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Bhedaneeya mahakasaya use in hindi | भेदनीय महाकषाय कहां और कैसे प्रयोग करे।

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Bhedaneeya mahakasaya भेदनीय महाकषाय लेखनीय और जीवनीय महाकषाय के वाद ही आता है। Bhedaneeya mahakasaya  जहां वायु के रुक्ष वेग से सूखा हुआ कफ के परमाणु कफ के ही मंद और स्थिर गुण के कारण रुक जाते है तो वहां भेदनीय महाकषाय का प्रयोग किया जाना चाहिए।
Bhedaneeya mahakasaya  मैं स्थित जड़ी बूटियां भेदन कर्म करने वाले गुणों के साथ शरीर में फैल जाते हैं जहां भी मल,मूत्र,और शरीर का कोई भी अंग सुखकर इकट्ठा और सख्त हुए होते हैं वहां Bhedaneeya mahakasaya यह औषधि अपने प्रभाव से उन मलों को और अन्य सख्त अंग को भेदन करना शुरू करते हैं।

   Bhedaneeya mahakasaya की मूख्य वातें...

  1. पथरी में  Bhedaneeya mahakasaya का तरीका ।
  2. अल्पमूत्रता मे Bhedaneeya mahakasaya   का प्रयोग
  3. मसक मे  Bhedaneeya mahakasaya  का प्रयोग
  4. गोखरु मे  Bhedaneeya mahakasaya  का प्रयोग
  5. श्वित्र मे local application हेतु Bhedaneeya mahakasaya  का प्रयोग
  6. बवासीर के मस्से को तोड़ने हेतु Bhedaneeya mahakasaya    का प्रयोग
  7. गुल्म मे Bhedaneeya mahakasaya   का प्रयोग
  8. Fibroid मे Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग

भेदन का मतलब क्या है?

भेदन यह संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है तोड़ना या टुकड़ा करना। Bhedaneeya mahakasaya कफ, मांस,मेद,अस्थि धातु में यदि गांठ बन जाता है या इकट्ठे होकर जम जाते हैं तो उनको भेदन कर्म करने के लिए भेदनीय महाकषाय।  Bhedaneeya mahakasaya जाना जाता है।
भेदनीय महाकषाय जैसे पत्थर के बड़े ढेला को हथोड़ा से मारकर तोड़ दिया जाता है टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है उसके आकार को खंडन किया जाता है उसी तरह Bhedaneeya mahakasaya  भी शरीर के अंदर कफ और वायु के प्रभाव से होने वाली मलों के सख्त हिस्से को खंडित करने के लिए जाना जाता है।

   Bhedaneeya mahakasaya  vs Lekhaniya mahakasaya

भेदनीय महाकषाय और लेखनीय महाकषाय में बहुत बड़ा अंतर होता है इसको जानने के लिए सबसे पहले लेखन इस शब्द का अर्थ समझना होगा। लेखन का मतलब होता है कुरेदना।
स्पष्ट हुआ की लेखनीय महाकषाय कफ के परमाणुओं के सख्त समूह को कुरेद कुरेद कर छिन्न-भिन्न कर देता है उसमें तोड़फोड़ करने की ज्यादा सामर्थ नहीं रहता। मगर  Bhedaneeya mahakasaya  सिर्फ कफ और वायु द्वारा शरीर में कहीं भी मलों के शख्त समूह को तोड़फोड़ करने के लिए जाना जाता है।

