ने आपसी रजामंदी से जो बात तय किया और उसको maintain कर रहा है उसको कैसे कोई और नकार सकता है। जैसे कि डॉक्टर कह देते हैं कि ब्लड प्रेशर बड़ा है या घटा है ।
इस blood pressure level को normal करो तो यहां यह बात तो सोचना पड़ेगा की मेरे शरीर का mechanism द्वारा तय मानकों को डॉक्टर खारिज कैसे कर रहा है।
ब्लड प्रेशर घटना या बढ़ना का संबंध शरीर में रसवहस्रोतस से है। रसवहस्त्रोतस् का उद्गम स्थल हृदय है। उसी हृदय में प्राण,मन, आत्मा, का निवास रहता है। इंद्रियों का प्राण शक्ति मस्तिष्क में आश्रित होते हैं मज्जा धातु से संबंध रखने वाला मस्तिष्क का संबंध अग्नि स्थान ग्रहणी के साथ मन का स्थान हृदय से रहता है। वात वर्धन आहार विहार,अध्यशन, विरुद्धाहार से हृदयस्थ जल महाभुत प्रधान रसधातु में आकाश और वायु का मान वढता है ।
परीणामत: रस में जलका गुण क्लेद, स्निग्ध, पिच्छील आदि गुणों की हानी होने लगती है तो शरीर इसको मेंटेन करने का प्रयास करता है परिणाम स्वरूप blood pressure level dis balance हो जाता है।
यहां तक तो शरीर अपने आप इसको मेंटेन करने का प्रयास कर रहा है । इससे शरीर में कई सारे दोषों की स्वाभाविक लक्षण दिख सकता है (इस तरह के लक्षण दिखने पर आयुर्वेद- दिनचर्या को ठीक करने के लिए बताता है ना कि किसी प्रकार की दवाई खाने को ) । इस तरह के लक्षण दिखने से से घबराते हुए व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता हैं और डॉक्टर बढ़ते ब्लड प्रेशर को देखकर उसको कम करने के लिए दवाई देता है। अब यहां से शरीर में गड़बड़ी होना शुरू हो जाती है तो देखिए इसको भी समझते हैं।
BP की medicine का एक स्वभाव है कि वह शरीर से पानी को बाहर निकालने का प्रयास करता है यह आकाश तत्व, रुक्ष तिक्ष्ण गुण प्रधान है । यह पोषण तथा जीवनदायिनी रसधातु को नष्ट करता है रुक्ष करता है। परिणाम स्वरुप खून में पानी की मात्रा धीरे-धीरे कम होकर रक्त गाढ़ा हो जाता है। जब खून गाढ़ा होता है तो स्रोतसों में चिपकने लग जाता है।
वैसे ही :- जैसे दूध को उबालते वक्त ध्यान नहीं दिया गया तो उफान मार कर बाहर निकलता रहता है और बाद में फिर भी ध्यान नहीं दिया तो दूध का कुछ हिस्सा बर्तन के अंदर चिपक जाता है और सुख जाता है। शरीर के अंदर भी खून के चिपक जाने से स्रोतस में पूरी तरह से लीप्तता आएगी यानी खून वेहद गाढ़ा होकर भारी हो जाता है।
एलोपैथिक के डॉक्टर इसी अवस्था को high cholesterol कहते हैं, डॉक्टर को मालूम ही नहीं है कि उसने जो Blood pressure medicine दिया था अब वही गोली एक और Tablet की मांग कर रहा है जिसका नाम है cholesterol की दवाई।
याद रखते जाइए यह कोलेस्ट्रॉल किसने बढ़ाया वहीं Blood pressure medicine ने जिसको पहले डॉक्टर ने दिया था - शरीर स्वयं से उसको नहीं बढ़ा रहा है। यहां तक डॉक्टर अब उसको दो तरह की दवाइयां देने लगा। एक बीपी की दूसरी कोलेस्ट्रॉल की। कोलेस्ट्रॉल की दवाई इसीलिए दिया जा रहा है क्योंकि यह उस खून को पतला करेगा जिसको उसने पहले वाले दवाई देकर गाढ़ा कीया था।
