Explore an in-depth research paper on Autism Spectrum Disorder (ASD) and its Ayurvedic treatment approach by Ayushyogi. Learn about holistic therapies,Ayurveda se Autism ka ilaj, dietary guidelines, and lifestyle changes based on Ayurvedic principles that can help manage autism symptoms effectively.
यदि आप के घर में Autism - Bright Horizons के patient है और Ayurveda se Autism ka ilaj के नाम पर बहुत सारे activities और दूसरे चीजें करने वाले संस्थान या केंद्र में जा जाकर थक चुके हो तो शायद यह blog आपके लिए उपयोगी रहने वाला है। आज हम चर्चा करेंगे autism problem जैसे मानसिक रोगों पर हम किस प्रकार से आयुर्वेदिक चिकित्सा का सोच रख सकते हैं या किस प्रकार से इस पद्धति द्वारा पंचकर्म विधि से इस रोग को समूल नष्ट कर सकते हैं।
यदि आप आधुनिक शास्त्र के हिसाब से सोचोगे तो Autism कभी ठीक हो नहीं सकता क्योंकि वे लोग मानसिक रोगों के ऊपर ज्यादा प्रभावी चिकित्सा नहीं कर सकते यह सिर्फ आयुर्वेद में ही संभव है कि आयुर्वेद दैहिक, दैविक, भौतिक तीन प्रकारके तापों( रोग) को दैवव्यपाश्रय, युक्ति व्यपाश्रय और सत्
वावजय जैसे चिकित्सा पद्धतियों से युक्ति पूर्वक रोग ठीक करने की बात बताता है।
इसीलिए यदि आपके परिवार में कोई इस प्रकार के रोग से पीड़ित है तो आयुर्वेदिक वैद्य या डॉक्टर से जरूर परामर्श जरूर लें।
हम यहां सामान्य भाषा में Autism ka ilaj के ऊपर चर्चा करने वाले हैं और हमारा चर्चा का आधार आयुर्वेद रहने वाला है क्योंकि आयुर्वेद ही वह चिकित्सा व्यवस्था है जिससे हम इस प्रकार के रोगों को पूरी तरह से control कर सकते हैं इसीलिए
हम आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से autism disease को समझने का प्रयास करेंगे कि वास्तव में Autism है क्या चीज यानी आयुर्वेद इसमें क्या सोचता है।
आयुर्वेदिक भाषा में यदि स्पष्ट रूप से माने तो ऑटिज्म रोग यह न्यूरो डेवलपमेंटल से संबंधित विकार है इस नकारात्मक व्यवहार को हम आयुर्वेदिक भाषा से यदि समझना चाहे तो इस तरह से समझ सकते हैं कि इंसान का जो मन है वह अपने ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रियों के साथ होने वाली अच्छे और बुरे कर्मों का संबंध मस्तिष्क के संज्ञावाही क्रियाओं के साथ निरंतर होती रहती है मगर Autism के संदर्भ में इसी व्यवस्था में खराबी रहती है।
एक उदाहरण:-
सामान्य अवस्था:- में जीस विषय को सोचता हूं मेरा मस्तिष्क का संज्ञावाही व्यवस्थाएं मेरे मन के साथ ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रियों के सहयोग से मेरे सोची हुई उस विषयों की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं और वह सभी विधिवत हो इसका पूरा ख्याल रखा जाता है इन सभी व्यवस्थाओं में मेरे शरीर में प्राण वायु, ब्यान वायु, समान वायु,साधक पित्त,अवलम्वक कफ प्रधान रूप से कम करते हैं।
विकृत अवस्था में:-
यदि इंद्रियों का संबंध संज्ञावाही नाडीयों के साथ नहीं बन पाता हो परिणामत इस dis balance से मस्तिष्क के क्रियात्मक शक्ति confuse रहता है और यह लगभग हमेशा ही होता है तो इसी अवस्था में बहुत सारे नाम वाले समस्याएं हो सकती है उनमें से एक समस्या जिसका नाम है Autism ।
