50th,Charakokta Mahakashaya Articles 50th, mahakashaya gana like Varnya Mahakashaya, Lekhaniya Mahakashaya,Hridya Mahakashaya etc.Mahakashaya meaning. Please read all 50th, Mahakashaya posts carefully and share them with other your Friends.
अथातः षड्विरेचनशताश्रितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः||१||
इति ह स्माह भगवानात्रेयः||२||
इह खलु षड् विरेचनशतानि भवन्ति, षड् विरेचनाश्रयाः, पञ्च कषाययोनयः, पञ्चविधं कषायकल्पनं, पञ्चाशन्महाकषायाः, पञ्च कषायशतानि, इति सङ्ग्रहः||
हृद्य महाकषाय: Hridhya mahakasaya,श्वाशहर महाकषाय:swashar Mahakashaya ,कासहर महाकषाय: Kashar Mahakashaya ,जीवनीय महाकषाय: Jivaniya Mahakasaya ,बल्य महाकाषाय:Balya Mahakashaya ,वर्णय महाकाषाय:Varnya Mahakashaya ,कंठ्य महाकाषाय:Kanthya Mahakashaya ,दीपनीय महाकाषाय: Deepaniya Mahakashaya ,बृंहणीय महाकाषाय:Brimhaniya Mahakashaya ,लेखनीय महाकाषाय: Lekhaniya Mahakashaya ,भेदनीय महाकाषाय: Vedaniya Mahakashaya ,संधानीय महाकाषाय: Sandhaniya Mahakashaya ,शुक्रजनन महाकाषाय: Shukrajanan Mahakasaya ,शुक्रशोधन महाकाषाय: Sukrasodhana Mahakashaya ,शोथहर महाकाषाय:Sothhat Mahakashaya ,ज्वरहर महाकाषाय:Jwarhar Mahakashaya ,श्रमहर महाकाषाय:Sramhar Mahakashaya ,मूत्रविरंजनीय महाकाषाय:Mutrabiranjaniya Mahakashaya ,मूत्र विरेचीनय महाकाषाय:Mutra Virechaniya Mahakashaya मूत्र संग्रहणीय महाकाषाय: Mutrasangrahaniya Mahakashaya,पुरीष संग्रहणीय महाकाषाय: Purissangrahaniya Mahakashaya ,पुरीष विरंजनीय महाकाषाय: Purisviranjaniya Mahakashaya ,तृप्तिहनमहाकाषाय:Triptighna Mahakashaya,स्नेहोपग महाकाषाय: Snehopag Mahakashaya ,स्वेदोपग महाकाषाय: Swedopag mahakasaya ,तृष्णा निग्रहंण महाकाषाय:Trisnaniggraha Mahakashaya ,अर्शोघ्न महाकाषाय:Arsoghana Mahakashaya ,कुष्ठघ्न महाकाषाय: Kusthaghana Mahakashaya , कण्डुघ्न महाकाषाय: Kandughana Mahakasaya ,कृमिहन महाकाषाय:Krimihara Mahakashaya ,विषहन महाकषाय:bishara Mahakashaya ,दाह प्रशमन महाकषाय: Dahaprasaman Mahakashaya , शीत प्रशमन महाकषाय: sitprasaman mahakasaya ,उदर्द प्रशमन महाकषाय:udardprasman Mahakashaya , अंगमर्द प्रशमन महाकषाय: angmardprasman Mahakashaya ,शूलप्रश्मन महाकषाय:Sulaprasaman Mahakashaya , वेदना स्थापन महाकषाय: Bedanasthapan Mahakashaya ,संज्ञास्थापन महाकषाय:Sangyasthapan Mahakashaya , शोणित स्थापन महाकषाय:Siditasthapan Mahakashaya वय स्थापन महाकषाय:bayasthapan Mahakashaya ,प्रजा स्थापन महाकषाय:prajasthapan Mahakashaya , स्तन्यजनन महाकषाय:stanyajanan Mahakashaya , स्तन्यशोधक महाकषाय:Stanyasodhan Mahakashaya , वमनोपग महाकषाय:Bamanopag mahakasaya ,विरेचनोपग महाकषाय: Birechanopag Mahakashaya ,आस्थापनोपग महाकषाय:Asthapanopag mahakasaya ,अनुवासनोपग महाकषाय:Anubasanopag mahakasaya ,शिरोविरेचनोपग महाकषाय:Sirobirechanopag Mahakashaya ,छर्दि निग्रहण महाकषाय:Chardynigrahan Mahakashaya ,हिक्का निग्रहण महाकाषाय:Hikkanigrahan Mahakashaya
उपसंहार के संदर्भ में भगवान आत्रेय इस तरह के वचन बोलते हैं।
इति पञ्चकषायशतान्यभिसमस्य पञ्चाशन्महाकषाया महतां च कषायाणां लक्षणोदाहरणार्थं व्याख्याता भवन्ति || च.सु.अ.4/19
नहि विस्तरस्य प्रमाणमस्ति, न चाप्यतिसङ्क्षेपोऽल्पबुद्धीनां सामर्थ्यायोपकल्पते, तस्मादनतिसङ्क्षेपेणानतिविस्तरेण चोपदिष्टाः। एतावन्तो ह्यलमल्पबुद्धीनां व्यवहाराय, बुद्धिमतां च
स्वालक्षण्यानुमानयुक्तिकुशलानामनुक्तार्थज्ञानायेति||
एवंवादिनं भगवन्तमात्रेयमग्निवेश उवाच- नैतानि भगवन्! पञ्च कषायशतानि पूर्यन्ते, तानि तानि ह्येवाङ्गान्युपप्लवन्ते तेषु तेषु महाकषायेष्विति||
तमुवाच भगवानात्रेयः- नैतदेवं बुद्धिमता द्रष्टव्यमग्निवेश | एकोऽपि ह्यनेकां सञ्ज्ञां लभते कार्यान्तराणि कुर्वन्, तद्यथा पुरुषो बहूनां कर्मणां करणे समर्थो भवति, स यद्यत् कर्म करोति तस्य तस्य कर्मणः कर्तृ-करण-कार्यसम्प्रयुक्तं तत्तद्गौणं नामविशेषं प्राप्नोति, तद्वदौषधद्रव्यमपि द्रष्टव्यम्।
यदि चैकमेव किञ्चिद्द्रव्यमासादयामस्तथागुणयुक्तं यत्
सर्वकर्मणां करणे समर्थं स्यात्, कस्ततोऽन्यदिच्छेदुपधारयितुमुपदेष्टुं वा शिष्येभ्य इति ||
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आम
अमलवेतस
आम्रा
बेर
बड़ी बेर
दाड़िम
करौंदा
बड़हल
वृक्षामल
मातुलूँग
