Diabetes Mellitus मधुमेह और प्रमेह क्या एक ही बात है या अलग-अलग है। क्या कहने से मधुमेह और Diabetes Mellitus कहने से प्रमेह व्याधि समझ में आता है। क्या Diabetes Mellitus और मधुमेह या प्रमेह को जोड़ कर देखना आयुर्वेदिक अज्ञानता का प्रतीक नहीं है? मगर एलोपैथिक डॉक्टर की तो बात ही छोड़िए 95% आयुर्वेदिक BAMS डॉक्टर भी Diabetes Mellitus और प्रमेह इन दोनों को एक ही समझते हैं इसीलिए नितांत जरूरत है इन दोनों के अंतर को बताना।
तो सवसे पहले वात करेंगे आयुर्वेदिक विचार प्रमेह के संबंध में...
आयुर्वेद के अनुसार Diabetes Mellitus (प्रमेह) में गंदे मूत्र की बारंबार प्रवृत्ति होती है, (प्रभूताविल मूत्रता) यद्यपि इसमें मुख्य Diabetes Mellitus दुष्टि मेद-मांस-क्लेद की मानी गई है तथापि इस रोग प्रत्यात्म लक्षण-प्रभूताविल मूत्रता (अधिक बदबूदार मूत्र विसर्जन) के आधार पर Diabetes Mellitus इसका वर्णन मूत्रवह स्रोतम की ब्याधियों में किया जा रहा है । जैसे यक्ष्मा में सभी धातुओं का क्षय होता है वैसे ही Diabetes Mellitus में सभी धातुओं के अंशों की मूत्रद्वारा वहिः प्रवृत्ति होती है यानी शरीर से बाहर निकलता है। प्रमेह् शब्द 'प्रकर्षेण मेहति इति प्रमेहः' को द्योतित करता है ।
ध्यान देना - पूर्वरूप का मतलब होता है रोगी के शरीर में Diabetes Mellitus उत्पन्न होने से कुछ महीने पहले देखे जाने वाले लक्षण। यह लक्षण एलोपैथिक रिपोर्ट में Diabetes Mellitus दीखने से 1 महीने पहले भी हो सकते हैं 1,2 साल पहले भी हो सकते हैं रोगी को सावधानीपूर्वक पूछें।
मेदश्च मांस च शरीरजं च क्लेदं कफो वस्तिगतः प्रदूष्य ।
करोति मेहान् । (चरक )
२. बहुद्रवः श्लेष्मा दोष विशेषः (चरक)
३. वह्वबद्धं मेदो मांस शरीरज क्लेदः शुक्रं शोणितं वसा मज्जा लसीका रसश्चौज: संख्यात इति दृष्य विशेषाः ।
4• कफः सपित्तः पवनश्च दोषाः,
मेदोस्र शुक्राम्बु वसा लसीकाः ।
मज्जा रसौजः पिशितं च दृष्याः
प्रमेहिणां विंशतिरेव मेहा: ॥ च.चि. ६/८ ।
स्व निदानों से दोषों का प्रकोप होता है।
(यानी कफ पित्त और वात दोषों के गुणों को बढ़ाने वाली अत्यधिक आहार विहार से संबंधित दोष के वह गुण की वृद्धि हो जाती है ऐसा वृद्ध अवस्था का वह दोष प्रकोप अवस्था में पहुंच जाता है इसे स्व निदानों से दोष प्रकोप कहेंगे)
मुख्य दोष कफ है, वह फफ बहुत अधिक द्रव यानी जलिय महाभूत प्रधान हो जाता है, साथ ही मेद और क्लेद भी अधिक द्रव हो जाते हैं । यह प्रदुष्ट कफ मेद और क्लेद को दूषित कर देता है। इस प्रकार प्रदुष्ट मूत्रवह स्रोतों में जाकर बाहर निकल जाता है, अधिक मूत्र की बार बार प्रवृत्ति होती है, और उसमें वह धातु के परमाणु भी पिघल कर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाते हैं जो धातू इस अवस्था में दूषित हो जाता है । उन्हें यहां दुश्य कहकर जानेंगे।
