Panchakarma treatment के विषय में आज हम उन points के ऊपर discussion करेंगे जिसमें व्यक्ति अपने घर में रहकर पंचकर्म से स्वयं ही शरीर का शोधन कर सकता हो और साथ में जानेंगे कि पंचकर्म घर में करते वक्त हमसे क्या कुछ गलतियां हो सकता है।
उन गलतियों के बारे में चर्चा करने से पहले हमें यह समझना होगा कि पंचकर्म क्या है इसको सही विधि से अपने घर में रहकर कैसे किया जा सकता है । आयुर्वेद में कहां किस वक्त पंचकर्म करने की बातें बताई गई है। और वह कौन सा अवस्था है जहां पंचकर्म करने से इंसान को कष्ट मिलता है। हम आज यह भी चर्चा करेंगे कि यदि कोई पंचकर्म के विधि को पूर्ण रूप से पालन नहीं करता या आधा अधूरा करता है तो उसे किस तरह के समस्या से जूझना पड़ सकता है और साथ में यह भी चर्चा करेंगे कि उन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए।
Ayurveda the ancient Indian system of medicine, offers a holistic approach to health and wellness. Panchakarma is a cornerstone therapy in Ayurveda, aimed at detoxifying and rejuvenating the body. While traditionally performed in specialized Ayurvedic clinics, it is possible to experience the benefits of Panchakarma at home with the right knowledge and preparation.
Ayurvedic Panchakarma is a set of five therapeutic procedures that help cleanse the body of toxins (ama) and restore balance to the doshas (bioenergies) – Vata, Pitta, and Kapha. These procedures include Vamana (emesis therapy), Virechana (purgation therapy), Basti (enema therapy), Nasya (nasal administration), and Raktamokshana (bloodletting).
शरीर शोधन के प्रक्रिया में प्रयोग किए जाने वाले उन पांच अलग-अलग चिकित्सा व्यवस्थाओं को आयुर्वेद में पंचकर्म इस नाम से जाना जाता है। जैसे वमन, विरेचन, अनुवासन,निरुह और नस्य इन पांच चिकित्सा के अलग-अलग पद्धतियों को एक साथ क्रमबद्ध तरीका से किया जाए तो उसे एक पंचकर्म इस नाम से पहचाना जाता है।
कुछ आचार्य इसको वमन विरेचन बस्ति नस्य और शिरामोक्षण इस क्रम से भी पंचकर्म को बताया जाता है।
अब बात करेंगे कि किसी व्यक्ति के लिए पंचकर्म की आवश्यकता क्या है और इसकी सिद्धि का अर्थ क्या है यानी पंचकर्म से हमें क्या फायदा मिलेगा क्या यह चिकित्सा व्यवस्था सबके लिए हमेशा उपयोगी है?
इस सवाल का जवाब देने से पहले आपको शरीर निर्माण में अग्नि की महत्व और कायाग्नि से संबंधित सटीक जानकारी देना जरूरी है। इसी जानकारी से आपको पंचकर्म का महत्व और आवश्यकता समझ में आएगा।
वास्तव में पंचकर्म की जरूरत की जिक्र चरक संहिता विमान स्थान अध्याय ६ में शरीर प्रकृति, दोष प्रकृति आदि विषयों में चर्चा करते वक्त पहली बार किया जाता है।
आयुर्वेदिक शोधन और समन चिकित्सा का प्रतीक पंचकर्म चिकित्सा करते वक्त हर चिकित्सकों को कायाग्नि के ऊपर खास ख्याल रखना होता है। काय-चिकित्सा में प्रयोग किए जाने वाला काय इस शब्द का अर्थ भी अग्नि ही से लिया जाता है। यानी काय का मतलब ही अग्नि होता है इसका मतलब काय चिकित्सा का मतलब अग्नि की चिकित्सा होता है। यानी कि समझ लीजिए अभी हम अग्नि की चिकित्सा पंचकर्म के माध्यम से करने वाले हैं।
