If a Yoga teacher also studies Ayurveda, then there will be a lot of opportunities for him in the field of Yoga. After learning spirituality and Ayurveda, if you go to make your career in the field of yoga, then your performance will be better than other yoga teachers. Yoga is related to Ayurveda because Yoga Kriya and Meditation follow the whole Ayurvedic principle.
yoga teachers के लिए Ayurveda course वह भी विशुद्ध मात्री भाषा Hindi मैं सीखने के लिए आपके लिए बहुत बड़ा opportunity है | आयुर्वेद पढ़े बगैर अव आप योग नहीं सिखा सकते। योग प्रशिक्षकों के लिए अब आयुर्वेद पढ़ना भी जरूरी है | आयुर्वेद, योग, वेद, और ज्योतिष शास्त्र यह एक दूसरे के पूरक होते हैं। यदि आप इनमे से किसी भी शास्त्र में योग्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो आप को इन सभी शास्त्रों का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करना होगा।
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यदि आप योगा टीचर हो या आप नित्य प्रति स्वयं के लिए योग करते हो या आप साधना करना चाहते हो या आप मेडिटेशन के जो अलग-अलग शाखाएं हैं उसमें काम करते हो और अपनी बेहतरीन के लिए आप योग के साथ-साथ आयुर्वेद और ज्योतिष भी सीखना चाहते हो तो आयुष योगी ऑनलाइन क्लास के माध्यम से आप इन विषयों को सहजता से सीख सकते हैं। वैद्य द्रोणाचार्य शास्त्री आप बेहद सरल भाषा में ज्योतिष आयुर्वेद मर्म चिकित्सा सिखाएंगे इसके Demo video नीचे दिए गए वीडियो से प्राप्त करें।
और जाने- वात,पित्त,कफ दोष से संबंधित संपूर्ण जानकारी |
योग में वर्णित पञ्च क्लेश 1-अविद्या, 2-अस्मिता, 3-राग-4- द्वेष और 5-अभिनिवेश के विषय में जिस प्रकार चरक संहिता पढ़ते वक्त प्रारंभ में ही रोग का मूल कारण वताते वक्त अविद्या,अस्मिता ,राग,द्वेष को ही मानव शरीर में होने वाली व्याधि का मूल कारण बताया है। आश्चर्य की बात है जब हम ज्योतिष पढ़ते हैं तो वहां भी प्रारब्ध और संचित कर्म के बारे में व्याख्यान करते वक्त यही राग द्वेष जो पूर्वजन्म में हमने किए थे उसी का परिणाम स्वरूप इस जन्म में उसका फल भोगना पड़ रहा है ऐसा लिखा हुआ है।
आपको बताऊं कि यहां जितने भी आचार्य हुए हैं चाहे योग के विषय में पतंजलि हो, चाहे आयुर्वेद के विषय में चरक,सुश्रुत, और वाग्भट हो, ज्योतिष के लिए पाराशर मुनि यह सभी आचार्य लगभग एक ही समय के कुछ तो एक ही गुरु के शिष्य है। प्राचीन समय में गुरुकुल में जब शिक्षा अर्जन किया जाता था तो रुचि अनुरूप लगभग सभी विषयों को पढ़ना होता था।
इसीलिए उस काल में यह शास्त्र और इसकी महत्व चरम में था। सभी विषयों का ज्ञान होने से किसी भी प्रकार के कन्फ्यूजन नहीं रह पाता था। लेकिन आजकल योग शास्त्र सीखने वाले विद्यार्थियों को दूसरे शास्त्र सीखने के लिए फोन के प्रशिक्षक प्रयास ही नहीं करते और यहीं पर वह योग गुरु पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाते।
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रोगानुसार योग एवं आयुर्वेदिक उपचार के विषय में यहां कुछ बातें किया जा रहा है।
जब हम योग शास्त्र और आयुर्वेद शास्त्र इन दोनों को एक साथ जोड़ कर किसी रोगी को चिकित्सा देने का प्रयत्न करते हैं तो हमें इसका परिणाम सबसे बेहतर दिखता है।