धात्वंशों के (दुष्यों के) निकलने के कारण आविलता (यहां आबिलता का दो अर्थ हम ले सकते हैं पैला है दुर्गंध युक्त मूत्र दूसरा है अधिक संख्या में दुर्गंध युक्त मूत्र) यहां होती है। यह प्रमेह (diabetes Mellitus) रोग की सामान्य सम्प्राप्ति है। २० प्रकार के प्रमेहों के अध्ययन से स्पष्ट है कि सभी दोषों के विकृत होने पर भी मुख्य दोष कफ है, सभी धातुओं के विकृत होने पर भी मुख्य दूष्य मेद है, तथा सभी में मूत्र की प्रभूतता एवं आविलता मिलती है।
कफ पित्त और वात प्रधान प्रमेह के लक्षणों को देखकर अन्य आचार्यों द्वारा प्रतिपादित कुछ बातों को भी मैं यहां रखना चाहूंगा।
साध्य और असाध्य के संदर्भ में बताया जाता है की सबसे पहले अपने निदानों से प्रकुपीत कफ (यहां कफ का मतलब जल और पृथ्वी महाभूत से बना हुआ शरीर रचना) द्रव भाव को प्राप्त होकर मुत्रवह स्रोतस् के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है शरीर में कब की अधिकता होने लगती है।
कफ नाशक चिकित्सा करने के बाद शरीर में ऊष्मा की वृद्धि होती है और पित्त बढ़ता है शरीर भाव में अब वह सभी परमाणु भी प्रभावित होंगे जिनका संबंध अग्नि महाभूत से है यानी अत्यधिक कटु,कषाय,और तिक्त रसात्मक कफ नाशक चिकित्सा के कारण शरीर में पित्त बढ़ने लग जाता है। यहां बढ़ा हुआ पित्त शरीर के जल और अग्नि महाभूत को क्लेद युक्त करता है तो पित्तज प्रमेह होना शुरू हो जाता है।
जब बड़े हुए पित्त को समन करने के लिए चिकित्सक शीत द्रव्य युक्त पित्त सामक दवाइयों का प्रयोग करता है तो ऐसा शीत दवाई शरीर में आकाश और वायु महाभूत को बढ़ाकर वातवृद्धि का कारण बन जाता है ऐसी कंडीशन में हम इसे असाध्य प्रमेह Diabetes Mellitus कहकर जानेंगे। क्योंकि प्रकूपित कफ,पित्त और वायु के पंचमहाभूत परमाणु मुत्रवह स्रोतस के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
इस क्रम से जब वात वृद्धि हो जाती है या क्रमशः वायु बिगड़ जाता है तो इसे हम असाध्य कहेंगे।
संतर्पणोत्थ प्रमेह | अपतर्पणोत्थ प्रमेह |
स्थूल रोगी | कृश रोगी |
बलवान रोगी | दुर्वल रोगी |
संशोधन चिकित्सा | संशमन चिकित्सा |
अपतर्पण | अपतर्पण |
१-नित्य आराम करना शारीरिक परिश्रम या व्यायाम बिल्कुल भी ना करना।
२-अधिक निद्रा आना और बहुत अधिक दुग्धपान करना
३-दूध दही तथा उससे बने हुए मिष्टान्न को अधिक खाना
४-ग्राम्य मांसरस (गांव घर का) औदक मांसरस (पानी में रहने वाले) आनूपमांस रस (सुअर जैसे जानवर जिसमें चर्बी ज्यादा होती है) इनके अधिक मांस खाना।
५-नवीन अन्न का सेवन करना, गुड़ से बने पदार्थों का अधिक सेवन करना