भेदनीय महाकषाय or लेखनीय महाकषाय 
किस को कब दिया जाए।

मान लीजिए किसी स्त्री के रिपोर्ट में pcod दिखारहा है अब हमें उस लेडीस के लिए पीसीओडी का दवाई देना है।
तो यहां भेदनीय महाकषाय Bhedaneeya mahakasaya और लेखनीय महाकषाय इनमें से कौन सा दवाई देना चाहिए। क्योंकि इन दोनों का कर्म लगभग एक ही जैसा  है तो इस सवाल का जवाब यह होता है कि जहां रोगी का शरीर सुकुमार अवस्था में है कमजोर है ज्यादा तेज दवाई सहन नहीं कर सकता दुर्बल शरीर है तो यहां लेखनीय महाकषाय से ही काम चलाना पड़ेगा क्योंकि लेखनीय महाकषाय के जड़ी बूटियां भेदनीय महाकषाय Bhedaneeya mahakasaya के अपेक्षित सौम्य प्रकृति का होता है।
मगर लेखनीय महाकषाय अपने सौम्य गुणों के बदौलत रोग उपचार में भी थोड़ा वक्त लेता है। मगर भेदनीय महाकषाय थोड़ा तिक्ष्ण प्रकृति का जड़ी बूटियों के सहयोग से बनने वाली दवाई होने के वजह से जल्दी प्रभाव कारी होता है मगर यह दवाई कमजोर व्यक्ति के ऊपर सावधानी से प्रयोग करना होता है।

   Bhedaneeya mahakasaya के जड़ी बूटियां।

निशोथ-
आयुर्वेदिक मत से निसोथ मधुर, रूखी, तीक्ष्ण, वातजनक, कसेली,तिक्त, कटुपाकी,रेचक तथा मलस्तम्भक, संग्रहणी, कफोदर, सुजन, पांडुरोग, कृमि, प्लीहा ज्वर, पित्त, कफ, वातरक्त, उदावर्त और ह्रदयरोग को हरने वाली है।
यह तीसरे दर्जे में गर्म और दूसरे दर्जे में खुश्क है। यह कफ की बीमारी को नष्ट करती है। मस्तिष्क, आमाशय, यकृत और गर्भाशय में जमे हुए कफ को पतला करके दस्त की राह निकाल देती है। फालिज, लकवा और संधिवात में मुफीद है।
काली निसोथ, सफेद निसोथ की उपेक्षा हीन गुण वाली है। किंतु विरेचन गुण में उससे तीव्र है। यह मूच्ध्रा, दाह, मद ओर वांति पैदा करती हैं।
लाल निसोथ कड़वी, चरपरी, गरम, रेचक तथा संग्रहणी को नष्ट करने वाली है।

आंक-

उष्ण,तिक्ष्ण,दिपन,पाचन, हृदयोत्तेजक, रक्त शोधक,विरेचक, कुष्ठरोग नाशक शोथ नाशन है।

कलिहारी
कलिहारी,लांगली, अग्नि शिखा, कटु, तिक्त, कषाय, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण तथा वातकफ शामक होती है।
यह पित्तकारक, सर, क्षारीय, गर्भपातिनी तथा शल्य को निकालने वाली है।
यह कुष्ठ, शोफ, अर्श, व्रण, शूल, वस्तिशूल, कृमि, विष, कण्डू तथा शोथ नाशक होती है।
इसका पत्र शाक लघुताकारक, तिक्त तथा मल भेदक होता है।
इसका कन्द तिक्त, तापजनन, आर्तवजनन, गर्भस्वी, शोधक, कृमिरोधी, पाचक, आमाशयिक सक्रियतावर्धक, विरेचक, वामक, जठरांत्रक्षोभक, ज्वररोधी, कफनिसारक, रसायन एवं बलकारक है।

