Kanthya Mahakashaya:- कण्ठ्य महाकषाय क्या है और Kanthya Mahakashaya की आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां किस तरह समग्र रूप से गले से संबंध रखने वाले सभी प्रकार के विकारों में उत्तम कार्य करता है तथा कण्ठ्य महाकषाय किन-किन व्याधियों में दिया जा सकता है। इस पोस्ट में हम इन विषयों पर चर्चा करेंगे साथ में किन दूसरे महाकषायों के संयोग होने से Kanthya Mahakashaya किस प्रकार शरीर में एक खास किस्म का प्रभाव दिखाता है और कौन-कौन सी व्याधियों में उस कंपोजीशन को उपयोग किया जाना चाहिए समग्र रूप से आज हम इसी विषय के ऊपर चर्चा करेंगे।
संस्कृत में गला को कंठ बोला जाता है जो गले से संबंध रखने वाली विचार है उसे कंठ्य कहां जाता है।
कफशोणित मांसानां साराजिह्वा प्रजायते।।
यह श्लोक वह प्रमाण है की जिह्वा की अग्रिम भाग से पिछले अंतिम शिरा तक का संपूर्ण भाग कफ, रक्त तथा मांस धातु के प्रसाद भाग से बना हुआ है। ध्यान देना कण्ठ जहां पर स्थित है उसके लगभग बहुत बड़ा हिस्सा इन्हीं सार भाग से बना हुआ है। स्वर क्षय मे Kanthya Mahakashaya उत्तम कार्य करता है क्योंकि स्वर क्षय होने मे इन्हीं धातुओं का क्षय होना माना जाता है। इसीलिए Kanthya Mahakashaya की जड़ी बूटियां कफ, रक्त तथा मांस धातु के ऊपर विशेष करके काम करने वाले होंगे।
Kanthya Mahakashaya किन-किन व्याधियों में काम करता है इस पर विस्तार से चर्चा करने से पहले आइए सबसे पहले Kanthya Mahakashaya में डाले जाने वाले वह 10 महान जड़ी बूटियों के ऊपर विस्तृत चर्चा करेंगे।
सारिवा,गन्ने का जड़,मुलेठी,पीपली,द्राक्षा,विदारीकंद,कटफल,हंसपदी,कंटकारी
Kanthya Mahakashaya का आयुर्वेदिक गुणधर्म
सारीवा
आयुर्वेदिक चिकित्सक मतानुसार सारीवा मधुर, शीतल, स्निग्ध, भारी, कड़वी, मीठी, तीखी, सुगंधित, वीर्यवर्द्धक (धातु का बढ़ना), त्रिदोषनाशक (वात, पित्त और कफ), खून को साफ करने वाला (रक्तशोधक), प्रतिरोधक तथा शक्ति बढ़ाने वाली होती है।
यह स्वेदजनक ( पसीना लाने वाला), बलकारक, मूत्र विरेचक (पेशाब लाने वाला), भूखवर्द्धक, त्वचा रोगनाशक, धातुपरिवर्तक होने के कारण अरुचि, बुखार, खांसी, रक्तविकार (खून की खराबी), मंदाग्नि (अपच), जलन, शरीर की दुर्गंध, खुजली, आमदोष, श्वांस, विष, घाव और प्यास में गुणकारी है।
गन्ने का जड़
रस - मधुरा गुण- गुरु (पाचन के लिए भारी),
स्निग्ध- विपाक - मधुरा (पाचन के बाद मीठा स्वाद आता है)
वीर्य- शीत
कर्म - वातपित्त शामक (विकृत वात और पित्त दोष को कम करता है।
मुलेठी
मुलेठी स्वाद में मीठी कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा के गुणों से भरपूर होती है. इसका इस्तेमाल नेत्र रोग, मुख रोग, कंठ रोग, उदर रोग, सांस विकार, हृदय रोग, घाव के उपचार के लिए सदियों से किया जा रहा है.