Hridhya mahakasaya हृदय को बल देने वाला बताया गया है।चरकोक्त हृद्य महाकषाय:कषाय रस प्रधान औषधियां है कषाय रस कफ पित्त सामक होता है। हृदय मे जब अबलम्वक कफ की मात्रा ज्यादा हो जाता है तो तामस गुण से हृदय पिडीत होता है ऐसे में चरकोक्त हृद्य महाकषाय: हृदयस्थ साधक पित्त को वढाकर (यहां कषाय रस विपाक से कटु रस वाला होने से कफ का छेदन करने वाला बताया है कटु, तिक्त,कषाय का विपाक कटु होता है) व्यक्ति को धर्म, अर्थ,काम,मोक्ष के प्रति आस्थावान बनाता है। कषाय रस वायु को बढ़ाने वाला होता है हृदय में प्राणवायु का निवास माना जाता है साथ में उदान और ब्यान वायु का संबंध अभी हृदय से ही है इसीलिए ह्रदय में वायु के कर्म बढ़ जाने से शरीर में वायु का ज्ञान गति और प्राप्ति वाली कर्म प्रॉपर होना शुरू होता है। हार्ट फेल होने की कंडीशन में भी ऐसी ही स्थिति होती है जहां हृदय में वायु के प्रभाव कम पड़ने लगता है अवलंब कफ ह्रदय को ढक देता है तो हार्ट फेल होना शुरू हो जाता है लेकिन जब कषाय रस प्रधान चरकोक्त हृद्य महाकषाय: के सेवन से हृदयगत आवरण वायु के वेग से खुल जाते हैं ऐसे में
चरकोक्त हृद्य महाकषाय: का प्रयोग उन्माद अपस्मार ओसीडी या सभी प्रकार के मानसिक व्याधि में दिया जाता है। पांडु रोग जब ओजक्षय के कारण बढ़ने लगे तो भी चरकोक्त हृद्य महाकषाय: देना उत्तम होता है।
अगरु
चोपचीनी
तुलसी
छोटी इलायची
हींग
जीवंती
भूम्यालकि
कचूर
पुष्करमूल
अमलवेतस
चरकोक्त swashara mahakasaya का प्रयोग जितने भी प्रकार के ऊर्ध्व जत्रुगत व्याधियों में देना अच्छा होता है। जव प्राणवह स्रोतस और रस धातु स्वनिदान से प्रकुपीत कफ द्वारा प्रभावित होता है तो उदान और प्राण वायु को प्रदूषित कर स्वस,हिक्का,प्रतिस्याय आदि व्याधि देते हैं। यदि अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को चरकोक्त श्वाशहर महाकषाय उस रोगी के शरीर बल व्याधि बल प्रकृति रितु देश काल आदि बातों को ध्यान में रखकर अनुकूल द्रव्य का संकलन करके काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिला दिया जाता है तो उत्तम फायदा देता है। चरकोक्त श्वाशहर महाकषाय का मसी बना शहद में मिलाकर भी चटाया जा सकता है।
कुछ लोग इसको क्षार निर्माण करके भी रोगी को देते हैं।
आमलकी
हरीतकी
पीप्पली
मुनक्का
दुरालाभा
कंटकारी
कर्कट्श्रृंगी
श्वेतपुनर्नवा
रक्त पुनर्नवा
भूम्यालकि
चरकोक्त Kashara mahakasaya कास खासी में अच्छा प्रयोग किया जा सकता है।कास रोग को नष्ट करने के लिए चरकोक्त Kashara mahakashaya के उपलब्ध औषधि का काढ़ा बनाकर दे सकते हैं।
जीवक
ऋष्भक
मेदा
महामेदा
काकोली
क्षीरकाकोली
मुदगपर्णी
मांश्पर्णी
जीवन्तकी
मुलैठी
चारकोक्त Jivaniya mahakasaya को में आयुर्वेद का अमृत मानता हूं।चारकोक्त जीवनीय महाकषाय शरीर को पुनर्जीवन देने वाला बताया गया है। जव व्यक्ति लंबी बीमारी से ग्रसित होता है शरीर के सेल्यूलर लेवल में या कहे ब्लड सेल में जीवनी शक्ति की कमी होती है इसी कारण से इंसान मृत्यु के ग्रास बन जाता है ऐसे वक्त में विश्वास पूर्वक चारकोक्त जीवनीय महाकषाय का प्रयोग करना चाहिए।
learn more :- Jivaniya Mahakashaya | आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की अनमोल खोज
बला
अतिबला
शतावरी
सारिवा
अश्वगंधा
कुटकी
कौंच के बीज
ऐन्द्री
मांश्पर्णी
क्षीरविदारी।
चरकोक्त Balya mahakashaya का सबसे प्रभाव कारी प्रयोग ग्रहणी मे दिखता है ग्रहणी रोग अध्याय इससे अग्नि धरा कला भी कहा जाता है जहां से अग्नि प्रकट होता है उस जगह का मजबूत होना बहुत महत्वपूर्ण बात है ग्रंथ में लिखा गया है यदि ग्रहणी कमजोर हो तो वहां रहने वाला अग्नि अपने आप कमजोर हो जाता है और अगर अग्नि कमजोर हो तो अग्नि धरा कला यानी ग्रहणी अपने आप कमजोर हो जाता है अग्नि को ही शरीर का बल ओज और वर्ण बताया गया है।चरकोक्त बल्य महाकाषाय ग्रहणी को बल देने का कार्य करें। रक्त से मांसधातु निर्माण क्रम में जिस शक्ति की आवश्यकता रहती है उसका निर्वहन करता है चरकोक्त बल्य महाकाषाय।चरकोक्त बल्य महाकाषाय शरीर में मांस रक्त और अस्थि धातु के ऊपर विशेष प्रभावी रहता है। इनमें से कहीं भी बल क्षय होने की स्थिति में चरकोक्त बल्य महाकाषाय देना है।
चरकोक्त बल्य महाकाषाय रूमेटाइड अर्थराइटिस और सोरायसिस जैसे समस्या में बेहतरीन काम करता है।
learn more:- व्याधिक्षमत्व बढ़ाने वाली बल्य महाकषाय |
खस
मुलैठी
मंजिष्ठा
सारिवा
नागकेशर
चन्दन
क्षीरविदारी
श्वेतदुर्वा
श्यामदुर्वा
पद्मक
चरकोक्त Varnya Mahakashaya का प्रयोग शरीर और ऑर्गन लेवल में वर्ण्यता निर्माण के लिए किया जाता है। आयुर्वेद चेहरे में होने वाली दाग धब्बे या अनेक कारणों से सुंदरता से रहित शरीर और चेहरे का इलाज चरकोक्त वर्ण्य महाकाषाय से करने का निर्देश देता है।
varnya mahakashaya और Sandhaniya mahakashaya इन दोनों के योग से हम बेहतरीन फेस क्रीम का निर्माण कर सकते हैं।