हम सभी परमात्मा के अंश से जन्म लेकर आते है वह परमात्मा जो दोष और गुणों से रहित है इस आधार पर हम कह सकते हैं हर व्यक्ति मां के गर्भ में बीज रुप से सम प्रकृति स्वरूप में रहता है जो किसी प्रकार के रोग और दोषों के प्रभाव से रहित होता है ।
मगर गर्भ में रहते हुए मां के आहार विहार से परिपोषीत वह बच्चा का शरीर धीरे-धीरे अप्राकृतिक दोषों के गुणों से एक और विकृत प्रकृति का निर्माण करता है ( प्रकृति कभी विकृत नहीं होती यहां विकृत के बाद प्रकृति यह शब्द सिर्फ समझने के लिए लिखा जा रहा है ) जिसे आयुर्वेद मे दोष प्रकृति के नाम से पहचाना जाता है यह माता के आहार विहार से उत्पन्न कफ पित्त और बात से संबंध रखता है। यही आहार विहार से उत्पन्न दोष ही धीरे-धीरे प्रभावित होकर अग्नि और बल के स्वरूप को तैयार करता है।
देहाग्नि का प्रकार:-
आयुर्वेद के मुताबिक ४ प्रकार के अग्नि होता है जिस का सम्वन्ध माता द्वारा किया गया आहार बिहार से रहता है। कफ कारक अहार विहार से मंदाग्नि, वातकारक आहार बिहार से विषमाग्नि,पित्तकारक आहार बिहार से तिक्ष्णाग्नि तथा सन्तुलित आहार बिहार से सम अग्नि इस प्रकार ४ अग्नि आयुर्वेद ने माना है।
जिससे शरीर बल नियंत्रित होता है या कहूं शरीर में बल जहां से तैयार होता है उसी के आधार पर अग्नि भी decide होती है। शरीर में अग्नि चार प्रकार का होता है उसके संपूर्ण व्याख्या सहित चलिए चर्चा करते हैं
learn more :- अग्नियों की पहचान
सम अग्नि की पहचान:-
जब तक हितकर भोजन खाते रहे तब तक तो ठीक रहता है मगर अहितकर भोजन खाते ही हानि होने की संभावनाएं रहती है यह समाग्नि की पहचान है।
तिक्ष्ण अग्नि की पहचान:-
व्यक्ति द्वारा खाए हुए हितकर तथा अहितकर सभी प्रकार के गरीष्ट भोजन भी आसानी से पच जाता है साथ में थोड़ी ही देर में दोबारा भूख भी लग जाती है वह तिक्ष्णाग्नि है । संदर्भ चरक विमान स्थान अध्याय ६ सूत्र:- १२/१३/१४/१५ etc..
वालक के गर्भ में रहते हुए उसके माता जब पित्त के उष्ण,द्रव,सर,तिक्ष्ण आदि गुणों को बढ़ाने वाली आहार बिहार करती है तो संतान का दोष प्रकृति पित्त प्रधान हो जाता है ऐसे में वह बालक भी बड़े होकर अपने पित्तदोष प्रकृति के गुणों को बढ़ाने वाली उष्णादि आहार बिहार करता है तो उस व्यक्ति को जल्दी ही पित्त से संबंधित व्याधि हो सकती है।
शरीर में तैयार हुए पित्त प्रधान अग्नि हमेशा उस व्यक्ति को अपने प्रभाव से पीड़ित करता रहता है।
मंदाग्नि की पहचान:-
व्यक्ति द्वारा खाए हुए अहितकर भोजन की तो बात ही छोड़िए हितकर भोजन भी अक्सर परिणमन नहीं होता यानी सही तरीका से पचता नहीं है ऐसे स्वरूप को मंदाग्नि कहा जाता है।
विषमाग्नि की पहचान:-
सभी प्रकार के भोजन कभी तो आसानी से पच जाता है मगर कभी हितकर लघु भोजन भी पचता ही नहीं है ऐसी स्थिति को विषम अग्नि कहा जाता है।
वातल वक्ति में रोग का मूल कारण
माता के वातल आहार विहार से प्रभावित अग्नाधिष्ठान वात प्रधान रुक्ष,शित आदि गुणों से प्रभावित होता है। परिणामत: मन और शरीरावयव भी गुणवाहुल्य दोषानुसार अनुकूलता प्राप्त करता है।