पीपली
यह पाचक अग्नि बढ़ाने वाली, वृष्य, पाक होने पर मधुर रसयुक्त, रसायन, तनिक उष्ण, कटु रसयुक्त, स्निग्ध, वात तथा कफ नाशक, लघु पाकी और रेचक (मल निकालने वाली) है तथा श्वास रोग, कास (खांसी), उदर रोग, ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, प्लीहा, शूल और आमवात नाशक है।
कच्ची अवस्था में यह कफकारी, स्निग्ध, शीतल, मधुर, भारी और पित्तशामक होती है, लेकिन सूखी पीपर पित्त को कुपित करती है। शहद के साथ लेने पर यह मेद, कफ, श्वास, कास और ज्वर का नाश करने वाली होती है। ग़ुड के साथ लेने पर यह जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) और अग्निमांद्य में लाभ करती है तथा खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृदय रोग, पाण्डु रोग और कृमि को दूर करने वाली होती है। पीपल के चूर्ण की मात्रा से ग़ुड की मात्रा दोगुनी रखनी चाहिए।
द्राक्षा
द्राक्षा खाने में गर्म और तर प्रकृति का होता है। सर्दी के मौसम में मुनक्का का रोजाना सेवन करना लाभदायक होता है। इसका प्रयोग करने से प्यास शांत हो जाती है। यह गर्मी व पित्त को ठीक करता है। इसके उपयोग से हृदय , आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशक है।
विदारीकंद,
विदारीकंद मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रवर्धक, स्तन्यवर्धक, वृंहण, मूत्रल, बलकारक, वर्ण्य, वाजीकर, दाह प्रशमन एवं रसायन है।
यह मृदु स्नेहक, रेचक, वामक, हृद्य, परिवर्तक, निसारक एवं ज्वरघ्न है।
इसके कंद तथा पुष्प में वाजीकारक गुण देखा गया है।
यह उद्वेष्टनरोधी, अल्पशर्कराकारक, शोथहर, ओइस्ट्रोजनजनक, प्रोजेस्ट्रानजनक एवं गर्भरोपणरोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है |
कटफल
कट्फल या कायफल या काफल प्रकृति से कड़वा, तीखा, गर्म और लघु होता है। यह कफ और वात को कम करने वाला तथा रुचिकारक होता है। इसके साथ ही यह शुक्राणु के लिए फायदेमंद और दर्दनिवारक भी होता है।
कायफल सांस संबंधी समस्या, प्रमेह या डायबिटीज, अर्श या पाइल्स, कास, अरुचि यानि खाने में रुचि न होना, कण्ठरोग, कुष्ठ, कृमि, अग्निमांद्य या अपच, मेदोरोग या मोटापा, मूत्रदोष, तृष्णा, ज्वर, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome), पाण्डुरोग या एनीमिया, धातुविकार, मुखरोग या मुँह में छाले या सूजन, पीनस (Rhinitis), प्रतिश्याय (Coryza), सूजन तथा जलन में फायदेमंद होता है।
हंसपदी
हंसपादी हिमा गुर्वीं रोपणी, हन्ति शोणितम्।
दाहातीसारविसर्पलूताभूत बिषव्रणान्||कै.नि.
हंसपदी ठंडी, गुरु,रोपण कर्म करने वाला, खून को साफ करने वाला, जलन,अतिसार, विसर्प और फोड़ा फुंसी तथा विष को नाश करने वाला, भूत बाधा को नष्ट करने वाला होता है।
हंसपदी के लिए दूसरे ग्रंथकार भी रक्त को शुद्ध करने वाला जलन में और सर्प के जहर को नष्ट करने वाला द्रव्य के रूप में जानते हैं। जैसे..
रक्तप्रसादनी शीता दाहवीसर्पनाशिनी |
व्रणप्ररोपणी हंसपदिका हंसपादिका || ध.नि.
हंसपादी गुरुः शीता हन्ति रक्तविषव्रणान् | विसर्पदाहातीसारलूताभूताग्निरोहिणीः || भा.प्र.