चरकोक्त varnya mahakashaya सिर्फ चेहरे की सुंदरता ही नहीं बल्कि यदि सिर के बाल बार-बार सफेद हो जाता है तो उसके लिए भी ग्रंथ कार चरकोक्त वर्ण्य महाकाषाय के साथ स्तन्यजनन् महाकषाय मिलाकर लगाने के लिए बताते हैं।
ओरल सेवन से यह भ्राजक पित्त और धातु साम्य हेतु कार्य करता है। त्वचा का संबंध मन से भी होता है यानी जब जब मन प्रदूषित होगा तब तब त्वचा विकार भी होता है। त्वचा विकार का संबंध अर्श व्याधि से भी जुड़ा हुआ है ऐसी कंडीशन में चरकोक्त वर्ण्य महाकाषाय का युक्ति पूर्वक प्रयोग करने से बहुत बड़ा फायदा मिलता है।
सारिवा
मुलैठी
पिप्पली
ईख की जड़
मुनक्का
विदारी कर्ण
बृहती
कंटकारी
कायफल
हंसपदी
चरकोक्त कंठ्य महाकाषाय का प्रयोग मांस सोणीत दुष्टि मैं देना है क्योंकि स्वरक्षय मैं इन्हीं धातुओं की बिकृति होती है। गले में यदि टॉन्सिल हो तो भी चरकोक्त कंठ्य महाकाषाय देना अच्छा होता है।
पिप्पली
पिप्पलीमूल
चव्य
चित्रक
मरीच
सोंठ
भिलावा की गुठली
अजमोदा
हींग
अमलवेतस
चरकोक्त दीपनीय महाकाषाय: शरीर में अग्नि प्रवर्तन करने वाला द्रव्य है। इन दिनों थायराइड डायबिटीज जैसे व्याधि में चरकोक्त दीपनीय महाकाषाय: का सफल प्रयोग किया जा रहा है।चरकोक्त दीपनीय महाकाषाय: सभी प्रकार के अग्नि को प्रज्वलित करने में सहयोगी होगा।
काकोली
क्षीरकाकोली
शेवतबला
पीतबला
अश्वगंधा
विधारा
दुग्धिका
क्षीरविदारी
वनकपास
विदारीकन्द
चरकोक्त बृंहणीय महाकाषाय वृम्हण कार्य करने वाला बताया जाता है। धातु क्षय की अवस्था में जहां शरीर में रसायन कर्म की आवश्यकता रहती है वहां चरकोक्त बृंहणीय महाकाषाय शरीर को तंदुरुस्त रखने में सहयोगी होगा। सभी प्रकार के मेजर ऑपरेशन के बाद यदि रोगी को कमजोरी का महसूस होता है शरीर क्षीण होते जा रहा है तो वहां भी काढे के रूप में चरकोक्त बृंहणीय महाकाषाय देने का प्रचलन है।
हरिद्रा
दारुहरिद्रा
वचा
सफेदवचा
कुष्ठ
नागरमोथा
अतिविषा
कुटकी
चित्रक
चीरबिल्व
चरकोक्त लेखनीय महाकाषाय का प्रयोग वेट लॉस के लिए अच्छी तरह से कर सकते हैं। जो मेदस्वी लोग हैं उनके लिए लिखने महादशा है उत्तम कार्य करता है सभी प्रकार के गुल्म और किसी भी प्रकार का शारीरिक लिपोमा जैसे किसी भी प्रकार के गांठ को नष्ट करने के लिए चरकोक्त लेखनीय महाकाषाय का प्रयोग करना चाहिए।
learn more:- lekhaniya mahakasaya
अर्क
एरंड
निशोथ
लांघली
शंखिनी
चित्रा
चित्रक
चिरबिल्व
कुटकी
स्वर्णक्षीरी
चरकोक्त भेदनीय महाकाषाय में वर्णित सभी जड़ी बूटियां तिक्ष्ण,कटु,उष्ण, गुण वाला पथरी जैसे कंडीशन में उसको बाहर निकालने के लिए पथरी के साइज को थोड़ा छोटा करना जरूरी होता है या पथरी को तोड़कर बाहर निकालने के लिए चरकोक्त भेदनीय महाकाषाय अच्छा काम करेगा सभी प्रकार के मसक,वाहरी लिपोमा या शरीर में यत्र तत्र दिखाई देने वाले छोटे-छोटे मांस अंकुर, गुल्म, और लीकोडरमा तथा फाइब्रॉयड जैसे समस्या में चरकोक्त भेदनीय महाकाषाय उत्तम कार्य करता है।
गिलोय
मुलैठी
पाठा
पीठिका
मंजिष्ठा
मोचरस
धातकी पुष्प
लोदर
प्रियंगु
जायफल
संधानीय महाकाषाय: हर प्रकार के शारीर भाव का संधान यानी जोड़ने का कार्य हेतु संधानीय महाकाषाय: उत्तम कार्य करता है जैसे किसी का बच्चा नहीं हो रहा है तो यहां पुरुष का शुक्र और स्त्री के आर्तव में यह संधान कार्य करेगा। मरने वाले व्यक्ति के लिए यह प्राणों का संधान करेगा हड्डियां टूट जाए तो यह अस्थियों का संधान करेगा।
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जीवक
ऋषभक
मेदा
काकोली
क्षीरककोली
बनउड़द
शतावरी
जटामांसी
बनमुंग
कूलिंग
शुक्रजनन महाकाषाय: शरीर में ऊर्जा का निर्माण करेगा शुक्र जो संपूर्ण शरीर में व्याप्त है उसका निर्माण और समरक्षण दोनों ही करेगा यह वृषण में स्थित संतान उत्पादन कारक वीर्य का निर्माण और सबल वीर्य का काउंट भी बढ़ाएगा।
कुष्ठ
एलवा
इक्षु
खस
कांडेेषु
कायफल
कदम्ब का गोंद
समुद्रफेन
कुकिलक्ष
बंकुल
अक्सर आयुर्वेदिक ग्रंथों में संतान उत्पादन क्रिया से पहले पति और पत्नी के शरीर में शोधन क्रिया के लिए बताया गया है । क्योंकि आहार विहार से दूषित शुक्र या पूर्व जन्म के प्रभाव से दूषित शुक्र आपको रोग से पीड़ित संतान उत्पादन करने के लिए प्रेरित करेगा ऐसे में शुक्रशोधन महाकाषाय: यह उसी कड़ी में बेहतरीन साबित होगा।
बिल्व
अग्निमंथ
श्योनाक
पाटला
गंभारी
शालपर्णी
पृष्णपर्णी
बृहती
कंटकारी
गोक्षुर
सभी प्रकार के इन्फेक्शन सोथ के कैटेगरी में आता है। शोथहर महाकाषाय मैं ज्यादातर दशमूल का कंटेंट है दशमूल का प्रयोग ज्यादातर वात अनुलोमन कर्म,शूल प्रशमन तथा शोथ को ठीक करने के लिए किया जाता है।
हरीतकी
विभितकी
आमलकी
मंजिष्ठा