यह दोनों ही शास्त्र शरीर से अधिक मानसिक चिकित्सा के लिए हम को प्रेरित करते हैं।
आधुनिक चिकित्सा सिर्फ शारीरिक व्याधि तक सीमित रहकर शरीर में होने वाली व्याधियों को ठीक करने का जोखिम उठाता है। मगर योग और आयुर्वेद शास्त्र का संपूर्ण focus रोगी के मन के ऊपर रहता है देखिए इस विषय में योग शास्त्र में कितना बेहतरीन बात लिखा गया है।
योग शास्त्र में मन के चित्त वृत्तियों को control करने के लिए इन 8 विशेष नियमों का प्रतिपादन किया है। जीने योग शास्त्र में अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है।
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1.यम -यम का अर्थ है त्याग । किसी चीज को मन से त्याग करने की जो प्रवृत्ति है उसे यम कहा जाता है। यह पाँच है - सत्य , अहिंसा , अस्तेय , ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह। सत्य बोलना, हिंसा से रहित जीवन, अस्तेय का मतलब होता है चोरी करना, अपने जीवन में ब्रह्मा द्वारा निर्देशित आचरण का अनुसरण करना, अपरिग्रह का मतलब होता है किसी भी चीजों को कलेक्शन करने के लिए अधिक तनावग्रस्त ना होना या यूं कहें संग्रह करने की प्रवृत्ति से रहित होना।
2.नियम- नियम को प्रवृत्तिमूलक साधन माने जाते हैं। इसका मतलब होता है जिसको नियम पूर्वक अपनाया जाए यह पाँच प्रकार के होते हैं- शौच , संतोष , तप , स्वाध्याय तथा ईश्वर - प्राणिधान।
3.आसन - यह शारीरिक अनुशासन के अंतर्गत आने वाला विषय है जिसका पालन यम नियम के पालन होने पर ही संभव है।
4.प्राणायाम -यह भी शारीरिक अनुशासन के अंदर आने वाली क्रिया है यम नियम का पालन करते हुए आसन और प्राणायाम शरीर द्वारा किया जाता है |
5.प्रत्याहार-यह भी शारीरिक अनुशासन के अंतर्गत आने वाला क्रिया है साधक यम नियम का पालन करते हुए आसन प्राणायाम प्रत्याहार यह तीन क्रिया नियम पूर्वक करता है।
6.धारणा-साधना के प्रति अपने धारणा को सुदृढ़ बनाए रखना यह नियम इसी के अंतर्गत आता है।
7.ध्यान-मेडिटेशन करने के लिए ऊपर बताए सभी शारीरिक नियमों को पालन करते हुए अपने मन को एकाग्र करना यह ध्यान है।
8.समाधि-ऊपर के 7 नियमों का परिपूर्णता पूर्वक पालन करते हुए जब साधक अपने साधना पथ पर आगे पहुंचता है तो उस स्थिति को समाधि कह सकते हैं।
समाधि का एक अर्थ जो स्वयं में स्थित रहे वह समाधि है धारणा ध्यान और समाधि यह मानस अनुशासन के अंतर्गत आने वाली विषय है।
अब यदि हम आयुर्वेदिक ग्रंथों के ऊपर ध्यान देते हैं तो वहां भी अतत्वाभीनिवेश चिकित्सा के रूप में जितने भी प्रसंग हैं वह सभी ऊपर बताए योगसूत्र के आधार पर ही दिए गए हैं।
इंसान का शरीर पुरुष के वीर्य स्त्री के रज और प्रकृति के दोष इन तीनों द्वारा निर्मित है। वीर्य और रज द्वारा शरीर का निर्माण हुआ है प्रकृति के दोष द्वारा मन का निर्माण हुआ है। इसी कारण जितना महत्व शरीर का है उतना ही महत्व मन का भी है।
और जाने-अपना देह प्रकृति का निर्णय करें।
मनएव मनुष्याणाम् कारणं वन्धमोक्षयो।
वद्धंतु विषयासक्तं मुक्तं निर्विषयात्मक।।
यह श्लोक बताता है मन ही इंसान के बंधन और मुक्ति का कारण है। विषयों से मुक्त होना ही मुक्ति है और विषयों से आवद्ध होना बंधन है। सभी प्रकार के मानस रोग विषयों के प्रति अधिक आकर्षण का प्रतिफल है।