Ayurveda se Autism ka ilaj करते वक्त ज्यादातर अनेक बार रोगियों के ऊपर रिसर्च करने से यह कुछ व्यवहार हम रोगियों के ऊपर अक्सर देखते हैं जैसे-
१:- Autism के बच्चे अक्सर सामाजिक तौर पर अपने भावनाओं को पूर्ण रूप से व्यक्त कर पाने मैं असमर्थ होते हैं। इसीलिए ज्यादातर वे चिड़चिड़े अवस्था में रहते हैं।
२:- ऐसे बालक सामान्य तौर पर लोगों से बात करने, आंख से आंख मिलाने या अन्य क्रियाकलापों में सामान्य बच्चों से अलग दिखते हैं। उस क्रिया को सहज रूप से नहीं कर पाते।
३:- इस तरह के बच्चों में कोई नियम लागू करना बड़ी कठिनाई होती है यह बच्चे तब बेहद झगड़ालू प्रवृत्ति के हो जाते हैं जब इनके रोजी नियम में कुछ परिवर्तन कर दिया जाता हो जैसे सोने,उठने, खानें पिनें आदि बातों की परिवर्तन से ऐसे बच्चे परिवर्तन विषयों के प्रति जल्दी सहज नहीं हो पाते हैं।
४:- ऐसे बच्चे कुछ खास चीजों के ऊपर अधिक रुचि रखते हैं जैसे कुछ ध्वनी को सुनना, खास किस्म के रंग के प्रति आकर्षित होना आदि प्रतिक्रियाएं
५:- इस तरह के बच्चों का एक खास किस्म का मूड होता है जैसे एक खास तरह का आवाज निकालना अचानक दौड़कर किसी से गले लगाना या कुछ इसी प्रकार के अजीबोगरीब हरकतें करना इनको सहज लगता है। लेकिन परिवार के लोग इस तरह के बच्चों के इन्हीं हरकतों से तंग होते हैं।
६:- ऐसे बच्चे इनकी एक्टिविटीज बड़ी अजीब सी होती है जैसे हाथ को नीचे ऊपर करना और यह क्रिया बार-बार करते रहना, जैसे आंख को नीचे ऊपर हिलाना, जैसे जीभ को बार-बार लप-लपाना यह चीज अगर हम रोकने का प्रयास करेंगे तो वह बच्चे और अधिक करने में उनको आनंद आता है।
७:- कुछ बच्चों का भाषा का स्तर बड़ी अजीब सी होती है कुछ बच्चे अपने बात को प्रस्तुत करते वक्त उनका शब्द कभी खत्म नहीं होता वह कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं लेकिन अपनी बात सही समय पर पूरा नहीं कर पाते।
8:-कुछ बच्चों में दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी रहती है उदाहरण के तौर पर यदि यह बच्चा किसी को मार रहा है तो उसको इस बात से बेपरवाह होता है कि मरने से सामने वाले को दर्द होती है भी है या नहीं।
इसके साथ-साथ सामाजिक या व्यक्तिगत खेल हो या अन्य एक्टिविटीज में इनका व्यवहार असामान्य रहता है ये लोग खेलों के प्रति असंवेदनशील होते हैं।
Delhi में एक autism ke uppar ayurvedic treatment center चला रहे समाजसेवी राधा जी लंबे समय का अपना अनुभव इस तरह से मुझे share किया - वह लिखते हैं।
Autism Bright Horizons, or Autism Spectrum Disorder (ASD), is a developmental condition that affects how a person interacts with others, communicates, and experiences the world.
2. It's a Spectrum
Autism is called a "spectrum" because it affects people in different ways, with some having mild symptoms and others more severe.
3. Social Interaction
People with autism might have trouble understanding social cues, like body language or tone of voice. They may find it hard to make friends or prefer to spend time alone..