जैसे:- शरीर वायु के गुणों के अनुकूल हो तो रुक्ष,खर,शित गुणों से प्रभावित होकर व्यक्ति का धातु, organ, blood vessels भी इन्हीं गुणों के आश्रित होकर वैसे ही रुखा आदि स्वरुप और वर्ण वाला होता है। यदि व्यक्ति वात कारक आहार बिहार भी अधिक मात्रा में करता है तो वात प्रधान अग्नि और सभी शरीर के नसनाडीयों में समान गुणों से प्रकुपित करता है। यानी की अग्निस्थान विषम से मंद हो जाता है सर्व शरीर रुक्ष हो जाता है। कफके गुणों की हानी होने लगती है परिणामत: उस व्यक्ति को वात प्रधान रोग होने लगता है। तव ऐसी विषम अवस्था प्राप्त होने पर वह व्यक्ति चिकित्सक के पास दौड़ता है।
क्रमश: ऐसे वातल गुण प्रधान विषमाग्नि से युक्त व्यक्ति अत्यधिक वात कारक आहार विहार कर वातज रोगों से पीड़ित होता है तो चिकित्सा करते वक्त सर्वप्रथम निम्न विचारों का विमर्श करना चाहिए।
• जैसे इस रोगी में जो वातज रोग तैयार हुआ है वह वायु के किस गुणों से हुआ है जैसे रुक्ष शीत लघु सूक्ष्म चल विषद खर etc..
• गुणों की पहचान आहार बिहार से करें और गुणों के विपरीत आहार कराये साथ में सोधन समन की आवश्यकता हो तो उसे भी करें।
• इन कर्मों से प्रकुपित वायु को साम्यावस्था में लेआये - जब तक यह साम्यावस्था में नहीं आता तब तक अनेक विधि से प्रयत्न करते रहे।
• दोष के साम्यावस्था में आने के बाद फिर आवश्यकता अनुसार दीपन लगायत पंचकर्म की चिकित्सा करें।
learn more :- स्वतंत्र दोष और परतंत्र दोष व्याधि किसे कहते हैं
आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए मूलत २ प्रकार बतलाया गया है जिसमे से प्रथम है सोधन चिकित्सा और दुसरी है समन चिकित्सा।
जब तक हम विगडे हुए दोषों को शरीर से बाहर नहीं निकालेंगे तब तक शरीर के अंदर रह रहकर वह कुछ न कुछ समस्या तैयार करता रहेगा इस विषय में देखिए ग्रंथकार का विचार क्या है
दोषाणां च द्रुमाणां च मूलेऽनुपहते सति |
रोगाणां प्रसवानां च गतानामागतिर्भुवा ||२१|| (च.सू.अ.16)
अर्थ -- जिस प्रकार एक वृक्ष को जड़ से ना काटा जाए तो वह कुछ समय पश्चात हरा भरा हो जाता है लेकिन उसी वृक्ष को यदि जड़ से काट दिया जाए तो उसकी उत्पत्ति पुनः नहीं होती है उसी प्रकार दोषों का संशोधन (detoxification) करने से पुनरावृति (दोबारा पनपेगा नहीं/ खड़ा नहीं हो पाएगा) नहीं होती हैं।
न शोधयति यद्दोषान् समान्नोदीरयत्यपि ।
समीकरोति विषमान् शमनं तच्च सप्तधा ।।६।।
पाचनं दीपनं क्षुत्तृद्व्यायामातपमारुताः । अ.हृ.सू. 14
शमन के लक्षण एवं भेद- जो चिकित्सा बढ़े हुए दोषों का शोधन न करे, जो दोष सम हैं उसकी वृद्धि भी न करे और जो दोष विषम हैं उनको सम करे, उसे शमन चिकित्सा कहते हैं। यह सात प्रकार की होती है।
१.पाचन ( आहार रस को पचाने वाली अग्नि की व्यवस्था)
२. दीपन (जठराग्नि को बढ़ाने वाली व्यवस्था)
३. क्षुधा (भूखा रहना, उपवास या लंघन करना)
४. तृष्णा (पाचक पित्त के कर्म है तृष्णा और क्षुधा)
५. व्यायाम (व्यायाम करने से शरीर में लघुता आती है)
६. आतप (धूप व आग को सेकना)
७, मारुत (शुद्ध वायु का सेवन करना)
जैसे कि हम कह चुके हैं दोष प्रकृति से संबंधित आहार विहार से जठराग्नि मंद हो जाता है परिणाम स्वरूप उस दोष से संबंधित अनेक रोग शरीर में तैयार होते हैं यहां चिकित्सा करने के लिए सर्वप्रथम उन वातज गुणों की पहचान कर उसके विपरीत आहार बिहार तथा चिकित्सा द्वारा जठराग्नि जो मंद पड़ चुका था को साम्यावस्था में लेकर आना होगा वह पांच विधि जिसके माध्यम से हम ऐसे बिगड़े हुए देशों को सम अवस्था में लेकर आ सकते हैं।