पाठा
मुनक्का
पीलू
शर्करा
सारिवा
फालसा
ज्वरहर महाकाषाय: ग्रंथों में बताए गए सभी प्रकार के ज्वर को ठीक करने वाला आयुर्वेदिक कंपोजीशन है। इसका प्रयोग मैंने एक बच्चे के ऊपर किया था जिसको बचपन में तेज बुखार आने के वजह से ब्रेन का नस में शोथ उत्पन्न हो कर बाद में मिर्गी का दौरा आना शुरू हुआ था मैंने कुष्ठ रोगी के ऊपर यही ज्वरहर महाकाषाय: की सभी जड़ी बूटियों को बरोबर मिक्स करके एक-एक चम्मच सुबह और शाम खाने के लिए दिया था परिणाम स्वरूप उसमें मिर्गी आना बंद हो गया था उस बच्चे को बार-बार बुखार होने की वजह से ही मिर्गी का दौरा आता था।
मुनक्का
खर्जूर
अंजीर
फालसा
बेर
अनार
ईख
यव
साठीचावल
प्रियाल
श्रमहर महाकाषाय का प्रयोग वहां करना है जहां अत्यधिक यात्रा करके थक जाने के बाद या अति काम के बोझ से शरीर में कोई व्याधि उत्पन्न हुआ है ध्यान देना कोई भी व्याधि जिसका कारण अधिक श्रम यानी मेहनत करना है उन सभी व्याधियों में श्रमहर महाकाषाय देना चाहिए।
मुलैठी
प्रियंगु
धातकीपुष्प
कमल
नीलकमल
नलींग
कुमुद
सोगंदीक
पुंडरीक
शतपत्र
शरीर में समान वायु के विकृति से बहुत सारे व्याधि उत्पन्न होते हैं जिसमें से मूत्रगत ब्याधि भी एक है । मूत्रविरंजनीय महाकाषाय: हमें तब प्रयोग करना है जब कोई आपके सामने यह शिकायत को लेकर आए की सर मेरे यूरिन से बदबू आ रही है या उसका रंग अजीब सा है कोई पीला बोलेगा,कोई झाग दार बोलेगा, कोई नीला बोलेगा, कोई लाल रंग वाला पिशाब के शिकायत लेकर आएगा उन सभी कंडीशन में जिन कारणों से ऐसा होता है उसके ऊपर डायरेक्टली काम करने के लिए हमें मूत्रविरंजनीय महाकाषाय: के सभी जड़ी बूटियों को कलेक्शन करके काढ़ा बनाकर पीने के लिए देना है।
गोक्षुर
कुश
काश
दर्भ
गुन्द्रा
पाषाणभेद
पुनर्नवा
वृत्वदानी(विदारीकन्द)
वशीर(रक्त अपामार्ग)
शरमूल
दोस्तों कभी कभी किसी कारण से पेशाब सही मात्रा में निकलता नहीं है या पेट में बहुत ज्यादा पेशाब भरा हुआ है मगर बाहर निकलता ही नहीं है तो ऐसे दोष युक्त यूरिन को बाहर निकालने के लिए मूत्र विरेचीनय महाकाषाय रोगी को देना चाहिए।
आम
जामुन
वट
प्लक्ष
उदुम्बर
पीपल
भिलावा
अश्मंतक
खदीर
कपीतन(शिरीश)
मूत्र संग्रहणीय महाकाषाय: उन लोगों के लिए अमृत के समान कार्य करने वाला है जो बहुत सारे जहरीले नशा करते हैं। कफ का क्लेद की अधिकता से शरीर में जलीयांश की अधिकता हो जाती है जिससे क्रिएटिनिन बढ़ने का खतरा होता है ऐसी कंडीशन में मूत्र संग्रहणीय महाकाषाय: उत्तम कार्य करने वाला औषधि साबित होगा यह दवाई शरीर में यत्र तत्र बिखरे हुए जलीयांश को ढूंढ ढूंढ कर मूत्र मार्ग से बाहर निकालने का कार्य करता है।
मैंने सुना था कोई भी व्यक्ति लंबे समय से पान गुटखा सिगरेट तंबाकू जैसे मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं तो शरीर में इन मादक द्रव्यों का एक लेयर जो क्लेद रुपा है वह तैयार होता है यदि हम मूत्र संग्रहणीय महाकाषाय: ऐसे व्यक्ति को देते हैं तो कुछ समय के बाद इस प्रकार के सभी मादक पदार्थ सेवन का इच्छा उसके मन से खत्म हो जाता है क्योंकि मूत्र संग्रहणीय महाकाषाय: उस मादक द्रव्य द्वारा निर्मित क्लेद को भी मूत्र मार्ग से बाहर निकाल देता है। यहां मूत्र संग्रहणीय,मूत्र विरजनीय,मूत्र विरेचनीय तीनों का कंपोजीशन मिला कर देना होगा।
प्रियंगु
सारिवा
श्योनाक
लोध्र
मूच् र्छरस
लज्जालु
धतकीपुष्प
पदम्
कमलकेसर
आम की गुठली
पुरीष संग्रहणीय महाकाषाय: भी समान वायु के कार्य को संपादन करने में सहयोगी होता है।पुरीष संग्रहणीय महाकाषाय: का मुख्य कार्य पुरिष का निर्माण करना और शरीर के यत्र तत्र बिखरे हुए पंचमहाभूत तथा सप्त धातु का मल सभी को एकत्रित करना होता है। यह कार्य व्यान वायु द्वारा संपादित होता है।
नील कमल
जामुन
महुआ
शाल्मली
कौंच
श्रीवेष्टक
भुनी हुई मिट्टी
विदारीकन्द
तिल
शल्लकी की छाल
पुरीष विरंजनीय महाकाषाय का मुख्य कार्य पुरीष निर्माण क्रिया में शरीर भाव को बल प्रदान करना है। यानी मल में रंग भरने का काम में होने वाली समस्याओं में पुरीष विरंजनीय महाकाषाय उचित कार्य करता है।
चव्य
चित्रक
सोंठ
पिप्पली
पटोल
गिलोय
वचा
नागरमोथा
मूर्वा
विडंग
तृप्तिघ्न महाकाषाय: के विषय में अगर मैं स्पष्ट रूप से कहूं तो यह द्रव्य जहां भी शरीर में एनर्जी निर्माण का कार्य होगा उस जगह में सहयोगी बनकर पहुंचेगा। जब सप्त धातुओं के अग्नियां किसी कारणवश कमजोर पड़ जाता है तो तृप्तिहन महाकाषाय: अमृत के समान वहां काम करता है। डायबिटीज में जब ग्लूकोज सेल के अंदर नहीं जा पाने के कारण ग्लाइकोजन में कन्वर्जन नहीं हो पाता उसी के कारण एनर्जी में कनवर्टर ना होने से अंततोगत्वा मधुमेह का रूप धारण कर लेता है जहां पर भी तृप्तिहन महाकाषाय: डायरेक्टली इंसुलिन का निर्माण करके यह सभी कार्य संपादन में सहयोगी होता है।