ताजूव की बात है कि शरीर में तकलीफ कुछ भी नहीं है- मगर दवाई दोनों तरह के चल रहे है।
पेशेंट Blood pressure medicine को छोड़ना नहीं चाहता ( जिसको उसके ऊपर लदा गया है वह भी बिन मतलब के) - क्योंकि डॉक्टर ने उसको कई बातें वता कर डराया हुआ है ।
और भी देखिए कमाल की चीज पढ़ते जाइए:- कैसे-कैसे रोगी इस दलदल में खुद को फसाता जाता है।😊 कमाल की बात तो तब है जब रोगी खुद उस डॉक्टर की बढ़ाई ऐसा करता है जैसे कि पता नहीं उसने क्या कुछ पा लिया हो ।
डॉक्टर ने दूसरा जो गोली दिया है खून को पतला करने के लिए अब वहां से शरीर में तूफानी उठ्ना शुरू होगा।
मैंने कई ऐसे रोगी को नजदीक से देखा है जीन के ऊपर खून पतला करने वाली दवाई चल रहा हो और वह इस बात को बड़े गर्व के साथ बोलते हैं कि मेरे डॉक्टर ने मेरे साथ अच्छा किया है । उस दवाई से उसको side effect भी हो रहा है क्योंकि मैंने देखा उसके skin में जरा सा उंगली लगाते ही खून निकलना शुरू होता है। लेकिन डॉक्टर ने उसको कहा है कि अंदर के गड़बड़ी हो इससे बेहतर है कि थोड़ी बहुत यह हो जाए ।
डक्टरोवाच:-
कोई problem नहीं है हम है ना बैठे हुए।।😁 और इतनी बातें रोगी को बेफिक्र बनादेता है।
आयुर्वेद उवाच:-
मेरे भाई :- भगवान ने जो खून दिया है उसे गाढ़ा रखना या पतला रखना हम उसी के ऊपर क्यों नहीं छोड़ देते। अगर मेरा खून गाढ़ा है भी तो यह मेरे शरीर के लिए जरूरी है उसको दवाई खिलाकर पतला करने का मतलब है कि में मेरे शरीर के mechanism के एक व्यवस्था को चुनौती दे रहा हूं यह मेरे रक्त वहश्रोतस् से संबंध रखने वाले सभी organ के लिए घातक है।
अरे भाई :- यदि मेरे शरीर में जो रक्त है उसको पतला होना यह जरूरी था तो क्या मेरे शरीर के mechanism को यह बात मालूम नहीं है यदि आवश्यक होता तो वह जरूर पतला करके दे देता अभी गाढ़ा है इसका मतलब है शरीर को गाढ़ा ही आवश्यक है अभी पतला नहीं।
याद रख लो शरीर के अंदर जितनी भी अंग है वह सभी रक्त के द्वारा ही निर्माण होते हैं और संचालित होते हैं। रक्त तो शरीर में जीवन कर्म करता है जो जल और अग्नि महाभूत इन दोनों के मिलने से तैयार हुआ है।
बेसिकली एलोपैथिक डॉक्टर में एक बड़ी दिक्कत यह है कि उन्होंने शरीर के तमाम अंग को बांट रखा है - किसी के हिस्से में आंखें तो किसी के हिस्से में दांत है कोई सिर्फ heart को ही देखता है तो कोई liver को ही देखता है।
Heart वाला किसी दूसरे अंग और उसकी मेकैनिज्म का रिलेशन हार्ट के साथ जो होता है उससे उस डॉक्टर को कोई लेना-देना ही नहीं है ।
आंख के स्पेशलिस्ट को दांत समझ में नहीं आता हार्ट स्पेशलिस्ट को पेट के बारे में कोई मालूमात नहीं होती।और यही परिणाम है कि आज लोग एलोपैथ से ठीक नहीं होते।
सिम्टम्स मिट जाना रोग का ठीक होना नहीं होता। इसी को पाश्चात्य चिकित्सा विधि कहते हैं।