सामान्य लक्षण तेषां प्रभूतावित मूत्रल मूत्रला।
दोषद्र्ष्याविशेषेऽपि तत्संयोग विशेषत: ।
मूत्रवर्णादि भेदेन भेदो मेहेषु कल्यते।।
Diabetes Mellitus प्रमेह का सामान्य लक्षण या प्रत्यात्म लक्षण प्रभूताविल मूत्रता है।इसमें प्रभूत मूत्रता (मूत्र की बार बार प्रवृत्ति) एवं आविल मूत्रता यानी दुर्गंध युक्त मूत्र होती है। प्रमेहका रोगी (विशेषत: मधुमेही) इन कुछ खास diabetes symptoms को लेकर आता है ।
यदि आप चिकित्सक हो तो रोगी को यह 4 सवाल जरूर पूछना चाहिए उनमें से पहला सवाल है।
मूत्र त्याग बार बार होता है और पेशाब में बदबूदार तथा गंदा रंगवाला पेशाब आता है।
इसका कारण-जब हम आयुर्वेदिक विधि से प्रमेह निदान करते हैं तो बारंबार मूत्र प्रवृत्ति मूत्रवह स्रोतों दुष्टि यानी जिन रास्तों से पेशाब शरीर से बाहर निकलता है उन रास्तों में पेशाब को जल्दी बाहर निकालने की शारीरिक क्रियाएं तेजी से हो रही होती है।
यहां बदबूदार और गंदा रंगवाला पेशाब की जिक्र रोगी करता है यह इसीलिए होता है दोष वृद्धिकर निदान की सेवन से शरीर में विशेष दूषित संप्राप्ति को प्राप्त करके शरीर धारक तत्वों के मूत्र के द्वारा बाहर निकलने का प्रक्रिया शुरू हुआ रहता है हालांकि संप्राप्ति विघटन के संदर्भ में इसके विषय में हम बाद में विस्तृत चर्चा करने ही वाले हैं।
भूख अधिक लगती है प्यास भी बहुत ज्यादा लगती है|
स्व निदानों से प्रकुपीत मेद धातु और क्लेद पसीना और मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है तथा शरीर के धारक कहे जाने वाले अस्थि धातु को छोड़कर बाकी सभी धातु भी सुक्ष्म परमाणु के रूप में मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं इससे शरीर में धातु क्षय की अवस्था होती है धातु संरक्षण हेतु शरीर का यह प्रक्रिया भूख और प्यास के रूप में रोगी को महसूस होता है।
शरीर में धीरे-धीरे कमजोरी आना शुरू हो जाता है।
कफ ही शरीर का धारक और वही बल का कारक भी है। कफ रूपा क्लेद का इतनी अधिक मात्रा में मूत्र मार्ग से बाहर निकलने से निश्चित है कि शरीर क्षीण होता जाएगा और कमजोर भी होता जाएगा। वैसे कृश और दुर्बल मधुमेह रोगी में वायु के रुक्षादि गुणों के अभिवृद्धि होने के वजह से कमजोरी होती है।
हाथ और पैरों में जलन होना शुरू हो जाता है।
हाथ और पैरों में जलन क्यों होता है अब इसके ऊपर भी विचार करते है- ग्रंथकार कहते हैं-
स प्रकुपितः श्लेष्मा..... शरीर क्लेदं पुनर्दूषयन् मूत्रत्वेन परिणमयति, मूत्रवहानां च स्रोतसां वंक्षण वस्ति प्रभवाणां मेदः क्लेदोपहितानि गुरूणि आसाद्य प्रतिरूद्धयते ततः प्रमेहाः (चरक)
यानी कि निदानों से प्रकुपीत कफ शरीर को अधिक क्लेदमय बना देता है साथ में मेद धातु और क्लेद भी अधिक पतला हो जाता है।