तृप्तिहन महाकाषाय: का सबसे अधिक कार्य मुझे समान वायु और पाचक पित्त में दिखता है क्योंकि इन दोनों का एक विशेष कार्य सर्किट विभाजन करना होता है। डायबिटीज भी समान वायु की समस्या से होने वाली व्याधि है। यदि डायबिटीज हो तो दीपनीय और तृप्तिघ्न महाकषाय इन दोनों को मिला कर देना चाहिए।
मुनक्का
मुलैठी
गिलोय
मेदा
काकोली
क्षीरलकोली
जीवंती
जीवक
सारिवा
विदारीकन्द
आयुर्वेदिक ग्रंथों में पंचकर्म चिकित्सा के संदर्भ में स्नेहन कर्म(शरीर के अंदर छोटे-छोटे नसों में चिकनाहट पैदा करने वाली क्रियाएं) का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। प्रकुपीत दोष सुक्ष्म स्रोतों मैं प्रवेश करके आमवात संधिवात वातरक्त जैसे पीड़ादायक व्याधि उत्पन्न करते है ।
जब तक छोटे-छोटे नसों के अंदर प्रवेश हुए वह टॉक्सिंस को हम शरीर से बाहर नहीं निकालेंगे तब तक वह व्याधि समन होने वाला नहीं है ।
इसीलिए आभ्यन्तर और वाह्य स्नेहन(शरीर के अंदर छोटे-छोटे नसों में चिकना पदार्थ डालने वाली क्रिया) कर्म हेतु स्नेहोपग महाकाषाय: बहुत ही अच्छा रिजल्ट देने वाला दवाई है।
अर्क
एरंड
सहिजन
यव
तिल
कुलथ
उड़द
बेर
शवेत पुनर्नवा
रक्त पुनर्नवा
पंचकर्म चिकित्सा में वमन विरेचन और वस्ति हेतु छोटी-छोटी नसों के अंदर चिकनाहट पैदा करना इस क्रिया को स्नेहन नाम से हमने ऊपर पढ़ लिया वहां से जिद्दी टॉक्सिंस को बाहर निकालने के लिए एक और क्रिया करना होता है जिसके तहत उसमें से बहुत अधिक पसीना निकलने लगे जिसे हम स्वेदन क्रिया बोलते हैं ।
चिकनाहट के साथ पसीना जब उन नसों में उत्पन्न होता है तो अभ्यंग यानी मालिश करने से धीरे-धीरे वह टॉक्सिन नसों से होते हुए कोस्ठ में आ जाता है । उसके बाद वमन विरेचन के माध्यम से उस टॉक्सिंस को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है स्वेदोपग महाकाषाय भी इसी प्रयोजन सिद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण घटक द्रव्य है।
धनिया
सोंठ
पटोल
वासा
नागरमोथा
चन्दन
पित्तपापड़ा
गिलोय
चिरायता
सुगन्धबाला
तृष्णा का अर्थ होता है प्यास, निग्रहण का अर्थ होता है कंट्रोल करना यानी की प्यास लगने की कंडीशन में उसको जो कंट्रोल करें वह तृष्णा निग्रहंण कर्म होता है। अब आप यह देखिए कि कौन-कौन सी व्याधि में प्यास लगता है उन सभी अवस्थाओं में तृष्णा निग्रहंण महाकाषाय दे सकते हैं। शरीर में जब पित्त का द्रव गुण बढ़ता है तो हद से ज्यादा प्यास लगता है पानी पीने पर अजीर्ण होना शुरू हो जाता है ऐसी कंडीशन में यदि हम तृष्णा निग्रहंण महाकाषाय: का सेवन करते हैं तो बहुत अच्छा होता है।
चव्य
चित्रक
सोंठ
हरीतकी
बिल्व
दारुहरिद्रा
वचा
अतिविषा
कुटज
यवासा
अब हम बात करेंगे अर्शोघ्न महाकाषाय: के उपर। अर्शोघ्न महाकाषाय: में विद्यमान सभी आयुर्वेदिक औषधियां कटु तिक्त और उष्ण प्रकृति वाले हैं। अर्शोघ्न महाकाषाय: का प्रयोग गुदाभ्रंश, वेरीकोस वेंस,किलवत वेदना होने की कंडीशन में तथा सभी प्रकार के गुल्मा रोग और मसक मैं कर सकते हैं।
भल्लातक
कनेर
हल्दी
वायविडंग
हरीतकी
आमलकी
अमलतास
सप्तपर्ण
चमेली के पत्ते
खदीर
कुष्ठह्न महाकाषाय का प्रयोग वहां करना है जहां जहां नैक्रोसिस है यानी जहां भी फोड़ा फुंसी होगा वहां कुष्ठघ्न महाकाषाय सिद्ध तैल,घी या काढ़ा के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।कुष्ठघ्न महाकाषाय के सभी जड़ी बूटियां रसायन कर्म करने वाला भी होता है ।
इस कारण से यह विशिष्ट कुष्ठरोग में बेहतर काम करेगा। त्वचा और मन एक दूसरे के आश्रित होते हैं दोनों में से किसी एक में ब्याधि होने पर दूसरा दूषित हो जाता है चिकित्सा होने पर जब एक ठीक हो जाता है तो दूसरा भी ऑटोमेटिकली ठीक होने लगता है इस कारण से त्वचा में काम करने वाली सभी दवाइयां मन में भी काम करता है। यह कुष्ठघ्न महाकाषाय स्पर्श हानी होने पर भी दिया जा सकता है।
चन्दन
नीम
मुलैठी
सरसों
नागरमोथा
दारुहल्दी
जटामांसी
अमलतास
लताकरंज
कुटज
कण्डुहन महाकाषाय आयुर्वेद का प्रमुख द्रव्य है वर्ण्य और सन्धानीय द्रव्यों के साथ योग करके रोगी में प्रयोग करें तो बड़े-बड़े चर्म विकार को ठीक किया जा सकता है। कण्डु का अर्थ होता है खुजली का होना यह त्वचा संबंधित विकार है इसमें जटामांसी और मुलेठी पर यदि हम ध्यान से विश्लेषण करेंगे तो यह दोनों ही मन के लिए प्रभाव कारी द्रव्य है ।
ग्रंथकार किसी भी त्वचा से संबंधित विकार में मन से होने वाली संबंध के ऊपर विचार जरूर करते हैं इसीलिए यहां जटामांसी का प्रयोग किया गया है। कण्डुघ्न महाकाषाय कषाय रस प्रधान द्रव्य है कषाय रस वायु को बढ़ाकर स्रोतोगामी अवरोध को खोल देता है , साथ में यह कफ और पित्त दोनों का भी समन करता है।