हंसपादी च विज्ञेया नाम्ना चैषा शराक्षिधा ||
हंसपादी कटूष्णा स्याद्विषभूतविनाशिनी ।
भ्रान्त्यपस्मारदोषघ्नी विज्ञेया च रसायनी ॥ रा.नि. ||
कंटकारी
कंटकारी सारक, कड़वी, चरपरी, अग्नि दीपक, हल्की, रूखी, गरम पाचक तथा खांसी, श्वास, बुखार, कफ, वात और हृदय रोगों को नष्ट करने वाली मानी जाती है। इसके फल कड़वे, चरपरे, भेदक, पित्तकारक, हरदा को हितकारी, अग्नि दीपक, हल्के, वात, कफनाशक और श्वास, बुखार, कृमि तथा प्रमेंह को नष्ट करने वाले माने जाते हैं।
इस वनस्पति की प्रसिद्धि कफ को नाश करने के संबंध में बहुत अधिक है। इसीसे कफ, बुखार, दमा, छाती का दर्द इत्यादि रोगों में इसका विशेष उपयोग होता है। जब छाती में कफ भरा हुआ रहता है। तब काढा देने से वह निकल जाता है।
इसी प्रकार इसमें मूत्रल और ज्वरनाशक गुण भी होता है और इसी कारण जलोदर, तिल्ली और लीवर की वृद्धि, सुजाक, मुत्राघात और मूत्राशय की पथरी पर भी यह औषधि बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।
यह दूसरे दर्जे में खुश्क और गर्म है किसी किसी के मत से यह तीसरे दर्जे में खुशक और गर्म है। इसके प्रयोग से कफ, खांसी दमा और सीने के मर्ज दूर होते हैं। इसके फल में भी वही गुण है यह सुजाक, कोढ, कब्ज और मसाने की पथरी को दूर करती है तथा पेशाब को साफ लाती हैं।
बृहती
बृहती कटु, तिक्त, मधुर, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफवातशामक, ग्राहि, हृद्य, पाचक, दीपन, रुचिकारक, पित्तकारक, भेदक, कण्ठ्य, शोथहर, अङ्गमर्दप्रशमनकारक, बृंहण, बलकारक; मुखवैरस्य, अरोचक, कुष्ठ, ज्वर, श्वास, शूल, कास, अग्निमांद्य, वातरोग, शोष, गुल्म, अङ्गमर्द, मेदोरोग, शिरशूल, आभ्यन्तर विद्रधि, हृद्रोग, वमन, कृमिरोग, हृल्लास, नेत्ररोग, कण्डू, मूत्रकृच्छ्र तथा आमदोष-नाशक है।
इसके फल कटु, तिक्त, लघु तथा कफवातशामक; कण्डू, कुष्ठ व कृमिनाशक हैं।
इसका पौधा वातानुलोमक, कफनिस्सारक, पाचक, मृदु-विरेचक, स्वेदजनन, उत्तेजक, स्तम्भक, प्रशामक, आर्तवजनक, ज्वरहर, अग्निदीपक, शोधक एवं मूत्रल होता है।
बृहती मूल कटु, तिक्त, उष्ण, पाचक, कषाय तथा कृमिघ्न होती है। बृहती को इसी कारण से कण्ठ्य महाकषाय मैं रखा गया है क्योंकि यह कंठस्थ कब के परमाणुओं को बाहर निकालने में सहयोगी होगा।
समग्र रूप से ये औषधियां मधुर, कटु, तिक्त, रसधातु पोषक,उष्ण, शीतल वीर्य, कटु, मधुर विपाक, रूक्ष, लघु, स्निग्ध गुण और त्रिदोषघ्न है। इन गुणों के कारण वे कंठगत विकार को ठीक करते हैं या कंठ के लिए हितकार कहे जाते हैं।
सर्दी लगने पर दे सकते है कण्ठ्य महाकषाय।