4. Communication Challenges
Some people with autism may not speak at all, while others may speak but find it hard to hold conversations or understand jokes, sarcasm, or figures of speech.
5. Repetitive Behaviors
They might repeat actions or phrases and be interested in specific routines or activities, often wanting things to happen the same way every time.
6. Sensitivity to Senses
Many people with autism are extra sensitive to sounds, lights, smells or textures. Some might get overwhelmed in noisy or bright environments.
7. Special Interests
People with autism might have intense interests in specific subjects, like trains, animals, or technology. They can focus on these subjects for long periods.
8. Causes of Autism
The exact cause of autism isn't known, but it's believed to be a combination of genetics and environment. Vaccines do not cause autism.
Autism is usually diagnosed in early childhood. Early signs include avoiding eye contact, delayed speech development, or not responding to their name.
10. Support and Therapy
While there's no cure, people with autism can improve with support like speech therapy, occupational therapy, and behavior therapy. Many can live independent and fulfilling lives with the right help.
11. Acceptance and Inclusion
It's important to understand and accept people with autism, recognizing their unique strengths and needs.
12. Autism Awareness
People are becoming more aware of autism, and there's growing support for inclusive environments in schools, workplaces, and communities.
अभी तक हमने यह देखा कि Autism Spectrum Disorder (ASD)
एक ऐसा रोग है जिसका कोई reason प्रत्यक्ष नहीं दिखता है। हालांकि आयुर्वेद में Autism इस रोग को उन्माद या अतत्वाभिनीवेश इस दोनों रोगों में रखकर चिकित्सा ढूंढने की बात बताई है।
ज्यादातर यह फिजियोलॉजिकल प्रॉब्लम नहीं होता है इसका संबंध रोगी के पूर्व जन्म की किए कर्मों के परिणाम या माता-पिता के शरीर से प्राप्त अनुवांशिक अवस्थाएं भी हो सकती है।
यदि आपके घर में Autism Spectrum Disorder (ASD)
से संबंधित कोई रोगी है तो ध्यान रखें
यह रोग सिर्फ दवाई खाने मात्र से कभी ठीक होने वाला नहीं है क्योंकि कोई भी दवाई चाहे वह आयुर्वेद हो या एलोपैथिक वह एनाटॉमिकल और फिजियोलॉजिकल कंडीशन में ही बेहतर काम करते हैं अभी तक की चर्चा में यह स्पष्ट हुआ है की autism का संबंध उन्माद, अतत्वाभिनीवेश,अपतर्पणोत्थ रोग, मानसिक रोग, धातु क्षय जैसे आयुर्वेदिक अवस्थाओं से है तो जाहिर सी बात है इसकी चिकित्सा भी इन्हीं अवस्थाओं में उत्पन्न होने वाली संप्राप्ति का विखंडन ही Autism का व्यवहारिक चिकित्सा हनी चाहिए।
बहुत सारे speech therapist Effective Ayurvedic Treatments for Autism (Bright Horizons )