एरंड मूल
इसका रस मधुर एवं गुण – गुरु, सूक्ष्म, स्निग्ध, तीक्षण होते है | विपाक कटु होता है एवं तासीर में उष्ण वीर्य होती है | अपने इन्ही गुणों के कारण यह कफ – वात शामक, शुल्घ्न (दर्द नाशक), रेचन आदि दोषकर्मो से युक्त होता है |
यह शूल, शोथ, कटि बस्ती, शिर की पीड़ा, उदर रोग, ज्वर, श्वास, आनाह (आफरा), कास, कुष्ठ एवं आमवात नाशक गुणों से परिपूर्ण है |यहाँ हमने एरंड के विभिन्न प्रयोज्य अंगो के अनुसार उनके गुण धर्म बताये है |
दन्ति-
दन्ती कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण, कफपित्तशामक, दीपन, शोधक, रेचक, विकासी, सर, पाचक तथा व्रणशोधक होती है।
यह शोथ, उदररोग, कृमि, अर्श, अश्मरी, शूल, कण्डू, कुष्ठ, दाह, आनाह, शिरोरोग, सन्यास, आमवात, धनुस्तम्भ, ज्वर, उन्माद, कास, प्लीहा रोग, गुल्म तथा पामा नाशक है।
चित्रक-
कटु वीर्य -उष्ण  विपाक-कटु होता है। चित्रक की मुख्यतया तीन प्रजाति  होती हैं सफ़ेद, नील और लाल चित्रक। चित्रक के सेवन से कब्ज, गैस, अजीर्ण, आफरा, कच्चा मल, सर दर्द, दाँतों के रोग, गले की खरांस, मोटापा, बवासीर, प्रसव, गठिया रोगों में चित्रक से बनी ओषधियों से लाभ प्राप्त होता है। यह त्रिदोष नाशक होता है। पाचन को बढ़ाने, भूख को जाग्रत करने पेट के कीड़े समाप्त करने के लिए इसका उपयोग अन्य ओषधियों के मेल से किया जाता है। प्रधान रूप से इसकी मूल का उपयोग किया जाता है। आमवात, संधिषूल में चित्रक से सिद्ध तैल के प्रयोग मालिश के रूप में करने से लाभ प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त चित्रक का प्रयोग यकृत विकार, पाण्डु, सफेद दाग आदि रोग में लाभप्रद है। चित्रक की तासीर गर्म होती है। 

चिलबिल-
चिलबिल वातकफशामक,वर्ण्य, व्रणरोपक, लेखनीय, भेदनीय, कण्डूघ्न, व्रणशोधक, कफमेदविशोधक तथा स्तम्भक होता है।
यह विष, मेह, कुष्ठ, ज्वर, छर्दि, पाण्डु, शिरशूल, गुल्म, आभ्यंतर विद्रधि, वातरक्त, योनिदोष तथा यकृत् प्लीहाविकार शामक होता है।
इसकी काण्डत्वक् तथा पत्र स्तम्भक, तापजनक, शोथघ्न, वातानुलोमक, विरेचक, कृमिघ्न, वमनरोधी, प्रमेहरोधी, कुष्ठरोधी तथा आमवातरोधी होते हैं।

शंखीनी
चरपरी, स्निग्ध और कड़वी, भारी, तीक्ष्ण, गरम, अग्निदीपक, बलकारक, रुचिकारी और विषविकार, आमदोष, क्षय, रुधिरविकार तथा उदरदोष आदि को शांत करनेवाली मानी जाती है।

कुटकी-
आयुर्वेद के अनुसार इसका रस तिक्त एवं कटू होता है | स्वभाव में शीतल होती है | गुणों में लघु एवं दीपन - पाचन गुणों से युक्त होती है | कुटकी का विपाक भी कटु एवं तिक्त होता है | यह बुखार खत्म करने वाली, दस्त लगाने वाली, कीड़ों को नष्ट करने वाली, क्षुधावर्द्धक, कफ एवं पित्त, मूत्ररोग, दमा हिचकी, जलन आदि में उपयोगी सिद्ध होती है।

स्वर्णक्षीरी-
हेमाहा रेचनी तिक्ता भेद्न्युत्क्लेशकारिणी |
कृमिकंडूविषानाह कफपित्तास्त्रकुष्ठनुत।। भावप्रकाश।।

पथरी में Bhedaneeya mahakasaya कैसे दें।

कफ कारक पदार्थों का अधिक सेवन करने और अग्निमंद होने के फलस्वरूप किडनी में स्टोन बनता है। किडनी में स्थित पथरी को निकालने के लिए भेदनीय महाकषाय के साथ मुत्र विरेचनीय महाकषाय देना चाहिए। मुत्र विरेचनीय महाकषाय अधिक मुत्र प्रवृत्त कराकर पथरी को मुत्र मार्ग से वाहर निकालने का कार्य करेगा।

अल्पमूत्रता मे Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग।

अल्पमूत्रता भी कफ और वायु के परमाणु के वजह से मूत्र मार्ग में अवरोध पैदा होने के फलस्वरूप अल्प मुत्रता का समस्या होता है।