यह प्रदूष्ट कफ,मेद,और क्लेद को बहुत ज्यादा दूषित बना देता है।
ऐसा दूसीत मेद, क्लेद और प्रकुपीत कफ अपान छेत्र में जाकर एकत्रित हो जाते हैं। हाथ और पैर में जलन होने का कारण भी यही है।
उदकमेह (हाइड्रुरीया) में स्वच्छ, अधिक, श्वेत, शीतल, गंधरहित, आविल तथा पिच्छिल मूत्र निकलता है।
-इक्षुवालिका रसमेह (ग्लाइकोसुरिया) में ईख के रस के समान मूत्र निकलता है। -
-सान्द्र मेह (चिलुरीया) में बहुत तलछट वाला मूत्र निकलता है ।
-सान्द्र प्रसादमेह (विलुरीया) में ऊपर से स्वच्छ और नीचे गाढ़ा मूत्र होता है। -
शुक्लमेह (सफेद मूत्र का निकलना) में अधिक मात्रा में श्वेत मूत्र आता है।
-शुक्रमेह में मूत्र में शुक्र निकलता है ।
सर्वप्रथम रोगी को वमन क्रिया हेतु दीपन पाचन कराएं।
जिन कारणों से कफज प्रमेह हुआ है उनको स्मरण करके त्याग देना बहुत जरूरी है।
जौ से बने पदार्थों का शहद में मिलाकर सेवन करें।
जंगली पक्षि को जौ के रस में पकाकर सेवन करें।
त्रिफला में भीगाया हुआ जौ के आटा से बनी रोटी का सेवन करें।
नीचे दिया हुआ लोगों का संकलन करके दिन में तीन टाइम सेवन करें।
अजमोद 100 ग्राम
उशीर 100 ग्राम
हरीतकी 100 ग्राम
गिलोय 100 ग्राम
पाठा 100 ग्राम
मुर्वा का जड़ 100 ग्राम
गोखरू 100 ग्राम
इन सभी को कपड़े छन पाउडर बनाए और रोगी को गर्म पानी के साथ खाने को दे।
यदि हाथ पैरों में जलन होती है और पेशाब में जलन होती है ज्यादा पेशाब आता है तो।
हल्दी ,दारूहल्दी, तगर, वायविडंग
इन सब को पाउडर बनाकर सेवन करें।
चव्य, हरड़,चित्रक,सप्तपर्णी इन सभी को बरोबर पाउडर बनाकर रोगी के अग्नि बल को ध्यान में रखकर सुबह शाम खिलाना चाहिए।
उदकमेह-पारिजात कषाय अच्छा काम करता है।
इक्षुमेह-निम्वकषाय देने से अच्छा काम करता है।
सान्द्रमेह-सप्तपर्ण कषाय देने से अच्छा काम करता है।
सुरामेह-शाल्मली कषाय देने से अच्छा काम करता है।
पिष्टमेह-द्विहरिद्रा कषाय देने से अच्छा काम करता है।
शुक्र मेह -दुर्वा,शौवल,प्लव, करंज कसेरू अर्जुन चंदन कषाय को देने के लिए बताया गया है।
सिकतामेह-निम्वकषाय को दिया जाता है।
शीतमेह-पाठा गोक्षुर कषाय को दिया जाता है।
शनैर्मेह-त्रिफला गुडुची कषाय देने से अच्छा काम करता है।
लालामेह- त्रिफला,आरग्वध कषाय देने से अच्छा काम करता है।
चंद्रप्रभा वटी सुबह-शाम भोजन करने के बाद दे।
भोजन करने के बाद लोध्रासव का प्रयोग करें।
क्षारमेह में मूत्र क्षार जैसे गंध और रस का होता है।
• कालमेह में मूत्र काले वर्ण का होता है।
• नीलमेह में मूत्र आसमानी रंग का होता है ।
• रक्तमेह में मूत्र उष्ण, गंधयुक्त तथा सरक्त होता है ।
• मंजिष्ठा मेह में मूत्र मंजिष्ठ के वर्ण के समान होता है।