कहकर बच्चों को physical exercise कराते रहते हैं । अक्सर बड़े शहरों में इस तरह के Central बखूबी देखे जाते हैं ।
मगर इन बच्चों पर सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला ऊपर वर्णित अतत्वाभिनीवेश आदि रोगों के ऊपर विचार करना है और उनसे जुड़े हुए लक्षणों को देखकर योग्य चिकित्सा प्रबंधन करना होगा इसमें पंचकर्म चिकित्सा का बड़ा महत्व रहता है।
जैसे कि हम बता चुके हैं की उन्माद,
अतत्वाभिनीवेश,अपतर्पणोत्थ रोग, मानसिक रोग, धातु क्षय आदि किस रोग का मूल कारक है तो उपर वर्णित रोगों में बताए गए पंचकर्म चिकित्सा को रोगी के हिसाब से युक्ति पूर्वक होनी चाहिए। बाकी इस रोग में पंचकर्म का विधि क्या होना चाहिए इस संदर्भ में नीचे विस्तार से लिखा जा रहा है
यदि रोगी में उन्माद का अधिक लक्षण दिखता हो तो निश्चित उन्माद चिकित्सा में बताएं पंचकर्म विधि का अनुपालन करनी चाहिए। इस प्रसंग में कल्याण घृत से अनुवासन तथा तिक्तक्षीर वस्ति से निरुह का कल्पना कर सकते हैं। पूर्वकर्म हेतु Autism की उन्माद की अवस्था में कफज, पित्तज उन्माद में स्नेहन, स्वेदन करने के बाद वमन और विरेचन सर्वप्रथम करना चाहिए। जब शरीर शुद्ध हो जाय, तो संसर्जन क्रम का प्रयोग करना चाहिए ।। यहाँ क्रम से कफज में पहले वमन और पित्तज में पहले विरेचन देना चाहिए। इसके बाद पेया, विलेपी आदि संसर्जन क्रम का पालन कराते हुए रोगी को प्रकृतिस्थ बनाए।
Mental disorder के बिषय में अधिक जानकारी के लिए यहां click करें: -
- Common symptoms and challenges faced by individuals with autism
ऑटिज़्म से पीड़ित व्यक्तियों को निम्नलिखित सामान्य लक्षण और चुनौतियाँ होती हैं:
1. संवाद में कठिनाई : बोलने, समझने, और सामाजिक संकेतों को पहचानने में दिक्कत।
2. सामाजिक चुनौतियाँ: दूसरों के साथ जुड़ने में कठिनाई, दोस्त बनाने में समस्या।
3. दोहराव वाली हरकतें: एक जैसे व्यवहार या रूटीन को बार-बार दोहराना।
4. संवेदी संवेदनशीलता: आवाज़, रोशनी, या स्पर्श जैसी चीजों के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता।
5. सीखने में भिन्नता: कुछ क्षेत्रों में तेज़, कुछ में कमजोर।
6. भावनात्मक नियंत्रण: गुस्सा, चिंता,या मूड स्विंग्स।
7. मोटर स्किल्स की समस्या: चलने, लिखने, या संतुलन में कठिनाई।
8. पाचन और नींद की समस्याएँ: पेट की गड़बड़ी और नींद की समस्या।
9. दैनिक जीवन की चुनौतियाँ: आत्मनिर्भरता में कठिनाई।
10.सह-घटित स्थितियाँ: ADHD, चिंता, मिर्गी,आदि।
- Current conventional treatment approaches
1. व्यवहार चिकित्सा: ABA और CBT से व्यवहार सुधार।
2. भाषण और भाषा चिकित्सा: संवाद कौशल में सुधार।
3. व्यावसायिक चिकित्सा: दैनिक जीवन और संवेदी कौशल में मदद।
4. सामाजिक कौशल प्रशिक्षण: सामाजिक बातचीत और संबंध बनाने की शिक्षा।
5. दवाएँ: चिंता, अवसाद, और अतिसक्रियता के लिए।
6. शारीरिक चिकित्सा: मोटर स्किल्स और संतुलन में सुधार।
7. आहार समर्थन: पोषण की कमी और संवेदनशीलता के लिए।
8. परिवार प्रशिक्षण: परिवार को प्रबंधन और समर्थन में शिक्षित करना।
9. सहायक तकनीक: संवाद और सीखने के उपकरण।