वायविडंग
शिग्रु
मरीच
नअगरमोथा
केबुक
निर्गुण्डी
गोक्षुर
मुशापर्णी
वृषवर्णिका
किणही
कृमिघ्न महाकाषाय का प्रयोग शरीर में स्थित सभी प्रकार के क्रीमीयों को नष्ट करने के लिए किया जाता है।कृमिघ्न महाकाषाय मेदोरोग में जब अती क्लेद की निर्मिती होने लगे तो कृमिघ्न महाकाषाय और कुष्ठघ्न महाकषाय दोनों को मिला कर देना चाहिए ।
कृमिघ्न महाकाषाय विषघ्न भी है शरीर में स्थित सभी प्रकार के टॉक्सिंस के मारक प्रभाव को नष्ट करने वाला है कृमिघ्न महाकाषाय है।
निशोथ
काली निशोथ
हल्दी
मंजिष्ठा
छोटी इलायची
चन्दन
कतक
शिरीश
निर्गुण्डी
श्लेशमंतक
विषघ्न महाकषाय कहां प्रयोग किया जाए इसको समझने से पहले यह समझना होगा कि आखिर विष है क्या चीज। वास्तव में शरीर अवयव में जो वाहरी ऐसे पदार्थ जिसको शरीर एक्सेप्ट करना नहीं चाहता वह सभी विष है।
चाहे तो वह रेडिएशन हो या हो किसी प्रकार का संक्रमण सभी विष के अंतर्गत ही आते है शरीर में ओज के गुरु, स्निग्ध आदि 10 गुण बताए गए हैं जो भी पदार्थ इस गुणों के विपरीत होकर पूज्य नष्ट करने के लिए तत्पर रहता है वह सभी विष ही कहलाएंगे।
उन सभी जहर को नष्ट करने वाला है विषघ्न महाकषाय कैंसर जैसे भयानक रोग निवारण हेतु जब कीमो थेरेपी किया जाता है तो रेडिएशन के माध्यम से शरीर का ओज नष्ट होता है, किसी भी प्रकार के ऐसे डायग्नोसिस क्रियाएं जिसके लिए रोगी को रेडिएशन के सामने रखा जाता है वह सभी क्रियाओं के संपादन होने के बाद विषघ्न महाकषाय दिया जाना चाहिए। मधुमेह के सभी उपद्रव में भी विषघ्न महाकषाय मधुमेह के विष नष्ट करने हेतु उत्तम कार्य करता है।
चन्दन
नीलकमल
खस
लाजा
सारिवा
मंगूआ
सुगन्धबाला
शर्करा
गुडूची
गंभारी का फल
दाह प्रशमन महाकषाय सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक दहा में प्रयोग कर सकते हैं। दाह का मतलब होता है जलन का होना अब आप देखो कि कौन-कौन सी व्याधियों में शरीर और मन में जलन उत्पन्न होता है उन सभी व्याधि में एक स्थानिक लक्षण जो दाह है उस की शांति के लिए दाह प्रशमन महाकषाय देना अच्छा होता है।
अगरु
तगर
धनिया
सोंठ
पिप्पली
वचा
कटेरी
शोना
अजवायन
गनीया
शीत प्रशमन महाकषाय के सभी जड़ी बूटियों के ऊपर जब हम ध्यान से विश्लेषण करते हैं तो यह आयुर्वेद का रामबाण दवाई साबित होता है। शीत प्रशमन महाकषाय की समस्त औषधीयां कफ दोष को शरीर से बाहर निकालने वाली है। सभी प्रकार के निमोनिया साइनस और बलगमी कफ होनें पर शीत प्रशमन महाकषाय देना उत्तम होता है। जब शरीर का हर स्रोतस कब से भर जाता है तो ऐसे में उसको बाहर निकालने हेतु शीत प्रशमन महाकषाय देना चाहिए साथ में शीत प्रशमन महाकषाय इन रोगों में शरीर के बाहर लेपन करने और साथ में क्वाथ के रूप में सेवन करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।
तीन्दूक,
चिरौंजी
बेर
खजूर
सफेद खैर
सप्तपर्णी
साल
अर्जुन
पीतसाल
विटखदीर
अब सीखेंगे उदर्द प्रशमन महाकषाय: का प्रयोग के बारे में आप सभी उदर्द प्रशमन महाकषाय: के जड़ी बूटियों का आयुर्वेदिक गुणधर्म को देखेंगे तो यह सभी कषाय रस प्रधान दवाई समझ में आएगा उदर्द प्रशमन महाकषाय: चर्म विकार में विशेष करके शीतपित्त नामक व्याधि में बेहतरीन काम करता है।
चन्दन
खस
छोटी इलायची
सारिवा
मुलैठी
काकोली
एरण्ड
छोटी कटेरी
बड़ी कटेरी
पिठिबल
अंगमर्द प्रशमन महाकषाय के प्रयोग के बारे में अब हम जिक्र करेंगे अंगमर्द प्रशमन महाकषाय कहां प्रयोग किया जाए वह आपको अंगमर्द यह शब्द सुनते ही समझ में आ ही गया होगा जिसका मतलब होता है शरीर में बेचैनी होना बहुत कारण से शरीर में अंगमर्द होता है विशेष करके किसी भी प्रकार के रोग का प्रारंभ होने से पहले अंगमर्द होना शुरू हो जाता है जैसे ग्रहणी रोग बुखार का आना या राज्यक्षमा के कुछ समस्या के प्रारंभ में अंगमर्द होता है । इसके अलावा डेंगू मलेरिया चिकनगुनिया जैसे वायरल इनफेक्शन जब शुरू हो जानें से शरीर कमजोर हो जाए तो भी उस वक्त अंग मर्द होता है। कुल मिलाकर बलक्षय होना जहां प्रारंभ हो जाए वहां अंगमर्द होना शुरू हो जाता है। इन सभी कंडीशन में अंगमर्द प्रशमन महाकषाय देना उत्तम होता है।
चव्य
चित्रक
सोंठ
मरीच
पिप्पली
पिप्लामूल
अजमोदा
अजगन्दा
जीरा
कण्डी
शरीर में वायु के बढ़ने से वेदना होती है। उदरशूल तथा,वातव्याधि विशेष करके आमबात में यह शूलप्रशमन् महाकषाय उत्तम कार्य करता है लेकिन यह ध्यान देना व्याधि किन्ही कारणों से होता है वह कौन सा दोष है जो व्याधि होने का कारण स्वरूप शरीर में बिगड़ा हुआ है उसका पहचान जरूरी है महाकषाय का चयन क्रमशः नहीं बल्कि रोगी के दोष और शारीरिक बल व्याधि का कारण व्याधि का बल आदि बातों का ध्यान में रखकर महाकषाय मैं लिखी हुए जड़ी बूटियों का चयन करना होगा। ऐसा नहीं कि किसी को आमबात है तो सारी ही शूलप्रशमन् महाकषाय उठा कर दे दे।यह अग्निदिपन कर्म करने वाला द्रव्य है। जहां अग्नि दीपन के अभाव में वेदना हो रही है वहां शूलप्रशमन् महाकषाय: देना चाहिए।