• हारिद्र मेह में मूत्र हरिद्रा के वर्ण के समान तीखा तथा दाहयुक्त होता है।
यदि पित्तज प्रमेह Diabetes Mellitus का कोई भी स्पष्ट लक्षण दिखता है तो उपचार हेतु यदि बलवान रोगी है तो सर्वप्रथम विरेचन करना चाहिए|
उशीर, नागरमोथा, आमलकी,हरीतकी
उशीर,लोध्र, अर्जून छाल,रक्त चंदन,
शिरीष का छाल, अर्जुन का छाल, नागकेसर
चंद्रप्रभा वटी शतावर्यादि क्वाथ,जम्ब्वासव,वसंत कुसुमाकर इनका प्रयोग शारीरिक लक्षणों के आधार पर पैत्तिक प्रमेह मे करे।
- वसा मेह में बार बार वसा के समान मूत्र की प्रवृत्ति होती है ।
- मज्जामेह में बार बार मज्जा के समान मूत्र की प्रवृत्ति होती है।
- हस्तिमेह में निरंतर बिना अटके एक साथ अधिक मात्रा में मूत्र प्रवृत्ति होती है।
- मधुमेह में मधु के समान कषाय, रूक्ष तथा मधुर मूत्र होता है।
वातज प्रमेह में विशेषत संशमन चिकित्सा करनी चाहिए। यदि रोगी स्थूल और बलवान हो तो मृदु सोधन भी कर सकते हैं।
चंद्रप्रभा वटी, वसंत कुसुमाकर रस, त्रिवंग भस्म ,तथा सर्वतोभद्र रस का प्रयोग वातज प्रमेह में युक्ति पूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
भारत में विभिन्न स्थानों पर हुए अन्वेषण में अब तक 40 एकौषध तथा योगों पर बहु मेहघ्नता के दृष्टिकोण से बहुत कार्य हो चुका है परंतु परिणाम अभी भी आशा जनक नहीं है।
उनमें से कुछ आयुर्वेदिक औषधि नीचे दिए गए हैं प्रमेह के चिकित्सा में आप इन योगों का युक्ति पूर्वक प्रयोग कर सकते हैं।
जम्बूवीज चूर्ण, गुड़मार,कारवेल्लक स्वरस,विजयसार, सप्तरंगी,मामज्जक,उदुम्वर,निम्व,पलाण्डु,लशुन तथा वट के कोमल पत्ते आयुर्वेद जानने वाले लोग रोगी के कारण और लक्षणों को देख कर के बड़े ही सावधानी पूर्वक इन जड़ी बूटियों का बहुत सुंदर ढंग से मधुमेह है जैसे असाध्य व्याधि में प्रयोग करते हैं।
Diabetes Mellitus प्रमेह रोग की ठीक तरह से चिकित्सा ना होने पर शरीर में जगह जगह प्रमेह पीडि़का का निर्माण होने लगता है।
आयुर्वेद में विद्रधी,विदारिका,पुत्रिणी,सर्षपिका,मसूरिका,अलजी,विनता,
जालिन,कच्छपिका और शराविका इस तरह उस प्रमेह पिडि़काओं के नाम और उसके स्वरूप के बारे में भी वर्णन किया हुआ है।
किसी भी प्रकार का प्रमेह पिडि़का को ठीक करने के लिए हर चिकित्सक को रक्तमोक्षण के लिए सोचना पड़ेगा।
यदि वह प्रमेह पिडि़का पक्व अवस्था में है तो उसके लिए व्रणवत् चिकित्सा करनी चाहिए।
कोदो,चना,मुंङ्ग दाल,जौ, जंगली जानवर के मांस,लघु व्यायाम
किस रोग में सुबह जल्दी उठना है दिन में बिल्कुल भी नहीं सोना है भोजन दिन में दो बार ही करना है सुबह उठने के बाद ब्रेकफास्ट के रूप में जौ और चने का उबला पानी थोड़ा मात्रा में पीना चाहिए।