10. विशेष शिक्षा: व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुसार शिक्षण।
ये विधियाँ व्यक्ति की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार मिलाकर उपयोग की जाती हैं।
1. दोष असंतुलन: मुख्यतः वात दोष की असंतुलन से मानसिक और तंत्रिका तंत्र प्रभावित होते हैं।
2. अग्नि दोष: कमजोर पाचन अग्नि से शरीर में अम्ल (टॉक्सिन्स)जमा होते हैं, जो मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर असर डालते हैं।
3. मनोविकार: Autism को उन्माद और आपस्मार जैसे मानसिक विकारों से जोड़ा जाता है।
4. ओजस और मानसिक स्वास्थ्य: कमजोर ओजस और प्राण वायु से मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है।
5. आहार और पाचन: स्वस्थ पाचन और आहार से मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।
1. पंचकर्म: डिटॉक्सिफिकेशन जैसे अभ्यंग, शिरोधारा।
2. औषधीय उपचार: ब्राह्मी, अश्वगंधा, मंदूकपर्णी जैसे जड़ी-बूटियाँ।
3. आहार संशोधन: संतुलित और दोष-विशिष्ट आहार।
4. योग और ध्यान: प्राणायाम, आसन, और ध्यान।
5. रसायन चिकित्सा: तंत्रिका तंत्र को सशक्त बनाने के लिए।
Autism के दुर्बल शरीर वाले रोगियों में संजीवनी हेतु राजयापन वस्ति अच्छा काम करता है| यह गुल्म,कुक्षीशूल,विषम ज्वर, उदावर्त,मूत्रकृच्छ, उन्माद ,रक्तप्रदर, प्रमेह,अर्श,आध्मान,शुक्रप्रवर्तन कारक,वल्य,वृष्य मानसरोग आदि स्थितियों में भी काम करता है।
क्वाथ द्रव्य:-
नागर मोथा, वला, रास्ना, कुटकी, पुनर्नवा, गिलोय, पृश्निपर्णि, कंटकारी,उशिर,आरग्वध,विभीतक,त्रायमाण,मंजीष्ठा,शिलपर्णि, गोक्षुर,वृहति,मदनफल total powder- 200g - 2.5 ltr water,उबालने के बाद काढा 480ml बचेगा , दूध डालना है - 1200ml, उबलते हुए 700 ml होने पर छानना है।
शहद, 50ml,घी 10g, सेंधा नमक10g,oil 160ml - महास्नेह(मांसरस युक्त- गोदुद्ध का चतुर्थांश डालना है )
प्रक्षेप द्रव्य( कल्क) :-
सौंफ, मुलेठी, कुटज, रसोंत, सेंधव प्रियंगु ,इंद्रयव 10/10g
निर्माण विधि:-
सबसे पहले जड़ी बूटियां को पानी में उबालना है छानना है फिर दूध डालना है फिर दोबारा उबलते हुए सिर्फ दूध ही बचेगा तब।
एक बर्तन में सेंधा नमक शहद डालकर घोटना है फिर घी डालकर अच्छी तरह मिलाकर कल्क द्रव्य को डालना है फिर अच्छी तरह घोटना है फिर इसमें ऊपर के दूध को डालकर मिलकर छानकर first days 480ml देना है उसके बाद धीरे-धीरे अवस्था को देखते हुए इस बस्ती को बढ़ाते हुए 960ml तक पहुंचना है। यह निरुह बस्ती होते हुए भी अल्प भोजन के बाद बस्ति देना है।
45 मिनट में बस्ति बाहर आना चाहिए, 2 घंटे तक भी नहीं आया तो च.सि.12/29 के आधार पर गोमूत्र युक्त तिक्ष्ण वस्ति देकर वाहर निकाले।
यापन बस्ती - सुजन,मंदाग्नि, पांडू,शूल,अर्श,परिकर्तिका,ज्वर, अतिसार, रोगियों के ऊपर पहले दोष समन करके फिर यह बस्ती दे। इस बस्ति से उपद्रव स्वरूप ये रोग हो सकतें है यदि ऐसा है तो लाक्षणिक चिकित्सा करें।