वास्तव में ब्लड प्रेशर जैसा कोई रोग है ही नहीं यह तो पाश्चात्य चिकित्सा का छलावा है। यह एक आहार विहार से असंतुलित हुए रोगी जो अभी फ्रेश अवस्था में डॉक्टर के पास गया है उसको निरंतर अपने पास बुलाए रखने के लिए एक एलोपैथिक चिकित्सा व्यवस्था का भ्रष्ट शब्द है ब्लड प्रेशर।
ताजुब की बात तो यह है की आयुर्वेद में ब्लड प्रेशर जैसा कोई शब्द और चिकित्सा का प्रबंध नहीं है पर फिर भी आयुर्वेद डॉक्टर बच,जटामांसी, सर्पगंधा,स्वर्ण सूतशेखर, बसंत कल्प,नस्य, शीरोधारा,बस्ति जैसे चिकित्सा व्यवस्था और दवाइयों मे ब्लड प्रेशर की चिकित्सा ढूंढते हैं।
सोडियम होनें से नमक, कैफीन होने से काफ़ी, निश्चित ही व्यक्ति का ब्लड blood pressure level बढ़ा देते है। साथ में तनाव,अनिन्द्रा, एंजायटी , पेशाब में जलन के साथ चाय पीने से blood pressure वढ जाता है। धुम्रपान और शराब भी अनियमित और अनियंत्रित सेवन से blood pressure को बढ़ा देता है।
सेब,केला,कीवी, तरवूज यह सभी वढते blood pressure को control करते हैं।
तो यहां यह बात समझने में देरी नहीं करना चाहिए की blood pressure को बढ़ाने वाली सभी आहार का संबंध शरीर में जल तत्व के हानि करने वाला है और जो उसको maintain करते है वह सभी फल फ्रूट जल तत्वों की वृद्धि कर रहा है।
यदि blood pressure level high है तो इसका मतलब शरीर में सोडियम लेवल बढ़ा हुआ है। क्योंकि नमक भी एक सोडियम का ही स्रोत है । इसीलिए इसका सेवन बढ़ती ब्लड प्रेशर में लगभग नहीं करना चाहिए। कैल्शियम और पोटेशियम शरीर के अंदर ब्लड प्रेशर को मेंटेन करता है।
Blog Post का सारांश:-
आत्मा ही शरीर का मालिक है। मेरा शरीर और आत्मा मुझे पूछे बगैर शरीर के अंदर जो कुछ भी कर रहा है वह मेरे लिए अहित कर नहीं हो सकता। जीवित व्यक्ति के शरीर में आत्मा कभी भी अपने लिए अहितकर कृया तो कभी कर ही नहीं सकती। इसीलिए चाहे डायबिटीज हो या ब्लड प्रेशर बढ़े उसमें शरीरस्थ आत्मा की ही रजामंदी समझ कर मन और आत्मा को पोषण मिले कुछ ऐसा क्रिया करनी चाहिए।
व्यक्ति को अपना दिनचर्या, आहार बिहार और सदाचार के ऊपर हमेशा ध्यान रखना होता है । क्योंकि अहितकर दिनचर्या के ऊपर शरीर मन आत्मा और इंद्रियों का control नहीं होता यह आपको खुद करना होता है । सदाचार से उत्पन्न ऊर्जा से ही आत्मा शरीर को स्वस्थ रखता है । क्योंकि आत्मा ही शरीर का मलीक है आपके अहित कर आहार से तैयार ऊर्जा का ही परिणाम है की आत्मा उसको कंट्रोल करने के लिए रक्त में इस प्रकार का दबाव पैदा करता है। फिर यहां उसको कंट्रोल करने की दवाई का क्या काम ।
हिताहितं सुखं दुःखं आयुस्तस्य हिताहितम् ।
मानं च तच्च यत्रोक्तं आयुर्वेदः स उच्यते ॥
मेरे इन बातों को प्रमाणित करने के लिए मैं आयुर्वेद का यह एक सूत्र आपके सामने दे रहा हूं इसका मतलब होता है।
जिस शास्त्र में हितायु, अहितायु, सुखायु एवं दुःखायु इन चार प्रकार की आयु का वर्णन तथा आयु के लिए हितकर एवं अहितकर द्रव्य गुणादि के मान का वर्णन किया गया हो वह आयुर्वेद कहलाता है।
Blood pressure को आयुर्वेद में क्या कहते हैं।