यहां भी Bhedaneeya mahakasaya वात दोष के रुक्ष गुणों से सुखा हुआ कफ के परमाणुओं को तोड़फोड़ करके वात वाहीनी नाडीयों को साफ करेगा क्योंकि अवरुद्ध ही अल्प मुत्रता का कारण है।
तो फाइनल यहां अल्पमूत्रता नाश करने के लिए भेदनीय महाकषाय+ मुत्र विरेचनीय+मुत्रसंग्रहणीय महाकषाय देना चाहिए।

मसक मे Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग

मसक की समस्या मे भी भेदनीय महाकषाय उत्तम परीणाम दिखाता है। संपूर्ण शरीर में एक ठोस गांठदार मांसका टुकड़ा जिसे मूसा भी कहते है कुछ भी करो ठीक नहीं होता से लोग दुखी रहते हैं। मगर यदि अपामार्ग क्षार+ स्नूहीं क्षार+पपीत क्षार+ हल्दी+वांस के पत्ते का रस मिलाकर उस मसक के ऊपर लगा दिया जाए और साथ मे भेदनीय महाकषाय का नित्य प्रतिदिन काढ़ा बनाकर पिलाया जाए तो निश्चित मसक में लाभ दिखेगा।

गोखरु मे Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग।

गोखरू भी अधिक बड़ा हो जाए तो दर्द देने वाला होता है। मांस धातु के अग्नि की कमजोरी से गोखरू नाम का व्याधि होता है। आप जानते हो भेदनीय महाकषाय ज्यादातर मांस धातु में ही उत्तम कार्य करने वाली द्रव्य है।
मैंने देखा है यदि गोखरू का समस्या हो तो भेदनीय महाकषाय का दिन में तीन टाइम एक एक चम्मच कपड़े छान पाउडर गर्म पानी से खिलाकर ऊपर से गोखरू में यदि ऊपर लिखा हुआ पेस्ट लगाकर पट्टी से बांध जे तो तीन-चार दिन के बाद गोखरू साफ हो जाता है मगर दो-तीन महीने तक कंटिन्यू भेदनीय महाकषाय का सेवन करना अच्छा रहता है।

श्वित्र (leecourderma) मे local application हेतु Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग।

लीकोडरमा जिन्हें हम कुष्ठ रोग, श्वित्र रोग आदि नामों से जाना जाता है कुष्ठ रोग के विषय में यदि हम आयुर्वेदिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं तो त्वचा स्थित रक्त में पुनर्जीवन की कमी स्पष्ट दीख सकती है।
कफ के आवरण ही इसका मुख्य कारण होता है इसीलिए लीकोडरमा में जीवनीय महाकषाय के साथ संधानीय महाकषाय और भेदनीय महाकषाय इन तीनों को रोगी के शरीर बल मनोबल तथा रोग बल के आधार पर उचित मात्रा निर्धारण करके दिया जाना चाहिए।

गुल्म मे Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग।

सभी प्रकार के गांठ को गुल्म कह सकते हैं। वायु गोला मे भी गुल्म की चिकित्सा करने के लिए बताया गया है।
आचार्य सुश्रुत के मतानुसार विगुड़ित वायु होने से अथवा गूढ मूलकन्यादि के सदृश इसकी उत्पत्ति होने से या गुल्म के समान अथवा गाँठ जैसी प्रतीति होने के कारण इस रोग को गुल्म संज्ञा प्रदान की गई है । यहां भी गुल्म के कफ पित्तात्मक भेजूं के आधार पर स्वतंत्र उपचार के साथ 
भेदनीय महाकषाय औषधियों से गुल्म के आवरण को तोड़ने में सहयोग ले सकते हैं ।

Fibroid मे Bhedaneeya mahakasaya का प्रयोग।

यह गर्भाशय की दीवारों पर पनपने वाला एक प्रकार का ट्यूमर होता है। इसे लियम्योमा या फिर म्योमा कहा जाता है। फाइब्रॉएड एक या एक से ज्यादा ट्यूमर के तौर पर विकसित होता है। फाइब्रॉयड के इस दीवारों को तोड़ने के लिए भी Bhedaneeya mahakasaya अति उत्तम कार्य कर सकता है।

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