कदम्ब
कठफल
मूचररस
शिरीष
शाल
एला
अशोक
तै लवल
पद्मक
जलवेतस
दोस्तों यह हमारे शरीर भी अजीब का है यदि वेदना अधिक बने तो भी मुश्किल है और यदि वेदना रहित शरीर हो जाए तो भी मुश्किल है। अभी हम जिस वेदना स्थापन महाकषाय के लिए जिक्र करने वाले हैं उसका काम है वेदना रहित स्थान में स्पर्श ज्ञान का अनुभव कराना। वेदना स्थापन महाकषाय का मुख्य काम यही है कि जहां स्पर्श ज्ञान चली गई है वहां प्राकृत वेदना स्थापित करना ही वेदना स्थापन महाकषाय का मुख्य कर्म है। अब आपका काम यह है कि क्या हम इस द्रव्य का प्रयोग पैरालाइसिस या कोमा में गए हुए व्यक्ति के ऊपर कर सकते हैं या नहीं आप खुद विमर्श करें।
हींग
वचा
गोलोवी
ब्राह्मी
जटामांसी
गुग्गलु
कुटकी
अरिमेद
मीठा नीम
चोरक
चरक संहिता अति उत्तम ग्रंथ है यहां हर व्याधि निरूपण अपने व्याधि के आगे और पीछे वाले व्याधि के साथ संबंध कराने वाला व्यवस्था इस ग्रंथ में मिलता है। जैसे अगर हम अर्श चिकित्सा पढ़ने के बाद जब ग्रहणी दोष चिकित्सा विधि को पढ़ते हैं और उसके बाद पांडु रोग चिकित्सा को पढ़ते हैं तो यह क्रम का निर्माण जो ग्रंथकार ने किया है वह बड़े ही सोच समझकर किया है ।क्योंकि अर्श के बारे में जाने बगैर आपको ग्रहणी व्याधि के बारे में समझ में नहीं आता इन दोनों व्याधि को जिसने समझा नहीं पढ़ा नहीं वह पांडु रोग कभी नहीं समझ सकता क्योंकि यह तीनों व्याधि एक आपस में आश्रित रहते हैं।
देखिए उसी प्रकार जब हम महाकषाय पढ़ रहे हैं तो यहां भी क्रम वही है वेदना प्रशमन के बाद तुरंत संज्ञा स्थापन महाकषाय की बातें हो रही है यह संबंध एक-दूसरे के आश्रित है। संज्ञा स्थापन का मतलब है चेतना को लाने वाली क्रियाएं जैसे अपमार जैसे व्याधि में जहां व्यक्ति चेतना हिन हो जाता है। मद,मूर्छा,सन्यास उन्माद आदि सभी व्याधि मे चेतना रहित शरीर हो जाता है। इतना ही नहीं हमारे शरीर में निरंतर चेतना की आवश्यकता रहती है जैसे याददाश्त की कमी होना भी संज्ञा हीन ही माना जाएगा, जब ऑर्गन लेवल पर चेतना रहित हो जाए तो कई सारे समस्या शरीर को झेलना पड़ता है जैसे मान लीजिए जिह्वा में बोधक कफ है यह जिह्वा में आने वाली हर प्रकार के रसों के बारे में चेतना प्राप्त करके अग्नि को जगाने का कार्य करता है ।
इसके हानि से मंदाग्नि होना लिखा है यहां भी मंदाग्नी जैसे स्थिति पर उसी बोधक कफ की चेतना हेतू संज्ञास्थापन महाकषाय देना अति उत्तम होता है।
शर्करा
लाजा
लोध्र
अगरु
मुलैठी
मधु
कुमकुम
प्रियंगु
मोचरस
मृतकपाल
शोणित स्थापन महाकषाय हमें वहां देना है जहां रक्त दूषित हो जाता है और ऐसे स्थान में नवीन रक्त की पूर्ति करनी होती है तो वहां शोणित स्थापन महाकषाय उत्तम कार्य करेगा। शोणित का मतलब होता है कन्वर्सेशन फेस वाला रक्त या कहे रंजक पित्त का निर्माण होते ही जो नवीन रक्त का निर्माण होता है वह ही शरीर में नवीन कर्म हेतु प्रयोग में आता है यहां उसी रक्त के बारे में जिक्र हो रही है। जब ऑपरेशन के बाद रक्त की क्षति हो जाने से शरीर दुर्बल हो जाता है ऐसे में नवीन रक्त प्रदान करने हेतु शोणित स्थापन महाकषाय बहुत अच्छा कार्य करेगा। थैलेसीमिया नामक व्याधि में और किसी कारणवश जब शरीर में रक्ताल्पता जैसी स्थिति हो जाए तो रोगी को बचाने के लिए हमारे पास शोणित स्थापन महाकषाय जैसे अमृत साथ में होना चाहिए।
हरीतकी
आमलकी
गुडूची
मंडुकपर्णी
रासना
पुनर्नवा
जीवंती
शतावरी
अपराजिता
सारिवा
वयस्थापन महाकषाय में लिखा हुआ सभी औषधीयां रसायन कर्म करने वाला द्रव्य है अब आप खुद अंदाज लगा लीजिए कि यह सभी औषधियों को बरोबर मिला कर टेबलेट बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो यह किस लेवल पर शरीर में कार्य करता होगा।वय स्थापन महाकषाय के संपूर्ण औषधियां तिक्त रस वाला है तिक्त रस ही विपाक में कटु होकर अग्नि को बढ़ाकर शरीर में बल का संचार करता है। वय स्थापन महाकषाय major surgery हो जाने के बाद, skin grafting करने के बाद वय स्थापन महाकषाय बहुत अच्छा शरीर में प्रभाव देता है यह स्रोतों शुद्धीकर भी है।
ऐन्द्री
ब्राह्मी
शतवीर्य
सहस्त्रवीर्य
अमोघा(पाटला)
अव्यथा
शिवा
कुटकी
वट्यपुष्पि
विश्वसेनकान्त(प्रियंगु)
प्रजा का कई अर्थ होते हैं मगर आयुर्वेद के दृष्टि में संतान उत्पादन कारक बीज जो शुक्र धातु में होता है यह भी एक अर्थ होता है।