आयुर्वेद के ग्रंथों में योग का बहुत बड़ा महत्व है। आयुर्वेद में योग दो अर्थ में प्रयोग किया गया है।
धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्।।
यहां बताया जाता है कि धर्म अर्थ काम मोक्ष इन का आपस में संबंध रहता है। धर्म से अर्थ धर्मपूर्वक संपत्ति का अर्जन करना होता है। इस प्रकार से अर्जित किया हुआ संपत्ति का प्रयोग काम में तथा इन सभी के योग से मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना बताया गया है। बिना धर्म किए अर्जित संपत्ति कष्टप्रद होता है ऐसा बताया जाता है इसीलिए धर्मपुर्वक संपत्ति कमाना चाहिए।
यहां धर्म अर्थ काम मोक्ष को संतुलित रखना भी योग की श्रेणी में आता है।
योग सूत्र में प्रवीण महर्षि पतंजलि ने योग के महत्व को बताते हुए योगश्चित्त वृत्ति निरोध!! इस शब्द का निरुण किया है। इसका अर्थ होता है योग ही वह जरिया है जो मन के वृत्तियों को कंट्रोल कर सकता है। उन्होंने योग के माध्यम से मन को कंट्रोल करते हुए अपने आत्मस्वरूप में स्थित रहने को वास्तव में योग माना है। इस के संदर्भ में इस सूत्र को देखिए - तदाद्रष्टुस्वरूपेवस्थानं इस शब्द का अर्थ होता है आत्मा अपने स्वरूप में स्थित हो जाए वह योग है।
आज के समय में इस योग का अनेक विधान उपलब्ध है। त्राटक समाधि, मेडिटेशन, शिवायोग, कुंडलिनी योग, सहज साधना योग,silva, यह सभी उसी योग का हिस्सा है।
यदि आप योग में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं तो आपको आध्यात्मिक विषयों के साथ आयुर्वेद को भी compulsory सीखना होगा। क्योंकि यदि मन के चित्तवृत्तियों को कंट्रोल करना योग का कार्य है तो मन क्या है, वह किस विधि से कंट्रोल होता है,मन का निर्माण कैसे होता है और मन के चित्तवृत्तियों में विकृति कैसे पैदा होती है यह सभी बातें आयुर्वेद का विषय है।
यदि आप लोग सिर्फ फिजिकल एक्सरसाइज के लिए सीखना चाहते हैं तो भी आपको आयुर्वेद सीखना जरूरी है क्योंकि मानव क्रिया शरीर आयुर्वेद का विषय है।
यदि आप मनको निग्रह करने के लिए उस फील्ड में योग सीख रहे हैं तो आयुर्वेद में आपने चरक संहिता पढ़ना है, यदि आप फिजिकल एक्सरसाइज को ध्यान में रखकर योगासन में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं तो आपने आयुर्वेद क्रिया शरीर को पढ़ना है। यदि आप योग टीचर होने के साथ-साथ कुछ सामान्य आयुर्वेदिक चिकित्सा भी करना चाहते हैं तो चरक संहिता, अष्टांग हृदयम, सुश्रुत संहिता, और भेषज्य रत्नावली को पढ़ना होगा।
यदि आप प्राणायाम या ध्यान योग क्रिया में निरंतर अभ्यास करते हैं तो आपको मैं एक मंत्र दे रहा हूं इसको प्राणायाम करते वक्त सर्वप्रथम याद कर ले उसके बाद प्राणायाम के स्वास खींचने, रोकने, छोड़ने के बाद रोकने इस प्रकार एक बार कि प्राणायाम में इस मंत्र को 4 बार बोलना होता है। यह प्राणायाम में बोलने वाला असली वैदिक मंत्र है।
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।।
इस मंत्र के प्रताप से आपका शरीर देवमय हो जाएगा। ध्यान दीजिए हर मंत्र को पढ़ने का एक निश्चित समय होता है जो मंत्र मैंने ऊपर लिखा है यह सिर्फ प्राणायाम के समय में बोला जाता है यह मंत्र मन को control करने वाला है।
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