यदि किसी को सर्दी लगा रहता है तो अवस्था में कण्ठ्य महाकषाय अति उत्तम कार्य करता है आप ऐसे अवस्था में कण्ठ्य महाकषाय से सारिवा,मधुयष्टी, पिपली,कट्फल और कंटकारी इन औषधियों को समान मात्रा में लेकर आइए और बरोबर पाउडर बनाकर इसका सेवन करें और काढ़ा बनाकर गरारा भी करें तो बहुत जल्द सर्दी लगने पर अच्छा काम करता है।
गलगण्ड को समूल नष्ट करता है कण्ठ्य महाकषाय।
आज के समय में स्त्रियों के लिए गलगण्ड या थायराइड बहुत बड़ा समस्या है। सभी प्रकार के थायराइड में कण्ठ्य महाकषाय विश्वसनीय कार्य करता है सारिवा,मधुयष्टी, पिपली,कट्फल और कंटकारी, द्राक्षा, हंसपदी इन औषधियों को कपड्छान पाउडर बनाइए अब इसके ऊपर जंगली प्याज यदि ना मिले तो आप सफेद प्याज भी इस्तेमाल कर सकते हैं प्याज के रस से 7 भावना देकर दवाई तैयार कीजिए रोज सुबह और शाम रोगी को उसके अवस्था के अनुसार इसका सेवन कराने से निश्चित थायराइड में लाभ मिलता है।
गले में खराश में दे सकते हैं कण्ठ्य महाकषाय।
गले में खराश होना भी एक बहुत भारी समस्या है खराब जिनको होता है वे हमेशा बात करते वक्त सहज महसूस करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में भी कुछ अन्य आयुर्वेदिक दवाइयों के साथ कण्ठ्य महाकषाय देते हैं तो रोगी को उत्तम लाभ मिलता है।
टॉन्सिलिटिस का तो सबसे अच्छा दवाई है कण्ठ्य महाकषाय।
टॉन्सिलाइटिस के लक्षणों में गले में खराश, टॉन्सिल्स में सूजन और बुखार शामिल हैं। यह स्थिति संक्रामक होती है और विभिन्न वायरस और बैक्टीरिया के कारण हो सकती है। एक जीवाणु संक्रमण जिसके कारण गले में सूजन और दर्द होता है।
यदि इस तरह से ब्याधि के रूप में टॉन्सिलिटिस हो तो भी आप यहां पर अन्य स्वयं के चिकित्सा प्रकरण में कण्ठ्य महाकषाय को भी शामिल करके आप रोग निर्मूलन का श्रेय प्राप्त कर सकते हैं।इस के अलावा -
कण्ठ्य महाकषाय और भी बहुत सारे व्याधियों में कार्य करता है जैसे - ग्रसनीशोथ में प्रभाव कारी असर दिखाता है, स्वरयंत्रशोथ मे भी कण्ठ्य महाकषाय युक्ति पूर्वक दिया जाना चाहिए।
अस्थमा नामक व्याधि में तो कण्ठ्य महाकषाय ही सबसे उत्तम कार्य करता है। और तो और जितनी भी पुरानी सर्दी-खांसी की दवाइयां जो बाजार में उपलब्ध है उन सभी दवाईयों में Kanthya Mahakashaya ही डला होता है।
यदि आप भी हमारे इस लेख से प्रभावित हो और अधिक से अधिक आयुर्वेदिक विषयक गुण रहस्य को जानना चाहते हैं तो देरी किस बात की हमारे यहां प्रति दिवस प्रैक्टिकल आयुर्वेदा ऐसे सिखाया जाता है जैसे एक अनजान व्यक्ति भी उस क्लास में आकर कुछ ही दिनों के बाद एक उत्तम चिकित्सक बन के तैयार होता है। यदि आप भी आयुर्वेद सीखना चाहते हैं तो तुरंत इस लिंक में क्लिक करके हमसे संपर्क करें। यहां तक इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
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