राजयापन बस्ति सभी मानसिक तथा शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्तियों के ऊपर जिनके शरीर वात पित्त प्रकृति वाला हो के ऊपर रसायन कर्म करता है। यह पित्तावृत वात में देना चाहिए।राजयापन वस्ति पित्तपाचक,रक्त,मांस,शुक्रगामी,स्रोतोसोधनकारी,तर्पण कर्मकारक है। यह मस्तिष्क को बल देता है चक्षुष्य,वल्य,वृष्य,सद्यबल जनन है।
Autism के रोगी में अत्याधिक उद्दंडता गुस्सा लगाया जाता अन्य पित्त दोष के गुण दिखता है तो यह बस्ति जरूर देना चाहिए।
- Diet and Nutrition*: Sattvic diet and specific dietary guidelines for autism
1. ताजे और प्राकृतिक खाद्य पदार्थ: ताजे फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, नट्स।
2. पारदर्शी और हल्का भोजन: स्टीम की गई सब्जियाँ, चावल, दालें।
3. उत्तेजक और विषाक्त पदार्थों से बचें: कैफीन, शराब, कृत्रिम मिठास से परहेज।
4. नियमित और संतुलित भोजन: समय पर और संतुलित भोजन करें।
5. प्यार और सकारात्मकता से पकाया भोजन: भोजन को अच्छे मनोभाव से पकाएं।
1. सूजन-रोधी खाद्य पदार्थ: हल्दी, अदरक, और ओमेगा-3 युक्त खाद्य पदार्थ (जैसे, अलसी, अखरोट) शामिल करें।
2.आंतों के लिए सुरक्षित भोजन व्यवस्था: प्रोबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थ जैसे दही, और आंत्र को उत्तेजित करने वाले खाद्य पदार्थों से बचें।
3. संतुलित पोषक तत्व: विटामिन और खनिज जैसे बी विटामिन, मैग्नीशियम, और जिंक की मात्रा सुनिश्चित करें।
4. नियमित भोजन समय: भोजन के समय को नियमित रखें।
5. प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से बचें: शर्करा और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की मात्रा कम करें।
6. संवेदी संवेदनशीलता का ध्यान: खाद्य पदार्थों की बनावट और स्वाद पर ध्यान दें।
7. हाइड्रेशन: पर्याप्त पानी पिएं।
ये दिशानिर्देश Autism patient के लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं।
पंचकर्म थेरेपी: डिटॉक्सिफिकेशन और पुनरजीवण उपचार
1. वमन (Therapeutic Emesis): अधिक कफ और विषाक्त पदार्थों को vomit के माध्यम से बाहर निकालना।
2.विरेचन (Purgation Therapy): पित्त को साफ करने के लिए दवाओं के जरिए दस्त लाना।
3. बस्ती (Enema Therapy): वात को संतुलित करने और पेट को साफ करने के लिए औषधीय एनिमा।
4. नस्य (Nasal Therapy): नाक के माध्यम से कफ और विषाक्त पदार्थों को निकालना।
5. रक्तमोक्ष (Bloodletting Therapy): रक्त को शुद्ध करने और पित्त को संतुलित करने के लिए रक्त निकालना।
अधिकतर देखा गया है की autism patient के ऊपर रक्तमोक्षण,वमन, विरेचन से अधिक लाभ नहीं मिलता है हां यदि आवश्यक हो तो जरूर करना चाहिए मगर यहां बस्ति,नस्य,पादाभ्यंग और शिरोधारा का विशेष महत्व है।
पुनरजीवण उपचार:
- अभ्यंग (Oil Massage): शरीर की मालिश से तनाव कम करना और रक्त संचार बढ़ाना।
- शिरोधारा (Oil Pouring on Forehead): मानसिक शांति और स्पष्टता के लिए माथे पर तेल डाला जाता है।
- पिंडस्वेद (Herbal Potli Massage): गर्म हर्बल थैलियों से मांसपेशियों को सुकून देना।
- उद्वर्तन (Herbal Powder Massage): हर्बल पाउडर से मसाज, सर्कुलेशन बढ़ाने और त्वचा को निखारने के लिए।