चलिए जरा इन पांचो के ऊपर इनकी आवश्यकताएं कब-कब पड़ती है शरीर में कैसे लक्षण हो तो पंचकर्म चिकित्सा में इनका उपयोग करें इस विषय में चर्चा करते हैं।
कफज दोष प्रकृति के रोगी में मंदाग्नि के बावजूद भी कफ कारक अत्यधिक आहार बिहार करने से शरीर में गुरु,शीत, मृदु, स्निग्ध,मधुर, पिच्छील इन गुणों की वृद्धि हो जाने पर वमन चिकित्सा रोगी को दिया जाता है।
बमन चिकित्सा विधि के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां click करें
अत्यधिक पित्त कारक आहार विहार से शरीर में पित्त के गुणों की अधिक वृद्धि होने से कई प्रकार के रोग शरीर में पनप सकता है इससे बचने के लिए पित्त दोष से तैयार मलों को शरीर से बाहर निकालने हेतु पंचकर्म के तहत विरेचन चिकित्सा करना चाहिए।
वातप्रधान आहार विहार से तैयार वातज दोषों को शरीर से बाहर निकालने के लिए वस्ति का बहुत अधिक महत्व है । आयुर्वेदिक ग्रंथ के आधार पर वस्ति तीन प्रकार का होता है
१- उत्कलेशन वस्ति
२- शोधन वस्ति
३- शमन वस्ति
आचार्य सुश्रुत के अनुसार वस्ति तीन प्रकार के होते हैं
(१) निरुह बस्ति - और (२) स्नेह बस्ति
अधिष्ठान भेद से बस्ति
१. पक्वाशयगत बस्ति - गुदामार्ग से दी जाने वाली बस्ति का अधिष्ठान पक्वाशय होता हैं।
२. गर्भाशयगत बस्ति:- योनि मार्ग से दी जाने वाली बस्ति का अधिष्ठान गर्भाशय होता हैं।
३. मूत्राशयगत बस्ति :- मूत्र मार्ग से दी जाने वाली बस्ति का अधिष्ठान मूत्राशय होता हैं।
४. व्रणगत बस्ति --- व्रण के शोधन, रोपण के लिए व्रण मुख से औषध पहुंचाना व्रणबस्ति कहलाता हैं।
१. क्रम बस्ति
यहां total 30 बस्ति देते हैं :-
पहले एक अनुवासन बस्ति और अंतिम के पांच अनुवासन बस्ति मध्य मे १२ आस्थापन और १२ अनुवासन इस क्रम से 30 बस्ति क्रम बस्ती में होता है।
२. काल बस्ति
काल बस्ति 15 होता है।
प्रथम 1 और अन्त में 3 अनुवासन वस्ति दिया जाता है। मध्य में 6 अनुवासन तथा उस्के मध्य में 5 निरुह वस्ति इस प्रकार 15 बस्ति काल बस्ति होता है।
३. योग बस्ति
योग बस्ति की संख्या 8 होती है जिसमें आरंभ और अंत में एक-एक अनुबासन बस्ति और मध्य में एक के बाद एक तीन-तीन अनुवाशन और निरुह वस्ति देते हैं।
आचार्य सुश्रुत के अनुसार कर्म के अनुसार बस्ति के भेद
१. शोधन बस्ति, २. स्नेहन बस्ति, ३. लेखन बस्ति, ४. बृंहण बस्ति
बस्ति चिकित्सा के विषय में संपूर्ण जानकारी के लिए इस link में click करें
नाक के छिद्र से तेल या medicated क्वाथ या पाउडर या धूयें को निश्चित समय और मात्रा से डालने की विशेष प्रक्रिया को नस्य चिकित्सा इस नाम से जाना जाता है।
आयुर्वेद में नस्य चिकित्सा के विषय में अधिक चर्चा किया गया है ज्यादातर उदान वायु (मस्तिष्क, नाक, कान, गला, आंख,छाती)के क्षेत्र से संबंधित रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है। अनेक जगह स्त्री रोगों से संबंधित समस्याओं में भी नस्य देने की चर्चा की गई है। जैसे यदि मासिक धर्म से संबंधित समस्या हो गर्भधारण न हो रहा हो तो अदरक के रस नाक में डालना चाहिए।
नस्य का प्रकार