हमेशा एक चीज याद रखना है जब भूख लगे तो रोटी खाना है जब प्यास लगे तो ही पानी पीना है।
निदान परिवर्जन
(जिन कारणों से मधुमेह Diabetes Mellitus होता है उन को त्यागना)
जिस कारण से मधुमेह Diabetes Mellitus नास होता है ऐसे वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।
रुक्ष,उष्ण,कटु, तिक्त, कषाय, रस युक्त दवाइयों का कंपोजीशन तैयार करें। मगर ध्यान देना यह कफ प्रकृति के व्यक्तियों को ही दिया जा सकता है। यदि बात प्रकृति वाला व्यक्ति है तो उन औषधियों को तेल में सिद्ध करके तेल देना चाहिए यदि पित्त प्रकृति वाला व्यक्ति है उनको घी में सिद्ध करके देना चाहिए।
पर्याप्त व्यायाम यानी शरीर में जितना बल है उसके आधार पर उचित व्यायाम करें।
संशोधन-रोगी के शारीरिक और मानसिक बल के आधार पर वमन विरेचन और बस्तिकर्म करना चाहिए विशेषकर के लेखन बस्ती का प्रयोग अच्छा होता है।
रसायन प्रयोग-शिलाजतू रसायन, बला रसायन, आमलकी रसायन मधुमेह में अच्छा होता है। वैसे प्रमेह में शिलाजतु रसायन का अच्छा प्रयोग होता है।
संशमन-चंद्रप्रभा वटी सुबह शाम देना चाहिए।
आरोग्यवर्धिनी वटी- रात को सोते वक्त देना चाहिए।
भृष्ट मेथिका चूर्ण- एक चम्मच दो बार भोजन के बाद देना चाहिए।
अमृतापिप्पलीनिम्व योग 5 ग्राम दिन में दो बार देना चाहिए।
अथवा...
विजय सार घनवटी दिन में तीन टाइम 2,2 टेबलेट
जटामांसी चूर्ण / हिमकषाय रात में।
त्रिकण्टकाद्य घृत-
त्रिकण्टकाद्य यमक -
जहां तीनों दोष बड़े हुए हो वहां प्रयोग करें।
फलत्रिकादि क्वाथ (च.)
लोध्रासव
भल्लातकासव
विडंगादि क्वाथ (यो.र.)
त्रिफलादि क्वाथ (वृन्द)
पलाशपुष्प क्वाथ ( यो.र)
सालसारादिगण क्वाथ
गुणुच्यादि योग
भूधात्र्यादि योग
कतक वीज योग
साल मुस्त योग
न्यग्रोधादि चूर्ण
कर्कटीबीज चूर्ण
मेथि चूर्ण
विजयसार कोष्ठ चूर्ण या घनवटी
गुडुची काण्ड निम्वादि योग
गोक्षुरादि वटी,चन्द्रप्रभा वटी,शिवागुटिका,पुगपाक, अश्वगंधापाक, द्राक्षा पाक,मध्वासव,सिंहामृत घृत,हरिद्रादि तैल,उदुम्वर वाकुचि लेप, हरि संकर रस, मेहकुंजर केसरी, मेहारि रस, चंद्रकला भाटी बंगेश्वर रस, वंग भस्म, अभ्रक योग, नाग भस्म, गंधक योग, शीलाजतु योग, स्वर्ण माक्षिक भस्म, वसंत कुसुमाकर रस,जलजामृत रस
1.तैल,घृत, गुड़,शुक्त,मद्य, गन्ने का रस,मिठाई, बकरा और मुर्गे का मांस, नए अन्न का सेवन, मूत्र वेगधारण।
2.इस रोग में रक्तमोक्षण नहीं करना चाहिए।
3.इस रोग में दही का सेवन नहीं करना चाहिए
4.वेगधारण, धूम्रपान, अधिक पसीना निकालने की क्रियाएं यह सभी भी नहीं करना चाहिए।
5.दिन में बिल्कुल भी कभी भी नहीं सोना चाहिए।
6.आयुर्वेदिक आहार बिहार का नित्य सेवन करना चाहिए।