इसका मतलब अब यह हुवा की यदि किसी में संतान उत्पादन शक्ति की कमी है तो प्रजा स्थापन महाकषाय उसके लिए अमृत के समान काम करने वाला घटक द्रव्य है। स्त्रियों के लिए यदि बंधत्व का समस्या है तो गर्भधारण से 3 महीने पहले से ही इस दवाई को देना चाहिए। शरीर में किसी भी चीज का ट्रांसप्लांट किया जा रहा है तो ऐसे कर्म करने से दो-तीन महीने पहले से ही प्रजा स्थापन महाकषाय दिया जाए तो निश्चित सफलता मिलती है । क्योंकि प्रजा स्थापन महाकषाय एक्सेप्ट करने की या धारण करने की सामर्थ देता है ।
कुश
काश
खस
शालीचावल
साठी चावल
इक्षुबलिका
दर्भ
गुन्द्रा
इटक्त
तृण
स्तन्यजनन महाकषाय का प्रयोग वहां करना है जहां शरीर में रस धातु की कमी होने के वजह से स्तन्यजनन् कर्म सही तरीका से नहीं हो रहा है। किसी लेडीस में यदि रस दूष्टी के कारण मानसिक परेशानी है या शरीर में रसायन कर्म की अभाव है या स्तन से निकलने वाला दुग्ध पित्त दोष के कारण से दोष युक्त होकर आ रहा है तो ऐसे सभी कंडीशन में स्तन्यजनन महाकषाय प्रयोग करना चाहिए।
पाठा
गुडूची
सारिवा
सोंठ
देवदारु
नागरमोथा
मूर्वा
इन्द्रजौ
चिरायता
कटुकी
स्तन्यशोधक महाकषाय भी स्तन्यजनन् महाकषाय जैसा ही कार्य करने वाला द्रव्य है इसमें बस यही अंतर है कि यह स्तन में होने वाली सभी दोषों को नष्ट करता है और स्तन्यजनन् महाकषाय दुग्ध निर्माण प्रक्रिया में सहयोगी होता है।
मधु
मुलैठी
कोविदारु(लाल कांचनार)
श्वेत कांचनार
कदम्ब
विदुल
बिम्बि
शणपुष्पि
सदपुष्पि
अपामार्ग
वमनोपग महाकषाय उल्टी लाने वाला दवाइयां है। जो लोग प्रॉपर विधि पूर्वक बमन कर्म नहीं कर सकते उनके लिए चरक ने वमनोपग महाकषाय लेने के लिए बताया है।
बिल्व
पिप्पली
कुष्ठ
सर्षप
वचा
वत्सक
मुलैठी
मदनफल
निशोथ
सौंफ
आस्थापनोपग महाकषाय:आस्थापन वस्ति का कार्य करता है।आस्थापन का मतलब होता है अपने स्थान में स्थित रखना। जब दोष विगुणित हो जाते हैं तो शरीर शोधन हेतु उन्हें निकालना होता है। आस्थापन कर्म बस्ती चिकित्सा का एक हिस्सा है जिसमें ऊपर बताए हुए जड़ी बूटियों का काढ़ा बनाकर उसमें सेंधा नमक शहद तेल वसा यवक्षार जैसे शोधन करना करने वाले द्रव्यों का संयोग से वस्ती दिया जाता है उसे आस्थापनोपग वस्ति कहते हैं मगर यदि किसी कारणवश यह वस्ती चिकित्सा रोगी नहीं कर सके तो हम उन्हें उसी कर्म सिद्धि हेतु आस्थापनोपग महाकषाय: का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन दे सकते हैं।
बिल्व
मैनफल
श्योनाक
अग्निमंथ
रास्ना
देवदारु
सौंफ
श्वेत पुनर्नवा
रक्त पुनर्नवा
गोखरू
चरक एवं वागभट्ट ने स्नेह वस्ति को अनुवासन वस्ति नाम दिए हैं। जिसका प्रयोग ग्रंथ कार भोजन के तुरंत बाद देने के लिए बताते हैं। जितनी भी प्रकार के धातु क्षय या अन्य कारणों से शरीर में कमजोरी आ जाती है तो ऐसे में अनुवासन वस्ति दिया जाता है यदि किसी कारणवश यह अनुवासन वस्ति विधि पूर्वक ना दिया जा सके तो प्रतिदिन अनुवासनोपग महाकषाय का सेवन कराने से भी वैसे ही लाभ मिलेगा जैसे अनुवासन वस्ति देने से मिलता है।
ज्योतिष्मती
मरीच
पिप्पली
विडंग
शिग्रु
सर्षप
अपमार्ग के बीज
अपराजिता
महाश्वेता
क्षवक
सभी प्रकार के दोष प्रशमन हेतु किए जाने वाले आयुर्वेदिक उपाय में से एक उपाय है शिरोविरेचन जिसके करने से मस्तिष्क संबंधित सभी दोष नासाक्षिद्र से बाहर आ जाते हैं मगर यदि रोगी नश्य कर्म के अधिकारी नहीं है या करना नहीं चाहता तो ऐसे में उसकी दोष निर्हरण हेतु शिरोविरेचनोपग महाकषाय: को काढ़े के रूप मे देने का प्रचलन है।
आम्र
मातुलुंग
बेर
दाड़िम
जामुन की पत्ति
यव
खस
साठी चावल
मृतिका
धान का लावा
यह सभी कषाय रस प्रधान द्रव्य छर्दि निग्रहण हेतु प्रयोग किया जाता है। छर्दि यनी एक रोग जिसमें रोगी के मुँह से पानी छूटता है और उसे मचली औती है और वमन होता है । बहुत सारे रोगों का लक्षण छर्दि होता है बहुत सारे लोग यात्रा करते वक्त वोमिटिंग करते हैं क्योंकि उनके रस धातु में टॉक्सिन होता है ऐसे सभी अवस्थाओं में छर्दि निग्रहण महाकषाय: रोज देना चाहिए जो लोग यात्रा करते हैं उनके लिए छर्दि निग्रहण महाकषाय: का टेबलेट चुसने के लिए देना चाहिए।
बेर
बीजक
कंटकारी
गिलोय
पिप्पली
दुरालाभा
अभया(हरीतकी)
कचूर
कुलिर्सश्रृंगी
पुष्करमूल
हिक्का निग्रहंण महाकाषाय हिक्का होने के कारणों के ऊपर बेहतर काम कर सकता है । प्राण वायु और उदान वायु के विकृति से हिक्का होता है प्राणवायु हृदय से प्रारंभ होता है इसका बेग पूरे शरीर में होता है मगर ह्रदय से मस्तिष्क तक अधिकतर प्राण वायु का प्रभाव होता है। हिक्का निग्रहंण महाकाषाय ऐसे सभी कंडीशन में दिया जा सकता है जोकि हिक्का आने का संभावनाओं का निर्माण कर सकता है।
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