कर्म के आधार पर नस्य को 2 भेदों में बांटा गया है
बृंहण नस्य
यह भी मर्श और प्रतिमर्श इस तरह से दो भेद वाला होता है यह नस्य शरीर के कमजोर नस नाड़ियों को पोषण देने वाला होता है।
विरेचन नस्य
विरेचन नस्य भी दो प्रकार का बताया गया है उसमें से पहला है अवपीडन और दूसरा है ध्मापन यह मस्तिष्क में जमे हुए गंदगियों को बाहर निकलने वाला होता है।
वैसे अलग-अलग आचार्यों ने नस्य के विषय में अलग-अलग राय रखा है।
आचार्य चरक के अनुसार नस्य पांच प्रकार के होते हैं
नावक,अवपीडक,ध्मपन,धूम,प्रतिमर्श
आचार्य कश्यप के अनुसार नस्य दो प्रकार के होते हैं
एक है बृंहण दूसरा है कर्षण नस्य
आचार्य सारंगधर के अनुसार नस्य 2 प्रकार का होता है
रेचन और स्नेहन
नस्य चिकित्सा के विषय में अधिक जानकारी के लिए इस link में click करें
रक्त मोक्षण आयुर्वेद का बहुत प्रचलित चिकित्सा विधि है रक्त मोक्षण के माध्यम से चिकित्सक रोगी के शरीर में पित्त के दूषित परमाणुओं को बाहर निकालने के लिए प्रयत्न करता है। व्यान वायु के प्रभाव से प्रभावित रक्त जो त्वचागत होकर रक्त से संबंधित अनेक प्रकार के समस्याओं को तैयार कर रहा है ऐसे रक्त को बाहर निकाले बगैर कोई भी आयुर्वेदिक दवाई शरीर में काम नहीं करता इसी प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए आयुर्वेद ने दूषित रक्त को बाहर निकालने के लिए रक्त मोक्षण कि चिकित्सा विधि का निरूपण किया है।
रक्त मोक्षण के विषय में अधिक जानकारी के लिए इस link में click करें
पंचकर्म कब-कब करना चाहिए
आयुर्वेद के मुताबिक पंचकर्म चिकित्सा दो अवस्थाओं में की जाती है उनमें से पहला है रोग की अवस्था - यानी जब व्यक्ति के शरीर में दोष अत्यधिक विकृत अवस्था में रहता है तो उन बिगड़े हुए दोषों को शरीर से बाहर निकालने के लिए पंचकर्म चिकित्सा की जाती है।
इसके अलावा हमेशा अपने स्वस्थ को बनाए रखने के लिए ऋतु परिवर्तन के समय में भी पंचकर्म चिकित्सा की जाती है यह आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा विधि हर स्वस्थ व्यक्तियों को भी करने के लिए बताया जाता है।
इस चिकित्सा के प्रताप से वह व्यक्ति किसी भी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है।
आयुर्वेद के मुताबिक गर्मी समाप्त होकर सर्दी आने या सर्दी समाप्त होकर गर्मी आने के बीच में व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है ।
कई प्रकार के विषैले तत्व हवाओं में प्रकृति के माध्यम से फैल जाते है उस वक्त अपने शरीर से ऋतु वैशम्य के कारण उत्पन्न दोष को बाहर निकालने के लिए और आने वाले मौसम में अपने शरीर को एडजस्ट करने के लिए शोधन प्रक्रिया की जाती है।
यह चिकित्सा गर्मी खत्म होकर सर्दी के लिए शरीर को तैयार करना हो तो विरेचन प्रधान पंचकर्म की जाती है। सर्दी खत्म होकर गर्मी आने वाला हो तो वमन प्रधान चिकित्सा की जाती है। बरसात के मौसम में बस्ति प्रधान पंचकर्म चिकित्सा की जाती है।
Panchakarma offers numerous benefits, including improved digestion, enhanced immunity, mental clarity, and overall well-being. It is especially beneficial for those suffering from chronic diseases, stress-related disorders, and lifestyle-related imbalances.