ये उपचार शरीर को साफ करने और संतुलित करने के लिए होते हैं।
योग और ध्यान: ऑटिज़्म के लक्षणों का प्रबंधन
माइंडफुलनेस (Mindfulness)
1. फोकस और ध्यान: ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
2. भावनात्मक नियंत्रण: भावनाओं को समझने और नियंत्रित करने में सहारा।
3. तनाव कम करना: चिंता और तनाव को कम करता है।
4. सामाजिक इंटरैक्शन: सामाजिक कौशल और रिश्तों में सुधार।
शारीरिक व्यायाम (Physical Exercises)
1. मोटर स्किल्स में सुधार: संतुलन और समन्वय में मदद करता है।
2. संवेदी इंटीग्रेशन: शरीर की संवेदनाओं को समझने में सहारा।
3. व्यवहार प्रबंधन: ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में उपयोग करता है।
4. रूटीन और संरचना: नियमित व्यायाम से दिनचर्या में स्थिरता आती है।
Autism patient में योग प्रथाएँ
1. आसनों (Asanas): सरल पोज़ जैसे चाइल्ड पोज़ और कैट-काऊ पोज़, लचीलापन और संतुलन में सुधार।
2. प्राणायाम (Breathing Exercises): गहरी साँस लेने की तकनीकें तनाव कम करने में मदद करती हैं।
3. ध्यान (Meditation): गाइडेड ध्यान और दृश्यकल्पनाएँ मानसिक शांति और फोकस में सुधार करती हैं।
4. योग निद्रा (Yoga Nidra): गहरी विश्राम तकनीक जो नींद और विश्राम में सुधार करती है।
ये तकनीकों ऑटिज़्म के लक्षणों को प्रबंधित करने में सहायक हो सकती हैं।
- Lifestyle Changes for autism: Daily routines (Dinacharya) and seasonal routines (Ritucharya)
दिनचर्या
2. सुबह जल्दी उठना: सूरज उगने से पहले उठें।
3. पानी पीना: उठते ही गर्म पानी पीएं।
4. स्वच्छता: मौखिक स्वच्छता, तेल निकालना, और त्वचा की देखभाल करें।
5. व्यायाम: हल्की शारीरिक गतिविधि करें, जैसे योग या चलना।
6, संतुलित आहार: नियमित समय पर संतुलित भोजन करें।
7, काम और आराम: काम के बीच आराम के समय को शामिल करें।
8. शाम की दिनचर्या: शांति देने वाली गतिविधियाँ करें और सोने से पहले उत्तेजक गतिविधियों से बचें।
9. नींद: नियमित समय पर 7-8 घंटे की नींद लें।
ऋतुचर्या
autism रोगियों को ऋतु के हिसाब से खाने पीने वाली बातों में विशेष ख्याल रखना होगा वैसे तो यह ऋतुचर्या सभी लोगों के लिए उपयोगी रहता है। यहां नीचे प्रत्येक ऋतुओं के संबंध में हमारा खान-पान और दिनचर्या कैसे रखें इसके विषय में सामान्य जानकारी दिया जा रहा है।
वसंत (Spring): हल्का और ठंडा आहार जैसे कि जौ, मूंग, और सब्जियों का सेवन करें। इस ऋतु में कफ दोष का प्रकोप होता है, इसलिए कफ को संतुलित करने वाले आहार लें।
ग्रीष्म (Summer): ठंडे और तरल पदार्थ जैसे छाछ, नारियल पानी, और फल जैसे तरबूज और खीरे का सेवन करें। इस ऋतु में पित्त दोष का प्रकोप होता है, इसलिए पित्त को शांत करने वाले आहार का चयन करें।
वर्षा (Monsoon): हल्का और पचने योग्य भोजन जैसे मूंग दाल का सूप, खिचड़ी आदि का सेवन करें। अधिक नमी से बचें और सादा, सुपाच्य आहार लें। इस समय वात और पित्त दोनों का संतुलन आवश्यक है।
शरद (Autumn): गर्म और पोषक आहार जैसे तिल का तेल, गेहूँ, और दूध का सेवन करें। इस ऋतु में वात दोष का प्रकोप होता है, इसलिए वात को संतुलित करने वाले आहार का सेवन करें।