सहज प्रमेह congenital heredity के विषय में आयुर्वेद का विचार भी हमें यहां जरूर रखना चाहिए। ध्यान रहे आयुर्वेद इस जन्मों की और पूर्व जन्मों के कर्मों का जो संस्कार है उसको अनेक जगह व्याख्यान करता है।congenital heredity किस संदर्भ में स्पष्ट रूप से आयुर्वेद में लिखा हुआ मिलता है की व्याधि उत्पादक दोषों से जीव के उत्पादक बीच genetic material के दुष्ट हो जाने से मधुमेही पिता की संतान में असाध्य मधुमेह रोग हो जाता है इसे सहज प्रमेह congenital heredity कहते हैं।
शुक्रशोणितजीवसंयोगे तु खलु, कुक्षिगते गर्भसंज्ञा भवति।
इस श्लोक का अर्थ होता है पुरुष बीज एवं स्त्री बीज का जीव आत्मा के साथ संयोग से गर्भ की उत्पत्ति होती है।
किस शुक्रशोणित संयोगकाल में जिस प्रकार विभिन्न भावों के प्रभाव से विविध मानस या देह प्रकृति युक्त बालक उत्पन्न होता है उसी प्रकार प्रमेहोपादक भावों द्वारा शुक्रशोणित के दूषित होने से उत्पन्न होने वाला बालक भी मधुमेह रोग से ग्रसित होता है।
संतान उत्पादक बीज अनेक बीजावयवों के समूह रूप होते हैं। उनमें से कोई एक बीज का अंश जिस बीज से शरीर का पेनक्रियाज निर्माण होना है यदि वह माता पिता के आहार-विहार और कर्मों के प्रभाव से दूषित हो जाए यानी प्रमेह उत्पादक दोष से पीड़ित हो जाए और वही बीज रूप में पेनक्रियाज निर्माण हेतु सक्रिय हो जाए ऐसे में निश्चित है ऐसा दूषित बीज से उत्पन्न जन्म से ही दोष युक्त रहता है इसे congenital heredity या सहज प्रमेह कहते हैं।
अब congenital heredity के संदर्भ में बात करते ही सबके दिमाग में यही आता है की डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति का संतान भी क्या डायबिटीज से ग्रसित होगा इस संदर्भ में ग्रंथ कार क्या बोलते हैं आईए इस के ऊपर भी चर्चा करते हैं।
बताया जाता है यह हकीकत है कि मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति का संतान में भी मधुमेह होने का बहुत अधिक संभावना रहता है किंतु यह कतई आवश्यक नहीं कि उसमें जन्म से ही यह लक्षण व्यक्त हो जाएगा। सहज भाव से भी कतिपय बालक में लक्षण शीघ्र व्यक्त हो जाते हैं और कुछ हालातों में कभी कभी जीवन पर्यंत भी मधुमेह अव्यक्त ही रहते हैं।
आयुर्वेद में बताया जाता है यदि कोई व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित है और वह चाहता है कि उसका आने वाला संतान में इस मधुमेह का कोई लक्षण ना दिखे तो इसके लिए पति पत्नी दोनों को संतान उत्पादन कर्म से पहले शरीर शुद्धि करने के लिए बताया गया है आयुर्वेदिक पद्धति से पंचकर्म विधि द्वारा गर्भधारण हेतु शरीर शुद्धि हो जाने के बाद उत्पाद्य संतान में मधुमेह का बीज जाने का संभावना कम रहता है।
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