पंचकर्म करने से शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है। व्यक्ति शरीर और मन से हमेशा संतुलित रहता है । पंचकर्म करने वालों के शरीर में आहार बिहार से उत्पन्न रोग कभी भी पनपता नहीं है। आयुर्वेद का मानना है कि देशों को शरीर में संचित (stable) होने नहीं देना चाहिए हमेशा विधिपूर्वक पंचकर्म यदि आप करते हैं तो शरीर में कोई भी विकृत दोष स्थिर नहीं रह पाते ।
हालांकि रोग होने के अनेक कारण होते हैं उनमें से पूर्वजन्म के पापकर्म के परिणाम से यदि इस जन्म में कोई असाध्य रोग होता है तो आयुर्वेद यहां पंचकर्म करने से भी उस रोग का ठीक ना होना ऐसा बताता है। क्योंकि विकृत प्रकृति को कभी कोई व्यक्ति प्राकृत अवस्था में नहीं लेआ सकता।
हर विद्वान आयुर्वेदिक चिकित्सकों का मानना है कि कोई भी व्यक्ति आयुर्वेदिक पद्धति से घर में ही पंचकर्म करने से पहले किसी योग्य पंचकर्म चिकित्सक से एक बार जरूर परामर्श करें क्योंकि पंचकर्म चिकित्सा करने से पूर्व रोग परीक्षण करने और निश्चित कौन सा पंचकर्म की पद्धति इस व्यक्ति में चलाई जाना चाहिए यह डिसाइड आयुर्वेद के गुढ़ सिद्धांत के तहत वह आयुर्वेदिक डॉक्टर खुद से डिसाइड करते हैं।
आजकल सोशल साइट में बहुत अधिक अनेक तरह के भ्रामक आयुर्वेदिक चिकित्सा के नाम पर प्रचार प्रसार होती रहती है लोग इन बातों से प्रभावित होकर अपने आप घर में खुद के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं जबकि उनको अपने बारे में अधिक मालूम नहीं होता है और जो कुछ वह कर रहे हैं उसके गुणधर्म के बारे में भी अधिक जानकारी नहीं होती।
आप यूं समझ लो की एक डॉक्टर लगभग 10 वर्ष तक आयुर्वेद कॉलेज में पढ़ने और अनेक प्रकार के प्रैक्टिकल प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद भी चिकित्सा में अनेक प्रकार के गलतियां करते देखे जाते हैं।
फिर यह कहना तो गलत होगा कि कोई भी व्यक्ति अपने घर में ही पंचकर्म बिना गलती से कर पाएगा।
क्योंकि सिर्फ उल्टी करना ही वमन चिकित्सा नहीं होता है और सिर्फ लूज मोशन वाली दवाई खाना ही विरेचन चिकित्सा नहीं होता है। वास्तव में :- चिकित्सा की पता नहीं कितने आयाम होते हैं - कितनी बातों का ख्याल रखना पड़ता है इसीलिए मेरा मानना यह है कि किसी योग्य डॉक्टर के निर्देश प्राप्त होता हैं तो आप अपने घर में ही पंचकर्म चिकित्सा कर सकते हैं। फिर आप कहीं भी रहकर अपने लिए सफल पंचकर्म चिकित्सा कर सकते हैं ।
अपने आप से बगैर आयुर्वेद पढ़ें घर में खुद से ही पंचकर्म करना खुद को दंड देना जैसा है क्योंकि आयुर्वेद पंचकर्म को एक तरह से शरीर को दंड देना बताता है। आयुर्वेद का मानना है कि पूर्वजन्म में किए पाप के कारण व्यक्ति रोगी होता है और उसी पाप प्रक्षालन का एक प्रक्रिया पंचकर्म है।
पंचकर्म चिकित्सा के लिए सटीक खर्चा कितना है वह उसे डॉक्टर के ऊपर निर्भर करता है आजकल अधिकतर लोग पंचकर्म के लिए अधिक पैसे लेकर सही विधि से पंचक्रमण नहीं कर रहे हैं मात्र एक व्यवसाय ही रह गया ऐसे में जरूरी है एक योग्य पंचकर्म डॉक्टर का सटीक चुनाव स्वयं से किया जाए।
मेरा मानना है हर व्यक्ति को अपने परिवार के लिए ही सही थोड़ी बहुत आयुर्वेद जरूर सीखना चाहिए ताकि समय आने पर खुद अपना इलाज स्वयं से किया जा सके।