हेमंत (Winter): गर्म और ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थ जैसे घी, सूखे मेवे, और जड़ी-बूटियों का सेवन करें। इस समय वायु और कफ दोनों को संतुलित रखने के लिए पौष्टिक आहार महत्वपूर्ण है।
शिशिर (Late Winter): इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए मौसमी फल, सब्जियाँ और औषधीय पौधों का सेवन करें। इस समय शरीर को ठंड से बचाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करें।
ऋतुचर्या के अनुसार, सही आहार और दिनचर्या का पालन करने से हमारे शरीर में दोषों का संतुलन बना रहता है और हम विभिन्न रोगों से बचे रहते हैं।
इन बदलावों से संतुलन और स्वास्थ्य बनाए रखें।
Ayushyogi के सभी विद्यार्थियों ने लगभग 40 से अधिक Autism रोगियों के ऊपर पादाभ्यंग के ऊपर आयुर्वेदिक बताए विधि द्वारा 1 महीने तक पादाभ्यंग (food massage) के ऊपर विशेष अनुसंधान करने का संकल्प लिया था जिसमें जीन 40 लोगों ने हिस्सा लिया था उनमें से 21 लोगों के उपर इसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई दिया बाकी के बच्चों में से 15% को तो पूरी तरह से कोई भी इस पादाभ्यंग से फायदा नहीं हुआ ।
उन तमाम विद्यार्थी अभी इस तरह Autism रोगियों के ऊपर अलग-अलग चीजों को एक साथ करके चिकित्सा करने का प्रयास कर रहे हैं उसमें सभी रोगियों में बेहद फायदा दिखाई देता है जैसे
नस्यम्:- नीर्गूण्डी/ नक्क्षीकनी अर्क, क्षीरवलादि तेल etc संतर्पण और सोधन कारक द्रव्य से
शिरोधारा:- व्राह्मी तेल,क्षीरवला तेल से
शिरोविरेचन द्वारा संतर्पण :- पंचगव्य घृत से नस्य या अभ्यंग
वस्ति:- राजयापन बस्ति,तिक्तक्षीर बस्ति,
इस रोग में वमन और विरेचन लगभग नहीं किया जा सकता क्योंकि सभी रोगी अपतर्पणोत्थ कारणों से Autism की अवस्था में आते हैं।
7. Conclusion
- Summary of key points
autism यह शरीर और मानसिक असंतुलन का परिणाम है। रोग परीक्षण के संदर्भ में प्रत्यक्ष रूप से प्रथम कुछ भी समझ में नहीं आता है मगर चिकित्सा के लिए अगर आयुर्वेदिक ग्रन्थों का सहारा लिया जाए तो बहुत कुछ किया जा सकता है।
इस रोग में अभ्यंग,पादाभ्यंग,शिरोवस्ति,शिरोधारा, यापन वस्ति, ध्यान,मंत्र,पुजन, देवदर्शन , सांत्वना आदि का अनुसरण करते हुए रोगी को हमेशा प्रसन्न रखने का प्रयास करना चाहिए साथ में उसका ध्यान किसी एक वस्तु के ऊपर केन्द्रित हो ऐसा activities करनी चाहिए।
Ayushyogi संचलक वैद्य द्रोणाचार्य जी लंबे समय से अपने विद्यार्थियों के माध्यम से Autism के ऊपर अनेक प्रकार से अनुसंधान करते आ रहे हैं। अभी भी इस प्रसंग में बहुत कुछ करना बाकी है जिसमें हमने पादाभ्यंग,और राजयापन वस्ति का सकारात्मक प्रभाव देखा है। आने वाले समय में इस रोग से संबंधित रिसर्च द्वारा प्राप्त जानकारी का उल्लेख इसी blog में क्रमशः लिख दिया जाएगा।
यदि आप वैद्य द्रोणाचार्य जी से बात करना चाहते हैं तो -8699175212 इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।
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