आयुर्वेद में वैसे तो इस रोग के लिए कोई निश्चित नाम नहीं बताया गया है लेकिन लक्षणों और कर्मो के आधार पर high & low blood pressure के लिए आयुर्वेद में
रक्तगत वात , सिरागत वात , आवृत वात , धमनी प्रपुरण , रक्त विक्षेप , व्यान प्रकोप , रक्तमंदा ,रक्तचाप , व्यान अतिबला आदि अनेक नाम जगह जगह पर लाक्षणिक स्वरूप से समझ में आता है।
हृदय के systolic diastolic pressure से यह रक्तकृया होता है। व्यानवायु के द्वारा रक्त ले जानें और समानवायु के द्वारा हृदय मे रक्त लेकर आने जैसे क्रियाओं पर हम समान और व्यान को भी लेकर चलेंगे।
हृदय से निकलते वक्त रक्त में अवलंबक कफ का गुण, तीव्र गति से चलते वक्त पित्त के पाचक और साधक पित्त का तथा मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होने के कारण प्राण वायु का कर्म द्वारा हम heart का systolic diastolic क्रियात्मक स्वरूप को समझ सकते हैं।
जैसे रसायन स्वरूप हारमोंस को भी हम धात्वाग्नि के ही रूप में देख सकते हैं। यह सभी पित्त के गुण लिए रक्त धमनी के ऊपर अपने प्रभाव से ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में निरंतर लगे रहते हैं।
यदि समुचित रूप से देखा जाए तो शरीर के अंदर निकलने वाली वह पदार्थ जो ब्लड प्रेशर को अनियंत्रित करने में सहयोगी होते है वह कटु और लवण रस प्रधान होते हैं। एथेरोस्क्लेरोटिक के गुणात्मक परिवर्तन भी इस समस्या का एक कारण हो सकता है।
एथेरोस्क्लेरोटिक के गुणात्मक परिवर्तन के होने में कफ और मेद धातु का विकृति माना जा सकता है। चरक संहिता के हिसाब से प्राण और व्यान वायु जब आपस में आवरण करते हैं तो भी वातदोषात्मक गुणों से ब्लड प्रेशर में विकृति दिखता है। इसके साथ-साथ कफ पित्त और वायु भी एक दूसरे से अवरुद्ध होकर blood pressure तैयार कर सकते हैं।
ब्लड प्रेशर का सच्चा आयुर्वेदिक चिकित्सा विधि
अब हम बात करेंगे इसकी आयुर्वेदिक चिकित्सा क्या हो सकता है इसके लिए हमें दोषों के आपसी सामंजस्य से तैयार होने वाली आवरण द्वारा जो लक्षण शरीर में दिखता है उसके ऊपर विमर्श करना होगा।
जिस दोष का लक्षण रोगी में अधिक दिखाई देता है उसके ऊपर विपरीत दोष का आवरण है ऐसा समझकर रोगी के दिनचर्या और आहार का संबंध उस दोष वृद्धि या क्षय का विचार कर युक्ति पूर्वक आहार से तैयार दोषो के गुणों के विपरीत चिकित्सा करनी चाहिए।
जैसे अगर कोई व्यक्ति का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है कारण का समीक्षा किया गया तो पता चला अति चिंता और अत्याधिक चाय पान था - तो यहां रुक्ष और तिक्ष्ण गुणों से वातपित्तज प्रकोप हुआ है ऐसा समझ कर स्वर्ण सूत शेखर रस (जो बात और पित्त दोनों का समन करता है) का सेवन कराना चाहिए साथ में निदान परिवर्जन भी जरूरी है । इस तरह से हेतु के गुणों का विश्लेषण कर युक्ति पूर्वक दवाइयां देना चाहिए और साथ में रोगी का दिनचर्या को सुधारना चाहिए।
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