में वैद्य द्रोणाचार्य Ayurveda and naturopathy therapist , online Ayurveda trainer and editor यदि रोगी दूर है तो online consultancy charge लेकर पंचकर्म की सभी विधि उसके घर में ही उसी के हाथों कर देता हूं ताकि रोगी एक ही बार में चीजें सीख लेता है।
हमारे लिए दूर बैठे रोगियों के लिए online के माध्यम से चिकित्सा करने में सबसे बड़ी मुश्किल बस्ति चिकित्सा में आती है ।
बाकी बमन,विरेचन नस्य यह सभी हम आराम से रोगी से करा सकते हैं।
Ayushyogi बहुत सारे लोगों को online के माध्यम से आयुर्वेद के साथ panchkarm course का training देता है ऐसे में कोई भी व्यक्ति अपने लिए अपने घर में रहते हुए स्वयं से पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत बस्ति चिकित्सा भी कर सकता है इसमें हम online panchakarma training के माध्यम से निगरानी रखते हैं।
पंचकर्म में बहुत सारे दवाइयां लगता है यदि आप घर बैठे किसी वैद्य के निगरानी में पंचकर्म कर रहे हैं मगर पंचकर्म हेतु आपको ताजा और शुद्ध जड़ी बूटियां नहीं मिल रही है तो आप आयुष योगी से संपर्क कर panchkarm treatment kit मंगा सकते हैं इसमें वमन विरेचन और बस्ति मैं प्रयोग किए जाने वाली सभी प्रकार के दवाइयां रहता है।
During Panchakarma, it is crucial to follow a light, easily digestible diet and maintain a calm and peaceful lifestyle. Avoiding processed foods, caffeine, and alcohol can further support the detoxification process.
(FAQs)
Can I do Panchakarma at home by myself?
Yes, with proper guidance from an Ayurvedic practitioner, you can perform certain Panchakarma therapies at home. However, some procedures may require professional supervision.
Is Panchakarma safe for everyone?
Panchakarma is generally safe for most people when done correctly and under the guidance of a qualified practitioner. However, individuals with specific health conditions should seek medical advice before undergoing Panchakarma.
How often should Panchakarma be done?
The frequency of Panchakarma depends on individual factors such as age, health status, and doshic imbalance. It is usually recommended once or twice a year as a seasonal cleanse.
Are there any side effects of Panchakarma?
Panchakarma is a detoxification therapy and may initially cause mild side effects such as fatigue, headache, or digestive disturbances. These symptoms are temporary and indicate that the body is eliminating toxins.
Can Panchakarma help with weight loss?
Panchakarma can support weight loss by improving digestion, metabolism, and detoxification. However, it is not a quick fix for weight loss and should be combined
by Dr. Dronacharya Niroula (BNYS/ Aacharya in Sanskrit Philosophy ) Ayurveda Pulse diagnosis And Trainer Website Maintainer @ Aditor | Contact nmr:- 8699175212
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